धरती धन न अपना (उपन्यास) : जगदीश चन्‍द्र । Dharati Dhan Na Apana - Jagdish Chandra

जगदीशचन्द्र एक हिन्दी साहित्यकार थे। इन्‍होंने साहित्य, पत्रकारिता एवं समाचार सम्पादक के रूप में देश की अविस्मरणीय सेवा की। समाज का शायद ही कोई पक्ष उनकी पैनी (तेज) नजर से छूट सका हो। उच्च वर्ग से लेकर निम्न वर्ग तक, राजनेता से लेकर निरीह जनता तक, ब्राह्मण से लेकर शूद्र तक आदि सभी की समस्या को उन्होंने हमारे सामने रखा है। इनके उपन्यासों का आधार भारतीय समाज का सर्वाधिक उत्पीड़ित वर्ग-दलित मजदूर है।

इस पोस्‍ट के माध्‍यम से जगदीशचन्द्र के संक्षिप्‍त जीवन परिचय तथा इनके धरती धन न अपना के पात्र, उद्देश्‍य, कथन, समीक्षा एवं महत्‍वपूर्ण प्रश्‍नोत्तर की चर्चा करेंगे। 

धरती धन न अपना उपन्यास के पात्र

    जगदीश चन्‍द्र का जीवन परिचय 

    लेखक का नाम :- जगदीश चंद्र (Jagdish Chandra)

    जन्म :- 23 नवम्बर, 1930

    मृत्यु :- 10 अप्रैल, 1996

    पिता व माता :- करमचंद वैद्य, त्रिकमदेवी 

    प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ :-

    • उपन्यास -

      1. यादों का पहाड़ (1966)
      2. धरती धन न अपना (1972)
      3. आधा पुल (1973)
      4. कभी न छोड़े खेत (1976)
      5. मुठ्ठी भर कांकर (1976)
      6. टुंडा लाट (1978)
      7. घास गोदाम (1985)
      8. नरक कुंड में वास (1994)
      9. लाट की वापसी (2000)
      10. जमीन अपनी तो थी (2001)
    • नाटक - नेता का जन्म
    • कहानी संकलन - पहली रपट 

    पुरस्कार और सम्मान :- विद्यावारिधि, कालिदास अवॉर्ड और बिहार राजभाषा पुरस्कार।

    धरती धन न अपना (उपन्यास) : जगदीश चन्‍द्र

    धरतो धन न अपना उपन्यास के रचयिता जगदीश चन्द्र दलित उपन्यासकारों मे महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनके मन में गरीबों, मजदूरों, दलितों एवं भूमिहीन किसानों के प्रति एक सहजता व सहानुभूति जागृत हुई और उन्होंने इस कहानी में अपनी सहानुभूति को एक विचारात्मक रूप देने का प्रयास किया। 

    धरती धन न अपना उपन्यास के प्रमुख पात्र

    धरती धन न अपना उपन्यास के प्रमुख पात्र निम्‍न है :-

    काली :- उपन्यास का मुख्य पात्र है, जो दलित समाज (चमार जाति) से सम्बन्ध रखता है तथा जो उच्च वर्ग ठाकुर, जमीदार, साहूकारों के अत्याचार व शोषण से पीड़ित है।

    ज्ञानो :- उपन्यास की मुख्य नारी पात्र तथा दृढ़ चरित्र है, जो काली से प्रेम करती है तथा अपने प्रति होते अन्याय का विरोध करना जानती है।

    नन्दसिंह :- दलित समाज का एक गरीब पात्र है, जो काली की भाँति सवर्ण समाज के अत्याचारों से परेशान था।

    डॉ. डॉ. बिशन दास :- डॉ. विशन दास किताबी कम्युनिष्ट चरित्र है। दवाइयों की दुकान की बड़ी आदत है। है। का प्रतीक उसमें बोलने 

    छज्जू शाह :- छज्जू शाह बनिया संप्रदाय का प्रतिनिधि, चरित है। - गांव में चौधरियों और दलितों दोनों से उसका मधुर संपर्क है।

