आत्मकथा की परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं, तत्‍व व उद्भव और विकास

aatmkatha kise kahate hain: किसी महान व्‍यक्ति द्वारा अपने स्‍वयं के जीवन में घटित घटनाओं का वर्णन जब स्‍वयं करते है तो ऐसी विधा को हम आत्‍मकथा कहते है। इस पोस्‍ट में हम आत्‍मकथा क्‍या है, इसकी परिभाषा इसके प्रकार तथा महत्‍वपूर्ण आत्‍मकथाएंं व उनके रचनाकार को देखेंगें।  


आत्मकथा किसे कहते हैं

आत्मकथा क्या है?, aatmakatha in hindi

आत्‍मकथा दो शब्‍दों से मिलकर बनी हुई है एक आत्‍म जिसका अर्थ स्‍वमं और दूसरी कथा अर्थात् आत्‍मकथा का शाब्‍दीक अर्थ अपने स्‍वयं क द्वारा लिखी गई कथा ही आत्‍मकथा है।  

दूसरे शब्‍दों में जब कोई महान व्यक्ति अपने जीवन की सम्पूर्ण घटनाओं का क्रमशः विवरण स्वयं लिखता है तो ऐसी विधा आत्मकथा कहलाती है। किसी भी व्यक्ति की आत्मकथा से उसकी विचारधारा, दृष्टिकोण और युगीन परिस्थितियों का भी बोध हो जाता है।


आत्मकथा की परिभाषा

अनेक विद्ववानों ने आत्‍मकथा की परिभाषा (aatmkatha ki paribhasha) दी है या अपने मत दिये है इनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाएंं निम्‍न है:- 

१. हरिवंशराय बच्चन के अनुसार आत्मकथा की परिभाषा- "आत्मकथा, लेखन की वह विधा है, जिस में लेखक ईमानदारी के साथ आत्मनिरीक्षण करता हुआ अपने देश, काल, परिवेष से सामंजस्य अथवा संघर्ष के द्वारा अपने को विकसित एवं प्रस्थापित करता है।"

२. डॉ0 नगेन्द्र ने आत्मकथा के अनुसार आत्मकथा की परिभाषा- "आत्मकथाकार अपने संबंध में किसी मिथक की रचना नहीं करता कोई स्वप्न सृष्टि नहीं रचता, वरन् अपने गत जीवन के खट्टे-मीठे, उजाले अंधेरे, प्रसन्न-विषण्ण, साधारण-असाधारण संचरण पर मुड़कर एक दृष्टि डालता है, अतीत को पुन: कुछ क्षणों के लिए स्मृति में जी लेता है और अपने वर्तमान तथा अतीत के मध्य सूत्रों का अन्वेषण करता है।"

३. डॉ0 कुसुम अंसल के अनुसार आत्मकथा की परिभाषा - "आत्मकथा लिखना अपने अस्तित्व के प्रति कर्ज चुकाने जैसी प्रक्रिया या संसार चक्र में फॅसे अपने अस्तित्व की डोर को उधेड़ लेने का साहित्यिक प्रयास है।"

४. डॉ0 साधना अग्रवाल के अनुसार आत्मकथा की परिभाषा- "आत्मकथा लिखने की शर्त है ईमानदारी से सच के पक्ष में खड़ा होना और अपनी सफलता-असफलताओं का निर्ममता पूर्वक पोस्टमार्टम करना।"

५. डॉ0 श्यामसुंदर घोष के अनुसार आत्मकथा की परिभाषा- "आत्मकथा समय-प्रवाह के बीच तैरने वाले व्यक्ति की कहानी है। इसमें जहॉ व्यक्ति के जीवन का जौहर प्रकट होता है वहॉ समय की प्रवृत्तियॉ और विकृतियॉ भी स्पष्ट होती हैं। इन दोनों घात प्रतिघात से ही आत्मकथा में सौन्दर्य और रोचकता का समावेश होता है।"

