जयशंकर प्रसाद (1889-1937) हिन्दी साहित्य के छायावाद युग के महत्त्वपूर्ण कवि, नाटककार और कथाकार थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ ‘कामायनी’, ‘आँसू’, ‘चन्द्रगुप्त’ और ‘स्कन्दगुप्त’ हैं। यहाँ उनके जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक योगदान और महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर विस्तार से पढ़ें।
जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय | Brief Biography
विवरण | जानकारी |
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पूरा नाम | महाकवि जयशंकर प्रसाद |
जन्म | 30 जनवरी, 1889 ई. |
जन्मस्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 15 नवम्बर, 1937 ई. (आयु – 48 वर्ष) |
मृत्यु स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
पिता | देवीप्रसाद साहु (सुगन्धी व्यवसायी) |
कर्म-क्षेत्र | उपन्यासकार, नाटककार, कवि |
भाषा | हिंदी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली |
शैली | वर्णनात्मक, भावात्मक, आलंकारिक, सूक्तिपरक, प्रतीकात्मक |
काव्य-रचनाएँ | प्रेम-पथिक, झरना, आँसू, लहर, कामायनी आदि |
महाकाव्य | कामायनी (1936) – हिन्दी साहित्य का अमूल्य ग्रंथ |
नाटक | चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, विशाख आदि ऐतिहासिक नाटक |
कहानी-संग्रह | छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी, इन्द्रजाल – कुल लगभग 72 कहानियाँ |
उपन्यास | कंकाल, तितली, इरावती |
निबन्ध | काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध |
प्रारम्भिक जीवन | Early Life
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी (तत्कालीन काशी) में एक समृद्ध सुगन्धित तम्बाकू व्यवसायी परिवार में हुआ। उनके दादा शिवरतन साहु उदार एवं दानवीर व्यक्ति थे, जिन्होंने कला और कलाकारों को सदैव प्रोत्साहित किया। पिता देवीप्रसाद भी कला के प्रेमी और समाजसेवी थे। घर का वातावरण साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से भरा हुआ था। इसी कारण प्रसाद बचपन से ही अध्ययन और रचनात्मकता की ओर आकर्षित हुए।
शिक्षा | Education
प्रसाद ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा क्वीन्स कॉलेज, वाराणसी से प्रारम्भ की, किन्तु पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उच्च शिक्षा पूरी नहीं कर सके। विद्यालय छोड़ने के बाद उन्होंने घर पर ही हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी का गहन अध्ययन किया। संस्कृत के प्राचीन ग्रन्थों और वेद-पुराणों ने उनके मस्तिष्क को गहराई प्रदान की, वहीं आधुनिकता से परिचय ने उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाया।
व्यक्तित्व | Personality
प्रसाद जी का व्यक्तित्व सौम्य, गंभीर और अनुशासित था। वे नियमित रूप से गीता का पाठ करते और व्यायाम तथा योगाभ्यास करते थे। साहित्य रचना के अतिरिक्त उन्हें बागवानी, भोजन बनाने और शतरंज खेलने का भी शौक था। उनकी यह सरल, सात्विक और सृजनशील प्रवृत्ति उनकी रचनाओं में भी झलकती है।
जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ
1. काव्य-साहित्य
प्रसाद जी ने प्रारम्भ में ब्रजभाषा में काव्य-रचना की, किन्तु बाद में खड़ीबोली हिन्दी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। वे छायावाद युग के स्तम्भों में गिने जाते हैं। उनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं –
- चित्राधार (1918)
- कानन-कुसुम (1913)
- झरना (1918)
- आँसू (1925)
- लहर (1935)
- कामायनी (1936)