    अन्य पात्र :- दलित चरित्र 'मंगू' (सानो का भाई), काली की चाची प्रतापी, तथा पड़ोसी निक्को - प्रीतो' आदि। इस सब के अतिरिक्त भी कुछ पात्र हैं। जो निम्न है- जस्सो (जानी की माँ), निहाली (पड़ोसी), जीतू (निहाली का पुत्र), मंशी शिवराम (मास्टर) तथा पंडित संतराम आदि ।

    धरती धन न अपना उपन्यास की समीक्षा

    धरती धन न अपना पंजाब के दोआब क्षेत्र के दलितों की कहानी है, जिसे लेखक ने मुख्य पात्रों काली व ज्ञानो की कहानी के माध्यम से हमारे समक्ष रखा है। उपन्यास में प्रत्येक घटना इतने प्रामाणिक रूप से उस समय के सामाजिक ढाँचे को प्रस्तुत करती है कि पाठक स्वयं को उस समाज का एक अंग महसूस करने से अपने को नहीं रोक पाता।

    इस उपन्यास में कथित चमार जाति के शोषण की त्रासदी को प्रामाणिकता के साथ चित्रित किया गया है। 'काली' इस उपन्यास का प्रमुख चरित्र नायक है, जो गाँव की अभावग्रस्त जिन्दगी और भूख की त्रासदी से हारकर शहर की ओर भागता है, किन्तु अपनों का मोह और गाँव का आकर्षण उसे छह वर्षों के बाद फिर से उसी गाँव में खींच लाता है।

    जाति विभाजन के कारण ये लोग चमादड़ी (गाँव का नाम) में रहते हैं और बहिष्कृतों का जीवन जीते हैं। चमादड़ी में केवल अभाव, दरिद्रता, अशिक्षा, अन्धविश्वास और असुरक्षा का ही साम्राज्य है। ठाकुर (शोषण वर्ग) दलितों को दास बनाकर रखते हैं। गाँव में केवल काली ही नहीं अपितु उसका पूरा वर्ग इस भेद भाव को झेलता है। ठाकुरों का जब मन आया, तब चमार के किसी लड़के को पीट देते और गाली के बिना तो चमारों को सम्बोधित ही नहीं किया जाता। अपने प्रति होते शोषण के विरुद्ध वे लोग आवाज़ तक नहीं उठा सकते, क्योंकि वे ठाकुरों पर निर्भर हैं, उनके घर में एक-एक वक्त की रोटी ठाकुरों की दया से आती है।

    जब कोई सारी ज़िदगी किसी की गुलामी करते रहने को विवश हो और उसका जीवन हमेशा अभाव से ही ग्रस्त रहे तो विद्रोह का स्वर अवश्य फूटता है। काली और ज्ञानो अपने प्रति होते अन्याय को सहन नहीं कर पाते और उनका विरोध करते हैं, किन्तु सवर्ण के साथ-साथ स्वयं उनका दलित समुदाय भी अज्ञानता और अन्धविश्वास के कारण उनका विरोध करता है, जिसकी परिणति ज्ञानो की हत्या और वह भी अपनी माँ और भाई द्वारा तथा काली के गाँव से पलायन के रूप में होती है।

    इस उपन्यास में भारतीय जाति-व्यवस्था के पीछे छुपे निहित स्वार्थ और षड्यन्त्र को भी उजागर किया गया है। मनुष्यों को जातियों के कटघरे में बाँटकर किसी एक जाति या वर्ण की श्रेष्ठता को बनाए रखने के प्रयासो की कटु सच्चाई को सामने लाया गया है। भारतीय समाज-व्यवस्था की कटु सच्चाइयों और विचारात्मक मतभेदों को बहुत ही संवेदनशीलता से उजागर करने के कारण धरती धन न अपना उपन्यास में वेदना की अभिव्यक्ति मर्मस्पर्शी ढंग से हुई है।