6. डॉ0 भोलानाथ के अनुसार आत्मकथा की परिभाषा- ‘‘अपने द्वारा लिखी हुयी अपनी जीवनी को आत्मकथा कहा है।’’

7. डॉ0 धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार आत्मकथा की परिभाषा-  ‘‘आत्मकथा, लेखक के अपने अतीत का समग्र वर्णन है। आत्मकथा के द्वारा अपने बीते हुए जीवन का सिंहावलोकन और एक व्यापक पृष्ठभूमि में अपने जीवन का महत्त्व दिखलाया जाता है।’’

आत्मकथा का उद्भव और विकास

हिन्दी को प्रथम आत्मकथा बनारसीदास कृत 'अर्ध कथानक' है। अर्ध कथानक में उन्होंने अपने जीवन के पचपन वर्षों का सच्चा विवरण प्रस्तुत किया है। इनके वाद सत्यानन्द अग्निहोत्री ने 'मुझमे देव जीवन का विकास', स्वामी दयानन्द ने 'जीवन-चरित्र' नाम से, मुंशी प्रेमचन्द ने अपनी संक्षिप्त आत्मकथा 'जीवनसार', प्रसाद ने अपना आत्मकथ्य छायावादी शैली में प्रस्तुत किया।

जानकी देवी बजाज हिन्दी की प्रथम महिला आत्मकथा लेखिका हैं। 'मेरी जीवन यात्रा' (1956) में इन्होंने अपने बचपन से लेकर पति की मृत्यु तक के जीवन की घटनाओं को निबद्ध किया है। 'मेरा जीवन प्रवाह' में वियोगी हरि ने परिनिष्ठित भाषा-शैली में अपना आत्मचरित प्रस्तुत किया है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने मूलतः हिन्दी में अपनी आत्मकथा 'सत्य की खोज' लिखी थी। बाबू गुलाबराय ने 'मेरी असफलताएँ' में अपने जीवन का तटस्थ भाव से चित्रण किया है। राहुल सांकृत्यायन 'मेरी जीवन यात्रा' अपने विद्रोही स्वभाव, यायावरी वृत्ति एवं विद्याव्यसन की चर्चा की है। यशपाल की आत्मकथा 'सिंहावलोकन' में उनके राजनीतिक विचारों की प्रमुखता है। कमलेश्वर की आत्मकथा 'गर्दिश के दिन' (1980), 'जो मैंने जिया' (1992), 'यादों का चिराग' (1997) और 'जलती हुई नदी' (1999) नामक चार खण्डों में प्रकाशित है। रामदरश मिश्र की आत्मकथा 'सहचर है समय' (1991) में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण परिवेश से निकलकर संघर्ष के रास्ते पर अपने जीवन का लक्ष्य तलाश करने वाले एक साहित्यकार का पूरा अनुभव संसार साकार हुआ है। हरिवंशराय बच्चन ने अपनी आत्मकथा को 'स्मृति - यात्रा - यज्ञ' कहा है। इनकी आत्मकथा चार खण्डों में विभाजित हैं- ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ' (1969), 'नीड़ का निर्माण फिर-फिर' (1976), 'बसेरे से दूर' (1978) और 'दशद्वार से सोपान तक' (1985) में प्रकाशित है।

दलित लेखकों में मोहनदास नैमिषराय की 'अपने-अपने पिंजरे' और ओमप्रकाश वाल्मीकि की 'जूठन' चर्चित आत्मकथाएँ हैं। तसलीमा नसरीन की आत्मकथा सात खण्डों में प्रकाशित हुई है- 'मेरे बचपन के दिन', 'उत्ताल हवा', 'द्विखण्डित', 'वे अँधेरे दिन', 'मुझे घर ले चलो', 'नहीं कहीं कुछ भी नहीं' (2013), 'निर्वासन' (2017)।

