अमृतलाल नागर (1916 -1990) हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। उपन्यास के क्षेत्र में उनका योगदान सराहनीय है। उन्होंने सामाजिक, आंचलिक, ऐतिहासिक, पौराणिक तथा जीवनीपरक उपन्यासों की रचना की। उन्हें भारत सरकार द्वारा 1918 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
इस पोस्ट के माध्यम से अमृत लाल नागर के संक्षिप्त जीवन परिचय तथा इनके
मानस का हंस उपन्यास के पात्र, उद्देश्य, कथन, समीक्षा एवं महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर की चर्चा करेंगे।
अमृतलाल नागर का जीवन परिचय
लेखक का नाम :- अमृतलाल नागर (Amritlal Nagar)
जन्म :- 17 अगस्त, 1916 (गोकुलपुरा गाँव, आगरा जिला, उत्तर प्रदेश)
मृत्यु :- 23 फरवरी, 1990
पिता व माता :- राजाराम नागर, विद्यावती नागर
प्रकाशित कृतियाँ :-
- महाकाल
- बूँद और समुद्र
- शतरंज के मोहरे
- अमृत और विष
- मानस का हंस (1973)
- नाच्यौ बहुत गोपाल
- खंजन नयन
- बिखरे तिनके आदि।
- युगावतार (1956)
- बात की बात
- चंदन वन
- चक्कसरदार सीढ़ियाँ और अँधेरा
- उतार चढ़ाव आदि।
- व्यंग्य - नवाबी मसनद, कृपया दाएँ चलिए, सेठ बाँकेमल आदि।
- संपादन - सुनीति, सिनेमा समाचार, चकल्लस, अल्लाह दे आदि।
पुरस्कार :-
- साहित्य अकादमी पुरस्कार
- भारत भारती सम्मान
- सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
- प्रेमचंद पुरस्कार आदि।
मानस का हंस (उपन्यास) : अमृत लाल नागर
अमृत लाल नागर उपन्यासों में तत्कालीन युग का सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक चित्र उभरकर सामने आया है। अपने लखनवी अन्दाज और भारतीय संस्कृति के सजीव चित्रण के लिए नागर जी हिन्दी उपन्यास परम्परा में विशेष स्थान रखते हैं।
मानस का हंस अमृतलाल नागर द्वारा रचित एक प्रसिद्ध उपन्यास है, जो वर्ष 1973 में प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास 'तुलसीदास' के जीवन को आधार बनाकर लिखा गया है। इस उपन्यास में तुलसीदास को एक सहज मानव के रूप में चित्रित किया गया है। इसी कारण इस उपन्यास को हिन्दी उपन्यासों की श्रेणी में 'क्लासिक' का सम्मान प्राप्त हुआ है।
मानस का हंस उपन्यास के प्रमुख पात्र
मानस का हंस उपन्यास के प्रमुख पात्र निम्न है :-
बाबा तुलसीदास :- तुलसीदास इस उपन्यास का केन्द्रीय पात्र है, जिसको आधार बनाकर यह उपन्यास लिखा गया है। बचपन से ही तुलसीदास का जीवन संघर्षमय रहा। वह किशोर अवस्था में राम-काम के द्वन्द्व में उलझे रहे, किन्तु अन्त में द्वन्द्व से जीतकर उन्होंने राम नाम के मार्ग को अपनाया।
रतना :- तुलसीदास की पत्नी है, जो रूप सौन्दर्य की धनी है। रतना की फटकार के कारण ही तुलसी का मोहभंग हो गया तथा वे रामभक्ति में लीन हो गए।
राजा :- रजिया नाम से पुकारे जाने वाला पात्र