    उपन्यास में जहाँ एक ओर वेदना की आत्माभिव्यक्ति है, तो दूसरी ओर इस वेदना के कारणों की पड़ताल (जाँच) की है। उपन्यास की कथा संगुम्फित और सुगठित है। कथा को रोचक बनाने वाली नाटकीय स्थितियो और कसाव के कारण यह उपन्यास एक साँस में पठनीय है।

    इस उपन्यास में सवर्ण और हरिजनों के बीच व्यवहार का चित्रण किया गया है। सवर्ण जाति के सभी लोग हरिजनों को नीच समझते हैं। ठाकुर, साहूकार, पुरोहित जहाँ वर्ग समुदाय के प्रतिनिधियों के रूप में उपन्यास में उपस्थित हैं, वहीं नन्दसिंह जो पहले सिख बनता है और फिर ईसाई, जातिवाद से उपजी कुण्ठा का प्रतीक है। अन्य पात्रों का विकास कहानी के साथ-साथ होता चलता है और पाठक के सामने सभी पात्र एक-एक करके सहज रूप से सामने आते हैं। भाषा के स्तर पर इसमें गाँव के लोगों की सोच का सादापन और बोली का अक्खड़पन दोनों को संवादों में बहुत सुन्दर रूप में उभारा गया है। हुआ-छूत, अन्धविश्वास, जातिवाद, स्त्री-यौन शोषण जैसे गम्भीर मुद्दों के साथ-साथ उच्च वर्ग के दोगलेपन की कलई भी उपन्यासकार बड़े ही मजेदार ढंग से खोलता है।

    निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जगदीश चन्द्र ने अपने उपन्यास में मजदूर जीवन का यथार्थ रूप से चित्रण किया है। तत्कालीन समाज में जिन यातनाओ एवं उत्पीड़न का सामना यह दलित मजदूर वर्ग कर रहा था, उसी को आधार बनाकर इस उपन्यास की रचना की गई। काली जैसे करोड़ों दलित मजदूर चौधरियों के सामने उच्चवर्गीय लोगों के शोषण एवं उत्पीड़न को अपना भाग्य समझकर आज भी झेलने को विवश हैं। इस प्रकार जगदीश चन्द्र ने 'धरती धन न अपना' में उपन्यास के नायक काली द्वारा हरिजनों की आर्थिक कहानी प्रस्तुत को है।

     धरती धन न अपना उपन्यास के बारे में विद्वानों के कथन

    1. डॉ गोपालराय के अनुसार - धरती धन न अपना में स्वाधीनता पूर्व पंजाब की ग्रामीण पृष्ठभूमि में दलित जीवन की कथा गहरी संवेदना और कलात्मक तटस्थता के साथ प्रस्तुत की गई है।
    2. तरसेम गुजराल के अनुसार - प्रेमचंद ने गोदान में छोटे से किसान होरी के माध्यम से भूमिहीन मजदूर के रूप में परिवर्तन होते दिखाया है, जबकि जगदीशचंद्र के उपन्यास 'धरती धन न अपना' में भूमिहीन दलित सामने आया है।
    3. डॉ. गोपालराय के अनुसार - धरती धन न अपना उपन्यास में दलितों - के नारकीय जीवन स्थितियों और उच्च वर्गीय समाज द्वारा उनके शोषण और दमन का यथार्थ चित्रण है।