इसी प्रकार डॉ. नगेन्द्र, भीष्म साहनी, बाबू श्यामसुन्दर दास, सेठ गोविन्ददास, विष्णु चन्द्र शर्मा, पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र, यशपाल आदि लेखकों ने भी अपनी-अपनी आत्मकथाएँ लिखी हैं। 


आत्मकथा लिखने का उद्देश्य 

आत्मकथा अर्थात, आत्म कथ्य यानी स्वयं के बार मे कथन। आत्मकथा लेखन का मुख्य उद्देश्य होता है लेखक द्वारा स्वयं के जीवन का मूल्यांकन करना है, तथा पाठकों के समक्ष अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत करना है। जिसके द्वारा उस समय की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों से भी पाठक को अवगत करा सके।


आत्मकथा की प्रमुख विशेषताएँ 

आत्‍मकथा की प्रमुख विशेषताएं (aatmkatha ki visheshtayen) निम्‍नलिखत है:-

1. आत्मकथा किसी व्यक्ति या लेखक के जीवन की कहानी है जो उस व्यक्ति द्वारा स्वयं लिखी जाती है।

2. आत्‍मकथा में लेखक द्वारा अपने जीवन के अनुभवों, रिश्तों और महत्वपूर्ण घटनाओं व उपलब्धियों का वर्णन किया जाता  है।

3. इसे विभिन्न शैलियों एवं प्रारूपों में लिखा जा सकता है, जैसे कालानुक्रमिक कथा या थीम वाले अध्यायों की श्रृंखला।

4. आत्‍मकथा लिखने के कई उद्देश्य हो सकते है, जैसे लेखक की विरासत को संरक्षित करना, पाठकों का मनोरंजन करना या उन्हें सूचित करना, या लेखक के जीवन के किसी विशेष पहलू का पता लगाना।

५. सामान्यतः आत्मकथा लेखक के स्वयं के जीवन का व्यक्तिगत एवं अंतरंग विवरण है, जो पाठकों के लाभ के लिए स्वयं लेखक द्वारा लिखा जाता है।

आत्मकथा की परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं, तत्‍व व उद्भव और विकास


आत्मकथा के तत्व

विभिन्न विद्वानों द्वारा आत्मकथा के अनेक तत्व बतलाए हैं, जिनमें प्रमुख आत्‍मकथा के तत्‍व निम्‍नलिखित है:-

१. वर्ण्य-विषय

२. चरित्र-चित्रण

३. देशकाल

४. उद्देश्य

५. भाषा-शैली

1. वर्ण्य-विषय -  आत्मकथा में लेखक अपने जीवन  में घटित महत्वपूर्ण घटनाओं और विषयों का वर्णन करता है। आत्मकथा में वर्णित विषय में सत्यता होती है साथ ही यथार्थ पर आधारित होता है। आत्मकथा में लेखक अपने जीवन में घटित घटनाओं के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों का भी वर्णन करता है। 

2. चरित्र-चित्रण - आत्म में लेखक के स्वम के जीवन की घटनाओं का वर्णन होता है, इसलिए समस्त चरित्र चित्रण उसके अपने स्वम के जीवन से होता है। इसके सभी पात्रों का संबध खुद से होता है। आत्मकथाकार के लिए यह आवश्यक होता है कि कि वह सभी पक्ष का निष्पक्ष एवं निर्दोष भाव से आत्मविवेचन करें।   

4. देशकाल - देशकाल आत्मकथा में सजीवता ला देता है। देश काल का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व पर पड़ता है। इस से उस की उन सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, साहित्यिक प्रभाव क्षेत्र का पता चलता है जिस से वह आता है। इस प्रकार इससे उस समय की तत्कालीन परिस्थितियों का पता भी चलता है।

4. उद्देश्य - आत्मकथा लेखन का मुख्य उद्देश्य आत्मकथा लेखक द्वारा स्वयं के जीवन का मूल्यांकन करना है, तथा पाठकों के समक्ष अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत करना है।

