उच्च शिक्षण संस्थाओं में शिक्षण की पद्धतियाँ शिक्षक-केन्द्रित और शिक्षार्थी-केन्द्रित दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। इस लेख में व्याख्यान, समूह शिक्षण, सूक्ष्म शिक्षण, कार्यक्रम अनुदेश, कम्प्यूटर आधारित शिक्षण, ऑनलाइन-ऑफलाइन शिक्षण और प्रयोगशाला विधि सहित सभी प्रमुख विधियों की विशेषताएँ, लाभ, सीमाएँ और उपयोग बताए गए हैं। यह सामग्री उच्च शिक्षा, अध्यापक प्रशिक्षण और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी है।
उच्च शिक्षण संस्थाओं में शिक्षण की पद्धति
Methods of Teaching in Institutions of Higher Learning
शिक्षण के लिए विभिन्न विधियों की आवश्यकता होती है। कक्षा में विषय वस्तु को सरल एवं बोधगम्य बनाने तथा शिक्षार्थियों को उत्तम शिक्षा प्रदान करने हेतु जिन विधियों का शिक्षकों द्वारा उपयोग किया जाता है, उन्हें 'शिक्षण विधियाँ' कहते हैं।
शिक्षण विधियों के प्रकार
Types of Teaching Method
शिक्षण विधियों के प्रकार को हम निम्नलिखित फ्लोचार्ट के द्वारा देख सकते हैं
1. शिक्षक केन्द्रित विधियाँ
Teaching Centred Method
इस विधि में शिक्षक जटिल सम्प्रत्ययों की व्याख्या करते हैं तथा शिक्षार्थी उन्हें समझने का प्रयास करते हैं। इस विधि में अध्यापन के दौरान कक्षा का वातावरण पूर्णतः औपचारिक और कठोर होता है। परिणामतः विद्यार्थियों के कई सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं और उनकी सहभागिता केवल व्याख्यान सुनने तक सीमित रह जाती है। शिक्षक केन्द्रित विधि को अनुदेशात्मक विधि भी कहा जाता है। अनुदेशात्मक विधि व्याख्यान आधारित होती है, जिसमें कुछ विद्यार्थी व्याख्यान को समझने में सक्षम होते हैं और प्रश्नोत्तर प्रक्रिया में सहभागिता के क्रम को आगे बढ़ाते हैं. इसके अन्तर्गत निम्न विधियाँ आती हैं जिनका विवरण अग्रलिखित है
1. व्याख्यान विधि (Lecture Method)
व्याख्यान विधि से आशय शिक्षक द्वारा निर्मित और उपयोग में लाए जाने वाले नियोजित कार्य योजना (प्रारूप) से है। यह विधि प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। यह एक प्रकार से मौखिक शिक्षा का ही रूप है।
थॉमस एम. रिस्क के अनुसार, "व्याख्यान, तथ्यों, सिद्धान्तों या अन्य सम्बन्धों का प्रतिपादन है, जिनको शिक्षक अपने सुनने वालों को समझाना चाहता है।"
व्याख्यान विधि के गुण
- यह विषयवस्तु की क्रमबद्धता की उत्तम विधि है।
- यह प्रभावशाली व आकर्षक, प्रेरणात्मक शिक्षण विधि है।
- यह उच्च कक्षाओं के लिए उपयोगी है।
- यह समय, परिश्रम व धन की दृष्टि से कम खर्चीली है।
- इसके द्वारा एक समय में विद्यार्थियों के बड़े समूह का शिक्षण सम्भव है।
- यह विद्यार्थियों को सुनने व ध्यान लगाने में प्रशिक्षित करती है।
- यह विद्यार्थियों में तर्कशक्ति का विकास करती है। इसमें विषय का तार्किक क्रम बना रहता है।
व्याख्यान विधि के दोष
- यह निम्न कक्षाओं के लिए अनुपयोगी है।
- इसमें विद्यार्थी निष्क्रिय श्रोता बने रहते हैं तथा यह 'करके सीखने के सिद्धान्त की पूर्ण अवहेलना करती है एवं केवल स्मृति पर केन्द्रित है।
- इसमें ध्यान अधिक समय तक केन्द्रित नहीं हो पाता, रुचि नहीं रह पाती तथा मौलिक चिन्तन के अवसर प्राप्त नहीं हो पाते।
- इसमें सैद्धान्तिक ज्ञान पर अधिक बल दिया जाता है। यह एक प्रभुत्ववादी विधि है।
2. व्याख्यान-प्रदर्शन विधि (Lecture Demonstration Method)
भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप यह सर्वाधिक उपयुक्त, व्यावहारिक व उपयोगी विधि है। यह किसी भी वस्तु की रचना व कार्यप्रणाली का वास्तविक रूप में ज्ञान कराती है। विद्यार्थियों को भी क्रिया के पर्याप्त अवसर दिए जाते हैं। उन्हें प्रश्न पूछने व प्रदर्शन में सहायता देने के कई अवसर मिलते हैं। किसी घटना, परिस्थिति, वस्तु आदि को दृश्यरूप में विद्यार्थियों के समक्ष प्रदर्शित कर उसे स्पष्ट करना ही इस विधि का ध्येय होता है।
व्याख्यान-प्रदर्शन विधि के गुण
यह मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है।
- यह समय व धन की दृष्टि से कम खर्चीली है। अतः केवल एक उपकरण की आवश्यकता होती है तथा शिक्षक शीघ्र व कुशलतापूर्वक प्रदर्शन कर जटिल विषयवस्तु को स्पष्ट कर देता है।
- सुनने की अपेक्षा देखी गई वस्तु अधिक समय तक याद रहती है।
- इससे विद्यार्थी वैज्ञानिक विधि व वैज्ञानिक सत्यता की ओर प्रेरित होते हैं।
व्याख्या-प्रदर्शन विधि के दोष
- इस विधि में 'करके सीखने' के सिद्धान्त की अवहेलना की जाती है।
- विद्यार्थी केवल रुचिकर प्रदर्शन में ही सक्रिय रहते हैं।
- इसमें शिक्षक ही सभी कार्य करते हैं, अतः यह शिक्षक केन्द्रित विधि है।
- इसमें व्यक्तिगत भिन्नता के सिद्धान्त की अवहेलना की जाती है एवं सभी स्तर के विद्यार्थी एक ही गति से विकास करते हैं।
- प्रदर्शन पूर्व तैयारी न होने से या उपकरण के खराब होने से शिक्षण कार्य अप्रभावी हो जाता है।
- शिक्षक द्वारा कठिन भाषा का प्रयोग किया जाना, इस विधि को दुर्लभ बना देता है।
- इसमें प्रमुख तथ्यों के स्थान पर आंशिक तथ्यों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
3. समूह शिक्षण विधि (Team Teaching Method)
समूह शिक्षण पद्धति वृहत समूह में अध्यापन कार्य का एक परिवर्तनात्मक दृष्टिकोण है। इसमें एक शिक्षक के बजाय दो या अधिक शिक्षक सम्मिलित होते हैं जो योजना निर्माण, उसके क्रियान्वयन और शिक्षार्थियों के समूह में सीखने के अनुभव का मूल्यांकन करते हैं। इस शिक्षण विधि में एक ही समय में दो या अधिक शिक्षक विषय सम्बन्धी ज्ञान देते हैं।
एक शिक्षक जहाँ प्रकरण सम्बन्धी व्याख्या और उसके सैद्धान्तिक पक्षों को रखता है, वहीं दूसरा शिक्षक उसके व्यावहारिक पक्षों का स्पष्टीकरण देता है। अन्य शिक्षक उस प्रकरण के समसामयिक पक्षों की जानकारी देता है और उसके प्रासंगिकता और महत्ता को स्पष्ट करता है। पैनल चर्चा, विचार गोष्ठी आदि शिक्षण सम्बन्धी विधियाँ इसी समूह शिक्षण के विभिन्न रूप कहे जा सकते हैं।
समूह शिक्षण विधि के गुण
- यह विधि शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है।
- इसमें शिक्षण तकनीकों और उपकरणों का उपयोग कर शिक्षार्थी के व्यावहारिक पक्ष को मजबूत किया जाता है।
- इसके द्वारा छात्रों को एक ही प्लेटफॉर्म में अच्छे और कुशल शिक्षकों से जुड़ने का अवसर मिलता है और अच्छे संकाय को साझा किया जा सकता है।
समूह शिक्षण विधि के दोष
- इस शिक्षण विधि से विशेष दक्षतापूर्ण/विशेषज्ञ शिक्षकों को ढूँढना जटिल हो जाता है।
- इसमें शिक्षण कार्य के लिए अधिक शिक्षकों की आवश्यकता होती है। इसे सभी विषयों के अध्यापन के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है।
- इसमें समय निर्धारण योजना निर्माण और प्रबन्धन के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है।
4. टेलीविजन या वीडियो प्रस्तुति विधि (Television or Video Presentation Method)
टेलीविजन या वीडियो प्रस्तुति विधि शिक्षण विधि की ऑडियो प्रस्तुति से अधिक बेहतर और दृश्यमान प्रकृति की होती है। इसके द्वारा शिक्षण गतिविधि अच्छे तरीके से शिक्षार्थी तक संप्रेषित/पहुंचाने का कार्य किया जाता है।
