यात्रा वृतांत : परिभाषा, तत्‍व, विशेषताऍं एवं प्रमुख यात्रा वृतांत

इस पोस्‍ट में हम यात्रावृत्‍त या यात्रा वृतांत से संबंधित समस्‍त जानकारी को आपके समक्ष साक्षा करेंंगे। जिसमें यात्रा वृतांत का अर्थ, परिभाषा, तत्‍व तथा प्रमुख यात्रा वृतांत की जानकारी समाहित होगी, जो हिंदी साहित्‍य के संबंधित प्रश्‍न समस्‍त प्रतियोगिक परीक्षा में पुछे जाते है।

यात्रा वृतांत : परिभाषा, तत्‍व, विशेषताऍं एवं प्रमुख यात्रा वृतांत


यात्रा वृतांत का अर्थ

यात्रा करना मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति है। मानव के विकास की गाथा में यायावरी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। मनुष्य कभी-न-कभी, कोई न कोई यात्रा अवश्य करता है लेकिन सृजनात्मक प्रतिभा के धनी अपने यात्रा अनुभवों को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत कर यात्रा साहित्य की रचना करने में सक्षम हो जाते हैं। जब कोई लेखक अपने द्वारा की गई किसी यात्रा का वास्तविक, कलात्मक या साहित्यिक वर्णन करता है तो ऐसी रचना को यात्रावृत्त या यात्रा साहित्य या यात्रा वृतांत कहते हैं।


यात्रा वृतांत की परिभाषा

    "यात्रा वृतांत एक प्रकार का मानवीय इतिहास है, जिसमें घटनाओं के साथ-साथ व्‍यक्तिचेतना, संसकार, जीवन, सामाजिक और आर्थिक क्रियाऍं, राजनीतिक और भौगोलिक स्थितियॉं, विचार तथा धारणायें समाहित होती है।"


यात्रा साहित्य या यात्रा वृतांत का उद्भव और विकास

यात्रा साहित्य का उद्देश्य लेखक के यात्रा अनुभवों को पाठकों के साथ बाँटना और पाठकों को भी उन स्थानों की यात्रा के लिए प्रेरित करना है। यात्रा साहित्य का उद्भव अन्य गद्य-विधाओं की भाँति ही भारतेन्दु-युग से माना जा सकता है। भारतेन्दु ने 'सरयू पार की यात्रा', 'मेंहदावल की यात्रा', 'लखनऊ की यात्रा' आदि यात्रा वृत्तान्तों का बड़ा रोचक और सजीव वर्णन किया है। बालकृष्ण भट्ट की 'गया यात्रा' और प्रताप नारायण मिश्र की 'विलायत यात्रा' क्रमशः हिन्दी प्रदीप के मार्च, 1894 के तथा नवम्बर, 1897 के अंकों में प्रकाशित हुए।

द्विवेदी युग में देवी प्रसाद खत्री कृत 'बद्रिकाश्रम यात्रा', गोपालराम गहमरी कृत लंका यात्रा का विवरण, ठा. गदाधर सिंह कृत 'चीन में तेरह मास' तथा 'हमारी एडवर्ड तिलक यात्रा' उल्लेखनीय कृतियाँ हैं।

छायावाद युग में रामनारायण मिश्र ने 'यूरोप में छह मास' (1932) में यूरोप के दर्शनीय स्थानों के रोचक वर्णन के साथ-साथ वहाँ के रहन-सहन, शिक्षा पद्धति आदि का भी यथास्थान उल्लेख किया है। सत्यदेव परिव्राजक छायावादी युग के सर्वप्रमुख यात्रावृत्त लेखक हैं। 

मोहन राकेश कृत 'आखिरी चट्टान तक' (1953) सृजनात्मक यात्रावृत्त है। 'यातना शिविर' में हिमांशु जोशी ने अण्डमान निकोबार की सेल्युलर जेल की कथा लिखी है जिसमें भारतीय क्रान्तिवीरों को रखकर उन्हें अनेक प्रकार की पाशविक यातनाएँ दी जाती थीं।


यात्रा वृतांत के तत्व 

किसी यांत्रा वृतांत में निम्‍न तत्व सामिल किये जो तो वह एक प्रभावशाली यांत्रा वृतांत बन सकता है।

1. भाव-प्रवण्ता – लेखन में यह भाव होना चाहिए कि वह किसी भी स्थल को घूमन रहे तो उसे अंदर तक फील सके तथा अपने शब्दों पिरोने की क्षमता रखता हो। आपके द्वारा महसूस किया गया उत्साह, रोमाँच, आनन्द, विस्मय इत्‍यादि के भाव आप लेखन के माध्यम से पाठकों तक पहुचा पाये।

2. रोचकता – यात्रा वृतांत पाठकों के लिए रुचिकर होना चाहिए, जिससे पाठकों को पढ़ने में मनोरंजन हो। पाठक यह महसूस कर पाये कि आपके साथ-साथ वह भी आपकी यात्रा में समिल है।

3. ज्ञानबर्धक - यात्रा वृतांत में किसी भी स्थान से जुड़े ऐतिहासिक, पौराणिक, भौगोलिक व अन्य जानकारियाँ सामिल होनी चाहिए। जो पाठकों के ज्ञान भण्डार में इजाफा करने का काम करती हैं। इसलिए लेखक को किसी भी स्‍थान पर जाने से पहले तथा बाद में जानकारी एकत्रिक कर यात्रा वृतांत को ज्ञानबर्धक बनाना चाहिए।

