'रोटी और संसद' कविता का सारांश
'रोटी और संसद' इस कविता में धूमिल ने रोटी की समस्या पर अपनी विन्ता प्रकट की है। 'कल सुनना मुझे' इस काव्य-संग्रह की सबसे छोटी किन्तु महत्त्वपूर्ण कविता रोटी और संसद है। स्वतन्त्र भारत में प्रमुख समस्या थी-गरीबी की समस्या।
इस गरीबी के कारण सामाजिक विषमता बढ़ती गई, गरीब और अधिक गरीब होता गया और पूँजीपति वर्ग सत्ता और शासन की बागडौर अपने हाथ में लेकर गरीबों की रोटी तक छीनता गया। इसी कारण आम आदमी रोटी-रोटी के लिए तड़पता रहा। गरीबों की रोटी छीनने वाला वर्ग मतलब तीसरा आदमी। कवि ने इसी तीसरे आदमी की तलाश के लिए प्रतीकात्मक रूप में 'रोटी और संसद' यह एक छोटी कविता लिखी है।
रोटी और संसद (कविता)
एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ
यह तीसरा आदमी कौन है?
मेरे देश की संसद मौन है।।
रोटी और संसद कविता की व्याख्या
कवि धूमिल हमारे सामने एक चित्र खड़ा करना चाहते हैं कि एक आदमी रोटी बेलता है मतलब वह रोटी की जुगाड़ में कड़ी मेहनत करता है। एक आदमी है जो रोटी खाता है, परन्तु ऐसा एक तीसरा आदमी है जो न रोटी बेलता है न रोटी खाता है वह तो सिर्फ रोटी से खेलता है, कवि इसी तीसरे आदमी की पहचान के लिए प्रश्न करते हैं कि यह तीसरा आदमी कौन है? परन्तु इसका उत्तर हमारी सर्वोच्च संसद नहीं दे पाती है। यह तीसरा आदमी सत्ताधारी, पूँजीपति या अफसरशाही लोग भी हो सकते हैं जिसने आम जनता (गरीबों) की रोटी छीनी है, जिसकी मेहनत एवं खून तक चूसा है। आम आदमी की मेहनत पर ऐश-ओ-आरामी की जिन्दगी जीने वालों के प्रति कवि आक्रोश भरा सवाल करते हैं कि यह तीसरा आदमी कौन है? जब तक इस तीसरे आदमी के बारे में संसद उत्तर नहीं देती तब तक भुखमरी की समस्या हल नहीं होगी।
विशेष -
- कवि ने तीसरे आदमी के सन्दर्भ में प्रश्न किया है।
- भाषा - आम बोलचाल की भाषा है।
Roti Aur Sansad Kavita MCQ
- संसद से सड़क
- रोटी और संसद
- कल सुनना मुझे
- सुदामा पांडेय का प्रजातंत्र
- 1972
- 1975
- 1977
- 1979
उत्तर - 3. 1977
- किसान व मजदूर
- मध्य वर्ग
- पूंजीपति वर्ग
- इनमें से कोई नहीं
उत्तर - 1. किसान व मजदूर
- 35
- 36
- 37
- 38
0 टिप्पणियाँ