अँधेर नगरी (Andher Nagari) प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850-1885 ई.) का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। 6 अंकों के इस नाटक में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया तथा उसे अपने ही कर्मों के द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है। भारतेंदु ने इस नाटक की रचना बनारस के हिंदू नेशनल थियेटर के लिए एक ही दिन में की थी।
अंधेर नगरी नाटक के प्रमुख पात्र
महन्त :- एक साधू चरित्र में आस्था, निष्ठा और दूरदर्शिता है
गोवर्धन दास :- महन्त का लोभी शिष्यना
रायणदास :- महन्त का दूसरा शिष्य
राजा :- चौपट राजा (जो शराब में डूबा रहता है तथा न्याय में अन्याय में फर्क नहीं समझता)
फरियादी :- राजा से न्याय माँगने वाला
अन्य पात्र :- (क्रमानुसार)
- बाजार के पात्र - कबाबवाला, घासीराम, नारंगीवाला, हलवाई, कुंजड़िन, चुरनवाला, मछलीवाली, बनीया, पाचकवाला, मुगल, जातवाला, ब्राम्हण |
- दरबार के पात्र - राजा, मंत्री, सेवक, आदि |
- नगर के पात्र - कल्लू कारागीर, चूनेवाला, भिस्ती, कस्साई, गड़ेरिया, कोतवाल, पहला प्यादा, आदि |
अंधेरी नगरी नाटक के अंक
अंधेरी नगरी के कुल छः अंक है जो निम्न है:-
- पहला दृश्य - बाह्य प्रांत
- दूसरा दृश्य - स्थान बाजार
- तीसरा दृश्य - स्थान जंगल
- चौथा दृश्य - स्थान राजसभा
- पांचवा दृश्य - स्थान अरण्य
- छ्ठवा दृश्य - श्मशान
अंधेर नगरी नाटक का विषय
- इस नाटक में मूल्यहीन, अमानवीय और अराजक व्यवस्था प्रणाली का चित्रण किया गया है।
- अंधी एवं मूल्यहीन शासन व्यवस्था वर्णन।
- अंग्रेजी शासन की दुरव्यवस्था और न्याय के ढोंग का पर्दाफाश किया गया।
- माल व बाजार विज्ञापनों के जरिए कुरुपता का चित्रण तथा अंग्रेजों के समय के समाजिक और व्यवसायिक स्थिति का वर्णन।
- ज्ञान और अज्ञान के बीच टकराहट।
- इस नाटक के माध्यम से भारतेन्दु जी ने जन चेतना को जगाने का काय किया है।
- सामाजिक विकृति का चित्रण किया है।
- न्याय व्यवस्था की विसंगति देखने को मिलती है।
- डॉ. रामविलास शर्मा के शब्दों में- "अंधेर नगरी अंग्रेजी राज्य का ही दूसरा नाम है। यह नाटक अंग्रेजी राज्य की अंधेरगर्दी की आलोचना ही नहीं, वह इस अंधेरगर्दी को ख़त्म करने के लिए भारतीय जनता की प्रबल इच्छा को भी प्रकट करता है।"
- डॉ. रामविलास शर्मा के शब्दों में- "डॉ रामविलास शर्मा ने इस रचना को 'कालजयी कृति' कहा है।"
- लक्ष्मीसागर वाष्र्णेय के शब्दों में- “अंधेर नगरी में यह देखा गया है कि जिस राज्य में गुण अवगुण का भेद नहीं, वहाँ प्रजा को राजा की मूर्खता के चंगुल में फंस जाने का डर बना रहता है।”
- सिद्धनाथ कुमार के शब्दों में- “अंधेर नगरी में यह चौपट राजा की कथा है जिसे न्याय अन्याय का भेद नहीं है और जो स्वयं फ़ासी पर चढ़ जाता है। इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का बड़ा व्यंग्यात्मक एवं आकर्षक चित्र अंकित हुआ है।”
अंधेर नगरी नाटक की समीक्षा