    धरती धन न अपना उपन्यास के महत्त्वपूर्ण कथन

    1. मैं भी एक मनुष्य हूँ और एक मनुष्य के रूप में जीने का मुझे भी पूरा अधिकार है। - काली
    2. डर-डरकर जीने से अच्छा मर जाना है। - काली
    3. गाँव में चमार होना सबसे बड़ा पाप है। घोर लांछन है। दो कौड़ी का मालिक काश्तकार अपने चमार के छठी का दूध दिला देता है। - नंद सिंह
    4. पहले गाँव में चमार थे या चौधरी सबकी इज़्ज़त सांझी होती थी। लड़ाई-झगड़ा तो दूर की बात, कोई चमार चौधरियों के सामने आंख उठाकर भी नहीं देखता था। जब जाट और चमार का खून मिलने लगा, तो यह गड़बड़ होने लगी। अगर आपके ही खून ने आपके बच्चे को मारा हैं, तो दुख क्यों हुआ। - बाबा फत्तू सिंह चौधरी से
    5. तुम्हें सारी दुनिया अपने जैसी नज़र आती है। तुमने तो हरजाई कुतिया को भी पीछे छोड़ दिया है। तू बाहर निकलती है, तो दस मर्द तेरे पीछे होते हैं। - प्रतापी प्रीतो से
    6. हमारी बहु-बेटियों को बेइज़्ज़ती करने वाले ये कौन होते है। हम इनकी बहु-बेटियों की बेइज़्ज़ती करेंगे। - बसन्ता
    7. महाशय जी इंक़लाब को न तुम रोक सकते हो और न ही पादरी। इंक़लाब तो बिखड़े हुए तूफ़ान की तरह है जो धर्म के कच्चे किनारों को तोड़कर चारों ओर फैल जाएगा। - बिशन दास
    8. ग़रीबी आदमी का ज़मीर खत्म कर देती है। ग़रीबी दूर हो जाए, तो हर आदमी जमीर का मालिक आप होगा और ग़रीबी दूर करने के लिए एक ही रास्ता है और वह है इंक़लाब। - बिशन दास
    9. जिस प्रकार बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है, उसी तरह बड़ा तबकें को एक्सप्लायत करता है। यानि उसकी मेहनत का फल उसे नहीं खाने देता, बल्कि खुदखा जाता है। इसी से क्लास स्ट्रगल (वर्ग संघर्ष) पैदा होता है। - बिशन दास
    10. काली, चलो लाठियाँ लेकर साला जो भी रास्ते में आए उसका सिर फोड़ दो। आज घर से मरने या मारने का फैसला करके चलो। - बन्तू
    11. क्या घोड़ेवाहा के चमार बहुत बेगैरत है, मुँह खोले बिना ही मार खा लेते हैं। - ज्ञानो
    12. मैं तो समझती थी कि तू जिगरे वाला आदमी है। तू आसानी से दबने वाला नहीं है। सुना है मर्द तो मिट्टी का भी जोरावर होता है। तू तो तगड़ा है। - ज्ञानो काली से
    13. गाँव के हर प्रेम की मारी मुटियार का गर्भवती होने के बाद यही हाल होता था और ऐसी मुटियार माँ की चीखे बहु ही करुण भरी होती थी। क्योंकि उनमें बेटी के पाप के साथ-साथ उसके पाप का पछतावा भी शामिल होता था। - ज्ञानो के मरने के संदर्भ में
    14. यह कबूतरी जंगली नहीं है, पालतू है। दाना देखते ही बैठ जाएगी। - मंगु लच्छो के प्रति
    15. मोया घर-उजाडू है। बेटा बाप से भी दो क़दम आगे निकल गया है। आज दौगचा बेच आया है कल माँ-बहन को बेच आयेगा। - प्रीतो
    16. गाँव में कुत्तों और चमारों की पहचान रखना मुश्किल है। -संता सिंह
    17. कुत्ते की औलाद तूने घोड़ी को खुला छोड़ दिया था? कोई ले जाता तो क्या तेरा बाप इतने रूपये भरता? कुत्ता चमार हर बात निराली करता है। - चौधरी मंगु से
    18. पादरी ऊपर से बहुत मीठा है, लेकिन उसकी काट तेज़ छुरी से भी गहरी होती है.. वह एक धर्म की अफ़ीम का नशा उतारकर दूसरे धर्म का नशा पिलाता है। - बिशनदास