5. भाषा-शैली - आत्मकथा में भाषा शैली का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। संप्रेषणीयता के लिए भाषा शैली का अच्छा होना आवश्यक है। भाषा-शैली अनुभूत विषयवस्तु को सजाने के उन तरीके का नाम है, जो विषयवस्तु की अभिव्यक्ति को सुंदर एवं प्रभावपूर्ण बनाते हैं। ये शैलियां भावात्मक,आत्मनिवेदनात्मक, विचारात्मक, वर्णनात्मक, ऐतिहासिक तथा हास्य प्रधान आदि हैं।

    उपरोक्‍त तत्‍व किसी आत्‍मकथा में होना आवश्‍यक होता है, जिससे कि आत्‍मकथा की प्रसांगिकता बनी रहें। 


आत्मकथा के प्रकार

आत्मकथा कई प्रकार की हो सकती हैं, कुछ व्‍यक्ति की जीवन में घटित घटनाओं के दृष्टि से आत्‍मकथा के प्रकार (aatmakatha ke prakar) निम्नलिखित हो सकते हैं:

1. संस्मरणात्मक आत्मकथा : इस प्रकार की आत्मकथा में अपने जीवन के कुछ विशेष पहलूओं तथा घटनाओं के संस्मरणों के आधार पर लिखी जाती है।

२. सामान्य आत्मकथा : यह आत्मकथा लेखक के व्यक्तिगत जीवन के पर आधारित हेाती है जिसमें व्यक्ति के जीवन, कार्य, घटनाओं, उपलब्धियों तथा परिवारिक संबंधों को शामिल किया जाता है।

३. प्रसाधनात्मक आत्मकथा :  इस प्रकार की आत्मकथा  में  व्यक्ति के अनुभवों, विचारों तथा आध्यात्मिक अनुभवों पर केंद्रित होती है।

४. एक विशेष समय की आत्मकथा : इस प्रकार की आत्मकथा में किसी विशेष अवधि में जीवन में घटित घटनाओं पर केंद्रित होती है, जैसे- कोई युद्ध, या राजनीतिक आन्दोलन के दौरान के अनुभवों पर।

इस प्रकार आत्‍मकथा के कई प्रकार हो सकते है। उपरोक्‍त व्‍यक्ति के जीवन में घटित घटनाओं के आधार पर हमने आत्‍मकथा को देखा। यदि हम आत्‍मकथा की मौलिक दृष्टि को ध्‍यान में रखकर देखें तो आत्‍मकथा को चार निम्‍न प्रकार में भी विभाजित किया जा सकते है- (1) विषयगत, (2) धार्मिक, (3) बौद्धिक और (4) काल्पनिक। 


लेखन के विचारधारा के आधार पर आत्‍मकथा के प्रकार 

हिंदी साहित्‍य में आत्‍मकथाएं रचनाओं के आधार पर तीन प्रकार के भागों में बांटा गया है, जो निम्‍न लिखित है:- 

1. दलित लेखन धारा की आत्‍मकथाएं 

2. महिला लेखन धारा की आत्‍मकथाएं 

3. मौलिक आत्‍मकथाएं 

महत्वपूर्ण आत्मकथा और आत्मकथाकार :

दलित लेखकों की आत्मकथाएँ

S.No. लेखक आत्‍मकथा
01. मोहनदास नैमिशराय अपने अपने पिंजरे (1995 दो भाग में)
02. ओमप्रकाश वाल्मीकि जूठन (1997)
03. कौशल्या बैसंती दोहरा अभिशाप (1999)
04. माता प्रसाद झोपड़ी से राजभवन (2002)
05. सूरजपाल सिंह चौहान (1) तिरस्कृत (2002), (2) संतप्त (2002)
06. श्यौराज सिंह बेचैन (1) बेवक्त गुजर गया माली (2006), (2) मेरा बचपन मेरे कन्धे पर (2009)
07. रमाशंकर आर्य घुटन (2005)
08. तुलसीराम (1) मुर्दहिया (2010, प्रथम भाग), (2) मणिकर्णिका (2013, दूसरा भाग)
09. डी० आर० जाटव मेरा सफर मेरी मंजिल (2000)
10. किशोर शांताबाई काले छोरा कोल्हाटी (1997)
11. रूपनारायण सोनकर (1) नागफनी (2007 प्रथम भाग), (2) बाइबिल (2007)
12. धर्मवीर मेरी पत्नी और भेड़िया (2009)
13. सुशीला टकभोरे शिकंजे का दर्द (2011)