संत बेनीमाधव :- सूकरखेत निवासी शिष्य
पण्डित गणपति उपाध्याय :- बाबा के पुराने शिष्य
बूढ़ा रमज़ानी :- बकरीदी दर्ज़ी का छोटा बेटा
पं दीनबन्धु :- रत्नावली के पिता
रामू द्विवेदी :- बाबा के शिष्य (काशी से आए हुए शिष्य)
बकरीदी कक्का :- बाबा से आयु में चार दिन बड़े
शिवदीन दुबे, नन्हकू, मनकू :- गाँव के लोग
हुलसिया :- पंडाइन की मुँहबोली ननद आदि पात्र।
'मानस का हंस' उपन्यास की समीक्षा
इस उपन्यास में तुलसी के जन्म से लेकर, मृत्युपर्यन्त तक जो घटनाएँ घटीं, उनका कलात्मक प्रस्तुतीकरण दिया गया है। इसमें मूल कथा के साथ-साथ कुछ काल्पनिक कथाएँ भी जोड़ दी गई है। नागर जी ने इसे गहरे अध्ययन और मंथन के पश्चात् अपनी विशिष्ट लखनवी शैली में लिखा है। वृहद् होने पर भी यह उपन्यास अपनी रोचकता में अप्रतिम है।
तुलसी का आविर्भाव ऐसे समय में हुआ, जब भारत प्राचीन संस्कृति से समन्वित मुगलों के पैरो तले दबा हुआ था अर्थात् जब देश में संकट आया हुआ था, युद्ध चल रहा था तथा सत्ता का हस्तान्तरण हो रहा था, तब तुलसी का जन्म हुआ। जन्म के समय माता की मृत्यु तथा पिता द्वारा त्यागे जाने पर तुलसी का बचपन अभावों में बीता। बाबा नरहरिदास से दीक्षा लेने के बाद, उन्होंने काशी में शेष सनातन से शिक्षा प्राप्त की। गुरु नरहरिदास की मृत्यु के बाद उनका मनमोहिनी के प्रति आकृष्ट हुआ, किन्तु मोहिनी की संरक्षिका के फटकारने पर तुलसी यात्रा पर चले गए।
वहाँ राजा भगत नामक (भक्ति रस में लीन) भक्त के सम्पर्क में आकर वे रामभक्ति के मार्ग पर चल पड़े। इस पथ पर आगे बढ़ते हुए वे मथुरा, सोरो, अयोध्या आदि स्थानों में घूमते हुए राजापुर पहुंचते हैं, जहाँ उनके पवित्र चरित्र से प्रभावित होकर पण्डित दीनबन्धु अपनी पुत्री रत्ना (रत्नावली) से उनका विवाह कर देते हैं। रत्नावली के चरित्र की प्रमुख विशेषता वाक्पटुता, पतिव्रता नारी, ज्योतिष ज्ञानी हैं। पत्नी के प्रति आसक्ति के कारण उन्हें पत्नी का तिरस्कार सहना पड़ता है।
अतः पत्नी की फटकार ने तुलसी को सांसारिक मोह-माया से विरक्त कर दिया है। इसके पश्चात् उन्होंने अनेक तीर्थों का भ्रमण किया तथा राम के अनन्य भक्त बन गए। अपनी इस साधना में उन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की, जिनमें जानकी मंगल, रामचरितमानस, कवितावली, विनय पत्रिका आदि प्रमुख है।
रामचरितमानस की रचना करते समय तुलसी को अयोध्या और काशी के पंडितों के ईर्ष्या-द्वेष तथा उनके षड्यन्त्रों का सामना करना पड़ा। काशी में जब महामारी फैली तो तुलसी ने अपने शिष्यों के साथ मिलकर जन सेवा की। अपने शिष्यों के साथ राजापुर पत्नी को देखने गए, किन्तु वहां उनकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी होती है। इसके बाद वे चित्रकूट में जाकर रामकथा का प्रवचन करने लगे। फिर वे काशी गए तथा जीवन के अन्तिम समय में 'विनय पत्रिका' का अन्तिम पद लिखते हुए अस्सी घाट पर उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई।
