इस लेख में शिक्षण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का विस्तृत अध्ययन किया गया है — शिक्षक की योग्यता, अनुभव, विषय-वस्तु की विशेषज्ञता, शिक्षण कौशल, शिक्षण सहायक सामग्री (Teaching Aids), शैक्षिक वातावरण, निदेशात्मक एवं संस्थागत सुविधाएँ, पारिवारिक व कक्षीय परिस्थितियाँ आदि।
साथ ही इसमें श्रव्य, दृश्य एवं श्रव्य-दृश्य सामग्री के प्रकार, उदाहरण, उपयोग और महत्त्व को स्पष्ट रूप में बताया गया है। यह लेख B.Ed., M.Ed. एवं शिक्षा मनोविज्ञान के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक तत्त्व
Factors Affecting Teaching
शिक्षण एक जटिल प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत शिक्षण सूत्र एवं शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक आते हैं। शिक्षण को प्रभावी बनाने में शिक्षण विधियाँ एवं शिक्षण सामग्री भी उल्लेखनीय हैं। मन, मस्तिष्क, ज्ञान, आचरण, वातावरण आदि शिक्षण के प्रमुख कारक हैं, जो शिक्षक के कार्यों को प्रभावित करते हैं।
शिक्षण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में शिक्षक एवं शिक्षार्थी की भूमिका निम्नलिखित है -
1. शिक्षण कौशल (Teaching Skills) कुछ शिक्षण कौशल व्यक्ति में जन्मजात होते हैं, किन्तु अन्य कौशलों के लिए शिक्षक को ये ज्ञान अर्जित करने होते हैं। शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए कौशल संग्रह होना आवश्यक है। प्रमुख शिक्षण कौशल हैं-प्रश्न पूछना, प्रयोग करना, व्याख्यान देना, निदान करना एवं कौशल विश्लेषण करना।
2. शैक्षणिक योग्यता (Educational Qualifications) शिक्षक की शैक्षणिक योग्यता बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। योग्य शिक्षक द्वारा ही शिक्षण प्रक्रिया अधिक प्रभावी बन पाती है। इसके लिए शिक्षकों को JBT, B.Ed. CTET तथा NET जैसे पाठ्यक्रम निर्धारित किए गए हैं, जो शिक्षकों की योग्यता को निर्धारित करते हैं।
3. विषय-वस्तु की विशेषज्ञता (Subject Matter Specialization) जब किसी विषय का विशेषज्ञ उस विषय को पढ़ाता है, तब वह शिक्षार्थियों को उस विषय की सही एवं अच्छी जानकारी दे पाता है। परन्तु जब वह किसी ऐसे विषय का शिक्षण करता है, जिसमें उसने विशेषज्ञता प्राप्त नहीं की है, तो वह अपने शिक्षण से शिक्षार्थियों को प्रभावित नहीं कर पाता और अध्यापन कार्य अप्रभावशाली रह जाता है।
4. शिक्षक का अनुभव एवं प्रबन्धन (Teacher Experience and Management) एक शिक्षक सदैव शिक्षार्थी भी होता है। वह अपने ज्ञान एवं अनुभव से शिक्षार्थियों के प्रश्नों के उत्तर एवं जिज्ञासा को शान्त कर पाता है या उसे सन्तुष्ट कर पाता है।
5. शिक्षक एवं शैक्षणिक संस्थानों में समन्वय (Coordination between Teacher and Teaching Institutes) एक शिक्षक अपने अच्छे शिक्षण हेतु स्वतन्त्रता का वातावरण चाहता है, इसलिए कक्षा का संचालन अपनी सोच के अनुरूप करता है। दूसरी ओर शिक्षण संस्थान, शिक्षण पद्धतियों में मानकीकरण सुनिश्चित करने हेतु प्रयासरत् होते हैं। ऐसे में शिक्षक और प्रशासन में अच्छा समन्वय होना चाहिए, जिससे शिक्षण के समस्त उद्देश्यों की पूर्ति की जा सके।
