प्रवासी हिन्दी साहित्य क्या है, परिभाषा, विशेषताएं एवं प्रमुख प्रवासी साहित्यकार

प्रवासी साहित्य किसे कहते हैं: भारतीय मूल के विदेशों में रहने वालों लोगों के सृजनात्मक लेखन को प्रवासी साहित्य कहा जाता है और जिन्होंने 'हिन्दी' को केन्द्र में रखकर या माध्यम बनाकर हिन्दी में लिखा है, वे 'प्रवासी हिन्दी साहित्यकार हैं'।

 
प्रवासी हिन्दी साहित्य क्या है

प्रवासी हिन्दी साहित्य की अवधारणा

'प्रवासी हिन्दी साहित्य' हिन्दी साहित्य की एक नवीन विधा एवं चेतना है, जो प्रवासियों के मनोविज्ञान से जुड़ी है, जो न केवल एक नई विचारधारा है, बल्कि एक नई अन्तर्दृष्टि भी है।

आज के समय में प्रवासी शब्द उन लोगों के लिए प्रयुक्त किया जाता है, जो अपना देश छोड़कर एक बेहतर जिन्दगी की तलाश में दूसरे देशों में जा बसे हैं। प्रवासी साहित्य की परम्परा बहुत पुरानी नहीं है, किन्तु फिर भी प्रवासी साहित्य अपनी संवेदनात्मक रचनाधर्मिता से साहित्य के क्षेत्र में गहरी जड़ें जमा चुका है। भारत से दूर अन्य देशों में बसे भारतीयों के अथक प्रयासों से ही आज प्रवासी साहित्य समृद्ध और सशक्त बन पाया है।  

'प्रवासी साहित्य' बहुत समृद्ध साहित्य है। सम्पूर्ण विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ से लोग भारी संख्या में दूसरे देशों के लिए पलायन करते हैं। विदेश जाना और वहाँ बसना अब कोई जटिल समस्या नहीं है, लेकिन वहाँ रहकर लेखन कार्य करना प्रवासियों को अलग ही विशिष्टता प्रदान करता है।

प्रवासी हिन्दी साहित्यकार ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, गुयाना, मॉरिशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद (वेस्ट इण्डीज) आदि स्थानों को अपनी कार्यभूमि स्वीकार कर साहित्य सृजन करते आए हैं। प्रवासी हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत कविताएँ, उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, एकांकी, महाकाव्य, खण्डकाव्य, अनूदित साहित्य, यात्रा वर्णन, आत्मकथा आदि का सृजन हुआ है। इन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं द्वारा नीति मूल्य, मिथक, इतिहास, सभ्यता के माध्यम से 'भारतीयता' को सुरक्षित रखा है।


प्रवासी साहित्य की परिभाषा

प्रवासी साहित्य के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों के मत निम्न हैं

१. मृदुला गर्ग के अनुसार, “प्रवासी साहित्य को अलग करके देखने के बजाय उसे हिन्दी की मुख्यधारा में स्थान दिया जाए।”

२. डॉ. रामदरश मिश्र के अनुसार, “प्रवासी साहित्य ने हिन्दी को नई जमीन दी है और हमारे साहित्य का दायरा दलित विमर्श और स्त्री विमर्श की तरह विस्तृत किया है।"

३. कमलेश्वर के अनुसार, “रचना अपने मानदण्ड खुद तय करती है, इसलिए उसके मानदण्ड बनाए नहीं जाएँगे। उन रचनाओं के मानदण्ड तय होंगे।" 

४. डॉ. कमल किशोर गोयनका के अनुसार, “हिन्दी के प्रवासी साहित्य का रूप-रंग, उसकी चेतना और संवेदना भारत के हिन्दी पाठकों के लिए नई वस्तु है, एक नए भावबोध का साहित्य है, एक नई व्याकुलता और बेचैनी का साहित्य है, जो हिन्दी साहित्य को अपनी मौलिकता एवं नए साहित्य संसार से समृद्ध करता है। इस प्रवासी साहित्य की बुनियाद भारत-प्रेम तथा स्वदेश परदेश के द्वन्द्व पर टिकी है तथा बार-बार हिन्दू जीवन मूल्यों, सांस्कृतिक उपलब्धियों तथा उनके प्रति श्रेष्ठता के भाव की अभिव्यक्ति होती है।'


