यह दीप अकेला (कविता) | सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय'

 

    'यह दीप अकेला' कविता का सारांश

    'यह दीप अकेला' कविता के माध्यम से अज्ञेय जी व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता से जोड़ने की बात कर रहे हैं। मनुष्य में अतुलनीय सहनशीलता और संघर्ष की क्षमता है। समाज में उसके विलय से समाज और राष्ट्र मजबूत होगा।

    दीप अकेला है, परन्तु फिर भी वह प्रेम से भरा हुआ है और गर्व से परिपूर्ण होने के कारण अपनों से अलग है। वह सर्वगुण सम्पन्न है इसलिए मद माता है। यदि उसे पंक्ति में सम्मिलित कर लिया जाए तो उस दीप की शक्ति, महत्ता तथा सार्थकता बढ़ जाएगी। दीप व्यक्ति का प्रतीक है। कवि उसे पंक्ति में लाकर मुख्यधारा से जोड़ना चाहते हैं। कवि ने दीप के लिए विभिन्न उपमानों का प्रयोग किया है- पनडुब्बा, समिधा, मधु, गोरस, अंकुर, स्वयंभू, ब्रह्म आदि। कवि के अनुसार ये सभी उपमान एक स्नेह भरे दीप के लिए पूर्णरूप से उपयुक्त हैं। पनडुब्बा के रूप में वह सच्चे मोतियों को लाने वाला है अर्थात् खेतरों से खेलने वाला है। वहीं समिधा (यज्ञ) की लकड़ी बनकर संघर्षशील व दृढनिश्चयी है। मधु के रूप में माधुर्य तथा गोरस के रूप में पवित्र और दुग्ध के समान सुख देने वाला है। वह अंकुर की तरह पैदा होकर सूर्य को निडरता से देखता है। वह उत्साही तथा स्वयं ब्रह्म के रूप में है। यदि उसे सांसारिक गतिविधियों में शामिल किया जाए तो वह उपयोगी बन सकता है। कवि दीप को 'स्व' का भाव प्रदान करते हुए कहता है कि व्यक्ति अपनी अलग पहचान बनाते हुए समाज के लिए स्वयं को समर्पित कर दे तो यह श्रेयस्कर होता है। व्यक्तिगत सत्ता का सामाजिक व राष्ट्रीय सत्ता में विलय होने से समाज, राष्ट्र, व्यक्ति अर्थात् सभी का उत्थान होता है। दीप प्रकाश व ज्ञान तथा सभ्यता का प्रतीक है, जिसे कवित में सामाजिक इकाई के रूप में चित्रित किया गया है।

    Yeh Deep Akela- Agyeya

    'यह दीप अकेला' कविता के कुछ पदों की व्याख्या 

    यह दीप अकेला स्नेह 

    भरा है गर्व भरा मदमाता पर 

    इसको भी पंक्ति को दे दो 

    यह जन है: गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा 

    पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लाएगा? 

    यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा 

    यह अद्वितीय: यह मेरा यह मैं स्वयं विसर्जित : 

    यह दीप अकेला स्नेह भरा 

    है गर्व भरा मदमाता पर 

    इसको भी पंक्ति को दे दो

    यह मधु है: स्वयं काल की मौना का युगसंचय

    यह गोरस : जीवन कामधेनु का अमृत-पूत पय

    यह अंकुर : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय

    यह प्रकृत, स्वयम्भू, ब्रह्म, अयुतः 

    इसको भी शक्ति दे दो 

    यह दीप अकेला स्नेह भरा 

    है गर्व भरा मदमाता पर 

    इसको भी पंक्ति को दे दो 

    यह वह विश्वास नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा, 

    वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा, 

    उल्लम्ब-बाहु, यह चिर अखण्ड अपनापा 

    जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय 

    इसको भक्ति दे दो 

    यह दीप अकेला स्नेह भरा 

    है गर्व भरा मदमाता पर 

    इसको भी पंक्ति को दे दो

    व्याख्या - प्रस्तुत कविता में अजेय दीप के माध्यम से व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता से जोड़ने की बात करते हैं। मनुष्य में संघर्ष करने की क्षमता अतुलनीय है तथा वह सहनशीलता में भी अनन्य है। समाज में वैयक्तिक क्षमता का विलय होना राष्ट्र को मजबूती व दृढ़ता ही देगा। दीप के माध्यम से कवि कहते हैं कि यह दीप अकेला स्नेह से भरा हुआ है अर्थात एक अकेला व्यक्ति प्रेम से व गर्व से भरा हुआ यदि समाज में विलय हो जाए तो उस समाज के विकास को एक सीबी और मिल जाती *है। यह वह जन है. जो ऐसा गीत गाएगा, जैसा अब तक कोई गा न सका हो। यह वह पनडुब्बा है. जो गहरे जल से सच्चे मोती ही ढूंढकर लाएगा अर्थात समाज में ऐसा व्यक्ति लाभकारी ही सिद्ध होता है।

    कवि कहता है कि यह व्यक्ति यज्ञ की वो समिधा होता है. जो समाज में पवित्रता की अग्नि ही जला देगा अर्थात संघर्षशील होकर लक्ष्य को प्राप्त करेगा। मघु एवं गोरस के रूप में माधुर्य एवं पवित्र अमृतमय दुग्ध के समान सुख देने वाला स्नेहशील, परोपकारी है। वह अंकुर की तरह स्वयं पैदा होकर विशाल सूर्य को निडरता से ताकता है, वह उत्साही है। यह स्वयं ब्रह्म के रूप में अर्थात दीप. मनुष्यबद्ध स्वयं तक ही सीमित नहीं है। उसे सांसारिक गतिविधियों में शामिल करके भर्वजन हिताय प्रयोग में लाया जाए तो सम्पूर्ण मानवता लाभान्वित हो सके।