6. कार्य का विश्लेषण (Analysis of the Work) शिक्षण की प्रक्रिया में शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों ही एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। इसमें शिक्षक की भूमिका प्रभाव डालने वाली तथा शिक्षार्थी की प्रभाव ग्रहण करने वाली होती है। ऐसे में शिक्षक को मूल्यात्मक ज्ञान के कार्य का विश्लेषण करने की योग्यता होनी चाहिए। यह एक प्रकार की शैक्षणिक विशेषता है जो शिक्षण कार्य को प्रभावित करती है। कार्य के विश्लेषण हेतु पाठ्यक्रम का विश्लेषण, शिक्षण के दौरान किए जाने वाले कार्य, प्रकाशन, अनुशासन पर्यवेक्षण एवं अन्य कार्यों का विश्लेषण किया जाता है।
शिक्षण सहायक सामग्री
Teaching Aids or Supports Material
शिक्षक द्वारा पाठ्य-पुस्तक के अध्यापन के दौरान जिन वस्तुओं अथवा सेवाओं को प्रयोग में लाया जाता है, उन्हें शिक्षण सहायक सामग्री (Teaching Aids) कहा जाता है। शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत रोचकपूर्ण पाठ्य-सामग्री शिक्षण का आदर्श रूप होता है, जिसमें इन सामग्रियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
उत्तम शिक्षण सामग्री का प्रयोग शिक्षार्थियों में विद्याध्ययन के प्रति रुचि पैदा करता है और उनमें शिक्षा ग्राह्यता के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति का विकास करता है। इन युक्तियों का प्रयोग छात्रों में उत्साह जागृति के साथ-साथ, संचित ज्ञान को लम्बे समय तक स्मृति पटल पर रखने में भी सहायता देता है। इससे शिक्षक में भी अध्यापन के प्रति उत्साह का संचार होता है, परिणामस्वरूप कक्षा में सदैव सकारात्मक वातावरण बने रहने की सम्भावना प्रबल रहती है।
कार्टन ए. गुड के अनुसार, "कोई भी ऐसी सामग्री जिसके माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया को उद्दीप्त किया जा सके अथवा श्रवणेन्द्रिय संवेदनाओं के द्वारा आगे बढ़ाया जा सके, वह शिक्षण सामग्री कहलाती है।"
शिक्षण सहायक सामग्री का उद्देश्य
शिक्षण में सहायक सामग्रियों का मुख्य उद्देश्य छात्रों में रोचक तरीकों के माध्यम से शिक्षण प्रदान करना है। यह सामग्री शिक्षण के दौरान पाठ्यवस्तु को समझने में सहायक होती है तथा लिखित या मौखिक रूप से पाठ्य सामग्री को समझाने में भी इसका महत्त्व है।
शिक्षण सहायक सामग्री के प्रकार
शिक्षण सहायक सामग्री को परम्परागत रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है।
1. श्रव्य साधन (सामग्री) Audio Aids
इस श्रेणी में ऐसी सहायक सामग्री को रखा जाता है, जिनके द्वारा सुनकर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है; जैसे-फोनोग्राफ रिकॉर्ड, रेडियो प्रसारण तथा मैग्नेटिक टेपरिकॉर्डिंग आदि।
श्रव्य साधन के प्रकार (Types of Audio Aids)
1. रेडियो (Radio) रेडियो, शिक्षा प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। हालाँकि वर्तमान समय में नवीन उपकरणों के अधिक उपयोग से इसमें कमी अवश्य देखी गई है, किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी प्रभावशाली है। भारत में वर्ष 1936 में सर्वप्रथम आकाशवाणी से समाचार बुलेटिन का प्रसारण हुआ। वर्ष 1957 में विविध भारती की शुरुआत हुई थी।
2. टेप रिकॉर्डर (Tape Recorder) इसके माध्यम से विषय-वस्तु को विद्यार्थी की आवश्यकतानुसार प्रस्तुत किया जा सकता है। यह निदानात्मक और उपचारात्मक दोगों ही शिक्षण विधियों में प्रयुक्त किया जाता है।
3. ग्रामोफोन (Gramophone) ग्रामोफोन रेडियों की तरह ही शिक्षण का प्राचीन माध्यम है। इसके द्वारा छात्रों को उच्चारण के शुद्धीकरण में सहायता मिलती है।
