कहानी, चाहे वह वास्तविक हो या मनगढ़ंत, लिखित रूप में या ज़ोर से बोलकर बताई जा सकती है। कहानी का मुख्य उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना या उन्हें कुछ नया सिखाना या किसी चीज़ या स्थिति के बारे में जानने में उनकी मदद करना होता है।
हिंदी कहानी की परिभाषा एवं स्वरूप
मानव इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि जबसे मनुष्य ने अपनी भावनाओं, संवेदनाओं तथा संवेगों को अभिव्यक्त करने की क्षमता पायी है, तभी से यह कहानी सुनता आया है। कहानी कहना-सुनना मनुष्य की नैसर्गिक आवश्यकता रही है तथा इसके माध्यम से उसने अपनी सामाजिकता का विकास भी किया है क्योंकि कहानी ने यर्याद उसका मनोरंजन किया है तो उसे जीवनोपयोगी उपदेश भी दिया है। कहानी वाचिक परम्पग की देन है किन्तु जब हम कहानी के आधुनिक स्वरूप को देखते हैं तो पाते हैं कि कहानी घटनाओं का संयोजन मात्र ही नहीं है बल्कि मानव जीवन की जटिलताओं, विद्रूपताओं तथा उसके अन्तर्विरोधों को व्यक्त करने का सशक्त साहित्यिक रूप है। इसीलिए आज भी यह एकः लोकप्रिय विधा है।
कहानी की परिभाषा
कहानी को परिभाषित करना आसान नहीं है इसलिये कहानी की कोई एक परिभाषा नहीं दी जा सकती है | कहानी की परिभाषा कुछ इस प्रकार है
जान फास्टर के अनुसार कहानी की परिभाषा - "असाधारण घटनाओ की वह श्रृंखला जो परस्पर सम्बद्ध होकर एक चरम परिणाम पर पहुँचाने वाली हो।"
भारतीय कथाकार मुंशी प्रेमचंद्र के शब्दों में - "कहानी एक ध्रुपद की तान है, जिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है। एक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपुरित कर देता है, जितना रातभर गाना सुनने से भी नही हो सकता।"
पं. रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में - " कहानी साहित्य का वह रूप है, जिसमे कथा प्रवाह एवं कथोपकथन में अर्थ अपने प्रकृत रूप मे अधिक विद्यमान रहता है।''
बाबू गुलाबराय के अनुसार - "छोटी कहानी एक स्वतः पूर्ण रचना है जिसमें प्रभावों वाली व्यक्ति केन्द्रित घटना या घटनाओं का आवश्यक परन्तु कुछ-कुछ अप्रत्याशित ढंग उत्थान-पतन और मोड़ के साथ पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाला कौतूहलपूर्ण वर्णन हो।"
कहानी के प्रकार या भेद (Kahani ke prakar)
- ऐतिहासिक कहानियाँ - जिन कहानी का संबंध इतिहास से संबंधित हो।
- सामाजिक कहानियाँ - जिन कहानियों का संबंध सामाजिक समस्याओं, रूढ़ियों, मूल्य संक्रमण, मानवीय संबंधों आदि से हो।
- राजनैतिक कहानियाँ - देशभक्ति, राजनैतिक विचारधारा तथा तत्कालीन राजनैतिक समस्याओं से संबंधित कहानियॉं ।
- जासूसी कहानियाँ - घटना प्रधान, कौतूहलवर्द्धक तथा रहस्य रोमांच से परिपूर्ण कहानियॉं।
- धार्मिक एवं दार्शनिक कहानियाँ - धार्मिक सिद्धान्त की विवेचना अथवा किसी दार्शनिक तथ्य की व्याख्या से संबंधित कहानियॉं।
- नीति प्रधान कहानियाँ - जो कहानी मानव जीवन के नैतिक पक्ष को उजागर करती है।
- वैज्ञानिक कहानियाँ - वैज्ञानिक सिद्धान्तों तथा समस्याओं पर लिखी गई कहानियाँ।
- मनोवैज्ञानिक कहानियाँ - जिन कहानी का संबंध पात्र की मनोस्थिति से संबंधित हो।
- आंचलिक कहानियाँ - किसी क्षेत्र में विशेष की संस्कृति, लोक-जीवन, परम्पराओं तथा रीति-रिवाजों से संबंधित कहानियॉं।
कहानी-कला के प्रमुख तत्त्व अथवा कहानी का रचना-विधान
