स्वच्छंदतावाद का अर्थ और परिभाषा

स्वच्छन्दतावाद: स्वच्छन्दतावाद (अंग्रेज़ी-Romanticism) कला, साहित्य और बौद्धिक क्षेत्र का एक आन्दोलन था जो अट्ठारहवीं शताब्दी के अन्त में यूरोप में आरम्भ हुआ था। १८०० से १८५० तक के काल में यह आन्दोलन अपने चरमोत्कर्ष पर था।

स्वच्छंदतावाद का अर्थ और परिभाषा


हिंदी साहित्‍य में स्वच्छंदतावाद का प्रभाव 20वीं सदी के दूसरे दशक में छायावादी कविता के रूप में सामने आया। डॉ॰ अमरनाथ के अनुसार हिंदी में स्वच्छंदतावाद का सर्वप्रथम ज़िक्र  रामचंद्र शुक्ल के ग्रंथ हिंदी साहित्य का इतिहास में मिलता है जहाँ पर उन्होंने श्रीधर पाठक को स्वच्छंदतावाद का प्रवर्त्तक कहा दिया है। अमरनाथ के अनुसार छायावाद तथा स्वच्छंदतावाद में गहरा साम्य है। दोनों में प्रकृति-प्रेम, मानवीय दृष्टिकोण, 
वैयक्तिक प्रेमाभिव्यक्ति, आत्माभिव्यंजना, रहस्यभावना, प्राचीन संस्कृति के प्रति व्यामोह, प्रतीक-योजना, निराशा, पलायन, अहं के उदात्तीकरण आदि के दर्शन होते हैं।

स्वच्छंदतावाद का अर्थ और परिभाषा

स्वच्छन्दतावाद का अर्थ है 'मुक्त होना', जिस प्रकार फ्रांस की क्रान्ति ने राजनैतिक क्षेत्र में मुक्ति का आह्वान किया, उसी प्रकार स्वच्छन्दतावाद ने साहित्यिक रूढ़ियों से साहित्य को मुक्त किया।

पश्चिमी साहित्य चिन्तन में रूसो की प्रेरणा तथा विलियम वर्ड्सवर्थऔर सैमुअल टेलर कॉलरिज के नेतृत्व में एक साहित्यिक आन्दोलन का सूत्रपात 18वीं सदी के अन्त में हुआ, जिसे अंग्रेजी समीक्षा में रोमाण्टिसिज्म' कहा जाता है।

आचार्य शुक्ल ने इस शब्द का अनुवाद 'स्वच्छन्दतावाद' किया। उनके अनुसार, “द्विवेदीयुगीन साहित्य में श्रीधर पाठक के नेतृत्व में एक विशेष धारा दिखाई देती है जिसे प्रवृत्तियों के आधार पर 'स्वच्छन्दतावाद' कहा जा सकता है।"

नई स्तरों ने इन छायावाद आत्मकेन्द्रिकता, व्यक्तिपरकता, रूढ़ि विद्रोह स्वच्छन्दतावादी की प्रमुख प्रवृत्तियाँ हैं। इस काव्य धारा की एक अन्य विशेषता व्यक्तिवाद की प्रतिष्ठा है।

स्वच्छन्दतावाद और छायावाद के सम्बन्धों की आरम्भिक व्याख्या आचार्य शुक्ल ने की। उनका मत है कि द्विवेदी युग में श्रीधर पाठक के नेतृत्व में स्वच्छन्दतावाद की जिस धारा का आरम्भ हुआ, वह हिन्दी साहित्य के विकास में एक नया तथा सार्थक दृष्टिकोण लेकर आई थी। 

स्वच्छन्दतावादी कवियों ने पहली बार जगत की सच्चाई और वैयक्तिकता जैसे मूल्यों की स्थापना की।

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