2. दृश्य साधन (सामग्री) (Visual Aids)
इसमें ऐसी सामग्रियों का उल्लेख किया जाता है, जिनको देखकर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए प्रोजेक्टर, फिल्म स्ट्रिप, परिचित्र, मानचित्र, श्यामपट्ट, चॉक बोर्ड, फोटोग्राफ इत्यादि।
दृश्य साधन के प्रकार (Types of Visual Aids)
1. रेखाचित्र अथवा चार्ट (Chart) किसी वस्तु के प्रतिमान की अनुपलब्धता में रेखाचित्र, ग्राफ इत्यादि शिक्षण के लिए उपयोगी सामग्री के रूप में उपयोग किए जाते हैं। रेखाचित्र के माध्यम से छात्रों के समक्ष विषय-वस्तु को आकर्षक तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है। रेखाचित्र के माध्यम से विद्यार्थियों में समय-ज्ञान का विकास, अमूर्त तथ्य व विचार-बिन्दुओं को दृश्य रूप में प्रकटीकरण, सारांश प्रस्तुतीकरण, कालानुक्रमिक विधि (इतिहास विषय) से प्रस्तुति, चित्रात्मक संकेत इत्यादि का विकास होता है।
2. मानचित्र एवं ग्लोब (Maps and Globe) मानचित्र व ग्लोब का उपयोग स्थान की भौगोलिक स्थिति, एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी, क्षेत्रफल इत्यादि ज्ञात करने के लिए किया जाता है। मानचित्र विश्व की जलवायु, मौसम व पर्यावरण आदि विषयों को विद्यार्थियों को समझाने में सहायक होता है। मानचित्र दो आयामी (Two Dimensional) होता है और इसकी सतह सपाट होती है। इसका तीन आयामी लघु रूपान्तरित रूप ग्लोब है।
3. प्रतिमान (Models) प्रतिमान वास्तविक वस्तुओं के प्रतिरूप होते हैं। विद्यार्थियों के शिक्षण के लिए इसका प्रयोग तब किया जाता है, जब प्रत्यक्ष वस्तुओं का उपयोग असम्भव हो जाता है। इसके उपयुक्त उदाहरण हैं- जानवरों के आन्तरिक अंगों, पौधे, पुष्प इत्यादि का मॉडल रूप में उपयोग किया जाना।
4. स्लाइड्स (Slides) शिक्षण में स्लाइड का उपयोग सूक्ष्मतर पदार्थों के अध्ययन के लिए किया जाता है। इसे माइक्रोस्कोप के माध्यम से देखा जाता है। स्लाइड को प्रदर्शित करने के लिए प्रोजेक्टर का प्रयोग आवश्यक हो जाता है।
5. ग्राफ (Graph) ग्राफ के माध्यम से सांख्यिकी एवं उसके परिमाणात्मक सम्बन्धों को दृश्य रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह आँकड़ों का आलेखीय प्रस्तुतीकरण है। इसमें सरल रेखा ग्राफ, वृत्त या पाई चार्ट व बार ग्राफ जैसी पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है।
6. फ्लैश कार्ड्स (Flash Cards) इसका प्रयोग मुख्यतया छोटी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए किया जाता है। इसमें कार्ड के द्वारा शब्द चित्र, मात्राएँ आदि को जोड़ने का कार्य किया जाता है। यह पाठ्य वस्तु को रोचक तरीके से रखने की एक शिक्षण सामग्री है।
7. पत्र-पत्रिकाएँ (Newspapers and Magazines) पत्र-पत्रिकाएँ शिक्षण सामग्री की दृश्य सामग्री है। इसके द्वारा पाठ्यक्रम के विषयों को उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत कर शिक्षार्थी की बोधगम्य क्षमता विकास पर बल दिया जाता है।
3. श्रव्य दृश्य साधन Audio-Visual Aids
इस शिक्षण सामग्री के अन्तर्गत वे शिक्षण साधन आते हैं, जिनके द्वारा छात्र देखकर तथा सुनकर दोनों प्रकार से ही ज्ञान प्राप्त करता है। इसमें अधिगमकर्ता अधिगम के लिए दृश्य एवं श्रवणेद्रियो दोनों का उपयोग करता है। उदाहरण के लिए-टेलीविजन, चलचित्र, स्लाइड, कम्प्यूटर, ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग इत्यादि।
