अन्धा युग नाटक - धर्मवीर भारती

अंधा युग (Andha Yug) धर्मवीर भारती द्वारा रचित हिंदी काव्य नाटक है। इस गीतिनाट्य का प्रकाशन सन् 1955 ई. में हुआ था। इसका कथानक महाभारत के अठारहवें दिन संध्या से लेकर प्रभास - तीर्थ मे कृष्ण की मृत्यु के क्षण तक का है। इस नाटक में युद्ध और उसके बाद की समस्याओं व मानवीय महत्त्वाकांक्षा को प्रस्तुत किया गया है।

अंधा युग' नाटक व्याख्या pdf,


अन्धा युग नाटक के प्रमुख पात्र

कृष्ण :- नाटक का एक नैतिक केन्द्र है, जो एक राजनीतिज्ञ और भगवान दोनों ही रूपों में उजागर हुआ है।

अश्वत्थामा :- एक केन्द्रीय पात्र है, इसके इर्द-गिर्द सारी घटनाएँ और सारे प्रमुख गौण पात्र घूमते नज़र आते हैं।

अधिष्ठिर :- केवल शान्ति की कामना करने वाला पात्र है। बरबस थोपे गए युद्ध ने उन्हें असत्य भाषण के लिए विवश किया तथा उन्हे युद्ध से घोर वितृष्णा है।

धृतराष्ट्र :- जो स्वार्थी है तथा तन से ही नहीं मन से भी अन्धे हैं। पुत्रों की क्षमता को ही अपना अन्तिम सत्य मान बैठे हैं, लेकिन उनके चरित्र में स्पाट-बयांनी, सहजता और दुर्बलताओं को निःसंकोच स्वीकारने की महानता है।

गांधारी :- जिसके पास अन्धी ममता के साथ-साथ तर्क व प्रज्ञा भी है। 

विदुर :- एक शान्तिकामी नीतिज्ञ, गांधीवादी उदार व्यक्ति है। कृपाचार्य एक कुशल योद्धा, धर्मप्राण, न्याय के पक्षधर तथा ऊबे हुए सैनिक हैं।

अंधा युग के अन्‍य पात्र हैं - कृतवर्मा , कृपाचार्य , संजय , भिखारी , गूंगा , व्यास , वृद्ध याचक , प्रहरी 1 एवं 2 , युयुत्सु , बलराम आदि । 

अन्धा युग नाटक के अंक

अन्धा युग के कुल छः अंक है जो निम्न है:-

      1. पहला अंक - ठौरव नगरी
      2. दूसरा अंक - पशु का उदय
      3. तीसरा अंक - अश्वत्थमा का अर्द्ध सत्य
      4. चौथा अंक - गांधारी का शाप
      5. पाँचवाँ अंक - विजय: एक क्रमिक आत्म हत्या
      6. समापन - प्रभु की मृत्यु

नाटक का विषय :-

    • महाभारत के अंतिम दिन के युध्‍द का वर्णन तथा युध्‍द के बाद की घटनाओं और परिणामोंं का चित्रण किया गया। 
    •  महाभारत के 18 वें दिन संध्या से लेकर कृष्ण की मृत्यु के क्षण तक का समय।
    • आचरण की धुध्‍दता एवं कर्मयोग का संदेश।
    • मर्यादाहीन अनैतिक आचरण का विरोध तथा मानवीय विघटन।
    • वृध्‍द का विनाश एवं वृध्‍द के माध्‍यम से मोहान्‍धता के विनाशकारी प्रभाव का चित्रण किया गया।

'अन्धा युग' नाटक की समीक्षा

अन्धा युग रीति काव्य का प्रकाशन वर्ष 1955 में हुआ था। इसकी रचना धर्मवीर भारती द्वारा की गई। यह हिन्दी काव्य नाटक है। इसका कथानक महाभारत युद्ध के अठारहवें दिन से लेकर श्रीकृष्ण की मृत्यु तक के क्षण पर आधारित है। इस गीतिकाव्य में विभिन्न पात्र हैं-अश्वत्थामा, गान्धारी, धृतराष्ट्र, कृतवर्मा, संजय, वृद्ध याचक, व्यास, विदुर, युधिष्ठिर, कृपाचार्य, युयुत्सु, गूँगा भिखारी, बलराम, कृष्ण आदि।

इस गीति काव्य का आरम्भ मंगलाचरण से होता है- इस काव्य नाटक का प्रथम अंक 'कौरव नगरी' दूसरा अंक 'पशु का उदय' तीसरा अंक 'अश्वत्थामा का अर्द्धसत्य' चौथा अंक 'गान्धारी का शाप' पाँचवाँ अंक 'विजय-एक क्रमिक आत्महत्या' है। अन्तिम अध्याय 'प्रभु की मृत्यु' के साथ ही इस नाटक की समाप्ति होती है।

