निबंध क्या है? : निबन्ध गद्य लेखन की एक विधा है, लेकिन इस शब्द का प्रयोग किसी विषय की तार्किक और बौद्धिक विवेचना वाले लेखों के लिए भी किया जाता है। निबन्ध के पर्याय रूप में सन्दर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है, लेकिन साहित्यिक आलोचना में सर्वाधिक प्रचलित शब्द निबन्ध ही है। इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे कि निबंध किसे कहते हैं तथा इसकी परीभाषा व प्रकार को भी देखेंगे। निबंध के बारे में समस्त जानकारी जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा पढ़े।
निबंध का अर्थ
हिन्दी निबन्ध गद्य साहित्य की ऐसी विधा है, जिसमें लेखक किसी विषय के सम्बन्ध में अपने विचारों को स्वच्छन्द रूप से साहित्यिक शैली में व्यक्त करता है। निबन्ध एक ऐसी कलाकृति है, जिसके नियम लेखक द्वारा ही आविष्कृत होते हैं। निबन्ध में सहज, सरल और आडम्बरहीन ढंग से व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। इसमें लेखक बिना किसी संकोच के अपने पाठकों को अपने जीवन-अनुभव को सुनाता है।
निबन्ध को 'गद्य की कसौटी' कहा गया है। अंग्रेजी में निबन्ध को एस्से (Essay) कहते हैं। निबंध दो शब्दों के मेल से बना है, नि + बन्ध = निबन्ध का शाब्दिक अर्थ होता है- अच्छी प्रकार से बँधा हुआ अर्थात् वह गद्य-रचना जिसमें सीमित आकार के भीतर निजीपन, सौष्ठव, स्वच्छता, सजीवता और आवश्यक संगति से किसी विषय का वर्णन किया जाता है।
निबंध की परिभाषा
अनेक विद्वानों ने निबंध की परिभाषा (nibandh ki paribhasha) दी हुई है, उनमें से कुछ विद्वानों की परिभाषा या मत निम्न है:-
1. बाबू गुलाबराय के अनुसार निबंध की परिभाषा, “निबन्ध का आकार सीमित होता है, उसमें निजीपन होता है, स्वच्छ और सजीव होता है।'
2. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार निबंध की परिभाषा, “यदि पद्य कवियों की कसौटी है, तो निबन्ध गद्य की।"
3. पं. श्यामसुन्दर दास के अनुसार निबंध की परिभाषा, “निबन्ध वह लेख है, जिसमें किसी गहन विषय पर विस्तारपूर्वक और पाण्डित्यपूर्ण ढंग से विचार किया गया हो।”
इस प्रकार, उपरोक्त परिभाषा से हम समझ सकते है कि निबन्ध किसी विषय पर विचार प्रकट करने की कला है। जिसमे विचारों को क्रमबद्ध रूप में पिरोया जाता है।
निबन्ध के प्रकार
गणपतिचन्द्र गुप्त के अनुसार निबन्ध के पाँच प्रकार (nibandh ke prakar) हैं:-1. विचारात्मक निबन्ध 4. विवरणात्मक निबन्ध
2. भावात्मक निबन्ध 5. आत्मपरक निबन्ध
3. वर्णनात्मक निबन्ध
1. विचारात्मक निबन्ध- विचारात्मक निबन्धों में लेखक गम्भीर विषयों पर अपने चिन्तन-मनन से लेख लिखता है। इस प्रकार के निबन्धों में बुद्धि की प्रधानता व विचारों की प्रमुखता होती है। इस प्रकार के निबन्धों की शैली व्यास या समास शैली होती है। भाषा गम्भीर व प्रौढ़ होती है। प्रमुख विचारात्मक निबन्धकार इस प्रकार हैं-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी, महावीरप्रसाद द्विवेदी, श्यामसुन्दर दास, डॉ. नगेन्द्र आदि।
