शिक्षण की अवधारणाएँ | शिक्षण की परिभाषाएँ, प्रकृति, प्रक्रिया और ब्लूम वर्गीकरण का विस्तृत अध्ययन

इस लेख में शिक्षण की अवधारणाओं का विस्तृत अध्ययन किया गया है, जिसमें शिक्षण की परिभाषा, प्रकृति, प्रक्रिया, निर्देशन स्तर, ब्लूम का वर्गीकरण (Cognitive, Affective, Psychomotor) तथा गैग्ने और ब्रिग्स का वर्गीकरण शामिल है। यह लेख शिक्षण के उद्देश्य, मानवीय मूल्यों और शिक्षण की वैज्ञानिक एवं कलात्मक प्रकृति को समझने में सहायक है। विद्यार्थियों, शिक्षक-प्रशिक्षुओं और शिक्षा अनुसंधानकर्ताओं के लिए यह सामग्री अत्यंत उपयोगी है।

शिक्षण की अवधारणाएँ

शिक्षण की अवधारणाएँ (Concept of Teaching)

शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें बहुत से कारक शामिल होते हैं और सीखने वाला इस प्रक्रिया के माध्यम से ज्ञान तथा कौशल को अर्जित कर लक्ष्यों की प्राप्ति करता है। इस प्रकार शिक्षण मानवीय मूल्यों को विकसित करता है।

शिक्षण का सामान्य अर्थ 'शिक्षा प्रदान करने की क्रिया व शाब्दिक अर्थ सिखाना या सीख देना' है। यह एक सामाजिक प्रक्रिया है, जो शिक्षण के मानवीय मूल्यों को विकसित करने पर बल देती है।

विस्तृत रूप से शिक्षा का तात्पर्य औपचारिक या अनौपचारिक रूप से आजीवन सीखते-सिखाते रहना है, किन्तु संकुचित रूप में शिक्षा का अर्थ औपचारिक रूप से किसी शिक्षण संस्था में शिक्षा ग्रहण करने से है। वर्तमान शिक्षा परिवेश में शिक्षण का उद्देश्य विद्यार्थियों में अधिगम करके सीखने की गतिशीलता लाना है, न केवल रहना और बलपूर्वक ज्ञान को मस्तिष्क में बिठाना।

शिक्षण की परिभाषाऍं

शिक्षण के द्वारा ही शिक्षार्थी नवीन ज्ञान का अर्जन करता है, इस सन्दर्भ में विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं

"दूसरों को सिखाने, दिशा-निर्देश देने एवं उन्हें निर्देशित करने की प्रक्रिया ही शिक्षण है।" - रियान्स

"शिक्षण एक पारस्परिक प्रभाव है, जिसका उद्देश्य दूसरे व्यक्तियों के व्यवहारों में अपेक्षित परिवर्तन लाना है।" - गेज

अधिगम को अभिप्रेरित करने वाली क्रिया शिक्षण है।" - बी.ओ. स्मिथ

शिक्षण की प्रकृति/प्रक्रिया (Nature of Teaching)

शिक्षण की प्रकृति सकारात्मक होती है, जो शिक्षण की प्रक्रिया के माध्यम से पूर्ण होती है। शिक्षण की प्रकृति विद्यार्थियों के संज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्षों को अभिप्रेरित करती है। शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, जिसके गहन विश्लेषण पर ही शिक्षण की प्रकृति का बोध होता है। शिक्षण प्रकृति को निम्न रूपों में समझा जा सकता है

1. शिक्षण कला एवं विज्ञान
2. शिक्षण एक त्रिध्रुवीय प्रक्रिया
3. शिक्षण उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया (शिक्षक, बालक व पाठ्यक्रम)
4. शिक्षण अन्तः प्रक्रिया
5. शिक्षण उपचारात्मक प्रक्रिया
6. शिक्षण विकासात्मक प्रक्रिया
7. शिक्षण एक भाषायी प्रक्रिया

शिक्षण निर्देशन एवं तार्किक प्रक्रिया

शिक्षण में विद्यार्थियों की पाठ्यचर्चा तथा विषय वस्तु का विश्लेषण तार्किक आधार पर ही किया जाता है। शिक्षण की निर्देशन प्रक्रिया का प्रारूप 6 स्तरों पर आधारित है, यह स्तर निम्न प्रकार. है

1 अन्वेषण (Explore)
2. संलग्नता (Engage)
3. विस्तृत/विस्तार (Extend)
4. व्याख्या (Explanation)
5. मूल्यांकन (Evaluate)
6. मानक (Standard)

शिक्षण के उद्देश्य Objectives of Teaching

शिक्षण का मुख्य उद्देश्य शिक्षार्थियों में अधिगम उत्पन्न करना है। शिक्षण के विभिन्न उद्देश्यों को दिए गए फ्लो चार्ट की सहायता से समझा जा सकता है।

शिक्षण की अवधारणाएँ

ब्लूम द्वारा शिक्षण का वर्गीकरण (Bloom's Classification)