4. चित्रात्मकता – चित्रात्‍मकता यात्रा वृतांत का एक महत्वपूर्ण तत्व है, क्‍योंकि एक लेखक किसी परिवेश को कितनी जीवंतता तरीके से शब्दों के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्‍तुत कर सकता है। किसी भी यात्रा का जीवंत चित्रण महत्वपूर्ण होता है, जिसमें आप दृश्य इस प्रकार बताते हो जैसे आपको दिखता हो, इसके विस्तार एवं बारीकियों को उभारते हुए।

5. सामयिकता - देश - दुनियाँ की समकालीन घटनाओं से वास्ता रखते हुए उस स्थान विशेष से जुडी घटनाओं का वर्णन यदि आप अपने यात्रा वृतांत में करना चाहिए।

6. भाषायी सरलता  यात्रा वृतांत की भाषा में तरलता एवं रोचकता होनी चाहिए, जिससे पाठक को दिलो-दिमाग आसानी से ह्दयंगम कर सके। यह भाषा ही होती है, जो पाठक को शुरु से लेकर अन्त तक अपने में बाँधे रखती है।

7लेखन शैली – समय के साथ लेखक की लेखन शैली का विकास होता हैं। यह समय के साथ हर व्यक्ति की उसके स्वभाव एवं प्रकृति के अनुरुप विशिष्ट व भिन्न होती है।

    इनके आधार पर यदि यात्रा लेखन किया जाये तो आपका यात्रा वृतांत रोचक, ज्ञानबर्धक एवं रोमाँचक होगा।

 

यात्रा वृतांत की विशेषताएं

यात्रा वृतांत की प्रमुख विशेषताएं निम्‍नलिखित है:- 

1. यात्रा वृतांत तथ्यात्मक होता है। 

2. यात्रा वृतांत क्रमबद्ध होता है। 

3. यात्रा वृतांत सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति, सहजता, कल्पना तथा प्रवणता से युक्त होने चाहिए। 

4. यात्रा वृतांत में जिन्दादिली होनी चाहिए।


हिन्दी के प्रमुख लेखक एवं उनके यात्रावृत्त

S.No. लेखक यात्रावृत्त
1 सत्यदेव परिव्राजक मेरी कैलाश यात्रा (1915), मेरी जर्मन यात्रा (1926), मेरी पाँचवीं जर्मन यात्रा (1955)
2 भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र सरयू पार की यात्रा, मेंहदावल की यात्रा, मेरी लखनऊ यात्रा
3 भगवतशरण उपाध्याय मेरी तिब्बत यात्रा (1937), मेरी लद्दाख यात्रा (1939), किन्नर देश में (1948), रूस में पच्चीस मास (1947), घुमक्कड़शास्त्र (1949), राहुल यात्रावली (1949), यात्रा के पन्ने (1952), एशिया के दुर्गम खण्डों में (1956), चीन में कम्यून (1959), चीन में क्या देखा (1960)
4 ओमप्रकाश मन्त्री माओं के देश में पाँच साल (1968)
5 पण्डित सूर्यनारायण व्यास सागर प्रवास (1940), आवारे की यूरोप यात्रा (1940)
6 डॉ. सत्यनारायण यूरोप के झरोखे में (1940), युद्ध यात्रा (1940)
7 सेठ गोविन्ददास सुदूर दक्षिण पूर्व (1951), पृथ्वी परिक्रमा (1954)
8 यशपाल राहबीती (1956), लोहे की दीवार के दोनों ओर (1953)
9 स्वामी सत्यभक्त मेरी अफ्रीका यात्रा (1955) (1952)
10 रामधारी सिंह दिनकर देश-विदेश (1957), मेरी यात्राएँ (1970)
11 ब्रजकिशोर नारायण नन्दन से लन्दन (1957)
12 भुवनेश्वर प्रसाद भुवन आँखों देखा यूरोप
13 अज्ञेय एक बूँद सहसा उछली (1960), अरे यायावर रहेगा याद (1953)
14 प्रभाकर माचवे (1912) गोरी नजरों में हम (1969)
15 गोपालव्यास अरबों के देश में (1960)
16 विष्णु प्रभाकर हँसते निर्झर : दहकती भट्टी (1966), ज्योतिपुंज हिमालय (1982), हमसफर मिलते रहे (1996)
17 डॉ. नगेन्द्र अप्रवासी की यात्राएँ (1972)
18 राजेन्द्र अवस्थी सैलानी की डायरी (1977)
19 अनन्त गोपाल शेवड़े दुनिया रंग बिरंगी (1978)
20 गोविन्द मिश्र धुन्ध भरी सुर्खी (1979)
21 शिवानी यात्रिक (1980)
22 मुनि क्रान्ति सागर खोज की पगडण्डियाँ, खण्डहरों का वैभव
23 डॉ. रघुवंश हरी घाटी
24 काका कालेलकर हिमालय की यात्रा, सूर्योदय का देश
25 शंकर ए पार बंगला ओ पार बंगला
26 निर्मल वर्मा चीड़ों पर चाँदनी (1964)
27 मोहन राकेश आखिरी चट्टान तक (1953)
27 कृष्णा सोबती (1925) बुद्ध का कमण्डल : लद्दाख (2013)

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