अन्धा युग एक दृश्य काव्य है। इसमें अधिकतर संवाद मुक्त छन्द और तुकान्त कविता का मिश्रण है। इसका कथानक महाभारत युद्ध की समाप्ति काल से शुरू होता है। इसमें युद्ध के औचित्य को चुनौती दी गई है। कृष्ण भगवान द्वारा कहे गए शब्दों को विवाद में खींचा गया है। महाभारत में धर्म-युद्ध का पालन किया गया है। इसमें कुटिल योजनाओं की झलक दिखाई गई है। इसमें पात्रों के चारों ओर की आभा हटाकर उन्हें एक सामान्य मनुष्य की भाँति चित्रित किया गया है। 

अंधा युग नाटक में मनुष्य की भावनाओं का सजीव चित्रण किया गया है। श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को भले ही सत्य के लिए युद्ध करने का सन्देश दिया हो, लेकिन युद्ध में भयानक विध्वंस देखकर सभी का मन खिन्न हो गया था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जिन आदर्शों के लिए पूरा युद्ध लड़ा गया था, वे सारे आदर्श झूठे थे। धृतराष्ट्र और गान्धारी यह जानते हुए भी कि उनके पुत्र धर्म की ओर युद्ध नहीं कर रहे हैं उन्होंने अपने पुत्रों की जीत की आशा लगा रखी थी। यह उनकी ममता थी। अश्वत्थामा प्रायश्चित तथा प्रतिशोध की भावना में जल रहा था। पूरे हस्तिनापुर में निराशा का वातावरण था। युद्ध के बीभत्स चेहरे को भारती जी ने बहुत सुन्दर रूप से चित्रित किया है। उपर्युक्त दृश्य काव्य में पहरेदारों के माध्यम से किसी घटना को दूर से देखने वालों के मानसिक द्वन्द्व का चित्रण किया गया है। पहरेदारों के माध्यम से भारती जी ने सम्भ्रान्त वर्ग के निर्णयों का वंचितों पर पड़ने वाले प्रभावों को दिखाया है


अंधा युग नाटक के प्रमुख कथन

  1. "मर्यादा मत तोड़ो, गुंपालिका में कौरव तोड़ डालेगी ।" तोड़ी हुई मर्यादा कुचले हुए अजगर- वंश को लपेट कर सूखी लकड़ी तोड़ डालेगी, कथन है। विदूर का 
  2. "आज मुझे भान हुआ। मेरी वैयक्तिक सीमाओं के बाहर भी सत्य हुआ करता है ।"कथन है। - धृतराष्ट्र का
  3. "हम सब के मन में कहीं एक अंध गहवर है बर्नर पशु अंधा पशु वास वही करता है।"कथन है। - गांधारी का 
  4. "हमने मर्यारा का अतिक्रमण नहीं किया, क्योंकि नहीं थी अपनी कोई भी मर्यारा ।", कथन है।- प्रहरी का 
  5. वीर नहीं वह तो भय की प्रतिमूर्ति है।" - किसके लिए कहा गया है?- अश्वत्थामा के लिए
  6. "आज इस पराजय की बेला में, सिद्ध हुआ, झूठी थी सारी अनिवार्यता भविष्य की, केवल कर्म सत्य है, मानव जो करता है, इसी समय, उसी में निहित है भविष्य युग-युग तक का।" यह संवाद किस अंक से लिया गया है।- पशु का उदय
  7. वध मेरे लिए नहीं रही नीति, वह है अब मेरे लिए मनोग्रंथि किसको पा जाऊं या मरोड़ मैं। मैं क्या करू?कथन है। - अश्वत्थामा का 
  8. मैं हूँ अमानुषिक अर्धसत्य तर्क जिसका है घृणा और स्तर, कथन है। - अश्वत्थामा का
  9. "हम सब के मन में कहीं एक अंध गहवर है बर्बर पशु अंधा पशु वही वास करता है।"कथन है। - गांधारी का
  10. "हमने मर्यारा का अतिक्रमण नहीं किया, क्योंकि नहीं थी अपनी कोई भी मर्यादा ।"कथन है। - प्रहरी का ।
  11. वध मेरे लिए नहीं रही नीति, वह है अब मेरे लिए मनोग्रंथि, किसको पा जाऊं या मरोड़े मैं! मैं क्या करू?कथन है। - अश्वत्थामा का ।
  12. अंधों को सत्य दिखाने में। क्या मुझको भी अंधा ही होना है।, कथन है। - संजय का ।
  13. जीवन भर रहा मै निरपेक्ष सत्य कर्मों में उतरा नहीं, धीरे-धीरे रंगे दी दिव्य दृष्टि "कथन है। - संजय का ।


