ज्ञानरंजन (जन्म : 21 नवंबर, 1936 ) हिन्दी साहित्य के एक प्रसिद्ध कहानीकार तथा हिन्दी की सुप्रसिद्ध पत्रिका पहल के संपादक हैं। पिता (1965 ई.) कहानी में पीढ़ियों का संघर्ष व्यक्त हुआ है। पिता के प्रति असंतोष और सहानुभूति की मिली-जुली प्रतिक्रिया ही कहानी का मूल कथ्य है।
लेखक परिचय : ज्ञानरंजन
जन्म - 21 नवंबर, 1936 (आकोला, महाराष्ट्र)
भाषा - हिंदी
विधाएँ - कहानी, संस्मरण, निबंध
सम्मान -
- सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का 'साहित्य भूषण सम्मान'
- अनिल कुमार और सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार
- मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग का 'शिखर सम्मान'
ज्ञानरंजन की प्रमुख रचनाएँ
कहानीकार ज्ञानरंजन - पिता कहानी
पिता कहानी ज्ञान रंजन की महत्वपूर्ण कहानियों में से एक है, जिसका प्रकाशन वर्ष 1965 ई. में हुआ था। पिता कहानी में परिवार के संबंधों के बदलते स्वरूप को दर्शाया है। पुरानी और नई पीढ़ीयों के सच में आए बदलाव का चित्रण किया गया है।
पिता कहानी का मुख्य विषय
- कहानी में पिता और पुत्र के बीच विचारों और जीवनशैली में अंतर।
- पारिवारिक तनाव
- पिता की असहायता
- शहरी जीवन की विडंबनाए का चित्रण
- पारिवारिक संबंधों के बदलते स्वरूप का चित्रण
पिता कहानी के प्रमुख पात्र
पिता - कहानी के मुख्य पात्र 'पिता' पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके लिए आधुनिक वातावरण के अनुसार ढल पाना कठिन है, किन्तु आधुनिक पीढ़ी को आधुनिक बनने से नहीं रोकते। उनके अन्दर आत्मनिर्भरता तथा स्वाभिमान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है।
पुत्र - कहानी में पुत्र की भूमिका महत्त्वपूर्ण पात्र के रूप में है। 'पुत्र' आधुनिक पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है। 'पुत्र' पिता को आधुनिक समय के अनुसार ढालना चाहता है।
पिता कहानी का भावार्थ
माँ, बहिन, पिता और भाई से अलग होते हुए आज के आदमी को ज्ञानरंजन ने अपनी कहानियों के माध्यम से चित्रित किया है। 'पिता' कहानी में पुरानी पीढ़ी का अपने समकालीन परिवेश से कटते चले जाने का दर्द चित्रित है। इसमें बदली हुई मानसिकता का अंकन है। यह उस मानसिकता के साथ चल पाने में असमर्थ पिता की कहानी है।
पिता कहानी के लिए दो शब्द
पिता' ज्ञानरंजन की महत्त्वपूर्ण कहानियों में से एक है। 'ज्ञानरंजन' का दौर दरअसल आजादी के तुरन्त बाद वाला दौर न होकर उससे उबरने और सम्बन्धों में आई खटास को दूर करने और उन्हें मजबूत करने का दौर था, किन्तु इस दौर की विडम्बना यह थी कि सम्बन्ध बनाए रखने के चक्कर में हाथ से छूटते जा रहे थे। ज्ञानरंजन ने अपनी कहानियों की पृष्ठभूमि इन्हीं सम्बन्धों खासकर पारिवारिक सम्बन्धों को बनाया है।
पारिवारिक सम्बन्धों के बदलते स्वरूप को दिखाते हुए ज्ञानरंजन की कहानी 'पिता' पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी में आए मानसिकता के बदलाव का चित्रण करती है, लेकिन इनके सम्बन्ध में किसी प्रकार का निष्कर्ष देने की कोशिश नहीं करती। पिता की पीढ़ी यदि अपनी समकालीन स्थितियों से नहीं जुड़ पा रही तो पुत्र की पीढ़ी भी अपने पिता की पीढ़ी को नहीं अपना पा रही है।