महिला रचनाकारों की आत्मकथाएँ

S.No. महिला रचनाकारों आत्मकथाएँ
1 अनीता राकेश सतरें और सतरें
2 चन्द्रकान्ता हाशिए की इबारतें
3 मैत्रेयी पुष्पा कस्तूरी कुण्डल बसै (2002), गुड़िया भीतर गुड़िया (2012)
4 रमणिका गुप्ता हादसे (2005), आपहुदरी (2014)
5 राजी सेठ जहाँ से उजास (2013)
6 निर्मला जैन जमाने में हम (2015)
7 चन्द्रकिरण सौनरिक्सा पिंजरे में मैना (2010)
8 जानकी देवी बजाज मेरी जीवन यात्रा (1956)
9 प्रतिभा अग्रवाल दस्तक जिंदगी की (1990), मोड़ जिन्दगी का (1996)
10 कुसुम अन्सल जो कहा नहीं गया (1996)
11 शिवानी सुनहु तात यह अकथ कहानी (1998)
12 पद्मा सचदेव बूँद बावड़ी (1999)
13 शीला झुनझुनवाला कुछ कही कुछ अनकही (2000)
14 कृष्णा अग्निहोत्री लगता नहीं है दिल मेरा (1997), और ... और ... औरत (2010)
15 प्रभा खेतान अन्या से अनन्या (2010)
16 ममता कालिया कितने शहरों में कितनी बार (2011)
17 मन्नू भण्डारी एक कहानी यह भी, कली यह भी (2007)