श्रव्य दृश्य साधन के प्रकार (Types of Audio-Visual Aids)
1.टेलीविजन (Television) टेलीविजन का 20वीं शताब्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय व उपयोगी साधनों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके द्वारा कम समय में जटिल पाठ्य सामग्री को देश के सभी हिस्सों में पहुँचाया जाता है। यह विश्व के शैक्षणिक गतिविधियों और अन्य अभिनव प्रयोगों से आम जनता को साक्षात्कार कराता है। समाचार सम्बन्धी फिल्म/प्रसारण छात्रों को देश-दुनिया की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अन्य पहलुओं से अवगत कराने का काम करता है।
2.कम्प्यूटर (Computer) आधुनिक समय में कम्प्यूटर का श्रव्य दृश्य शिक्षण सामग्री के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके माध्यम से. शिक्षण सहित मनोरंजन व अन्य पहलुओं को नवीन रूप दिया गया है। कम्प्यूटर को विद्युत मस्तिष्क (Electric Brain) भी कहा जाता है।
3. मल्टीमीडिया (Multimedia) मल्टीमीडिया एकसाथ कई साधनों का संयोजन है। इसमें मीडिया, ऑडियो, वीडियो, फिल्म इत्यादि सभी साधन सम्मिलित किए जाते हैं।
4. श्यामपट्ट (Blackboard) अन्य शिक्षण सम्बन्धित उपकरणों के अभाव में वार्तालाप और श्यामपट्ट (Blackboard) का अध्यापन कार्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है।
इसके माध्यम से शब्दों के प्रतीकों द्वारा शिक्षक विद्यार्थियों में बोधगम्य क्षमता का विकास करता है। परम्परागत शिक्षण प्रणालियों में श्यामपट्ट सर्वाधिक उपयोगी सहायक सामग्री है। अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों में पाठ की बोधगम्यता, उसकी धारण योग्यता उसके स्पष्टीकरण, लिखावट में सुधार इत्यादि के लिए श्यामपट्ट का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए किया जाता है
- पाठ्य विवरण
- सारांश एवं गृह कार्य
- मूल्यांकन कार्य
- विद्यार्थियों के व्यक्तिगत कार्य
- कठिन अंशों को सरल बनाने इत्यादि।
5. प्रदर्शन बोर्ड (Display Board) प्रदर्शन बोर्ड भी श्रव्य दृश्यक सामग्री का एक प्रमुख अंग हैं। इसमें श्यामपट्ट सहित, सफेद बोर्ड, चुम्बकीय बोर्ड, बुलेटिन बोर्ड, पेज बोर्ड इत्यादि शामिल किए जाते हैं।
6. चलचित्र अथवा सिनेमा (Cinema) वर्तमान समय में चलचित्र अथवा सिनेमा को शिक्षण का सर्वसुलभ और सस्ता माध्यम माना जाता है। इसके द्वारा कई जटिल समस्याओं एवं अनुसन्धानात्मक विषयों को छात्रों के समक्ष सरल व रोचकपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया जाता है।
7. संवाद सामग्री (Dialogue Aids) संवाद सामग्री आधुनिक समय के नवीन तकनीक की देन है। यह दृश्य-श्रव्य सामग्री के रूप में शिक्षार्थियों से परस्पर संवाद करती है, जिनमें इण्टरेक्टिव वीडियो, इण्टरनेट, वीडियो कॉलिंग प्रचलित माध्यम हैं।
निदेशात्मक सुविधाएँ
Instructional Facilities
निदेशात्मक सुविधाएँ, शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। निदेशात्मक सुविधाओं में मुख्य रूप से संस्थाओं का प्रबन्धन, नीतियाँ व उद्देश्य महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसके साथ ही इसमें उसके द्वारा की जा रही सुविधाएँ; जैसे अध्ययन सामग्री, शिक्षण पद्धति व विधियाँ, रेडियो, स्लाइड, कम्प्यूटर, जाँच प्रक्रिया आदि। इस प्रकार यह गुणवत्तापूर्वक शिक्षण वातावरण बनाकर शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाते हैं।