ब्लूम ने शिक्षण या अनुदेशात्मक उद्देश्य को तीन भागों (1956) में बाँटा, जिसे अंग्रेजी भाषा में 3H भी कहा गया है। ये 3H हैं-Head (ज्ञानात्मक ज्ञान क्षेत्र), Heart (भावात्मक ज्ञान क्षेत्र), Hand (मनोसंचालित ज्ञान क्षेत्र)। इनका विस्तृत वर्णन निम्न प्रकार से हैं

ज्ञानात्मक ज्ञान क्षेत्र Cognitive Domain

ज्ञानात्मक ज्ञान क्षेत्र बौद्धिक क्षमता के विकास से सन्दर्भित है, इसे छः मुख्य स्तर पर विभाजित किया गया है

1. ज्ञान (Knowledge) ज्ञान का सम्बन्ध वस्तु या उसकी जानकारी को स्मरण रखने से है।

2. बोध (Comprehension) यह स्तर बोध अर्थ समझने की क्षमता से सम्बन्धित है।

3. उपयोग (Application) यह स्तर अमूर्त ज्ञान (Abstract Knowledge) को मूर्त या व्यावहारिक रूप में लाने के सन्दर्भ में प्रयुक्त होता है।

4. विश्लेषण (Analysis) विश्लेषण द्वारा प्राप्त सूचना घटकों को विभाजित किया जाता है, जिससे उसका सही अर्थ निकल सके।

5. संश्लेषण (Synthesis) यह मूलतः घटकों को समावेशित करने का स्तर है। इस स्तर को विश्लेषण स्तर का विलोम माना जाता है।

6. मूल्यांकन (Evaluation) मूल्यांकन सतत प्रक्रिया के रूप में होता है। यह विशेष प्रयोजनों में प्रयुक्त तरीके और सामग्री के बारे में किया गया निर्णय है।

भावात्मक ज्ञान क्षेत्र Affective Domain 

इस ज्ञान क्षेत्र में मनोभाव या मनोदृष्टि प्रेरणा, शिक्षण की सहभागिता, अनुशासन एवं इनके जैसे ही अन्य मूल्यों को समावेशित किया जाता है। इसके भी पाँच मुख्य स्तर हैं

1. आकलन (Valuing) जो हम सीखते हैं और उसकी महत्ता

2. आग्रहण (Receiving) सुनने की इच्छा

3. प्रतिक्रिया (Responding) सहभागिता की इच्छा

4. संयोजित करना (Organising) मिलान करना

5. निरूपण (Characterisation) अन्तर करना, अभिव्यक्ति

मनोसंचालित ज्ञान क्षेत्र Psychomotor Domain 

इस ज्ञान क्षेत्र को मनोगत्यात्मक, मनोप्रेरक या क्रियात्मक ज्ञान क्षेत्र भी कहा जाता है। यह तकनीकी कौशल के अधिग्रहण (Acquisition) से सम्बन्धित है। इस ज्ञान क्षेत्र के भी पाँच स्तर हैं

1. हस्तकौशल या कार्य साधन (Manipulation) इस क्षेत्र में शिक्षार्थी मशीनरी, उपकरण इत्यादि का उपयोग करने का प्रयत्न करता है, जिससे उसका आत्मविश्वास बढ़ता रहे।

2. प्रतिरूपता (Imitation) इस स्तर पर शिक्षार्थी के कौशल को उसी रूप में अपनाने का प्रयास किया जाता है।

3. स्पष्ट अभिव्यक्ति (Articulation) यह स्तर सतत अभ्यास पर निर्भर करता है।

4. परिशुद्धता (Precision) किसी कार्य को बार-बार करते रहने से उसमें सुधार एवं शुद्धता आती है।

5. प्रकृतिकरण (Naturalisation) इस स्तर पर शिक्षार्थी शिक्षण के अनुरूप कौशल को आंत्मसात् करना, संशोधन करना, नई तकनीकों को नियत करना इत्यादि को आत्मसात् करता है।

गैग्ने और ब्रिग्स के द्वारा वर्गीकरण (Gagnes and Briggs Classification)

गैग्ने एवं ब्रिग्स द्वारा शिक्षण के उद्देश्यों को निम्नलिखित स्तरों पर विभाजित किया गया है

ज्ञानात्मक रणनीतियाँ (Cognitive Strategies) इस श्रेणी में किसी व्यक्ति के स्वयं के शिक्षण, स्मरण शक्ति एवं विचार कौशल को विकसित करने हेतु तकनीकों एवं विधियों को समावेशित किया जाता है।

बौद्धिक कौशल (Intellectual Skills) बौद्धिक कौशल किसी समस्या को सुलझाने, सीखने की अवधारणा और नियम सीखने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होते हैं।

मनोदृष्टि (Attitude) यह किसी व्यक्ति की आन्तरिक या मानसिक स्थिति को व्यक्त करता है।

मौखिक सूचना (Oral Information) मौखिक सूचना का उपयोग किसी व्यक्ति द्वारा ज्ञान का आयोजन करने के सन्दर्भ में होता है।

संचालन तन्त्र और शारीरिक क्षमता (Motor Skills and Physical Ability) इस स्तर पर मस्तिष्क, तन्त्रिका प्रणाली और स्नायु तन्त्र एकसाथ कार्य करते हैं एवं उनमें सामंजस्य कैसे स्थापित करना है, इसके अन्तर्गत आता है।

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