मौलिक आत्मकथा और आत्मकथाकार

S.No. आत्मकथाकार आत्मकथा
1 संत राय मेरे जीवन के अनुभव (1914 ई.)
2 तोताराम सनाढ्य फिजी द्वीप में मेरे इक्कीस वर्ष (1914 ई.)
3 राधाचरण गोस्वामी मेरा संक्षिप्त जीवन चरित्र-मेरा लिखित (1920 ई.)
4 बनारसीदास जैन अर्द्धकथानक (1641 ई.)
5 स्वामी श्रद्धानंद कल्याण मार्ग का पथिक (1925 ई.)
6 लज्जाराम मेहता शर्मा आपबीती (1933 ई.)
7 राम विलास शुक्ल मैं क्रांतिकारी कैसे बना (1933 ई.)
8 दयानंद सरस्वती स्वरचित आत्मचरित (1879 ई.)
9 भाई परमानंद आपबीता : काले पानी के कारावास की कहानी (1921 ई.)
10 भवानी दयाल संन्यासी प्रवासी की आत्मकथा (1939 ई.)
11 रामकुमार विद्यार्थी ‘रावी’ अपनों की खोज में या बुकसेलर की डायरी (1947 ई.)
12 गणेश नारायण सोमाणी मेरी जीवन कहानी (1948 ई.)
13 वियोगी हरि मेरा जीवन प्रवाह (1948 ई.)
14 श्यामसुंदर दास मेरी आत्म कहानी (1943 ई.)
15 मूलचंद अग्रवाल पत्रकार की आत्मकथा (1943 ई.)
16 महात्मा नारायण स्वामी आत्मकथा (1943 ई.)
17 राहुल सांकृत्यायन मेरी जीवन यात्रा (भाग-1-1944 ई., भाग-2-1949 ई., भाग-3, 4, 5– 1967 ई.)
18 यशपाल सिंहावलोकन (भाग-1,2–1952 ई.; भाग-3-1955 ई.)
19 देवेंद्र सत्यार्थी चांद-सूरज के वीरन (1952 ई.)
20 किशोरीदास बाजपेयी साहित्यिक जीवन के अनुभव (1953 ई.)
21 पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी मेरी अपनी कथा (1958 ई.)
22 सेठ गोविन्द दास आत्म परीक्षण (भाग-1, 2, 3-1958 ई.)
23 सत्यदेव परिव्राजक स्वतंत्रता की खोज में (1951 ई.)
24 गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी आत्मकथा और संस्मरण (1967 ई.)
25 हरिवंशराय बच्चन क्या भूलू क्या याद करूं (1969 ई.); नीड़ का निर्माण फिर (1970 ई.); बसेरे से दूर (1978 ई.); दशद्वार से सोपान तक (1985 ई.)
26 वृंदावन लाल वर्मा अपनी कहानी (1970 ई.)
27 हीरालाल शास्त्री प्रत्यक्ष जीवन शास्त्र (1970 ई.)
28 जानकी देवी बजाज मेरी जीवन यात्रा (1956 ई.)
29 डॉ. देवराज उपाध्याय बचपन के दो दिन (1959 ई.); यौवन के द्वार पर (1970 ई.)
30 रामविलास शर्मा घर की बात (1983 ई.), अपनी धरती अपने लोग (1996 ई.)
31 शिवपूजन सहाय मेरा जीवन (1985 ई.)
32 हंसराज रहबर मेरे सात जनम (खंड-1,2,3)
33 पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ अपनी खबर (1960 ई.)
34 आचार्य चतुरसेन शास्त्री मेरी आत्मकहानी (1963 ई.)
35 राम विलास शुक्ल मैं क्रांतिकारी कैसे बना (1933 ई.)
36 अमृतलाल नागर टुकड़े-टुकड़े दास्तान (1986 ई.)
37 फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ आत्म परिचय (1988 ई.)
38 डॉ. नगेन्द्र अर्धकथा (1988 ई.)
39 कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ तपती पगडंडियों पर पदयात्रा (1989 ई.)
40 रामदरश मिश्र सहचर है समय (1991 ई.)
41 कमलेश्वर फुरसत के दिन (2000 ई.); जो मैने जिया (1992 ई.): यादों का चिराग (1997 ई.); जलती हुई नदी (1999 ई.)
42 गोपाल प्रसाद व्यास कहो व्यास कैसी कटी (1994 ई.)
43 रवीन्द्र कालिया गालिब छुटी शराब (2000 ई.)
44 भीष्म साहनी आज के अतीत (2003 ई०)
45 अशोक बाजपेयी पाव भर जीरे में ब्रह्मभोज (2003 ई.)
46 स्वदेश दीपक मैंने मांडू नहीं देखा (2003 ई.)
47 रवीन्द्रनाथ त्यागी वसन्त से पतझर तक (2005 ई.)
48 विष्णु प्रभाकर पंखहीन (2004 ई.); मुक्त गगन में (2004 ई.); पंछी उड़ गया (2004 ई.)
49 देवेश ठाकुर गुजरा कहाँ-कहाँ से (2007 ई.)
50 कन्हैयालाल नंदन एक अंतहीन तलाश (2007 ई.)


Aatmakatha FAQ :-

प्रश्‍न 1. : हिंदी की प्रथम आत्मकथा है?

उत्‍तर : अर्धकथानक


प्रश्‍न 2.: हिंदी की प्रथम महिला आत्मकथा लेखिका है?

उत्‍तर : जानकी देवी बजाज


प्रश्‍न 3.: अपनी आत्मकथा को 'स्मृति यात्रा यज्ञ' किसने कहा?

उत्‍तर : हरिवंशराय बच्चन


प्रश्‍न 4.: डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा है?

उत्‍तर : सत्य की खोज


प्रश्‍न 5.: हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा कितने भागों में प्रकाशित है? 

उत्‍तर : चार 


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