कथा समीक्षकों ने कहानी के मूल्यांकन के लिए प्रमुख रचन विधान प्रस्तुुत किये है, जिनके आधारों पर कोई कहानी लिखी जाती है। इन्हीं आधारों को "कहानी के तत्त्व" के नाम से अभिहित किया गया है। कहानी के प्रमुख तत्त्व ये माने गये हैं।
- कथानक
- पात्र या चरित्र-चित्रण
- संवाद या कथोपकथन
- देशकाल-वातावरण
- भाषा-शैली
- उद्देश्य।
1. कथावस्तु (कथानक)
वह घटना या कथा जिस पर कहानी का ढाँचा निर्मित होता है 'कथावस्तु' कहलाती है। विकास क्रम की दृष्टि से कथानक के चार विकास सोपान माने गये हैं -
- आरम्भ
- विकास
- चरमसीमा
- अन्त।
2. पात्र (चरित्र-चित्रण)
कहानी में अपनी अहम स्थान रखते है जिनके इर्द-गिर्द कथावस्तु घूमती है। कहानी में पात्रों की संख्या भी सीमित होनी चाहिए। कहानी में लेखक की दृष्टि प्रमुख पात्र के चरित्र पर अधिक रहती है, इसलिए अन्य पात्रों के चरित्र का विकास मुख्य पात्र के सहारे ही होना चाहिए। जो भी पात्र कहानी में आते हैं उनके व्यक्तित्व को पूरी गरिमा के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए तथा उनकी भावनाओं को पूरी तरह अभिव्यक्ति मिलनी चाहिए।
3. संवाद (कथोपकथन)
कहानी में पात्रों के वार्तालाप संवाद कहलाते हैं। ये संवाद कहानी के पात्रों को सजीव तो बनाते ही हैं साथ ही वर्णनात्मकता की एकरसता को तोड़ कहानी को प्रभावशाली बनाते हैं। कहानी में संवाद कथानक को गति प्रदान करते हैं, पात्रों का चरित्र-चित्रण करते हैं, कहानी को स्वाभाविकता प्रदान करते हैं, कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करते हैं। इन सब कार्यों का सम्पादन संवादों से तभी हो सकता है जबकि कहानी के संवाद (क) पात्र, परिस्थिति एवं घटना के अनुकूल हों, (ख) संक्षिप्त एवं व्यंग्यपूर्ण हों, (ग) कथानक को प्रवहमान बनाने में समर्थ हों, (घ) चरित्रों को उभारने वाले हों, तथा (ङ) सरल एवं स्पष्ट हों।
4. देशकाल (वातावरण)
वातावरण का अर्थ है उन सभी परिस्थितियों का चित्रण करना जिनमें कहानी की घटनाएँ घटित हो रही हैं तथा जिनमें कहानी के पात्र साँस ले रहे हैं। पात्र और उनके चारों ओर प्रदार्थों का सम्बन्ध बहुत गहन होता है। उनका चित्रण न केवल पात्र की मानसिक स्थिति को उद्घाटित करने में सहायक होता है प्रत्युत् सही वातावरण किसी भी कहानी को विश्वसनीय भी बनाता है।
शास्त्रीय दृष्टि से वातावरण के सामान्यतः तीन पक्ष माने गए हैं- (1) जो हमारी इन्द्रियों को प्रभावित कर उद्दीप्त करता है, (2) जो हमारी सौन्दर्यानुभूति की वृत्ति को परितृप्त करता है, और (3) जो हमारी सच्ची सहानुभूति की वृत्ति को जाग्रत करता है। प्रथम प्रकार के वातावरण को पश्चिमी विद्वानों ने "लोकल कलर" कहा है। मगर इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण तीसरा प्रकार है जिसमें वास्तविक जगत का वातावरण आता है। आधुनिक कहानीकार कहानी में पूरे सामाजिक परिवेश को उभारना आवश्यक मानते हैं। क्योंकि पात्र और परिवेश परस्पर अविभाज्य रूप से जुड़े हैं।
5. भाषा शैली
इस तत्त्व का सम्बन्ध कहानी के कथ्य के प्रभावशाली सम्प्रेषण से है। कहानीकार की सफलता इसी में है कि कहानी को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाये कि पाठक पर उसका अपेक्षित प्रभाव पड़े। इसके लिए आवश्यक है कि कहानी की भाषा सरल, स्पष्ट, प्रभावमयी तथा पात्रानुकूल हो। जब हम कहानी को वास्तविक जीवन से जोड़ते हैं तो कहानी की भाषा वास्तविक जीवन में बोली जाने वाली भाषा के निकट होनी चाहिए। यह तभी सम्भव है जब कहानीकार भाषा के कृत्रिम रूप की अपेक्षा सहज रूप को स्वीकार करेगा।