2. कहानी-संग्रह | Poetry
जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी कहानी के प्रवर्तकों में माने जाते हैं। उनकी कहानियाँ मानवीय संवेदना, सामाजिक यथार्थ और मनोवैज्ञानिक गहराई से भरी हुई हैं। उनके प्रमुख कहानी-संग्रह हैं –
- छाया (1912)
- प्रतिध्वनि (1926)
- आकाशदीप (1929)
- आँधी (1931)
- इन्द्रजाल (1936)
3. उपन्यास | Novels
- कंकाल (1929) – धर्म और समाज के पाखण्ड का यथार्थवादी चित्रण।
- तितली (1934) – ग्रामीण जीवन और किसानों की समस्याओं को उजागर करता है।
- इरावती (1938) – ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित, परन्तु अपूर्ण उपन्यास।
4. नाटक एवं एकांकी | Plays and One-Act Plays
जयशंकर प्रसाद हिन्दी नाट्य-साहित्य के भी शिखर पुरुष थे। उनके नाटकों में इतिहास, पौराणिकता और राष्ट्रवाद की भावना प्रमुख रूप से व्यक्त हुई है। उनके प्रमुख नाटक और एकांकी इस प्रकार हैं –
- उर्वशी (चम्पू) – 1909
- सज्जन – 1910
- कल्याणी परिणय – 1912 (नागरी प्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित; 1931 में चन्द्रगुप्त नाटक में समाहित)
- प्रायश्चित्त – 1914
- राज्यश्री – 1915
- विशाख – 1921
- अजातशत्रु – 1922
- जनमेजय का नाग-यज्ञ – 1926
- कामना – 1927
- स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य – 1928
- एक घूँट – 1930
- चन्द्रगुप्त – 1931
- ध्रुवस्वामिनी – 1933
- अग्निमित्र (अपूर्ण)
इन नाटकों में स्कन्दगुप्त, चन्द्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी विशेष रूप से लोकप्रिय और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
5. निबन्ध | Essays
- काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध (1939) – यह संग्रह मरणोपरान्त प्रकाशित हुआ। इसमें उनके साहित्यिक और दार्शनिक विचार संकलित हैं।
साहित्यिक महत्त्व | Literary Significance
जयशंकर प्रसाद केवल कवि ही नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण साहित्यकार थे। उन्होंने हिन्दी को उच्चकोटि का महाकाव्य कामायनी दिया, जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। आधुनिक हिन्दी कहानी को उन्होंने नई दिशा प्रदान की और उसमें संवेदनशीलता, गहराई तथा जीवन-दर्शन का समावेश किया। अपने ऐतिहासिक नाटकों के माध्यम से उन्होंने भारतीय गौरव और राष्ट्रीयता की भावना को सशक्त रूप से व्यक्त किया। इसके साथ ही उनके उपन्यासों और निबन्धों में यथार्थवादी दृष्टिकोण तथा समाज से जुड़े महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का चित्रण मिलता है। इस प्रकार प्रसाद ने काव्य, नाटक, उपन्यास, कहानी और निबन्ध – सभी विधाओं में उल्लेखनीय योगदान देकर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया।
मृत्यु | Death
15 नवम्बर 1937 को वे क्षय रोग से पीड़ित होकर मात्र 47 वर्ष की आयु में परलोकवासी हो गये।
जयशंकर प्रसाद के संदर्भ में महत्वपूर्ण तथ्य
- छायावाद की परिभाषा जयशंकर प्रसाद के अनुसार- ''जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने लगी तब हिन्दी में उसे छायावाद के नाम से अभिहित किया गया। ध्वन्यात्मकता, लाक्षणिकता, सौंदर्यमय प्रतीक विधान तथा उपचार-वक्रता के साथ स्वानुभूति की विवृति छायावाद की विशेषताएँ हैं।''
- जयशंकर प्रसाद की प्रथम कविता 'सावन-पंचक' सन् 1906 ई. में 'भारतेन्दु पत्रिका में कलाधर उपनाम से प्रकाशित हुई।
- जयशंकर प्रसाद की प्रथम छायावादी कविता 'प्रथम प्रभात' सन् 1918 ई. में प्रकाशित हुई 'झरना' में संकलित है ।