टेलीविजन /वीडियो प्रस्तुति विधि के गुण
शिक्षण की इस विधि द्वारा कई महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों/विशेषज्ञों या अध्यापकों को कक्षा में प्रस्तुत किया जा सकता है। यह भौतिक रूप से उपस्थिति के बगैर शिक्षण कार्य को बढ़ाने एवं संचालित करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है।
यह मूलतः वयस्क शिक्षार्थियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।
इस विधि के अन्तर्गत चित्रमय व्याख्यान प्रस्तुति और अन्य शिक्षण सहायक सामग्री: जैसे-मॉडल, स्लाइड आदि के पूरक होते हैं।
इससे दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा मिलता है, जो विद्यार्थियों के लिए आसान पहुँच की सीमा में होता है।
शिक्षण की यह विधि मूलतः खगोल विज्ञान, भूगोल जैसे विषयों के लिए अधिक उपयोगी है।
टेलीविजन/वीडियो प्रस्तुति विधि के दोष
इस शिक्षण विधि में द्विमार्गीय (Two Way) सन्देशवाहन/संचार की सम्भावना न्यूनतर होती है।
इसमें पाठ्य सम्बन्धी जटिल प्रसारण अवधि को समायोजित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
5. समीक्षा नीति सम्बन्धी विधि (Review Strategy Method)
शिक्षण सम्बन्धी शिक्षक केन्द्रित विधियों: जैसे-व्याख्यान विधि, प्रदर्शन विधि, समूह शिक्षण विधि, वीडियो प्रस्तुति विधि इत्यादि के पुनरावलोकन को समीक्षा नीति कहा जाता है। इसका उद्देश्य कक्षा में चल रहे अध्ययन-अध्यापन की प्रगति का लेखा-जोखा लेना होता है। इससे शिक्षण विधि में कमियों और उसके उपचार को सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है। उच्च कक्षाओं के लिए अधिक उपयुक्त समीक्षा नीति को लिखित या मौखिक दोनों रूपों में क्रियान्वित किया जा सकता है।
6. प्रश्नोत्तर शिक्षण नीति विधि (Questions-Answer Teaching Method)
प्रश्नोत्तर शिक्षण नीति को 'सुकराती विधि' भी कहा जाता है। यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है। प्रश्नोत्तर क्रियाकलाप के दौरान छात्र अधिक सक्रिय प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, जो छात्रों को ज्ञान मूल्यांकन का भी अवसर प्रदान करता है। इस विधि के मूलतः तीन सोपान हैं
(i) प्रश्न निर्माण
(ii) प्रश्न का प्रस्तुतीकरण
(iii) विद्यार्थी के माध्यम से नवीन ज्ञान का अनावरण
प्रश्नोत्तर शिक्षण नीति के गुण
- इस शिक्षण विधि को सभी प्रकार के विषयों व परिस्थितियों के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
- यह शिक्षार्थी के संप्रेषण क्षमता को बढ़ाने में सहायक होती है।
- इससे छात्रों को अपने शिक्षण सम्बन्धी व्यक्तिगत समस्याओं का हल ढूँढने में सहायता मिलती है।
प्रश्नोत्तर शिक्षण नीति के दोष
- शिक्षण में इस विधि को लागू करने के लिए शिक्षक में पर्याप्त कौशल का होना अपरिहार्य है।
- शिक्षण की यह पद्धति अविश्वस्त संकोची छात्रों के लिए लाभदायक नहीं है।
- इस विधि से शिक्षण में अधिक लाभ की आवश्यकता होती है।
II. शिक्षार्थी केन्द्रित विधियाँ
Student-Centred Method
इस शिक्षण विधि के अन्तर्गत शिक्षाथी का केन्द्रीय स्थान होता है। इसमे विद्यार्थी के मनोविज्ञान को समझते हुए शिक्षण की व्यवस्था की जाती है और उनकी समस्याओं का निराकरण किया जाता है। इस विधि का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थी की अभिरुचि, अभिवृत्ति और क्षमताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान करना है। इस शिक्षण विधि के द्वारा छात्रों में स्वतन्त्र चिन्तनधारा और मनन को जन्म दिया जाता है।