जहाँ तक शैली का सम्बन्ध है उसमें सजीवता, रोचकता, संकेतात्मकता तथा प्रभावात्मकता आदि का होना नितान्त आवश्यक है। इसके साथ ही कहानीकार 'इन शैलियों में कहानी लिख सकता है- वर्णन-प्रधान-शैली, आत्मकथा-शैली, पत्रात्मक-शैली, डायरी-शैली आदि। इनमें से कहानीकार अपने कथ्य के अनुकूल एक या कई शैलियों को अपनी कहानी के लिए चुन सकता है।
6. उद्देश्य
कहानी पाठक का मनोरंजन करती है। मगर कहानी का उद्देश्य मात्र मनोरंजन नहीं हो सकता। कहानी में जीवन के किसी एक पक्ष के प्रति दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाता है। मगर कहानी उपदेश नहीं देती वह तो मानव जीवन के किसी सत्य का उद्घाटन करती है। आधुनिक कहानीकार इस बात को महत्त्व नहीं देता कि वह कहानी के माध्यम से पाठकों की वृत्तियों का उन्नयन करे। लेकिन कहीं-न-कहीं वह कहानी में पाठकों को प्रभावित कर उनके संवेगों को जगाता तो है ही। यदि वह पाठक के समक्ष आज की विकट परिस्थितियों का चित्रण कर उनके पति पातक को जागरूक बनाता है तो भी उसके लक्ष्य की सिद्धि हो जाती है।
कहानी की विशेषताएँ
अच्छी कहानी के अंदर निम्न विशेषताएँ सामिल होनी चाहिए :-
- शीर्षक - कहानी का शीर्षक स्पष्ट, संक्षिप्त, भावपूर्ण, और कौतूहलपूर्ण होना चाहिए।
- कथानक - कहानी का कथानक स्पष्ट, स्वाभाविक, रोचक और सार्थक होना चाहिए तथा कहानी का कथानक का छोटा होना बहुत जरूरी है अन्यथा इसमें दोष उत्पन्न हो सकते है।
- पात्र - कहानी में पात्रों की संख्या कम होनी चाहिए।
- चरित्र चित्रण - पात्रों के चरित्र-चित्रण में स्वाभाविकता और स्पष्टता का ध्यान रखा जाता है।
- भाषा-शैली- भाषा शैली अत्यन्त ही सरल, स्वाभाविक, स्पष्ट और प्रभावशाली होनी चाहिए।
- कथोपकथन- कहानी के कथोपकथन अर्थपूर्ण, संक्षिप्त, स्वाभाविक, तथा तर्कसंगत होने चाहिए। लम्बे कथोपकथनों से भाषण की नीरस बना देता है।
- अन्तर्द्वन्द्व - पात्रों के मनोवेगों का चित्रण जितना ही सजीव और मर्मस्पर्शी होगा, कहानी उतनी ही सफल होगी।
- घटना- कहानी में घटनाएँ कम होनी चाहिए। अनेक प्रासंगिक कथाएँ या घटनाएँ कहानी को असफल बना देती हैं।
- उद्देश्य - कहानी मनोरंजक के साथ-साथ उद्देश्य प्रधान भी होनी चाहिए।
- वातावरण- कहानी की विश्वसनीयता बड़ाने के लिए वातावरण का चित्रण आवश्यक होता है।
- कहानी का अन्त- कहानी का अन्त अत्यन्त ही कौतूहलपूर्ण होना चाहिए
कहानी की उपयोगिता
कहानी कहानियों की कई उपयोगिताएं हैं:-
- कहानी पढ़कर समय का सदुपयोग कर सकते है।
- कहानी काल्पनाशक्ति, सृजनात्मकता और चिन्तन को बड़ाती है।
- कहानियां मनोरंजन का एक अच्छा साधन होती हैं।
- सामान्य ज्ञान में वृद्धि करने में सहायक होती है.
- कहानियों से झिझक और संकोच की भावना दूर होती है।
- कहानियों से स्मरण शक्ति का विकास होता है।
- कहानी से कल्पनाशीलता को बढ़ती है।
- यह संज्ञानात्मक, सामाजिक और भावनात्मक विकास में सहायक होती हैं।
- कहानी का मुख्य उद्देश्य विचारों की क्रमबद्ध शक्ति बढ़ाना तथा बोलने की आदत डालना है।
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