इस प्रकार अमृतलाल नागर ने इस उपन्यास में तुलसी के जीवन में घटित सारी घटनाओं का कलात्मक चित्रण प्रस्तुत किया है। कथा में तुलसी को मानवीय रूप में प्रस्तुत करने के कारण उन्हें आन्तरिक और बाह्य दोनों प्रकार के द्वन्द्रो से जूझता हुआ दिखाया गया है। इस द्वन्द्व के बीच उनका तेजस्वी व्यक्तित्व अपने पूरे उत्कर्ष के साथ चित्रित हुआ है। लेखक ने तुलसी के जीवन की गरिमा को खण्डित नहीं होने दिया है।
अतः रचनाकार ने तुलसी के जीवन चरित को इस कौशल के साथ प्रस्तुत किया है कि यह एक कालजयी उपन्यास बन गया है। 'मानस का हंस' उपन्यास मे पात्रो का समाजशास्त्रीय, ऐतिहासिक व कहीं-कहीं स्वच्छन्द विश्लेषण रचनाकार की आधुनिक तथा परम्परा पोषित विचारधारा को सामने लाता है। युवा तुलसीदास के जीवन में मोहनी प्रसंग का संयोजन तुलसी के अन्ध श्रद्धालुओं को अनुचित लग सकता है, तो वहीं दूसरी ओर तुलसी के आध्यात्मिक अनुभवों को श्रद्धा के साथ प्रस्तुत करना आधुनिकता के अग्राहियो को पसन्द नहीं आ सकता, लेकिन नागर जी इन दोनों प्रतिकारों से विचलित नहीं हुए तथा तुलसी के भीतर होने वाले 'राम-राम' के द्वन्द्व को उपन्यास में चित्रित करते है। अतः तुलसी अपने समय के व्यापक परिवेश की विसंगतियो और अपने भीतर की कमजोरियो से लड़ते हुए तुलसीदास बनते हैं।
निःसन्देह रामबोला से तुलसी और तुलसी से गोस्वामी तुलसीदास बनने की यात्रा तुलसी के लिए बहुत मुश्किल भरी होगी। पुत्र और पत्नी जो उनके जीवन का केन्द्रीय आधार थे, उनको त्याग पाने का निर्णय, (पुत्र की मृत्यु की खबर, एकाकी पत्नी की उनसे उसके पास रहने की विनती) किसी भी मनुष्य को विचलित कर सकती है, उन्हें भी करती है, परन्तु राम को पाने की दृढ़ प्रतिज्ञा और प्रेम उनकी शक्ति बनते हैं, जो निश्चय ही उन्हें साधारण से असाधारण बनाते हैं।
नागर जी ने इस उपन्यास में देशकाल और वातावरण का यथार्थ चित्रण करने के लिए अनेक विद्वानो के मतो को श्रृंखलाबद्ध करने का प्रयास किया है। उन्होंने इस उपन्यास में तत्कालीन अयोध्या, काशी के बिगड़ते संस्कार, दूषित वातावरण तथा धर्मान्धता का आकर्षक रूप प्रस्तुत किया है। 'मानस का हंस' अपने परिवेश में तत्कालीन युग का महाख्यान है, जिसमे भारतीयता की असली खोज की जा सकती है। उपन्यास में वर्णित मुगलो और पठानों के दौर की बर्बरता, भारतीय जन मानस की जर्जर और अस्थिर अवस्था तथा उनकी गहरी पीड़ा पाठको को झकझोर देती है तथा उनमे स्वराज और स्वतन्त्रता की कीमत का बोध गहराने लगता है।
'मानस का हंस' उपन्यास में नागर जी का उद्देश्य अनास्था और अविश्वास के दौर में भारतीय आस्था और विश्वास के स्वर बिखेरना है। साथ ही तुलसी के रूप में एक आदर्श, किन्तु यथार्थ के करीब नायक को स्थापित कर भारतीय जनमानस में आशा और संघर्ष की दबी चिंगारी को जलाए रखना है।