    यह अद्वितीय यह मेरा, यह मैं स्वयं विसर्जित पंक्ति के द्वारा कवि दीप को 'स्व' का भाव प्रदान करता हुआ कहता है कि व्यक्ति अपनी अलग पहचान बनाते हुए समाज हित में समर्पित हो जाए तो अत्यधिक श्रेयस्कर होगा। व्यक्तिगत सत्ता का यदि सामाजिक व राष्ट्रीय सत्ता में विलय हो जाए तो समाज, राष्ट्र एवं व्यक्ति सभी का उत्थान होगा।

    दीप प्रकाश, ज्ञान तथा सभ्यता का प्रतीक है। कविता में इसे सामाजिक इकाई अर्थात् व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। जब कहीं समाज में निन्दा, अपमान, घृणा तथा अनादर एवं उपेक्षा का अन्धकार फैलता है, तो दीप उसे प्रकाशमान कर अनुकूल वातावरण प्रदान करता है।

    व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों में भी करुणामय होकर, द्रवित होकर, जागरूकता का परिचय देता हुआ अनुराग से देखता हुआ, सभी को गले लगाने वाली ऊँची उठी भुजाओं वाला बनकर आत्मीयता का परिचय देता है। वह सदैव जागृत तथा श्रद्धा से युक्त रहता है। अँधेरे में प्रकाश की किरण बनकर निन्दा, अपमान, घृणा और अवज्ञा को दूर करता है तथा अनुकूल वातावरण तैयार करता है।

    विशेष -

    • भाषा-खड़ी बोली, तत्सम शब्दावली।
    • अनुप्रास अलंकार, रूपक अलंकार।
    • पनडुब्बा, समिधा, गोरस, अंकुर लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्ति।
    • माधुर्य एवं ओजगुण।
    • प्रतीकात्मकता-दीप प्रतीक है व्यक्ति का।
    • प्रगीत शैली छन्द मुक्त।

    यह दीप अकेला, कविता के महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

      1. 'यह दीप अकेला' शीर्षक कविता को अज्ञेय जी ने 18 अक्टूबर 1952 को नयी दिल्ली (आलप्स कहवा घर) में लिखा था।
      2. यह कविता 'बावरा अहेरी' काव्य संग्रह में संग्रहित है।
      3. यह कविता प्रतीकात्मक शैली में रचित है।
      4. कविता में अकेला दीप व्यक्ति (व्यष्टि) का प्रतीक है तो पंक्ति समाज (समष्टि) का प्रतीक ।
      5. 'यह दीप अकेला' कविता में ऐसे दीप की बात की गयी है जो स्नेह से भरा है, गर्व से भरा और मदमाता है पर वह अकेला है।
      6. इस कविता में कवि ने व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता से जोड़ने की बात कही है।
      7. वस्तुतः दीप का पंक्ति में विलय व्यष्टि का समष्टि में विलय है और आत्मबोध का विश्वबोध में रूपांतरण।
      8. कविता में गीत को तभी सार्थक बताया गया है जब वह गायन/से जुड़ा हो और मोती की भी सार्थकता तभी है जब गोताखोर उसे बाहर निकाले।
      9. कविता में मधु को स्वयं काल की मौना का युग संचय कहा गया है, कारण इसे बनने में लंबा समय लगता है।
      10. गोरस को 'जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय' कहा गया है कारण, जीवन रूपी कामधेनु गाय से यह प्राप्त होता है।
      11. अकर को "फाड़ धरा को रवि को तकता निर्भय" इसलिए कहा है क्योंकि से यह प्राप्त होता है। अंकुर अपने कोमल सिंगों से कठोर धरती को फौड़ बाहर निकल आता है और सूर्य जैसे भीषण ताप वाले से भी नहीं डरता । 
      12. अकुर के लिए कविता में प्रकृत, स्वयंभू, ब्रह्म, अयुत आदि संज्ञा प्रदान की गयी है।
      13. कविता में 'स्नेह संश्लिष्ट शब्द है जिसका अर्थ तेल और प्रेम दोनों हो रहा है।

    Yeh Deep Akela Kavita MCQ

    प्रश्न 1. यह दीप अकेला कविता के कवि का क्या नाम है ?

    1. जयशंकर प्रसाद जी
    2. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी
    3. विष्णु खरे जी
    4. अज्ञेय जी

    उत्तर - 4. अज्ञेय जी


    प्रश्न 2. यह दीप अकेला कविता किस काव्य संग्रह से ली गई है ?

    1. स्कंद गुप्त से
    2. कार्नेलिया के गीत से
    3. बावरा अहेरी से
    4. त्रिशकु से

    उत्तर - 3. बावरा अहेरी से


    प्रश्न 3. यह दीप अकेला कविता में दीप किसका प्रतीक है ?

    1. व्यक्ति का
    2. समाज का
    3. देश का
    4. अपने कुल का

    उत्तर - 1. व्यक्ति का


    प्रश्न 4. गीत की सार्थकता किस से जुड़ी है ?

    1. समाज से
    2. मनुष्य से
    3. कवि से
    4. इनमें से कोई नहीं

    उत्तर - 2. मनुष्य से


    प्रश्न 5."यह दीप अकेला" पाठ में पनडुब्बी किसके लिए प्रयोग किया गया है ?

    1. मोती के लिए
    2. मछली के लिए
    3. व्यक्ति के लिए
    4. समाज के लिए
    उत्तर - 3. व्यक्ति के लिए

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