शैक्षिक वातावरण (Learning Environment)
शैक्षिक वातावरण से तात्पर्य उन सभी व्यवस्थाओं और स्थितियों से है, जो शैक्षिक कार्यों को लागू करते समय प्रभावी रहती है। विद्यालय की स्थापना करते समय इस बात का ध्यान दिया जाता है कि वह उस क्षेत्र की आबादी से कितनी दूर है और उसके आसपास की प्राकृतिक तथा सामाजिक स्थिति कैसी है अर्थात् विद्यालय किसी कारखाने के पास तो नहीं है, किसी मन्दिर या मस्जिद अथवा विवादास्पद स्थान से तो सम्बन्धित स्थान नहीं है। ऐसा एकान्त स्थान तो नहीं है, जहाँ सामान्यतः छात्रों को पहुँचने में परेशानी हो आदि कई महत्त्वपूर्ण बातें हैं, जो शैक्षिक वातावरण से सम्बन्धित है।
शैक्षिक वातावरण से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण बिन्दु -
- सामाजिक विकास के लिए एक समुदाय विशेष की आकांक्षाएँ भी महत्त्वपूर्ण होती हैं अर्थात् एक समुदाय विशेष की विद्यालय से यदि यह अपेक्षा हो कि उनके बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण करने लायक शिक्षा ग्रहण करें और शिक्षक उन्हें इस प्रकार तैयार करें कि भावी जीवन में छात्र अच्छी प्रगति कर सकें और विद्यालय का शैक्षिक वातावरण गुणवत्ता पर आधारित होगा तथा छात्रों के शैक्षिक विकास की सम्भावनाएँ बढ़ेंगी।
- शैक्षिक वातावरण में नेतृत्व संरचना शैक्षिक प्रशासन का एक विकासोन्मुखी कारक है। समाज की प्रकृति और आवश्यकता के आधार पर नेतृत्व संरचना होनी चाहिए। नेतृत्व में इस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए कि धार्मिक दृष्टि से भेदभाव नहीं किया जाए, संस्कृति के विपरीत नेतृत्वकर्ता को कार्य नहीं करने चाहिए और बुद्धिमत्तापूर्वक सामाजिक विकास के लिए शैक्षिक कार्यक्रम निर्धारित किए जाने चाहिए।
- शैक्षिक वातावरण के लिए यह भी महत्त्वपूर्ण है कि शिक्षा के विकास में मानवीय विकास के पहलू को प्राथमिकता दी जानी चाहिए अर्थात् मानवीय मूल्यों को गौण नहीं माना जाना चाहिए।
- शैक्षिक विकास में परिवार की मुख्य भूमिका रहती है। परिवार से ही बालक सबसे पहले किसी भाषा को बोलना, अपनी बात को एक विशेष 'तरीके से व्यक्त करना और दूसरे के विचारों को पहचानने और अपनी बात को सुस्पष्ट शब्दों में व्यक्त करने की कला सीखता है। अतः अच्छे शैक्षिक वातावरण के लिए आवश्यक है कि पारिवारिक वातावरण अच्छा होना चाहिए।
- समुदाय की प्रकृति का निर्धारण, जनसंख्या की प्रकृति, जीवन आकांक्षा, आर्थिक स्तर, व्यवसाय व पेशे, यातायात व संचार, सामाजिक गतिशीलता आदि के आधार पर भी एक अच्छे शैक्षिक वातावरण की संरचना की जा सकती है।
- शैक्षिक वातावरण पर जलवायु, समुद्रतल से ऊँचाई, स्थानीय व्यवसाय, प्राकृतिक संसाधनों की मात्रा तथा उपलब्धि एवं संचार साधनों आदि का भी प्रभाव पड़ता है।
- यही बात सच है कि जैसा संगठन तथा संस्थाएँ होती हैं उन्हीं के उद्देश्यों एवं नीतियों के अनुसार शैक्षिक विकास प्रभावित होता है। शिक्षक संघ, श्रम संगठन, बार एसोसिएशन, चैम्बर ऑफ कॉमर्स, राजनीतिक दल तथा औद्योगिक संस्थाओं का भी एक समुदाय पर प्रभाव पड़ता है। इनके कार्यक्रमों को हम विद्यालय में लागू करके एक अच्छे शिक्षक तथा छात्र की कल्पना कर सकते हैं।