2. भावात्मक निबन्ध- भावात्मक निबन्धों में भाव की प्रधानता होती है। इस प्रकार के निबन्ध व्यक्ति की संवेदनशीलता को प्रकट करते हैं। हास्य-व्यंग्य प्रधान निबन्ध भी इसी श्रेणी में ही आते हैं। शुक्ल जी के मनोविकार सम्बन्धी लेख भी इसी कोटि के हैं। प्रमुख भावात्मक निबन्धकार इस प्रकार हैं-अध्यापक पूर्णसिंह, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रतापनारायण मिश्र, गुलेरी जी, ब्रजनन्दन, रामकृष्ण दास आदि ।
3. वर्णनात्मक निबन्ध- वर्णनात्मक निबन्धों में किसी घटना, तथ्य, वस्तु, स्थान, दृश्य आदि का वर्णन होता है। इस प्रकार के निबन्धों में भावात्मकता व बौद्धिकता का सामंजस्य रहता है। भाषा सरल व सहज होती है। प्रमुख वर्णनात्मक निबन्धकार इस प्रकार हैं-बालकृष्ण भट्ट, बाबू गुलाबराय, कन्हैयालाल मिश्र, विष्णु प्रभाकर, रामवृक्ष बेनीपुरी आदि ।
4. विवरणात्मक निबन्ध- विवरणात्मक प्रकार के निबन्धों में पौराणिक, ऐतिहासिक, सामाजिक घटनाओं का वर्णन होता है। निबन्ध संवेदनशील तथा मार्मिक होते हैं। विवरण भूतकाल का होता है। प्रमुख विवरणात्मक निबन्धकार इस प्रकार हैं- भारतेन्दु, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, शिवपूजन सिंह सहाय आदि।
5. आत्मपरक निबन्ध- आत्मपरक प्रकार के निबन्धों में लेखक अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ता है। वर्तमान में जो भी निबन्ध लिखे जाते हैं, वे सभी आत्मपरक प्रकार के निबन्ध होते हैं। प्रमुख आत्मपरक निबन्धकार इस प्रकार हैं- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय, डॉ. विवेकराय आदि। उक्त निबंध के भेद है।
हिन्दी निबन्ध का उद्भव और विकास
हिन्दी निबन्ध पश्चिम की देन है। हिन्दी निबन्धों का उद्भव व विकास अंग्रेज़ी निबन्धों के आधार पर ही हुआ है। हिन्दी में साहित्यिक निबन्धों का विकास आधुनिक काल में हुआ। आधुनिक काल से पूर्व गद्य में पुरुष व प्रौढ़ परम्परा का अभाव था। दूसरा कारण पूर्ववर्ती साहित्यकार अपने विचारों का प्रतिपादन बहुत कम करते थे, जिसके चलते इसका विकास आधुनिक काल में ही सम्भव हो सका।
हिन्दी निबन्ध के विकास-क्रम को मुख्यतः चार भागों में बाँटा गया है:-1. भारतेन्दु युग 2. द्विवेदी युग 3. शुक्ल युग 4. शुक्लोत्तर युग।
1. भारतेन्दु युग
हिन्दी निबन्ध की विकास यात्रा का प्रारम्भिक चरण भारतेन्दु युग है। इससे पूर्व के लिखे निबन्धों में निबन्ध शैली के गुण विद्यमान नहीं थे। इस युग के प्रमुख निबन्धकार हैं- प्रतापनारायण मिश्र, बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन', बालमुकुन्द गुप्त आदि ।
डॉ. शिवदान सिंह चौहान ने 'भारतेन्दु' को हिन्दी का प्रथम निबन्धकार माना है। भारतेन्दु ने 'कवि-वचन सुधा' तथा 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' में साहित्यिक निबन्ध लिखे। भारतेन्दु के प्रसिद्ध निबन्ध हैं- 'लेवी प्राण लेवी', 'अंग्रेज स्रोत', 'कंकड़ स्रोत', 'स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन', 'पाँचवें पैगम्बर', 'दिल्ली दरबार