प्रवासी साहित्य की विशेषता

प्रवासी साहित्य की निम्नलिखित विशेषताएं बताई है-

1. प्रवासी साहित्य में स्थानीय परिवेश एवं वातावरण का उल्लेख देखने को मिलता है। 

2. स्थानीय लोगों के सामाजिक मूल्यों एवं रिश्तो के समीकरणों की प्रस्तुति की जाती हैं।

3. प्रवासी साहित्य में देश-विदेश के जीवन तथा मानव मूल्यों का चित्रण होता है।

4. देश-विदेश परिवेश जनित भिन्नताओं का चित्रण होता है।

5. परिवार, परिजन, प्रियजन देश विछोह की पीड़ा का चित्रण किया जाता है।

6. स्थानीय संस्कृति व संस्कारों की झलक मिलती है।


प्रमुख प्रवासी साहित्यकार

प्रवासी हिन्दी लेखक भारतीय होने के कारण एक तरफ हिन्दी का प्रचार-प्रसार विदेशों में कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से भी वहाँ के लोगों का परिचय करवा रहे हैं। प्रवासी भारतीय दुनिया में जहाँ भी गए अपनी बहुरंगी संस्कृति का पुष्प अपने साथ लेकर गए हैं। प्रवासी हिन्दी साहित्यकार सिर्फ हिन्दी भाषा को ही समृद्ध नहीं कर रहे हैं, बल्कि हमारी संस्कृति व परम्पराओं की संवाहिका का उत्तरदायित्व भी निभा रहे हैं। अत: प्रवासी हिन्दी साहित्य को विविध रूप प्रदान कर रहे हैं। हिन्दी की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान बनाने में प्रवासी हिन्दी, रचनाकारों का योगदान महत्त्वपूर्ण है। कुछ प्रमुख प्रवासी साहित्‍यकार निम्‍न है:-

१. उषा प्रियंवदा- ये प्रवासी हिन्दी साहित्यकार हैं। इनके कथा साहित्य में छठे और सातवें दशक के शहरी परिवारों का संवेदनापूर्ण चित्रण मिलता है। 'वनवास', 'कितना बड़ा झूठ', 'शून्य', 'जिन्दगी और गुलाब के फूल', 'एक कोई दूसरा', 'मेरी प्रिय कहानियाँ', 'सम्पूर्ण कहानियाँ' उनके कहानी संग्रह हैं। तथा 'रूकोगी नहीं राधिका', 'शेष यात्रा', 'पचपन खम्भे लाल दीवारें", 'अन्तर्वशी', 'भया कबीर उदास' उनके उपन्यास हैं।

२. उषाराजे सक्सेना- ये विख्यात प्रवासी हिन्दी साहित्यकार हैं। इंग्लैण्ड को कर्मभूमि बनाकर प्रवासी हिन्दी साहित्यकारों में इन्होंने काफी सक्रियता रखी है। इनके साहित्य में भारत, भारतीय संस्कृति, सभ्यता और भाषा के प्रति प्रत्येक तरह के अनुभव तथा विचार प्रकट होते दिखाई देते हैं। उषाराजे सक्सेना की कहानी 'वह रात' बेहद चर्चित कहानी है। एक माँ और उसके छोटे बच्चों के साथ कल्याणकारी राज्य की भूमिका पर केन्द्रित इस कहानी की मर्मस्पर्शी संवेदना झकझोर देती है

३. शैल अग्रवाल की कहानी 'वापसी' में परम्परा तथा आधुनिकता के अन्तर्द्वन्द्व में फँसी नायिका 'पम्मी' अपने घर-परिवार की मान-मर्यादा के लिए अपनी खुशियों तथा आकांक्षाओं को दबा लेती है

