‘जूही की कली’ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की एक प्रसिद्ध छायावादी कविता है, जिसमें कवि ने प्रकृति की सुंदरता और कोमलता को गहन संवेदना के साथ व्यक्त किया है। इस कविता में जूही के फूल के माध्यम से मानवीय भावनाओं, प्रेम और सौंदर्य की सूक्ष्म अनुभूति को चित्रित किया गया है।
जूही की कली के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य
वर्तमान में अधिकांश आलोचक मानते हैं कि 'जुही की कली' का रचनाकाल सन 1921 है। कलकत्ता से छपने वाले 'आदर्श' नामक मासिक पत्र के नवम्बर-दिसंबर 1922 के अंक में इसका प्रकाशन हुआ था।
सन 1923 में निराला का काव्य-संग्रह 'अनामिका' (प्रथम) प्रकाशित हुआ, जिसमें कुल 9 कविताएँ संकलित थीं। इनमें 'जुही की कली' भी शामिल थी।
इसके बाद 22 दिसंबर 1923 को 'मतवाला' का जो अंक प्रकाशित हुआ, उसमें भी 'जुही की कली' को 'अनामिका से उद्धृत' लिख कर प्रकाशित किया गया था। सितंबर 1929 में निराला का काव्य-संग्रह 'परिमल' प्रकाशित हुआ, जिसमें 'जुही की कली' को फिर से स्थान दिया गया।
'जुही की कली' कविता में निराला जी ने मुक्त छंद का प्रयोग किया है और संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली में इस कविता की रचना की है। इसमें प्रकृति का आलंबन और उद्दीपन रूप में चित्रण किया गया है और प्रकृति का बड़ी सुंदरता से मानवीकरण भी किया गया है।
'जूही की कली' कविता का सारांश
'जूही की कली' 'निराला' जी की प्रथम रचना मानी जाती है। इसमें सूक्ष्म रूप से राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की विषय-वस्तु का सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से समावेश है। बाहर से प्रतीत होता है कि इस कविता का रूप अभिधात्मक है, परन्तु इस कविता से राष्ट्रीय जागरण या आन्दोलन की मूल चुनौतियाँ गहराई से अभिव्यक्त होती हैं। जागरण की प्रथम शर्त स्वाभिमान का होना होता है। यहाँ भले ही अलसाया सा, परन्तु तरुणी अर्थात् ऊर्जा से पूर्ण और चेतन है, का आहृवान करता है; जैसे
जूही की कली"
निराला' सजग नारी के प्रखर समर्थक रहे हैं। यह उनकी कविता 'जूही की कली' के माध्यम से स्पष्ट हो जाता है। इसमें प्रगतिशीलता के तत्त्व मौजूद हैं और जिसके प्रमाण के लिए प्रगतिशील विचारकों, चिन्तकों, आलोचको जैसे मुक्तिबोध, दिनकर, नामवर सिंह आदि ने इसकी चर्चा जहाँ तक सम्भव हो सके, की है।
'जूही की कली' निराला जी की महज पहली कविता ही नहीं, बल्कि पूर्व की काव्य शैली से हटकर मुक्त छन्द काव्य शैली में लिखी गई कविता है।
'जूही की कली' में आत्म प्रसार की आकांक्षा दुनिया की चार दीवारी को तोड़ नए विज्ञान के सम्पर्क से ओत-प्रोत हो जाती है। कविता के माध्यम से 'निराला' उन सभी युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनकी आँखें ज्ञान के प्रकाश के कारण खुल गई हैं
उपवन-सुर-सरित गहन-गिरि-कानन
कुंज-लता-पुंजों को पार कर
पहुँचा जहाँ उसको की केलि
कली-खिली साथ।"
इस प्रकार अप्रस्तुत का प्रस्तुतीकरण कवि के रचना-कौशल को दर्शाता है। कविता में अर्थालंकारों का प्रयोग एक रोचकता पैदा करता है, क्योंकि कविता में भाव अधिक गहरे हैं।
'जूही की कली' के कुछ पदों की व्याख्या
सोती थी सुहागभरी-
स्नेह-स्वप्न-मग्न-अमल-
कोमल-तनु तरुणी
जूही की कली,
दृग बन्द किये, शिथिल, पत्रांक में।
वासन्ती निशा थी;
विरह-विधुर प्रिया-संग छोड़
किसी दूर-देश में था पवन
जिसे कहते हैं मलयानिल।
व्याख्या -
कवि कहता है कि एक एकान्त स्थान में स्थित वन में एक लता पर स्नेह से युक्त, सपनों में आनन्द मग्न होकर पतली और कोमल युवावस्था को प्राप्त एक जूही की कली सो रही थी। उसने अपनी आँखें बन्द कर रखी थीं वह सुप्तावस्था में पत्तों के बीच सोई हुई थी। वसन्त की रात थी। पवन विरह से व्याकुल होते हुए भी अपनी प्रिया जूही का संग छोड़कर किसी दूर देश में जा बसा था, जिसे 'मलयानिल' कहते हैं अर्थात् मलय पर्वत पर जाकर पवन रूपी मलयानिल अपनी प्रिया (जूही की कली) को छोड़कर बस गया था। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि ने जूही की कली और उसके प्रियतम के रूप में मलय पवन की अभिव्यंजना की है।
विशेष -
- प्रकृति का खूबसूरत मानवीकरण किया गया है।
- तत्सम शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया गया है।
- प्रस्तुत कविता में छायावादी प्रेमाभिव्यक्ति का प्रभाव है।
निर्दय उस नायक ने
निपट निदुराई की,
कि झोंकों की झाड़ियों से
सुन्दर सुकुमार देह सारी
झकझोर डाली,
मसल दिये गोरे कपोल गाल;
चौक पड़ी युवती,
चकित चितवन निज चारों ओर
फेर,
हेर प्यारे को सेज पास
नम्रमुखी हँसी, खिली
खेल रंग प्यारे संग।
व्याख्या -
प्रस्तुत पद में निराला ने कामातुर नायक-नायिका की प्रेम पूर्ण क्रीड़ाओं की व्यंजना जूही की कली और पवन को प्रतीक मानकर की है। यहाँ प्रकृति और काम-चेतना के समन्वय को कवि ने बखूबी से चित्रित किया है, यहाँ कवि ने स्त्री की उस कामुक स्थिति का वर्णन किया है जो बड़ी धैर्यता के साथ पुरुष के स्पर्श का आनन्द लेती है। उधर पुरुष कामुकता की स्थिति में धैर्य छोड़ देता है और आक्रामकता को ग्रहण कर लेता है। कवि कहता है कि नायक मलयानिल ने बड़ी निर्दयता से अपने कठोर आघात अर्थात् झोंकों से जूही की कली के गोरे गालों और उसके सुन्दर कोमल बदन को मसल दिया। इससे कली रूपी नायिका चौंक पड़ी और चकित होकर अपनी टेढ़ी चितवन से चारों ओर देखकर प्यार से नम्रता के साथ हँसी और उसे अपनी बाँहों में भरकर उसके साथ प्यार के खेल में रत हो गई।
0 टिप्पणियाँ