दर्पण' 'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' इनके निबन्धों में तत्कालीन समस्याओं का स्पष्ट प्रतिबिम्ब निर्देशित होता है। हिन्दी भाषा व साहित्य के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करना एवं सम्बन्धित विषयों का स्पष्ट विवेचन करना इन दोनों विषयों पर इनकी दृष्टि रहती थी। भारतेन्दु जी ने इतिहास, धर्म, समाज, राजनीति, खोज, यात्रा, आलोचना, प्रकृति वर्णन तथा व्यंग्य विनोद आदि पर बहुत लिखा है। अपने सामाजिक निबन्धों में इन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर तथा कुशासन पर तीखा व्यंग्य किया है।
2. द्विवेदी युग
भारतेन्दु युग में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से निबन्ध साहित्य की पूर्ण प्रतिष्ठा हो चुकी थी। द्विवेदी युग में व्यक्तिव्यंजक निबन्धों की परम्परा का ह्रास लक्षित
होता है। द्विवेदी युग का नामकरण महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के नाम पर हुआ। इन्होंने 'सरस्वती' पत्रिका का सम्पादन कार्य वर्ष 1903 में संभाला था। 'सरस्वती' पत्रिका के माध्यम से इन्होंने लेखकों की भाषा को संस्कारित व परिमार्जित किया, जिसका प्रभाव लेखकों पर पड़ा। इनके आदर्श बेकन' थे। इन्होंने बेकन के निंबन्धों का अनुवाद 'बेकन विचार रत्नावली' के रूप में किया।
महावीरप्रसाद द्विवेदी के बहुसंख्यक निबन्ध परिचयात्मक या आलोचनात्मक टिप्पणियों के रूप में हैं। 'म्यूनिसिपैलिटी के कारनामे' निबन्ध में उनकी व्यंग्य शैली का रूप देखा जा सकता है। आत्मनिवेदन, प्रभात, सुतापराधे जनकस्य दण्ड, वैदिक देवता आदि निबन्धों में व्यक्तित्व व्यंजना के तत्त्व मिलते हैं।
3. शुक्ल युग
हिन्दी निबन्ध के तृतीय चरण को शुक्ल युग की संज्ञा दी गई है। आचार्य शुक्ल के निबन्ध क्षेत्र में आने से निबन्धों को एक नया आयाम एवं नई दिशा प्राप्त हुई। यह युग गद्यभाषा के व्यवस्थित और परिनिष्ठित हो जाने के कारण भावोन्मेष के लक्ष्य को लेकर चला है। समानान्तर छायावादी काव्य-आन्दोलन के प्रवाह के स्पर्श से भी यह बच नहीं पाया। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने स्वच्छन्दतावाद की कल्पना-प्रवण भाषा को हिन्दी की परम्परा से असम्बद्ध मानते हुए लेखकों से आग्रह किया है कि अपने विचारों को हिन्दी की विशिष्ट प्रकृति की परिधि में ही अभिव्यक्त करें। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबन्ध में विचारों का गूढ़-गुम्फित विन्यास, पूर्वापर वाक्यों और अनुच्छेदों का जनक-जन्य सम्बन्ध, व्यंग्य-विनोद की अनुरंजकता, भावों का रसात्मक विनियोग, भाषा का विषयानुरूप प्रयोग प्राप्त
होता है।
4. शुक्लोत्तर युग
शुक्ल जी ने वैचारिक व मनोविकार सम्बन्धी निबन्ध को उत्कर्ष की चरम ऊँचाई पर पहुँचा दिया था। इस युग में निबन्ध अन्य दिशाओं की ओर भी अग्रसर रहा; जैसे-विचारात्मक निबन्ध, समीक्षात्मक निबन्ध, व्यक्तित्वव्यंजक निबन्ध आदि। शुक्लोत्तर निबन्धकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल, डॉ. नगेन्द्र, रामधारी सिंह 'दिनकर', जैनेन्द्र, प्रभाकर माचवे, डॉ. रामविलास शर्मा, डॉ. विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय, कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' आदि उल्लेखनीय हैं।
