दुलाई वाली कहानी - राजेन्द्रबाला घोष

हिन्दी कहानी के प्रारम्भिक रचनाकारों में राजेन्द्रबाला घोष का स्थान सर्वोपरि है। ये बंग महिला के नाम से प्रसिद्ध हैं। राजेन्द्रबाला घोष हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी लेखिका के रूप में चिरस्मरणीय हैं। इन्होंने हिन्दी में बहुत-सी बंगला कहानियों का अनुवाद प्रस्तुत करके आधुनिक हिन्दी कहानी का पथ-प्रशस्त किया। इन्होने बाद में कुछ मौलिक कहानियाँ भी लिखी जिनमें 'दुलाई वाली' प्रसिद्ध है। 

'दुलाई वाली' कहानी को हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी माना गया है। यह वर्ष 1907 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई। स्थानीय रंगत, यथार्थ चित्रण तथा पात्रानुकूल भाषा की दृष्टि से यह कहानी उत्कृष्ट है।

    बंग महिला की कहानी 'दुलाईवाली' का मुख्य बिंदु और सारांश

    1. हिन्दी की प्रथम कहानीकार राजेन्द्र बाला घोष (छ‌द्दम नाम बंग महिला) श्रीमती राजेन्द्र बाला घोष का जन्म 1882 ई० में बनारस में और मृत्यु 1912 में हुआ था। 
    2. बंग महिला घोष द्वारा लिखित 'दुलाईवाली कहानी 1907 की 'सरस्वती' पत्रिका के भाग-8, संख्या 5 में प्रकाशित हुई थी। 
    3. कहानी की प्रमुख विशेषता यह है कि यह रचना हास्य-सृजन के परम्परा से हटक मौलिकता और कल्पनाशीलता का अनोखा वर्णन है।
    दुलाईवाली कहानी का सारांश

    दुलाईवाली - मूल संवेदना 

    1. मनोरंजनप्रधान रोचक कहानी। 
    2. पर्दाप्रथा की विसंगति पर चोट 
    3. परिवार, समाज, रेलवे स्टेशन का यथार्थ चित्रण। 
    4. स्वदेशी आंदोलन की सांकेतिक अभिव्यक्ति ।

    कहानी के प्रमुख पात्र

    वंशीधर - वंशीधर कहानी का मुख्य पात्र है, जो इलाहाबाद का रहने वाला है। वह सतर्क बुद्धिवाला तथा उत्साही व्यक्ति है।

    नवल किशोर - नवल किशोर वंशीधर का ममेरा भाई है। उसे हँसी मजाक करना पसन्द है।

    जानकीदेई - जानकीदेई वंशीधर की पत्नी है। वह एक सामान्य गृहस्थ महिला है। यह कहानी के विकास में उत्प्रेरक की भूमिका निभाती है। 

    अन्य पात्र - नवल किशोर की पत्नी, वंशीधर की सास, साला, साली, इक्केवाला, रेल के यात्री अन्य पात्र हैं, जो कथा में प्रसंगवश आते हैं तथा अपनी सक्रिय उपस्थिति से कथा को रोचक और जीवन्त बनाते हैं।

    'दुलाई वाली' कहानी की समीक्षा

    'दुलाई वाली' कहानी मनोरंजन प्रधान कहानी है। इस कहानी का प्रारम्भ काशी से होता है तथा अन्त इलाहाबाद तक की यात्रा पर होता है। कहानी में नायक वंशीधर मुगलसराय से लेकर इलाहाबाद तक जाने वाली रेलगाड़ी में अपने मित्र नवल किशोर को खोजता रहता है, किन्तु वह कहीं नहीं मिलता। अन्त में एक बूढ़ी औरत का वेश धारण करने वाला नवल किशोर जब अपने मुँह से दुलाई हटाकर अपना चेहरा दिखाता है, तो वहाँ भेद प्रकट होता है कि वही वंशीधर का मित्र नवल किशोर है जिसे आरम्भ में वंशीधर खोज रहा होता है तथा कौतुक का दृश्य उभरकर सामने आता है। फिर वे सभी हँसते-बोलते हुए इलाहाबाद में एक साथ अपने-अपने घर जाते हैं।