प्रस्तुत उपन्यास की भाषा में भाव-प्रवणता, पात्रानुकूलता अलंकार धर्मिता का गुण विद्यमान है। लेखक ने मुहावरे और लोकोक्तियों का सुन्दर प्रयोग किया है। संवाद नाटकीय तथा व्यंग्य विनोदपूर्ण हैं। साथ ही उपन्यास में वर्णनात्मक, दृश्यात्मक एवं संस्मरणात्मक शैली का प्रयोग भी हुआ है।
इस प्रकार कह सकते है कि नागर जी ने 'मानस का हंस' उपन्यास में तुलसी के गौरवपूर्ण व्यक्तित्व को प्रस्तुत किया है। उनके व्यक्तित्व की आधुनिक चेतना को सम्बद्ध करके देशकाल एवं संस्कृति को नवीन आयाम देने में यह उपन्यास अनुपम और सशक्त प्रयास है।
मानस का हंस उपन्यास के महत्वपूर्ण कथन
- कौड़ी के लालच में अपनी गांठ बंधी मोहर गँवाएगा मूर्ख ? वेश्या के लिए राम को त्यागेगा? - नरहरिबाबा, तुलसीदास से।
- टूटी झोंपड़ियों के बीच में अकेले महल की कोई शोभा नहीं होती है। वह अपनी सारी भव्यता कलात्मकता में क्रूर और गँवार लगता है। -तुलसीदास
- जो भगवान को रूचता हो वही बनाओ। -तुलसीदास
- गोसाइयों में हमें यही बात तो अच्छी लगती है कि गोसाइ लोग दुनिया का हर भोग राजी होकर ग्रहण करते हैं पर अपने स्वाद और सुख को वे भगवान का मानकर ही चलते है। - राजा भगत
- ना, ना! मुझे जाने दो मोहिनी बाई । मैं अप्राप्य वस्तु के प्रलोभन में अपने-आपको कदापि नहीं डालूँगा। -तुलसीदास
- मैं राम का गुलाम हूँ। तुम उसमान खाँ की चाकर। हम दोनों अपने-अपने बंधनों से बँधे हैं। - गोस्वामीजी, मोहिनी से
- वर्णाश्रम धर्म को मानता हूँ परंतु प्रेमधर्म को वर्णाश्रम से भी ऊपर मानता हूँ। - गोस्वामीजी
- रत्ना के प्रति मेरी रीझ ही रामभक्ति बनी। वह चिर तरूणी और अनंत सौंदर्यमयी है, मैं अपनी राम- रिझवार के लिए तुम्हारा ऋणी हूँ। किसी पत्नी ने पति को ऐसा सौभाग्यवान नहीं बनाया होगा। - तुलसीदास अपनी पत्नी रत्नावली से
- मैंने रामचरितामानस का पारायण किया था। मैंने उसे वाल्मीकि जी की कृति से श्रेष्ठ भक्ति प्रदायक माना। मुझे रामचरित मानस की एक प्रति चाहिए। - रत्नावली गोस्वामीजी से
- थाली का बैंगन कभी इधर लुढ़कता है और कभी उधर। - गोस्वामीजी
- भौजी जैसी तपसिनी हमने देखी नहीं। - राजा भगत
- मैं अपने मन से बड़ा ही दुखी हूँ रघुनाथ। -तुलसीदास
- जिस दिन गठजोड़ से महात्मा जी की जूठन गिरने का स्वभाव मेरे घर को मिलेगा उस दिन मेरा जन्म सार्थक हो जाएगा। - टोडर
- फ़िर उसके साथ खेलने लगे ऐ ! ससुर नीच जात भिखारी, जिसकी देह से बास आती है, उसे साथ ब्राह्मण, छत्री के बेटे खेलते हैं, जो हैं सो हज़ार बार मना किया ससुरों को। - पुत्तन महाराज
- विरक्त अब फ़िर से राग के बंधन में नहीं बंध सकता। - गोस्वामी तुलसीदास
- मेरी मृत्यु से पहले एक बार मुझे अपना श्रीमुख दिखलाने की कृपा करें।"-रत्नावली, तुलसीदास से।