- प्रसादजी की प्रथम पुस्तकाकार रचना 'उर्वशी' है । यह चंपूकाव्य है ।
- खड़ी बोली में जयशंकर प्रसाद का प्रथम काव्य संग्रह 'कानन-कुसुम' है ।
- जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'झरना' को छायावाद की प्रथम रचना स्वीकार किया जाता है । इसको 'छायावाद की प्रथम प्रयोगशाला' भी कहा जाता है।
- प्रसाद कृत 'आँसू' 133 छंदों का विरह प्रधान स्मृति काव्य है | इसे 'हिन्दी का मेघदूत' कहा जाता है
- प्रसाद कृत 'प्रेम पथिक' प्रथमतः ब्रज भाषा में सन् 1909 में लिखा गया था जिसका इन्होंने खड़ी बोली में अनुवाद सन् 1914 में किया |
- प्रसाद कृत 'कामायनी' महाकाव्य में 15 सर्ग है। तथा इसमें शांत रस है ।
निष्कर्ष | Conclusion
जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के ‘महामानव’ कहे जा सकते हैं। उन्होंने हिन्दी को बहुआयामी साहित्य दिया – कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी और निबन्ध सभी में उनका योगदान अनुपम है। वे छायावाद युग के कवि होते हुए भी युग-पुरुष और सम्पूर्ण साहित्य-जगत के पथप्रदर्शक माने जाते हैं। उनका साहित्य न केवल सौन्दर्य और कल्पना का संगम है, बल्कि उसमें जीवन-दर्शन, मानवीय करुणा और राष्ट्रीय चेतना का भी गहन स्वरूप मिलता है।
जयशंकर प्रसाद के प्रमुख उद्धरण (Quotes)
1. जीवन और संघर्ष पर
- “चक्र! ऐसा जीवन तो विडंबना है, जिसके लिये रात-दिन लड़ना पड़े!” — स्कन्दगुप्त
- “मनुष्य, दूसरों को अपने मार्ग पर चलाने के लिए रुक जाता है, और अपना चलना बन्द कर देता है।” — चन्द्रगुप्त
- “मेघ-संकुल आकाश की तरह जिसका भविष्य घिरा हो, उसकी बुद्धि को तो बिजली के समान चमकना ही चाहिये।” — ध्रुवस्वामिनी
2. मृत्यु और जीवन-दर्शन
- “मृत्यु जब तक कल्पना की वस्तु रहती है, तब तक चाहे उसका जितना प्रत्याख्यान कर लिया जाय; परन्तु यदि वह सामने हो?” — कंकाल
- “देवि, जीवन विश्व की सम्पत्ति है। प्रमाद से, क्षणिक आवेश से, या दुःख की कठिनाइयों से उसे नष्ट करना ठीक तो नहीं।” — ध्रुवस्वामिनी
- “निद्रा भी कैसी प्यारी वस्तु है। घोर दु:ख के समय भी मनुष्य को यही सुख देती है।” — श्रेष्ठ कहानियाँ
3. प्रकृति और सौन्दर्य पर
- “विजया! आकाश के सुंदर नक्षत्र आंखों से केवल देखे जाते हैं, वे कुसुम-कोमल हैं कि वज्र-कठोर -- कौन कह सकता है।” — स्कन्दगुप्त
- “प्रकृति के यौवन का श्रृंगार करेंगे कभी न बासी फूल।” — कामायनी
- “एक यवनिका हटी, पवन से प्रेरित मायापट जैसी। और आवरण-मुक्त प्रकृति थी हरी-भरी फिर भी वैसी।” — कामायनी
4. प्रेम और आत्मीयता पर
- “वे कहानियाँ प्रेम से अतिरंजित थीं, स्नेह से परिलुप्त थीं, आदर से आर्द्र थीं, सबको मिलाकर उनमें एक आत्मीयता थी—हृदय की वेदना थी, आँखों का आँसू था!” — कंकाल
- “और हँसता था अतिथि मनु का पकड़कर हाथ, चले दोनों स्वप्न-पथ में, स्नेह-संबल साथ।” — कामायनी
- “तुम कौन ॐ हृदय की परवशता? सारी स्वतंत्रता छीन रही, स्वच्छंद सुमन जो खिले रहे जीवन-वन से ही बीन रही।” — कामायनी
5. भारतीयता और राष्ट्रीयता पर
- “कार्नेलियया : नहीं चन्द्रगुप्त! मुझे इस देश में जन्मभूमि के समान स्नेह होता जा रहा है... यह स्वप्नों का देश, यह त्याग और ज्ञान का पालना, यह प्रेम की रंगभूमि—भारतभूमि क्या भुलायी जा सकती है? कदापि नहीं। अन्य देश मनुष्यों की जन्म-भूमि है; यह भारत मानवता की जन्मभूमि है।” — चन्द्रगुप्त
जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ कविता
1. अब जागो जीवन के प्रभात/जयशंकर प्रसाद
2. दो बूँदें / जयशंकर प्रसाद
3. बीती विभावरी जाग री / जयशंकर प्रसाद
बीती विभावरी जाग री!