निबन्ध की विशेषताएँ
एक अच्छे हिंदी निबंध लिखने के लिए उसकी निम्न प्रमुख विशेषताएं होनी चाहिए :-
2. निबंध में मौलिकता, सरसता, स्पष्टता तथा सजीवता होनी चाहिए।
3. निबंध की भाषा सरल, प्रभावशाली तथा व्याकरण सम्मत तथा विषयानुरूप होनी चाहिए।
4. निबंध संकेत बिन्दुओं के आधार पर अनुच्छेदों में लिखा जाना चाहिए।
5. निबंध लेखन से पूर्व रूपरेखा तय करके संकेत-बिन्दु बना लेने चाहिए।
6. निबंध निश्चित शब्द-सीमा में ही लिखा जाना चाहिए।
7. निबंध-लेखन में उद्धरणों, सूक्तियों, मुहावरों, लोकोक्तियों एवं काव्य-पंक्तियों का आवश्यकतानुसार यथास्थान प्रयोग किया जाना चाहिए।
8. विषय से संबंधित समस्त तथ्यों की चर्चा की जानी चाहिए।
9. वाक्यों की पुनरावृत्ति से बचना चाहिए।
10. निबंध के उपसंहार में निबंध का सारांश दिया जाना चाहिए
निबंध के अंग
निबंध लेखन की विषय-वस्तु को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है—
(1) शीर्षक- एक अच्छे निबंध लिखते समय हमे उस निबंध को एक उचित शीर्षक देना आवाश्यक होता है, जिससे निबंध की विषय-वस्तु का ज्ञान हो सकें।
(2) भूमिका, प्रस्तावना या आरम्भ- निबंध लिखते समय निबंध का प्रारम्भ जितना आकर्षक व प्रभावशाली होगा वह उतना ही अच्छा माना जाता है। निबंध का प्रारम्भ किसी सूक्ति, काव्य-पंक्ति, कविता और विषय की प्रकृति को ध्यान में रखकर भूमिका के आधार पर किया जाना चाहिए।
(3) मध्य भाग- इस भाग में निबंध के विषय को स्पष्ट किया जाता है। लेखक को भूमिका के आधार पर अपने विचारों तथा तथ्यों को रोचक ढंग से अनुच्छेदों में बाँट कर प्रस्तुत करते हुए चलना चाहिए या उप- शीर्षकों में विभक्त कर मूल विषय-वस्तु का ही विवेचन करते हुए चलना चाहिए।
(4) उपसंहार- निबन्ध के प्रारम्भ के समान ही इसका अन्त भी अत्यन्त प्रभावशाली होना चाहिए। अंत अर्थात् उपसंहार एक प्रकार से सम्पूर्ण निबंध का निचोड़ होता है। इसमें अपनी सम्मति भी दी जा सकती है। ।।
प्रमुख निबन्धकार एवं उनके निबन्ध संकलन/निबन्ध
S.No.
निबन्धकार
निबन्ध संकलन/निबन्ध
1
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850 ई.)
सुलोचना, परिहासवंचक, दिल्ली दरवार दर्पण, लीलावती
2
बालकृष्ण भट्ट (1844)
साहित्य सुमन, भट्ट निबन्धमाला भाग-1 एवं भाग-2
3
आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी (1864 ई.)
रसज्ञ रंजन, साहित्य सीकर, कालिदास एवं उनकी कविता, कौटिल्य कुठार, वनिता विलास, अशोक के फूल
4
सरदार पूर्णसिंह (1881)
सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के 'निबन्ध', कन्यादान
5
बाबू श्यामसुन्दर दास (1875 ई.)
गद्य कुसुमावली, रूपक रहस्य
6
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (1884 ई.)
चिन्तामणि भाग-1 (वर्ष 1939) एवं भाग-2 (वर्ष 1945), रस मीमांसा
7
डॉ. सम्पूर्णानन्द (1890 ई.)