अन्धा युग नाटक से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्‍न 1. अंधा युग का पहला मंचन कब और कहां हुआ?
उत्तर : अंधा युग हिंदी में लिखा गया एक पद्य नाटक है जो 1953 में प्रकाशित हुआ था। इसका पहला मंचन 1964 में प्रसिद्ध रंगकर्मी इब्राहिम अलकाज़ी ने किया था। यह नाटक महाभारत की पौराणिक कथाओं पर आधारित है। यह नाटक उन महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों में से एक है जो भारत और पाकिस्तान के विभाजन के तुरंत बाद लिखे गए थे।

प्रश्‍न 2. नाटक का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर : नाटक व्यक्तिगत, सांस्कृतिक और सामाजिक दुनिया की अभिव्यक्ति और अन्वेषण है, जिसमें भूमिका और परिस्थितियाँ शामिल होती हैं, मनोरंजन होता है और चुनौतियाँ मिलती हैं। छात्र नाटक निर्माता, कलाकार और दर्शक के रूप में अर्थ बनाते हैं, क्योंकि वे अपनी और दूसरों की कहानियों और दृष्टिकोणों का आनंद लेते हैं और उनका विश्लेषण करते हैं।

प्रश्‍न 3. अंधा युग में कुल कितने अंक हैं?
उत्तर : अंधा युग नाटक धर्मवीर भारती द्वारा सन 1954 ई. में लिखा गया था । इस नाटक में कुल 5 अंक हैं, जो क्रमश: - कौरव नगरी , पशु का उदय , अश्वत्थामा का अर्द्धसत्य , अंतराल , गाँधारी का शाप , विजय : एक क्रमिक आत्महत्या , समापन ( प्रभु की मृत्यु )।


युग नाटक धर्मवीर भारती


Andha Yug Natak MCQ


प्रश्‍न 01. अंधायुग का नायक कौन है-

  1. युधिष्ठिर
  2. अर्जुन
  3. अश्वत्थामा 
  4. युयुत्सु
उत्तर: 3. अश्वत्थामा 


प्रश्‍न 02. 'फिर क्या हुआ संजय, फिर क्या हुआ |' यह कथन है ?

  1. धृतराष्ट्र 
  2. गांधारी 
  3. कृष्ण
  4. अश्वत्थामा
उत्तर: 2. गांधारी 


प्रश्‍न 03. 'अंधायुग के पात्र पौराणिक है,लेकिन आधुनिक प्रांसंगिकता लिए हुए है' कथन है।

  1. प्रसाद
  2. शुक्ल
  3. धर्मवीर भारती
  4. डाॅ नगेन्द्र

उत्तर: 3. धर्मवीर भारती


प्रश्‍न 04.गूंगो के सिवाय आज, और कौन बोलेगा मेरी जय, किसकी मनोव्यथा है?

  1. गांधारी
  2. अश्वत्थामा
  3. धृतराष्ट
  4. दुर्योधन

उत्तर: 3. धृतराष्ट


प्रश्‍न 05. अंधायुग का प्रकाशन हुआ है?

  1. 1951
  2. 1952
  3. 1954
  4. 1955
उत्तर: 3. 1954


प्रश्‍न 06. कौरव पक्ष से जीवित बचे थे?

  1. अश्वत्थामा
  2. कृतवर्मा
  3. कृपाचार्य
  4. उपरोक्त सभी

उत्तर: 4. उपरोक्त सभी


प्रश्‍न 07. अंधायुग का चौथा अंक है?

  1. पशु का उदय
  2. गांधारी का श्राप
  3. अश्वत्थामा का अद्ध सत्य
  4. विजय एक क्रमिक आत्महत्या

उत्तर: 2. गांधारी का श्राप


प्रश्‍न 08. किसको पहली बार आशंकाव्यापी है?

  1. युयुत्सु
  2. अश्वत्थामा
  3. धृतराष्ट
  4. गांधारी

उत्तर:  3. धृतराष्ट


प्रश्‍न 09. कौरव पक्ष का कौन सा योद्धा पाण्डवों के पक्ष मे शामिल हो गया था?

  1. युयुत्सु
  2. अश्वत्थामा
  3. दुशासन
  4. सात्याकि

उत्तर: 1. युयुत्सु


प्रश्‍न 10. अंधायुग किस विधा की रचना है -

  1. काव्य
  2. नाटक
  3. गीतिनाट्य 
  4. लोकगाथा

उत्तर: 3. गीतिनाट्य