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित 'अंधेर नगरी' अत्यन्त संक्षिप्त व हास्य व्यंग्य से परिपूर्ण पाटक है। इसमें सामाजिक और राजनीतिक परिवेश पर कटाक्ष किया गया है। इसका कथानक एक दृष्टान्त के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस नाटक के मूल स्वर में मूल्यहीन, अमानवीय और अराजक व्यवस्था प्रणाली को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि शासन की अन्ध व्यवस्था सामने आ जाती है। विवेकहीन और मूर्ख राजा न केवल अपनी पूरी प्रजा के लिए कष्ट का कारण बनता है, बल्कि उसके नाश का भी आधार बन जाता है। इस नाटक के आधार पर लेखक ने जन चेतना को जाग्रत करने का प्रयास किया है।
'अंधेर नगरी' नाटक की रचना बिहार के किसी रजवाड़े को आधार बनाकर की गई है। रजवाड़े का राजा आलसी व व्यसनी है, जो राजकाज व जनता की भलाई के बारे में कुछ नहीं सोचता। वह न्याय व अन्याय के भेद को भी नहीं जानता।
वह मूर्ख और विवेकहीन तथा अस्थिर है। वह परम्परा से प्राप्त धन-दौलत का आराम से उपभोग करता है तथा जनता का शोषण करता है। वह सभी को अन्धे की लकड़ी से हाँकने का प्रयास करता है। नाटक के कुल छः अंक हैं। इसमें गद्य-पद्यात्मकता के मिश्रण से कथानक को गति प्रदान की गई हैं। इसमें अंक के बदले दृश्य शब्द का प्रयोग किया गया है।
पहले दृश्य में महन्त अपने दो चेलों के साथ दिखाई पड़ते हैं तथा वे अपने दोनों शिष्यों गोवर्धन दास व नारायण दास को नगर में भिक्षा माँगने भेजते हैं। गुरुजी गोवर्धन दास को लोभ के बुरे परिणाम के प्रति सचेत करते हैं।
दूसरे दृश्य में शहर के बाजार का दृश्य है, जहाँ सब कुछ टके सेर बिक रहा है। गोवर्धन दास बाजार की यह स्थिति देखकर आनन्दित होता है तथा सात पैसे में ढाई सेर मिठाई लेकर गुरुजी के पास वापस लौट आता है!
तीसरे दृश्य में महन्त गुणी व अवगुणी के एक ही भाव मिलने की खबर से सचेत हो जाते हैं तथा अपने शिष्यों को तुरन्त वहाँ से चलने को कहते हैं लेकिन गोवर्धन दास सस्ते व स्वादिष्ट भोजन के लालच में गुरुजी के साथ नहीं जाता।
चौथे दृश्य में 'अंधेर नगरी' के चौपट राजा के दरबार और न्याय का चित्रण तथा निर्दोष कोतवाल को फाँसी की सजा सुनाए जाने का जिक्र है।
पाँचवें दृश्य में मिठाई खा-खा कर मोटे हुए गोवर्धन दास को कोतवाल के बदले फाँसी पर चढ़ाए जाने का आदेश है, क्योंकि फाँसी का फन्दा दुबले कोतवाल की गर्दन से बड़ा निकला।
छठे दृश्य में शमशान में गोवर्धन दास को फाँसी देने की पूरी तैयारी है, परन्तु तभी गुरुजी का आगमन होता है और गुरु-शिष्य दोनों फाँसी पर चढ़ने की जल्दबाजी दिखाते हैं, क्योंकि गुरुजी के अनुसार शुभ घड़ी में मरने वाला सीधा स्वर्ग जाएगा। अतः राजा स्वयं को ही फाँसी पर चढ़ाने की आज्ञा दे देता है। इस प्रकार अन्यायी और मूर्ख राजा स्वतः ही नष्ट हो जाता है।
अंधेर नगरी नाटक के महत्वपूर्ण बिंदु :-
- 'अंधेर नगरी' एक व्यंग्य नाटक है, जिसमें शासन व्यवस्था की विसंगतियों का उद्घाटन किया गया है
- 'अंधेर नगरी' का आशय है-ऐसी नगरी जहाँ तानाशाह की सत्ता है, न्याय का आडंबर होता है और जनता का शोषण किया जाता है। ऐसी नगरी में गुणवान और गुणहीन लोगों में कोई भेद नहीं किया जाता ।
- नाटक की भाषा तत्कालीन वातावरण को सजीव रूप में प्रस्तुत करने में सक्षम है। साथ ही इसकी भाषा में व्यंग्यात्मकता तथा नाटकीयता है ।
- नाटक में लोक-भाषा तथा स्थानीय शब्दावली का प्रयोग है, जिससे नाटक में जीवतंता और प्रवाहमयता आ गई है। इसकी भाषा खड़ी बोली है लेकिन ब्रजभाषा का भी स्पष्ट प्रभाव है दिखता है ।