चिद् विलास, जीवन और दर्शन, ज्योतिर्विनोद, पृथ्वी से सप्तर्षि मण्डल
8
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (1907 ई.)
अशोक के फूल (वर्ष 1948), विचार और हजारीप्रसाद द्विवेदी वितर्क (वर्ष 1957), विचार प्रवाह (वर्ष 1959), आलोक्न पर्व (वर्ष 1972), कल्पलता (वर्ष 1951), कुटज (वर्ष 1964)
9
जैनेन्द्र कुमार (वर्ष 1905)
पूर्वोदय (वर्ष 1957), मंथन (वर्ष 1953), जड़ की बात (वर्ष 1945), सोच-विचार (वर्ष 1953), गाँधी नीति, प्रस्तुत प्रश्न (वर्ष 1936)
10
महादेवी वर्मा (वर्ष 1907)
श्रृंखला की कड़ियाँ (वर्ष 1942), साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबन्ध (वर्ष 1964), अतीत के चलचित्र
11
रामविलास शर्मा (वर्ष 1915)
प्रगति और परम्परा (वर्ष 1942), संस्कृति और साहित्य (वर्ष 1949)
12
डॉ. नगेन्द्र (वर्ष 1949)
आस्था के चरण (वर्ष 1968), विचार और अनुभूति (वर्ष 1949), विचार और विवेचना (वर्ष 1959), विचार और विश्लेषण (वर्ष 1955), अनुसन्धान और आलोचना (वर्ष 1961), चेतना के बिम्ब
13
विद्यानिवास मिश्र (वर्ष 1926)
तुम चन्दन हम पानी (वर्ष 1957), मैंने सिल पहुँचाई (वर्ष 1966), चितवन की छाँह (वर्ष 1953), कदम की फूली डाल, मेरे राम का मुकुट भीग रहा है (वर्ष 1974), हल्दी-दूब, कंटीले तारों के आर-पार (वर्ष 1976)
14
कुबेरनाथ राय (वर्ष 1973)
रस आखेटक (वर्ष 1970), प्रिया नीलकण्ठी (वर्ष 1968), पर्ण मुकुट, लौह मृदंग, गन्ध मादन (वर्ष 1972), विषाद योग (वर्ष 1973), महाकवि की तर्जनी (वर्ष 1979), कामधेनु, त्रेता का वृहद् साम
15
हरिशंकर परसाई (वर्ष 1924)
पगडण्डियों का जमाना (वर्ष 1966), शिकायत मुझे भी है (वर्ष 1970), निठल्ले की डायरी, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, सदाचार का ताबीज (वर्ष 1967), तब की बात और थी, पाखण्ड का आध्यात्म (वर्ष 1998)
16
शरद जोशी (वर्ष 1931)
जीप पर सवार इल्लियाँ (1971 ई.), हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, किसी बहाने (1971 ई.), रहा किनारे बैठ (1972), तिलस्म (1973), दूसरी सतह (1975 ई.), यत्र-तत्र सर्वत्र (वर्ष 2000)
17
सुदर्शन मजीठिया
इंडिकेट बनाम सिंडीकेट (1970 ई.), मुख्यमन्त्री का डण्डा (1974 ई.), टेलीफोन की घण्टी से (1983 ई.), डिस्को कल्चर (1985 ई.)।
18
नरेन्द्र कोहली (वर्ष 1940)
एक और लाल तिकोन (1970 ई.), जगाने का अपराध (1973 ई.), आधुनिक लड़की की पीड़ा (1978 ई.), त्रासदियाँ (1982 ई.), परेशानियाँ (1983), किसे जगाऊँ (1996 ई.), आत्मा की पवित्रता (1996 ई.), गणतन्त्र का गणित (1997 ई.)