- भगवान के व्यंजन में कौन-कौन व्यंजन बनेंगे। -शिष्य
- मनुष्य के मन से सुंदर और कुछ भी नहीं होता। ईश्वर यदि हैं तो मनुष्य के मन में ही समाए हैं। उसे तोड़कर जाओगे पंडित जी तो तुम्हें राम कदापि नहीं मिलेंगे। - मोहिनी तुलसीदास से
- मैं यह कदापि नहीं चाहता कि मेरा वह सोना कल मिट्टी साबित हो जाए। दुविधा में माया और राम दोनों ही चले जायें। -गोस्वामी, मोहिनी से।
मानस का हंस उपन्यास संबंधित साहित्यकारों के कथन
- डॉ. मिश्र ने मानस का हंस उपन्यास के बारे में कहते है - मानस का हंस अमृतलाल नागर का एक श्रेष्ठ उपन्यास है। हिंदी के महत्त्वपूर्ण उपन्यासों में उसकी गणना की जाती है। नागरजी ने अंतः साक्ष्य और बहिस्साक्ष्य के आधार पर तुलसी के चरित्र की बहुत जीवंत और प्रभावशाली रचना की है।"
- डॉ. योगेनद्र के अनुसार - "हिंदी कथा साहित्य में भले ही प्रेमचंद कथा-सम्राट माने जाते हैं, लेकिन उनके 'गोदान' के टक्कर का कोई 'कालजयी' उपन्यास अगर कभी ढूँढ़ा जाएगा तो समीक्षक निश्चय ही 'मानस का हंस' स्वीकार करेंगे। जिन महाकवि तुलसीदास ने विश्व साहित्य को कालजयी रचना के रूप में रामचरितमानस जैसा महाकाव्य दिया है, उन्हीं को कथाकार अमृतलाल नागर ने अपने इस कालजयी उपन्यास मानस का हंस में अमृत बना दिया है।"
- अमृतलाल नागर ('मानस का हंस' के आमुख में) - तुलसी ने वर्णाश्रम धर्म का पोषण भले ही किया हो पर संस्कारहीन, कुकर्मी ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि को लताड़ने में वे किसी से पीछे नहीं रहे। तुलसी का जीवन संघर्ष, विद्रोह और समर्पण भरा है। लक्षित होती है।... रचनाकार की यह उपलब्धि ही उसे क्लासिक रचनाकार की श्रेणी में ला खड़ा करती है।"
- गोपाल राय - उपन्यासू में तुलसी के जन्म से लेकर मृत्यु तक का जो जीवनचरित प्रस्तुत हुआ है वह इतना सजीव, तर्कसंगत और सुसम्बद्ध है कि कदाचित ऐतिहासिक तथ्य न होते हुए भी वह पूर्णतः यथार्थ बन गया है1
- डॉ. योगेन्द्र - हिंदी कथा साहित्य में भले ही प्रेमचंद कथा - सम्मृार माने जाते - हैं, लेकिन उनके गोदान' की टक्कर का कोई कालजयी उपन्यास अगर कभी ढूँढा जाएगा तो समीक्षक निश्चय ही मानस का हंस स्वीकार करेंगे।
मानस का हंस उपन्यास के महत्वपूर्ण बिन्दु
- 1972 में प्रकाष्ठरीत यह उपन्यास रामचरितमानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास के जीवन पर लिखा गया है।
- यह लखनवी अंदाज में लिखा गया उपन्यास है।
- इस उपन्यास में नागरजी ने धार्मिक, साम्प्रदायिक आतिवाद 11 का वर्णन जरूर किया है लेकिन इस से ऊपर उठकर इसमें हम मानवता वादी दृष्टि देख सकते हैं।
- इस उपन्यास में तुलसीदास का जो स्वरूप चित्रित किया गया 12 है, वह एक सहज मानव का रूप है तथा यही कारण है कि मानस' का हंस हिंदी उपन्यासों में 'क्लासिक' का सम्मान पा चुका है।
- यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है।
- मानस का अर्थ- मनोभाव, मन में उल्फन संकल्प, मन से 3 मन के द्वारा या रामचरितमानस ।।
- हंस का शाब्दिक अर्थ- आत्मा, अलौकिक गुणों से सम्पन्न मनुष्य एक प्रकार के संन्यासी, शुद्ध आत्मा आदि।
- इस उपन्यास में तुलसीदास का अंतर्बद, तत्कालीन समाज की मनःस्थिति वः रत्नावली की त्यागमयी प्रतिमूर्ति के दर्शन होते हैं।
- गोस्वामी तुलसीदास का जन्म 1511 ई० को हुआ था लेकिन दुर्भाग्यवश उनके जीवन के बारे में कोई आधिकृत जानकारी नहीं मिलती है। इसलिए 'अमृतलाल मागर' को, तुलसीदास की जीवनगाथा लिखने के लिए अनश्रुतियों और लोकगायाओं का सहारा लेना पड़ा।
Manas Ka Hans Upanyas MCQ
प्रश्न 01. मानस का हंस उपन्यास में तुलसीदास का नाम है।
- रामभोला
- रामबोला
- रामदास
- राम भजन
उत्तर: 2. रामबोला
प्रश्न 02. निम्न में से 'मानस' का अर्थ नहीं है।
- रामचरितमानस
- मनोभाव
- मन से उत्पन्न संकल्प
- तुलसीदास
उत्तर: 4. तुलसीदास
प्रश्न 03. मानस का हंस उपन्यास के बारे में सही कथन हैं।
- तत्कालीन समय की सामाजिक परिस्थितियों का चित्रण
- रत्नावली की त्यागमयी मूर्ति का चित्रण व तुलसी के मन के अतईंद्र का चित्रण
- इसका प्रकाशन वर्ष 1972 ईस्वी हैं
- उपर्युक्त सभी
उत्तर: 4. उपर्युक्त सभी
प्रश्न 04. अमृत लाल नागर के उपन्यास 'मानस का हंस' की कथावस्तु है।
- बुंदेलखंड का सांस्कृतिक जीवन
- हासोन्मुख बुद्धकालीन भारत
- लोरिक-चंदा की लोककथा
- तुलसीदास का मानसिक विकास
उत्तर: 4. तुलसीदास का मानसिक विकास
प्रश्न 05. 'मानस का हंस' उपन्यास की नायिका कौन है।
- पद्मावती
- रत्नावली
- सुखदा
- राधा
उत्तर: 2. रत्नावली
प्रश्न 06. मानस का हंस में तुलसी के पुत्र का नाम है।
- रविदत्त
- बटेश्वर दत्त
- तारापति
- उपरोक्त सभी
उत्तर: 3. तारापति
प्रश्न 07. मानस का हंस नामक उपन्यास किसके जीवन पर आधारित है।
- गोस्वामी तुलसीदास
- अमृतलाल नागर
- महर्षि वाल्मीकि
- मर्यादा पुरुषोत्तम राम
उत्तर: 1. गोस्वामी तुलसीदास
प्रश्न 08. मानस का हंस उपन्यास के पात्र नहीं हैं।
- बेनीमाधव - पण्डित गंगाराम
- गंगेश्वर - मंगलू
- वीरपाल सिंह - जाह्नवी
- नंददास - शिवचरण वैद्य
उत्तर: 3. वीरपाल सिंह - जाह्नवी
प्रश्न 09. महाकाल उपन्यास के लेखक हैं।
- अमृतराय
- अमृतलाल नागर
- विष्णु प्रभाकर
- इनमें से कोई नहीं
उत्तर: 2. अमृतलाल नागर
प्रश्न 10. तुलसीदास ने अपनी पत्नी रत्नावली के लिए किस शब्द का प्रयोग किया है।
उत्तर: 1. भामिनी
प्रश्न 11. मैं महात्मा कबीरदास जी को उच्चतम आत्माओं में से एक मानता हूँ। उन्होंने पराई बुराई की तीव्र आलोचना करके अपने को सवारा।, किसका कथन है?
- तुलसीदास
- गंगाराम
- गंगेश्वर
- इनमें से कोई नहीं
उत्तर: 1. तुलसीदास