शिक्षार्थी केन्द्रित शिक्षण विधि में व्यक्तिगत शिक्षण को महत्त्व दिया जाता है। इसमें शिक्षक का मुख्य ध्यान शिक्षार्थियों की कल्पनाओं, जिज्ञासाओं एवं कठिनाइयों को सुलझाने के प्रति होता है। इस शिक्षण विधि का यूएसए के शिक्षा मनोवैज्ञानिक जॉन डिवी ने समर्थन किया है। शिक्षार्थी केन्द्रित रणनीति के तहत अपनाई जाने वाली शिक्षण विधियाँ निम्न है, जिनका विवरण अग्रलिखित है
1. कार्यक्रम अनुदेश विधि (Program Instruction Method)
कार्यक्रम अनुदेश विधि शिक्षण की उच्च स्तर पर संरचित पद्धति (Highly Structured System) का एक सामान्य उदाहरण है। यह तार्किक क्रम पर आधारित शिक्षण विधि है, जिसमें छात्र प्रत्येक चरण के पश्चात् तुरन्त प्रतिपुष्टि (Feed Back) प्राप्त करने में सक्षम होते हैं।
कार्यक्रम अनुदेश विधि के गुण
- शिक्षण की यह विधि शैक्षणिक कार्य की प्रगति को जानने के लिए नियमित प्रतिपुष्टि के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है।
- इसके माध्यम से शिक्षार्थी की सक्रिय भूमिका को सरलतापूर्वक सुनिश्चित किया जा सकता है।
- शिक्षण के कार्यक्रम अनुदेश विधि को किसी भी विषय के अध्ययन-अध्यापन के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।
कार्यक्रम अनुदेश विधि के दोष
- तार्किक और उच्च स्तर पर संरचित प्रणाली होने के कारण यह शिक्षण विधि विद्यार्थियों के मध्य अरुचिपूर्ण साबित हो सकती है।
- इस शिक्षण विधि में कुछ समय उपरान्त शिक्षार्थियों में प्रेरणा का स्तर कम होने की सम्भावना बनी रहती है।
2 . सुपुर्द नियत अधिन्यास कार्य विधि (Assignment Method)
अधिन्यास शिक्षण विधि का उपयोग विशेष प्रयोजन की पूर्ति हेतु किया जाता है। इस विधि के तहत विद्यार्थियों की सुविधा के लिए सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को अनेक खण्डों में विभाजित कर दिया जाता है। इसके माध्यम से छात्रों को सर्वेक्षण करना, संख्यात्मक समस्याओं का समाधान करना, अतिरिक्त जानकारी एकत्रित करना, जैसे कार्यों को पूर्ण करने का उत्तरदायित्व दिया जाता है।
अधिन्यास शिक्षण विधि में शिक्षक की भूमिका अहम है। वह छात्रों के लिए योजना तैयार करते हैं और उस कार्य की प्रतिपूर्ति के लिए जानकारी एकत्र करने के लिए छात्रों का मार्गदर्शन करते हैं। इसके दो प्रकार हैं गृह-अधिन्यास और विद्यालय अधिन्यास विधि, जो क्रमशः घरेलू स्तर पर (गृह कार्य के रूप मे) और विद्यालयी स्तर पर किया जाता है।
अधिन्यास विधि के गुण -
- इस शिक्षण विधि में शिक्षार्थियों को स्वतन्त्र रूप से कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है।
- यह विद्यार्थियो के समस्या समाधान क्षमता और विश्लेषणात्मक क्षमता बढ़ाने का कारगर माध्यम है। इससे छात्रो में रचनात्मक क्षमता का भी विकास होता है।
- इससे विद्यार्थियों में स्वाध्याय के प्रति रुचि का विकास होता है और उत्तरदायित्व की भावना प्रबल होती है।
- यह विधि छात्रों में प्रयोगात्मक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है।
अधिन्यास विधि के दोष -
- अधिन्यास शिक्षण विधि में शिक्षार्थियों के मध्य पाठ्य सामग्री के अनुकृति (Copy) की सम्भावना प्रबल होती है और नकल करने की प्रवृत्ति का विकास होता है।
- यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयुक्त नहीं है।
- इससे शिक्षक पर अतिरिक्त कार्यभार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
3. कम्प्यूटर आधारित शिक्षण विधि (Computer Based Teaching Method)