4. जकिया जुबैरी के कहानी संग्रह 'सांकल' में स्त्री मन की कशमकश को चित्रित किया गया है। जकिया जुबैरी जी की कहानियों में नॉस्टेल्जिया और वहाँ के परिवार के बीच की स्थितियों का मार्मिक चित्रण मिलता है। 

5. डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी लन्दन में भारतीय उच्चायुक्त रह चुके हैं, उनके वहाँ के कार्यकाल में हिन्दी भाषा और साहित्यिक सृजन में काफी परिवर्तन हुआ। 

6. उषा वर्मा लन्दन के यॉर्क में रहती हैं। उनके चार कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं। साथ ही भारतीय तथा विदेशी पत्र-पत्रिकाओं में अनेक रचनाएँ भी छपी हैं।

7. कृष्ण बिहारी- ये अबूधाबी में वरिष्ठ हिन्दी अध्यापक हैं। इन्होंने अनेक एकांकी नाटक लिखे हैं। साथ ही निर्देशन भी किया है, उनके तीन उपन्यास और तीन गीत संकलन प्रकाशित हुए हैं।

9. नीना पॉल ने दो उपन्यास 'तलाश' और 'कुछ गाँव-गाँव कुछ शहर-शहर' लिखे हैं। कुछ गाँव-गाँव कुछ शहर-शहर उपन्यास में इंग्लैण्ड के लेस्टर शहर के बनने की कहानी के साथ-साथ गुजरातियों के वहाँ जमने और संघर्ष करने को गूँथा गया है।

10. दिव्या माथुर की शुरुआती कहानियों में कहानी का शिल्प कम और संवेदना अधिक थी। 'तमन्ना' कहानी में एक ऐसी भारतीय बहू की कथा है, जो लगातार तनाव में है। इसी प्रकार पंगा, 2050 तथा अन्य कहानियाँ भी इनकी ही हैं।

11. जय वर्मा की कहानी 'सात कदम' उनकी ऐसी कहानी है, जो अपनी संरचनात्मक बनावट और संवेदनात्मक कारीगरी के लिए याद रखने योग्य है। 

    स्पष्ट है कि प्रवासी साहित्य अत्यन्त सम्पन्न है। प्रवासी साहित्यकार भी अपनी अलग पहचान बनाकर सृजनरत् हैं। हम इनके साहित्य को पढ़कर विदेशों के अनेक अनुभवों, भावनाओं एवं संवेदनाओं से जुड़ सकते हैं।