    आलोच्य कहानी की कथावस्तु बहुत साधारण है, किन्तु इस कहानी की घटनाओं को रचनाकार ने बहुत सुन्दर ढंग से नियोजित कर औत्सुक्य (जिज्ञासा) उत्पन्न कर दिया है। यह जिज्ञासा अन्त तक बनी रहती है कि नवल किशोर और उसकी पत्नी कहाँ रह गए। अन्त में जिज्ञासा का समाधान होने पर रचनाकार के विवेक और उसकी मौलिक कल्पनाशीलता की कुशलता का परिचय मिलता है।

    कहानी की सम्पूर्ण कथा दो पात्रों पर केन्द्रित है, जिसमें वंशीधर और नवल किशोर प्रमुख हैं। वंशीधर और नवल किशोर दोनों इलाहाबाद के रहने वाले हैं। नवल किशोर वंशीधर का ममेरा भाई है, लेकिन दोनों के बीच मित्रता का गहरा सम्बन्ध है। सहायक पात्रों में वंशीधर की पत्नी जानकीदेई और नवल किशोर की पत्नी (जिसका नाम नहीं दिया गया) है, जो कथा के विकास में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। ये दोनों कहानी को रोचकता और गति प्रदान करते हैं।

    कहानी में जिन घटनाओं, परिस्थितियों और मानसिकता का चित्रण हुआ है वह तत्कालीन समाज के आसपास की हैं। रेलवे स्टेशन, तार, इक्का, घोड़ागाड़ी, खोमचेवाला इत्यादि प्रसंग कथा की विश्वसनीयता को बढ़ाते हैं। इस कहानी में काशी के लोगों की दिनचर्या तथा रेल में बैठे यात्रियों का सजीव चित्रण हुआ है। यह कहानी एक मनोरंजक कहानी है, इसलिए इसका घटनाक्रम भी इसी उद्देश्य के आसपासघूमता रहता है। इस प्रकार 'दुलाई वाली' कहानी में लेखिका ने मनोरंजन हेतु वृन हास्य की सृष्टि की है। इस हास्य सृजन में परम्परा से हटकर मौलिकता और कल्पनाशीलता का अद्भुत प्रयोग किया गया है। कहानी में काशी और उसके आसपास के जन-जीवन का बहुत स्वाभाविक चित्रण प्रस्तुत किया गया है, साथ ही स्त्री और पुरुष की सोच और मनोभावों का भी सुन्दर चित्रण है।

    इस कहानी में देशी धोती और विलायती धोती के माध्यम से अंग्रेजी पहनावे व वस्त्रों के उपयोग पर व्यंग्य भी किया गया है। नवल किशोर की बहू के सम्बन्ध में मिरजापुर की ग्रामीण महिलाओं के वार्तालाप के माध्यम से नारी मनोविज्ञान का सुन्दर चित्रण हुआ है। अतः कह सकते हैं कि हिन्दी कहानी के प्रारम्भिक विकास की अवस्था में जिस प्रकार की कहानियों का सृजन हो रहा था, उनकी तुलना में इस कहानी की कथा पूर्णतः मौलिक, सहज और गतिशील है।

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    दुलाईवाली कहानी  के महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

      1. हिंदी की प्रारंभिक कहानियों में से एक है। 
      2. यह कहानी साल 1907 में प्रकाशित हुई थी।
      3. 'दुलाईवाली' कहानी की लेखिका राजेन्द्र बाला घोष थीं। 
      4. इस कहानी के कुछ पात्र हैं- वंशीधर, सीता, इक्केवाला, जानकी देई।
      5. इस कहानी में एक मध्यमवर्गीय परिवार की घटना को दिखाया गया है। 
      6. कहानी का आधार मनोरंजन है। कहानी हास्य का पट लिए हुए, नवविवाहित घनिष्ट मित्रों की कथा है। 
      7. कहानी की प्रमुख विशेषता यह है कि रचनाकार हास्य- सृजन में परम्परा से हटकर मौलिकता और कल्पनाशीलता का अ‌द्भुत प्रयोग किया है। 
      8. काशी और उसके आस-पास के जन-जीवन व स्त्री-पुरुष के सोच तथा मनोभावों का स्वभाविक चित्रण मिलता है। 
      9. विदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर व्यंग्य। 
      10. कहानी की शुरुआत काशी के दशाश्वमेध घाट से शुरू होकर, इलाहाबाद में खत्म होती है।

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