'पिता' कहानी की समीक्षा
'पिता' कहानी के माध्यम से पीढ़ियों का वर्णन किया गया है। कहानी में चित्रित पिता आज भी अपनी सन्तानों के लिए 'भीमकाय दरवाजे' (बड़े दरवाजे) की भाँति दिखाई देते हैं। उनमें आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा हुआ है। पुरानी सोच वाले पिता को आधुनिक वातावरण के अनुसार ढाल पाना कठिन हो रहा है, लेकिन 'पिता' कहानी में वे अपनी सन्तानों को आधुनिक बने रहने से बिलकुल नहीं रोकते। हालाँकि अपने बच्चों को बेझिझक कहते, "आप लोग जाइए न भाई, कॉफी हाउस में बैठिए, झूठी बैनिटी के लिए बेयरा को टिप दीजिए," रहमान के यहाँ डेढ़ रुपए वाले बाल कटाइए, मुझे क्यों घसीटते हैं।" जबकि पुत्रों को उनका कुर्ता-कमीज पहनना अच्छा नहीं लगता और वे उनकी पोशाक बदल देना चाहते हैं, किन्तु बड़ी सरलता से पिता अपने बच्चों को समझाते हैं कि पोशाक बदलने से व्यक्ति के विचार तो नहीं बदल सकते।
यह कहानी न तो पिता विरोधी है और न ही इसमें किसी खास पीढ़ी को निशाना बनाया गया है। हाँ, यह कहानी अपनी पूर्ववर्ती कहानियों की अपेक्षा पिता-पुत्र सम्बन्धों का थोड़ा अलग विश्लेषण अवश्य करती है।
पिता और पुत्र के मध्य दो पीढ़ियों का फासला होने के पश्चात् यह कहानी पिता और पुत्र के सम्बन्धों की स्वातन्त्रोत्तर समझ विकसित करने और उनमें उपजने वाले भावी द्वन्द्व की शुरुआती अवस्था पर बात करती है। यहाँ पिता और पुत्र के मध्य एक प्रेममयी और भावनात्मक दूरी है, लेकिन इसके पश्चात् दोनों एक-दूसरे की चिन्ता करते हैं। पिता और पुत्र पास रहने पर भी साथ नहीं रह पाते, लेकिन यह सिर्फ इस कहानी की ही नहीं उस पूरे दौर और यहाँ तक की आज के दौर की भी विडम्बना है।
'पिता' कहानी में पिता के प्रति असन्तोष और सहानुभूति की मिली-जुली प्रतिक्रिया अर्थात् कहानी का मूल कथ्य बताने का प्रयास किया गया है। पुत्र चाहते हैं कि पिता आराम से पंखे के नीचे सोए, गुसलखाने में खूबसूरत शावर में स्नान करें, लड़कों द्वारा लाई गई खाद्य सामग्री का स्वाद लें, दिल्ली एम्पोरियम की बढ़िया धोती पहने, किन्तु पिताजी को यह बातें कतई पसन्द नहीं हैं। उन्हें यह अनिवार्य नहीं लगता। 'पुत्र' पूरी सुविधा का ध्यान रखते हैं। पुत्र पिता से बड़े प्यार से कहता है, "मुहल्ले में हम लोगों का सम्मान है, चार भले लोग आया जाया करते हैं, आपका बाहर चौकीदारों की तरह रात को पहरा देना बड़ा ही भद्दा लगता है।” पुत्रों की इन बातों से लगता है कि समाज की निन्दा का उन्हें भय है, बस और कुछ नहीं। पुत्रों के वैवाहिक जीवन की स्वच्छन्दता में आड़े न आने की वजह से पिता बाहर सोया करते हैं।
यह बात पुत्र की सोच से पता चलती है, जबकि उसे यह ख्याल आता है कि अन्दर सब आराम से सो रहे हैं और पिता गर्मी से परेशान बाहर उठ-बैठ रहे हैं। इन बातों से लगता है कि हमारे समाज में बड़े-बूढ़े लोग जैसे बहू-बेटियों के निजी जीवन को स्वच्छन्दता देने के लिए अधिकांश समय बाहर व्यतीत किया करते हैं।