19
गोपाल चतुर्वेदी (वर्ष 1942)
अफसर की बात (1985 ई.), दुम की वापसी (1987 ई.), खम्भों का खेल (1990 ई.), फाइल पढ़ि-पढ़ि (1991), दाँत में फँसी कुर्सी (1996), गंगा से गटर तक (1997 ई.), रामझरोखा बैठि के (2001 ई.), नैतिकता की लंगड़ी दौड़ (वर्ष 2002), भारत और भैंस (2003), फार्म हाउस के लोग (2004) जुगाड़पुर के जुगाडू (2005)।
20
ज्ञान चतुर्वेदी
दंगे में मुर्गा (1998 ई.), प्रेतकथा, मेरी इक्यावन व्यंग्यात्मक रचनाएँ, बिसात बिछी है, खामोश/नंगे हमाम में हैं (वर्ष 2003 ई.), जो घर फूँके (वर्ष 2006), रंदा (वर्ष 2016)।
21
बरसाने लाल चतुर्वेदी
बुरे फँसे (1975 ई.), भोला पण्ड़ित की बैठक (1975 ई.), नेता और अभिनेता (1977 ई.), टालू मिक्सचर (1978 ई.), कुल्हड़ में हुल्लड़ (1979 ई.), अफवाह (1980 ई.), मिस्टर चोखे लाल (1980 ई.), नेताओं की नुमाइश (1983 ई.), मुसीबत है (1983 ई.), खबर अपनी और परायों की (1986 ई.)।
22
श्रीलाल शुक्ल (वर्ष 1925)
अंगद का पाँव (1958 ई.), यहाँ से वहाँ (1970 ई.), कुछ जमीन पर कुछ हवा में (1993 ई.), आओ बैठ लें कुछ देर (1995 ई.), अगली शताब्दी का शहर (1996 ई.), खबरों की जुगाली (वर्ष 2006)।
23
डॉ. नामवर सिंह (वर्ष 1926)
बकलमखुद (1951 ई.), वाद-विवाद संवाद (1989 ई.), संस्कृति और सौन्दर्य
24
धर्मवीर भारती (वर्ष 1926)
ठेले पर हिमालय (1958 ई.), पश्यन्ती (1969 ई.), कहनी-अनकहनी (1970 ई.), कुछ चेहरे कुछ चिन्तन (1995 ई.), शब्दिता (1997 ई.)।
25
शमशेर बहादुर सिंह (वर्ष 1911)
कुछ गद्य रचनाएँ, कुछ और गद्य रचनाएँ।
26
रामधारी सिंह 'दिनकर' (वर्ष 1908)
मिट्टी की ओर (1946 ई.), अर्द्धनारीश्वर (1952 ई.), रेती के फूल (1954 ई.), हमारी सांस्कृतिक एकता (1956 ई.), उजली आग (1956 ई.), वेणुवन (1958), राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय एकता (1958), धर्म नैतिकता और विज्ञान (1959), वटपीपल (1961 ई.), साहित्यमुखी (1968 ई.), आधुनिकता बोध (1973 ई.)।
27
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (वर्ष 1911)
त्रिशंकु (1945 ई.), सबरंग कुछ राग (1956 ई.), आत्मनेपद (1960 ई.), आलबाल (1971 ई.), लिखी कागद कोरे (1972 ई.), अद्यतन (1977 ई.), जोग लिखी (1977 ई.), स्रोत और सेतु (1978 ई.), युग सन्धियों पर (1982 ई.), धार और किनारे (1982 ई.), कहाँ है द्वारिका (1982 ई.) केन्द्र और परिधि (1984 ई.), छाया का जंगल (1984 ई.), सृजना और सन्दर्भ (1985 ई.), स्मृतिछन्दा (1989 ई.), अरे यायावर रहेगा याद, संवत्सर, भवन्ती।
Nibandh FAQ :-
प्रश्न: एक अच्छे निबंध के गुण क्या हैं?
उत्तर- एक अच्छे लेखन के निम्न पाँच गुण होते है: फोकस, विकास, एकता, सुसंगतता और शुद्धता।
उत्तर- निबंध विचार संग्रह करने, प्रस्तुत करने व अभिव्यक्त करने का अद्वितीय तरीका होता है।