    धरती धन न अपना उपन्यास के महत्वपूर्ण बिन्दु

    1. इस उपन्यास की भूमिका 'मेरी और से' में लेखक ने लिखा है- ''मेरा यह उपन्यास मेरी किशोरावस्था की कुछ अविस्मरणीय स्मृतियाँ और उनके दामन में डिपी एका अदम्य वदना की आज है।''
    2. यह उपन्यास पंजाब के होशियारपुर जिले के दोआब दौल के घोड़ेवाहा गाँव के दलितों की कहानी है।
    3. यह उपन्यास 'काली' और 'ज्ञानो' नामक दो मुख्य पात्रों के इर्द गिर्द ही बुना गया है जिसके माध्यम से तत्कालीन दलित समाज की सामाजिक स्थिति का चित्रण किया गया है।  
    4. पूंजीवादी व्यवस्था किस प्रकार दलितों का शोषण करती है पाठक इस उपन्यास द्वारा रूबरू होता है।
    5. इस उपन्यास का लेखन सन् 1955 में शुरू हुआ। पर बीच में कुछ वर्षों तक इसका लेखन कार्य बंद रहा । फिर, लेखक ने अपने मिल 'सोम आनन्द' की प्रेरणा से दोबारा इस उपन्यास का लेखन कार्य चालू किया। सन् 1968 में इसकी रचना पूरी हो गयी थी तथा 1972 में इसका पहला प्रकाशन हुआ। 
    6. लेखक ने इस उपन्यास को अपने मित्र 'सोम आनन्द' को समर्पण किया है। समर्पण के पृष्ठ में उन्होंने लिखा है- "सोम आनन्द को जिनके सहयोग ने मेरी सो रही सृजन-चेतना को पुनर्जागृत करके यह उपन्यास लिखने के लिए प्रेरित किया।''
    7. इस उपन्यास में कुल मिलाकर 49 अध्याय हैं।
    Dharati Dhan Na Apana Upanyas - Jagdish Chandra,

    Dharati Dhan Na Apana Upanyas MCQ

    प्रश्‍न 01. धरती धन न आपना उपन्यास का प्रकाशन 1972 है। इसमें कुल कितने अध्याय हैं?
    1. 50
    2. 39
    3. 49
    4. 51
    उत्तर : 3. 49


    प्रश्‍न 02. धरती धन न आपना उपन्यास में दलितों की सामाजिक स्थितियां इनमें से नहीं है?
    1. अंधविश्वास, छुआछूत
    2. जमींदारी प्रथा का बोलबाला
    3. कृषि जमीन न होने के कारण बेगारी
    4. अच्छी आर्थिक स्थिति का चित्रण
    उत्तर : 4. अच्छी आर्थिक स्थिति का चित्रण


    प्रश्‍न 03. काली गांव छोड़ कर कानपुर शहर कमाने चला जाता है। वह गांव वापस कितने दिन बाद आता है।
    1. 6 वर्ष
    2. 5 वर्ष
    3. 4 वर्ष
    4. 8 वर्ष
    उत्तर : 1. 6 वर्ष


    प्रश्‍न 04. धरती धन न आपना उपन्यास किसको समर्पित है।
    1. सोम आनंद
    2. जगदीश चंद्र
    3. बिशंदास
    4. नंदसिंह
    उत्तर : 1. सोम आनंद


    प्रश्‍न 05. धरती धन न अपना उपन्यास में काली कितना रुपया शहर से कमा के लाता है।
    1. 400
    2. 300
    3. 500
    4. 200
    उत्तर : 2. 300


    प्रश्‍न 06. धरती धन न अपना उपन्यास में लच्छो का बलात्कार कौन करता है?
    1. हरदेव सिंह
    2. हरनाम सिंह
    3. नंद सिंह
    4. संता सिंह
    उत्तर : 1. हरदेव सिंह


    प्रश्‍न 07. उपन्यास धरती धन न अपना में धर्म बदलने वाला नंद सिंह पहले किस जाति का होता है?
    1. यादव
    2. कुम्हार
    3. कोयरी
    4. मोची
    उत्तर : 4. मोची


    प्रश्‍न 08. मैं तो ज़मीन के इस टुकड़े को भी जायदाद नहीं समझता, मैं तो सिर्फ मलबे का मालिक हूं।, धरती धन न अपना उपन्यास में यह कथन किसका है?
    1. जीतू
    2. काली
    3. मंगू
    4. हरनाम सिंह
    उत्तर : 2. काली