हिंदी साहित्य में सन् 1995 में प्रकाशित मोहनलाल नैमिशराय कृत 'अपने अपने पिंजरे' को पहली दलित आत्मकथा माना जाता है। हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण अंग दलित साहित्य की भी बहुत बड़ी भूतिका है।
हिंदी साहित्य की प्रमुख दलित आत्मकथाएँ
लेखक | आत्मकथा |
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मोहनदास नैमिशराय | अपने अपने पिंजरे (1995 दो भाग में) |
ओमप्रकाश वाल्मीकि | जूठन (1997) |
कौशल्या बैसंती | दोहरा अभिशाप (1999) |
माता प्रसाद | झोपड़ी से राजभवन (2002) |
सूरजपाल सिंह चौहान | (1) तिरस्कृत (2002), (2) संतप्त (2002) |
श्यौराज सिंह बेचैन | (1) बेवक्त गुजर गया माली (2006), (2) मेरा बचपन मेरे कन्धे पर (2009) |
रमाशंकर आर्य | घुटन (2005) |
तुलसीराम | (1) मुर्दहिया (2010, प्रथम भाग), (2) मणिकर्णिका (2013, दूसरा भाग) |
डी० आर० जाटव | मेरा सफर मेरी मंजिल (2000) |
किशोर शांताबाई काले | छोरा कोल्हाटी (1997) |
रूपनारायण सोनकर | (1) नागफनी (2007 प्रथम भाग), (2) बाइबिल (2007) |
धर्मवीर | मेरी पत्नी और भेड़िया (2009) |
सुशीला टकभोरे | शिकंजे का दर्द (2011) |
प्रमुख प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न: हिंदी साहित्य की पहली दलित आत्मकथा कौन सी है?
उत्तर: ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा लिखित जूठन हिंदी भाषा की पहली दलित आत्मकथा है।
प्रश्न: प्रथम दलित कवि का नाम क्या है?
उत्तर: हीरा डोम उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में विद्यमान प्रथम दलित कवि के रूप में विख्यात हैं जिनकी एकमात्र उपलब्ध भोजपुरी कविता सुप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका सरस्वती में छपी थी और जिसमें तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक विसंगतियों-विडम्बनाओं की विवेकपूर्ण अभिव्यक्ति मार्मिक रूप में हुई है।
प्रश्न: दलित साहित्य का मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर: दलित साहित्य का मूल उद्देश्य नये मानवीय तथा समतामूलक समाज का निर्माण करना है। दलित साहित्य के केन्द्र में भारतीय समाज का सबसे निचला तबका, मेहनतकश, सर्वहारा एवं असंख्य मानव जाति है जिसे सदियों-सदियों से मनुवादी वर्ण-व्यवस्था ने धर्मशास्त्र, सामाजिक परम्परा आदि की आड़ में दलितों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से गुलाम बनाकर रखा है।
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