तारा-घट ऊषा नागरी!
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी
अलकों में मलयज बंद किए
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री!
4. क्या कहती हो ठहरो नारी! / जयशंकर प्रसाद
संकल्प अश्रु-जल-से-अपने।
तुम दान कर चुकी पहले ही
जीवन के सोने-से सपने।
विश्वास-रजत-नग पगतल में।
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में।
हारों का होता-युद्ध रहा।
संघर्ष सदा उर-अंतर में जीवित
रह नित्य-विरूद्ध रहा।
मन का सब कुछ रखना होगा-
तुमको अपनी स्मित रेखा से
यह संधिपत्र लिखना होगा।
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (Exam Friendly)
प्रश्न 1. जयशंकर प्रसाद किस वाद के प्रवर्तक माने जाते हैं?
- प्रयोगवाद
- प्रगतिवाद
- छायावाद
- मार्क्सवाद
उत्तर - 3. छायावाद
प्रश्न 2. यथार्थवाद और छायावाद निबंध के रचयिता है
- जयशंकर प्रसाद
- निराला
- महादेवी वर्मा
- बालकृष्ण शर्मा
उत्तर - 1. जयशंकर प्रसाद
प्रश्न 3. कामना, राज्यश्री, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, अजातशत्रु ध्रुवस्वामिनी किसके नाटक है?
- भारतेंदु
- मिश्रबंधु
- लक्ष्मीनारायण मिश्र
- जयशंकर प्रसाद
उत्तर - 4. जयशंकर प्रसाद
प्रश्न 4. सर्वाधिक ऐतिहासिक नाटक लिखे हैं-
- मोहन राकेश
- जयशंकर प्रसाद
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
- उपर्युक्त सभी
उत्तर - 2. जयशंकर प्रसाद
प्रश्न 5. जयशंकर प्रसाद ने ब्रजभाषा में कौन सी रचना लिखी है-
- कामायनी
- आंसू
- झरना
- चित्राधारा
उत्तर - 4. चित्राधारा
प्रश्न 6. जयशंकर प्रसाद का आरंभिक लेखन किस भाषा में
- संस्कृत हुआ ?
- हिन्दी
- ब्रजभाषा
- भोजपुरी
उत्तर - 3. ब्रजभाषा
प्रश्न 7. जयशंकर प्रसाद का प्रथम संग्रह कौन-सा है ?
- चन्द्रगुप्त
- एक घूँट
- चित्राधार
- कामायनी
उत्तर - 3. चित्राधार
प्रश्न 8. 'श्रद्धा' नामक पात्र किस महाकाव्य में है?
- कामायनी
- साकेत
- प्रियप्रवास
- गोदान
उत्तर - 1. कामायनी
प्रश्न 9. कथा क्षेत्र में जो स्थान प्रेमचंद का है, वही स्थान नाटक के क्षेत्र में किस साहित्यकार को प्राप्त है ?
- भारतेंदु हरिश्चंद्र
- उदयशंकर भट्ट
- जयशंकर प्रसाद
- हरिकृष्ण प्रेमी
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