पिता यद्यपि हर बार पुत्र की बातों का निषेध किया करते हैं, किन्तु हर बार पिता से हार मानकर भी पुत्र का पिता के लिए प्यार उमड़ने लगता है और फिर वह पिता से अपनी सुविधाओं में शामिल होने का आग्रह करने लगता है। वह बस हमेशा अपने पिता को साथ देखना चाहता है। ज्ञानरंजन की इस कहानी में पिता, पुत्र के सम्बन्ध की वास्तविकता के दर्शन मिलते हैं। पिता-पुत्र एक-दूसरे से प्यार का ध्यान मध्यमवर्गीय परिवारों में अकसर होता है। इसी प्रकार पिता-पुत्र के सम्बन्धों में कड़वाहट महसूस नहीं हुई।
पिता कहानी के संबंध में विद्वानों का मत
डॉ० रामचद्र तिवारी के शब्दों में- "ज्ञानरंजन मुख्य रूप से मध्यवार्गीय जीवन की कुरूपताओं, विसंगतियों और खोखलेपन को निस्संग भाव से बेनकाब करनेवाले यथार्थधर्मी कहानीकार है।"
गोपालराय के शब्दों में- "ज्ञानरंजन का 'पिता' कहानी पीढ़ियों की सोच और जीने के तौर तरीकों के खाई को व्यक्त करने वाली कहानी है।"
बच्चन सिंह के शब्दों में - "इस कहानी का केंद्रीय वस्तु 'अकेलापन' है।"
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पिता कहानी के महत्वपूर्ण तथ्य
- पिता कहानी प्रकाशन वर्ष 1965 ई. है।
- यह कहानी फेंस के इधर-उधर कहानी संग्रह में संकलित है।
- इस कहानी में मुख्यत: पुरानी पीढ़ी और आधुनिक पीढ़ी के बीच द्वंद्व को दिखाया गया है।
- पिता कहानी का प्रारंभ गर्मी से होता है जो मुख्य रूप से बेचैनी का प्रतीक है।
- इस कहानी में मुख्य पात्र के रूप में पिता है जो पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर हैं। दूसरा पात्र कहानी में पुत्र जो की आधुनिक पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है।
- इस कहानी में घनश्याम नगर, खुल्दाबाद, धूमनगंज आदि की चर्चा है।
- इस कहानी में वर्णित मौसम गर्मी का है।
Pita Kahani MCQ
प्रश्न 01. "इस कहानी का केंद्रीय वस्तु अकेलापन है।" पिता कहानी के सन्दर्भ में उपरोक्त कथन किस आचोचक के है -
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल
- गोपाल राय
- बच्चन सिंह
- विश्व नाथ त्रिपाठी
उत्तर: 3. बच्चन सिंह
प्रश्न 02. पिता कहानी में, पिता का परिवार किस शहर में रहता था ?
- गोविंदपुर
- देवनंदन पुर
- घनश्याम नगर
- राजा नगर
उत्तर: 3. घनश्याम नगर
प्रश्न 03. पिता कहानी के संदर्भ में सही कथनों पर विचार कीजिये-
- पिता ने कप्तान भाई को बारह सौ रूपए वाली पासबुक थमा दी थी।
- कप्तान भाई थल सेना में नौकरी करते थे।
- पिता बार बार सुराही से खाट तक, खाट से सुराही तक जा रहे थे।
- कमरे में सिगरेट पीने की सुविधा नहीं थी।
नीचे दिये गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिये-
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4
उत्तर: (c) केवल 1, 3 और 4
प्रश्न 04. "बड़ी भयंकर गर्मी है, एक पत्ता भी नहीं डोलता" पिता कहानी के अनुसार उपर्युक्त कथन किस पात्र से संबंधित है?
- पिता
- सुधीर
- लेखक
- कप्तान
उत्तर: 1. पिता
प्रश्न 05. ज्ञानरंजन किस पत्रिका के संपादक के रूप में विख्यात हैं?
- वागर्थ
- कथादेश
- पहल
- नया ज्ञानोदय
उत्तर: 3. पहल
प्रश्न 06. सातवे दशक में लिखी गई कहानियों के लिये किस पद का इस्तेमाल किया जाता है?
- नयी कहानी
- साठोत्तरी कहानी
- सचेतन कहानी
- समानांतर कहानी
उत्तर: 2. साठोत्तरी कहानी
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