एकांकी नाटक एक प्रकार का शो है जिसमें सिर्फ़ एक भाग होता है, जैसे कि एक छोटी कहानी। इसमें कुछ पात्र होते हैं और एक मुख्य कहानी बताई जाती है। एकांकी नाटक का लक्ष्य उस कहानी को जल्दी से जल्दी बताना और उसे वास्तव में रोमांचक या सार्थक बनाना होता है।
एकांकी का अर्थ
'एकांकी का शाब्दिक अर्थ है- 'एक अंक वाला'। यह नाटक के समान ही अभिनय से सम्बन्धित साहित्य की एक विधा है, जिसमें किसी घटना या विषय को में प्रस्तुत किया जाता है। नाटक के विभिन्न भेदों में से व्यायोग, प्रहसन, भाण, वीथी, नाटिका, गोष्ठी आदि में एक ही अंक होता है। अत: इन्हें प्राचीन ढंग की 'एकांकी कह सकते हैं। संस्कृत एवं प्राकृत में 'एकांकी' के अनेक उदाहरण मिलते हैं।
एकांकी की परिभाषा
विद्वानों के द्वारा एकांकी की परिभाषा दी गई है, जो निम्नानुसार है:-
डॉ.गोंविददास के अनुसाार - इसमें जीवन से संबंधित किसी एक ही मूल भाव या विचार की एकांत अभिव्यक्ति होती है।
डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार - एकांकी में एक ऐसी घटना रहती है, जिसका जिज्ञासा पूर्ण और कौतूहलमय नाटकीय शैली में चरम विकास होकर अंत होता है।
हिंदी एकांकी के जनक
डॉ॰ रामकुमार वर्मा (15 सितम्बर, 1905 - 1990) को हिन्दी एकांकी का जनक माना जाता है। वे एक प्रसिद्ध साहित्यकार, व्यंग्यकार, और हास्य कवि के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें आधुनिक हिन्दी में एकांकी विधा को व्यवस्थित रूप देने का श्रेय दिया जाता है। वे एक उच्च कोटि के समीक्षक भी थे और उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखक के रूप में भी काम किया। उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में सन 1963 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इनके काव्य में 'रहस्यवाद' और 'छायावाद' की झलक है।
एकांकी के प्रकार
एकांकी के प्रकार निम्न है:-
- सामाजिक एकांकी
- पौराणिक एकांकी
- ऐतिहासिक एकांकी
- राजनीति से सम्बंधित एकांकी
- अर्थपूर्ण एकांकी
- चरित्र प्रधान एकांकी
एकांकी की विशेषताएं
- एकांकी एक अंक की होती है।
- एकांकी में एक संक्षिप्त रचना होती है जिसे लगभग 30 मिनट में समाप्त होना चाहिए।
- आंतरिक संघर्ष एवं कौतूहल एकांकी के लिए आवश्यक होता है।
- एकांकीकार को एकांकी में अनुभूति एवं अभिव्यक्ति में समन्वय रखना आवश्यक होता है।
- एकांकी में किसी एक मात्र मूल विचार, घटना अथवा समस्या स्थिति विशेष का ही प्रस्तुतीकरण किया जा सकता है।
- एकांकी में घटना स्थान व समय का महत्व होता है।
एकांकी के तत्व
1. कथावस्तु या कथानक :-
एकांकी का कथानक या कथावस्तु समाज के एक भाव-विचार, व्यवहार जगत और जीवन, घटना पक्ष, समस्या पर केंद्रित होता है तथा एकांकी में सहायक व प्रासंगिक कथाओं का कोई स्थान नहीं दीया जाता है। एकांकी में प्रस्तुत किये जाने वाले घटनाओं का एक ही उद्देश्य होता है। एकांकी की कथा जीवन आदर्श, घर-परिवार, राजनीति, धर्म, यथार्थ, इतिहास-पुराण आदि से भी ली जाती है।
2. पात्र/ चरित्र चित्रण :-
एकांकी के पात्रों के चयन में सीमत्व व आवश्यकता का ध्यान रखा जाता है तथा अनावश्यक पात्रों की भीड़ के टालना भी पडता है। विषय के अनुसार एक केंद्रीय पात्र तथा नायक के साथ थोडे-से सहायक पात्र रखे जाते है।
3. द्वंद्व या संघर्ष :-
एकांकी जीवन के अनेक प्रकार के अंत-बाहय द्वंद्वों एवं संघर्षों से जुड़ी होती है। अतः एकांकी के अनिवार्य तत्व के रूप में इसे स्वीकारा गया है। इसमें कथा को स्पष्टीकरण तो मिलता है, साथ जी पात्रों के चरित्र विकास में भी सहायता मिलती है। संघर्ष के द्वारा एकांकी में सहज नाटकीयता, तीव्रता व द्रुतता का समावेश होता है।
4. संवाद/ कथोपकथन :-
संवादों के द्वारा ही एकांकी की कथा, उद्देश्य की सफलता, चरित्र का विकास, स्पष्टता को सिद्ध किया जा सकता है। संवादों के द्वारा ही देशकाल व वातावरण को जाना जा सकता है। संवादों के द्वारा ही कथा को गती प्रदान की जाती है। अभिनेयता की दृष्टि से सरल, संक्षिप्त संवाद ही अच्छे माने जाते है।
5. भाषाशैली :-
भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होती है जिस कारण एकांकी की भाषा भी सरल, स्पष्ट व सहज, होनी चाहिए। भाषा प्रत्येक प्रकार के प्रेक्षक के लिए सुगम हो। पात्रानुकूल भाषा का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है। एकांकी की भाषा शैली पाठकों के मन-मस्तिष्क पर बोझ न बनकर सहजगम्य होनी चाहिए।
6. प्रभाव ऐक्य :-
एकांकी के सभी तत्वों को अपने में समन्वित करने वाला तत्व प्रभाव ऐक्य ही होता है। यह एकांकी को देख रहे प्रेक्षक के मन-मस्तिष्क में जो समग्र बिंब बनता है, उसी को प्रभाव- ऐक्य कहा जाता है। इसी पर एकांकी की सफलता अवलंबित होती है। नाटक के मूल भाव विचार, चरित्र, पात्र, भाषा-शैली, की समग्र अभिव्यक्ति ही प्रभाव-ऐक्य से संभव है।
7. अभिनेयता :-
एकांकी की रचना भी रंगमंच पर प्रदर्शन या अभिनय के लिए ही की जाती है। एकांकी की सफलता का मूल आधार तत्व सफल अभिनेयता ही होता है। इसी के लिए लेखक भाव-विचार स्थिति के अनुकूल रंग-निर्देश दिया करता है। अभिनेयता के द्वारा ही संवादों के माध्यम से उचित हाव-भाव रंगमंच पर प्रदर्शित किए जाते है।
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