- राज्य की प्रकृति तथा संरचना के आधार पर शैक्षिक कार्यक्रम निर्धारित किए जाते हैं अर्थात् राज्य की सरकार द्वारा राज्य के विकास में शैक्षिक विकास को कितना महत्त्व दिया जाता है तथा राज्य के विकास के लिए शैक्षिक गतिविधियों द्वारा क्या-क्या प्रयत्न किए गए हैं एवं विद्यालयों की संरचना तथा शिक्षा के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध रखकर राज्य सरकारें योजनाएं बनाती हैं। ये सभी बातें भी राज्य के शैक्षिक विकास में सहायक सिद्ध होती हैं। इनके अन्तर्गत सरकार की प्रकृति, सरकार के आर्थिक प्रावधान, सरकार के कार्य तथा शिक्षा के संवैधानिक प्रावधान आदि शैक्षिक वातावरण को प्रभावित करने वाले तत्त्व है।
संस्थागत सुविधाएँ
(Institutional Facilities)
संस्थागत सुविधाएँ निम्न प्रकार से शिक्षण को प्रभावी बनाते हैं -
- संस्थाएँ शिक्षार्थी के योग्य पाठ्यक्रमों को रुचिकर बनाकर शिक्षण से प्रभावी बनाते हैं।
- संस्थाएँ शिक्षक एवं शिक्षार्थी के सम्बन्ध हेतु प्रबन्धन एवं कुशल तकनीकी को बढ़ावा देकर शिक्षण को सफल बनाते हैं।
- संस्थाएँ सामाजिक, परिवेश से अवगत होकर मनोवैज्ञानिक एवं गुणवत्ता पूर्ण प्रभावी तथ्यों को जाँच कर उन्हें बढ़ावा देते हैं।
- संस्थाएँ कुशल क्षमता के विकास हेतु शिक्षण, प्रशिक्षण, जाँच जैसी महत्त्वपूर्ण पहले करती हैं।
- संस्थाओं में आधुनिक व बदलते समय के अनुसार कुशल प्रशिक्षित शिक्षक, प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षण सहायक सामग्री को बढ़ावा देता है।
- वर्तमान में मुक्त विद्यालय जैसी संस्थाओं ने दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों को आयोजित कर शिक्षार्थियों को बड़े स्तर पर लाभान्वित किया है।
- वर्तमान में सरकार व संस्थाएँ ऑनलाइन शिक्षण सामग्री को भी बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे देश के दूर किसी गाँव में रहने वाला शिक्षाथों भी लाभान्वित हो रहा है। संस्थाएँ शिक्षार्थी की मानसिक, सामाजिक, कौशल आदि विकासों के लिए जिम्मेदार होती हैं, जो इसके लिए समय-समय पर जाँच व उचित प्रबन्धन कर उसका उचित परिणाम देती हैं।
- शिक्षण व प्रशिक्षण के लिए अनुकूल वातावरण पैदा कर शिक्षक और शिक्षार्थी के मध्य समन्वय स्थापित कर सफल शिक्षण का संचालन करते हैं। - शिक्षार्थियों के मानसिक व बौद्धिक विकास हेतु मनोवैज्ञानिक अध्ययन करते हैं।
- इस प्रकार संस्थाएँ शिक्षक, शिक्षार्थी, अध्ययन सामग्री, अनुकूल वातावरण, प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि के सहारे उचित एवं समायोजित प्रबन्धन कर शिक्षण को मजबूत बनाने का कार्य करते हैं।
अन्य कारक (Other Factors)
- पारिवारिक परिस्थितियाँ (Family Conditions) शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारकों में पारिवारिक परिस्थितियाँ प्रमुख हैं। यदि शिक्षक की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहेगी और उसे अपने परिवार की चिन्ता रहेगी तो वह कभी भी अपने कार्य को सही ढंग से नहीं कर पाएगा। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि शिक्षक की आर्थिक स्थिति अच्छी होने के बावजूद वह शिक्षण में रुचि नहीं लेता, किन्तु विवेक एवं उत्तरदायित्व के बोध से इस समस्या का निराकरण सम्भव है।
- कक्षा का वातावरण (Classroom Environment) शिक्षक को अपने कक्षा के वातावरण को स्वयं ही सुगम बनाने का प्रयास करना चाहिए। इससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को बेहतर बनाया जा सकता है।


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