प्रवासी साहित्यकार और उनकी रचनाएँ

S.No. प्रवासी साहित्यकार साहित्यकार रचनाएँ
1 अंजना संधीर (1960) बारिशों का मौसम, धूप, छाँव और आँगन (गजल संग्रह), तुम मेरे पापा जैसे नहीं हो (कविता संग्रह)
2 देवी नागरानी (1949) गम में भीगी खुशी उड़ जा पंछी (सिन्धी गजल संग्रह) उड़ जा पंछी (सिन्धी भजन संग्रह), चरागे-दिल उड़ जा पंछी (हिन्दी गजल संग्रह)
3 सुषम बेदी (1945) हवन, मैंने नाता तोड़ा (उपन्यास), चिड़ियाँ और चील, अवसान आदि (कहानी), अतीत का अँधेरा, औरत (कविता)
4 रचना श्रीवास्तव (1968) पार्किंग (कहानी), अभिलाषा, इस ठण्ड में (नई रचनाएँ)
5 उषा प्रियंवदा (1930) वनवास, कितना बड़ा झूठ, शून्य, जिन्दगी और गुलाब के फूल, एक कोई दूसरा, वापसी, आधाशहर (कहानी) आदि।
6 जकिया जुबैरी सांकल (कहानी संग्रह), उलझन, ढाल, धूप का ढलता साया (नई रचनाओं में)
7 दिव्या माथुर (1949) अतः सलिला, रेत का लिखा, ख्याल तेरा, चन्दन पानी, सपनों की राख तले, और झूठ, झूठ और झूठ (कविता संग्रह) मेड-इन-इण्डिया और अन्य कहानियाँ, तमन्ना 2050 और अन्य कहानियाँ, पंगा, आक्रोश, आशा (कहानी संग्रह) आदि।
8 सुधा ओम ढींगरा (1959) मेरा दावा है, तलाश पहचान की, सफर यादों का, माँ ने कहा था (कविता संग्रह) टारनेडो, क्षितिज से परे, कौन-सी जमीन अपनी, वसूली (कहानी संग्रह)
9 उषाराजे सक्सेना (1943) विश्वास की रजत सीपियाँ, इन्द्रधनुष की तलाश में, क्या फिर वहीं होगा (कविता संग्रह), प्रवास में, वॉकिंग पार्टनर, वह रात और अन्य कहानियाँ (कहानी संग्रह)।
10 प्राण कुमार शर्मा (1937) एक पैसा खोने पर, कैसे-कैसे खेल, बात पूछो, बातों में कुछ ऐसे (नई रचनाएँ) अपनी कथा, आदतें उसकी, उड़ते हैं हजारों आकाश में, क्यों न महके, कर के अहसान, कितनी हैरानी आदि।
11 इला प्रसाद (1960) रिक्ति, ठण्ड, सन्देश (नई रचनाएँ), तलाश, अन्तर, दीमक, बाकी कुछ, मूल्य, रास्ते, यात्रा, विश्वास, सूरज (कविता)। इस कहानी का अन्त नहीं, उस स्त्री का नाम (कहानी संग्रह) धूप का टुकड़ा (कविता संग्रह)
12 धनंजय कुमार (1949) क्या इशारे हो गए, दायरा, निगाहों में, पाप और पुण्य, रंग फीका पड़ रहा, रेत का तूफान, रोशनी का तीर, सफर का बहाना।
13 लालजी वर्मा (1941) अकेला, उत्तिष्ठ भारत, मुझमें हुँकार भर दो, मेरे हमसफर, चार छोटी कविताएँ, समय चल पड़ा, सुनोगी, क्षणिकाएँ आदि।
14 हिम्मत मेहता (1940) चाय का निमन्त्रण (हास्य-व्यंग्य में) असमंजस क्यों, कितना सुन्दर है यह क्षण, कुछ बातें कही नहीं जाती, तुमसे क्या माँगू भगवान, बात एक छोटी-सी, भगवान से वार्तालाप आदि।
15 अशोक गुप्ता (1947) अजन्मी, लम्बी सड़क (नई कविताएँ) उन दिनों, कैसे मैं समझाऊँ, झूठ, गलती मत करना, दादाजी, नदी के प्रवाह में आदि (कविता)
16 शैल अग्रवाल (1947) वापसी (कहानी), ध्रुव-तारा (कहानी-संग्रह) 'समिधा' व नेति नेति (काव्य-संग्रह)
17 नीना पॉल (1950) तलाश, कुछ गाँव-गाँव कुछ शहर-शहर (उपन्यास)
18 भारतेन्दु श्रीवास्तव (1935) तन पराग, रसमय गुंजन आदि।
19 पराशर गौड़ (1947) चाह, बहस, बिगुल बज उठा, सज़ा, सैनिक का आग्रह (छन्दमुक्त में) अपनी सुना गया, गोष्ठी, पराशर गौड़ की सत्रह हँसिकाएँ, मुझे छोड़, शादी का इश्तेहार आदि (हास्य-व्यंग्य रचना)।
20 डॉ. सुरेन्द्र भूटानी (1943) अर्ज, इंतजार, दिल इक तन्हा मुसाफिर, भ्रमग्रस्त जीव, की अँधेरी बन्द गुफाएँ, विवशता, यादों सीढ़ियाँ जहाँ खत्म होती हैं आदि (नई रचनाएँ)।
21 प्रवीण अग्रवाल (1976) पाँच दोहे (दोहे) बीता हुआ कल और आने वाला कल, मृत्यु के आगे, विदेश में भारतीय किराएदार (छन्द युक्त रचनाएँ)
20 चन्द्रमोहन भण्डारी आपकी तारीफ, कहो मैं मेरा कैसे? कैसा जमाना आया यारो । खुदाई, मेरे हिन्दोस्ताँ, मेरे वतन आदि।


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