- 'अंधेर नगरी' रंगमंचीयता की दृष्टि से सफल नाटक है।
'अंधेर नगरी' नाटक के प्रमुख कथन या गीत
- राम भजो, राम भजो, राम भजो भाई ...... कथन है।- यह प्रथम अंक (प्रथम दृश्य) में महंत जी दोनों चेलों के साथ गाते है।
- जात ले जात टके सेर जात.... टके के वास्ते धर्म और प्रतिष्ठा दोनों बेचे, टाके के वास्ते झूठी गवाही दें।.... वेद धर्म कुल मरजादा सच्चाई बड़ाई सब टके सेर।", कथन है।- द्वितीय अंक में जातवाल ब्राहमण का
- "अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।”, कथन है।- द्वितीय अंक में गोवर्धनदास का
- “सेत सेत सब एक है, जहाँ कपूर कपास। ऐसे देश कुदेस में कबहुँ न कीजै बास।।", कथन है।- तृतीय अंक में महंत जी का
- “चुप रहो तुम्हारा न्याव यहाँ ऐसा होगा कि जैसा जम के यहाँ भी न होगा।”, कथन है।- चतुर्थ अंक में राजा का फरियादी से
- “वेश्या जोरू एक समाना।”, कथन है।- पंचम अंक में गोवर्धनदास का
- “अंधाधुन मच्यौ सब देसा मानहूँ राजा रहत बिदेसा", कथन है।- पंचम अंक में गोवर्धनदास का
- जहाँ न धर्म न बुद्धि नहिं, नीति न सुजन समाज। ते ऐसहि आपुहि नसे, जैसे चौपटराज ।।, कथन है।- छठा अंक में महंत का कथन
- “जहाँ न धर्म न बुद्धि नहिं, नीति न सुजन समाज। ये ऐसहिं आपुहिं नसै, जैसे चौपट राज।।”, कथन है।- छठा अंक में गुरु जी का
अंधेरी नगरी नाटक से संबंधित प्रश्नोत्तर
उत्तर - अंधेर नगरी का मूल उद्देश्य है कि हमें लालच नहीं करनी चाहिए क्योंकि अधिक लालच करने से मनुष्य की सोचने की क्षमता नही रहती है उसके अभाव में वह सही - गलत में अंतर नहीं कर पाता। इस नाटक में राजा व गंगाधर के साथ यही हुआ। दोनों अधिक लालच करने के कारण मुसीबत में पड़ गए।
उत्तर - नाटक की मूल संवेदना जनता को शासन की विसंगतियों के प्रति जागरूक बनाता है। राजा की तानाशाही की सत्ता है, न्याय व्यवस्था में विसंगति तथा जनता का शोषण एवं गुणवान और गुणहीन लोगों का एक ही मौल होना।
उत्तर - अंधेर नगरी नाटक का अंतिम दृश्य श्मशान का है।
उत्तर - धेर नगरी का प्रकाशन 1881 ई. में हुआ था।
Andher Nagari Natak MCQ
प्रश्न 01. अंधेर नगरी नाटक के नाटक कार है-
- धर्मवीर भारती
- जयशंकर प्रसाद
- हबीब तनवीर
- भारतेंदु हरिश्चन्द्र
उत्तर: 4. भारतेंदु हरिश्चन्द्र
प्रश्न 02. "अंधेरी नगरी अन बुझ राजा, टके सेर भाजी टेक क सेर खाजा।" अंधेरी नगरी में यह कथन किसका है।
- नारायण दास
- गोवर्धन*
- महंत
- गुरु
उत्तर: 2. गोवर्धन
प्रश्न 03. "संत संत सब एक से वहां कपूर कपास ऐसे देश कुदेश में कबहु न कीजो बास में महंत जी" उपर्युक्त कथन अंधेरी नगरी नाटक में महंत जी ने 'किस अंग में कहा था।
- पहला
- दूसरा
- तीसरी
- पौधे
उत्तर: तीसरी
प्रश्न 04. " बाबाजी महाराज! बड़े माल लाया हूँ, साढ़े तीन सेर मिठाई हैं" कथन किसका है?
- नारायण
- हलवाई
- गोवर्धन दास
- महंत
उत्तर: गोवर्धन दास
प्रश्न 05. "जहाँ न धर्म न बुद्धि नही, नीति न सूजन समाज ते ऐसे ही आपहु इसे, जैसे चौपट राज!'' अंधेरी नगरी नाटक से यह कथन किस पात्र का है
- नारायण दाख
- गोवर्धन दास
- महंत जी
- मंत्री
उत्तर: 3. महंत जी
प्रश्न 06. "लोभ पाप का मूल है, लोभ मिटावन मान, लोभ कभी नहीं कीजिये, या मै नरक निदान।" अंधेरी नगरी नाक में यह कथन किसका है?
- नारायण दाख,
- गोवर्धन दास
- महंत जी
- मंत्री
उत्तर: महंत जी