कम्प्यूटर आधारित शिक्षण प्रणाली का उद्देश्य कम्प्यूटर के माध्यम से शिक्षा पद्धति को सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करना है। इसके द्वारा सूचना प्रवाह को गत्यात्मक रूप दिया जाता है और शिक्षण प्रणाली को अधिक वैज्ञानिकतापूर्वक करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।
कम्प्यूटर आधारित शिक्षण विधि से ऑडियो-वीडियो टेप की प्रस्तुति परम्परागत पुस्तक की तुलना में ज्यादा प्रभावोत्पादक और शीघ्र पहुँच वाली होती है। इसमें सही जानकारी प्राप्त करने के अधिक विकल्प होते है और शिक्षार्थी की आवश्यकतानुसार प्रतिपुष्टि (Feed Back) प्राप्त करने की स्थिति भी बनी रहती है।
कम्प्यूटर आधारित शिक्षण विधि के लाभ -
- इस शिक्षण विधि में अन्य विधियों की तुलना में अधिक लचीलापन और नियन्त्रण की बेहतर सम्भावना होती है।
- इस विधि को अनुकरण (Simulation) अभ्यास, मॉडलिंग इत्यादि कार्यों के लिए अधिक प्रभावी ढंग से प्रयोग में लाया जा सकता है।
- इसमें सूचना प्रवाह की गतिशीलता और पाठ्य सामग्री की पर्याप्तता की दशा विद्यमान रहती है।
कम्प्यूटर आधारित शिक्षण विधि के दोष -
- शिक्षण की यह प्रणाली अवैयक्तिक (Impersonal) और महँगी है, जो सभी के पहुँच की सीमा में नहीं है।
- इस व्यवस्था से शिक्षण प्रणाली के लिए सुव्यवस्थित संरचना का होना अत्यन्त आवश्यक है, अन्यथा प्रणाली विफल हो जाएगी।
4. परस्पर संवादी/संवादात्मक वीडियो विधि (Interactive Video Method)
परस्पर संवादी/संवादात्मक वीडियो शिक्षण विधि में शिक्षार्थी को किसी विषय से सम्बन्धित जानकारी, क्रमरहित ढंग (Randomly) से आसानी से उपलब्ध हो जाता है। यह विधि छात्र को एक ही प्लेटफॉर्म पर कई विषयों, मुद्दों या समस्याओं की जानकारी और उसके संशोधनात्मक उपाय सरलता से आपूर्ति करने में सक्षम हैं। इसके माध्यम से शिक्षार्थी अपने परिणामों की प्रतिपुष्टि तत्काल प्राप्त कर सकते हैं।
परस्पर संवादात्मक वीडियो विधि के गुण -
- शिक्षण की यह विधि शिक्षार्थियों में निर्णय लेने की क्षमता में अभिवृद्धि करता है।
- इण्टरएक्टिव वीडियो शिक्षण विधि का एक सरल और पारदर्शी माध्यम है।
- इससे प्राप्त शिक्षण सामग्री को टेक्स्ट, ग्राफिक्स, ग्राफिक्स फिल्म और ऑडियो के रूप में ग्रहण किया जा सकता है।
परस्पर संवादात्मक वीडियो विधि के दोष -
- शिक्षण की इस विधि में समय के साथ-साथ संसाधनों की भी अधिक आवश्यकता होती है।
- इण्टरएक्टिव वीडियो की नियन्त्रण प्रणाली शिक्षार्थी की पहुँच में नहीं होती, अतः यह विद्यार्थी के विकल्प व पसन्द के अनुसार अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं है।
- इससे उनकी अपनी प्राथमिकता और जिज्ञासु प्रवृत्ति पर नियन्त्रण रखना उनकी मजबूरी बन जाती है। इस प्रकार यह शिक्षार्थी के सभी प्रकार के सन्देहों (Queries) को भी शान्त कर पाने में पूर्ण रूप से सफल नहीं है।
5. मुक्त अधिगम विधि (Open Learning Method)
मुक्त अधिगम विधि शिक्षण की एक सरल, लचीली और प्रभावी विधि है। इस विधि के तहत विद्यार्थी को सीखने के लिए मानवीय संसाधन, सामग्री, उपकरण व आवास की आवश्यकता न्यूनतम स्तर पर होती है या नहीं होती है। इसमें विद्यार्थी पर शिक्षण में प्रवेश के लिए किसी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।
मुक्त अधिगम विधि के गुण -
- शिक्षण की मुक्त अधिगम विधि विद्यार्थी को अपने शैक्षणिक स्तर को बढ़ाने में एक महत्त्वपूर्ण विकल्प प्रदान करता है।
- यह विद्यार्थियों को सीखने के लिए सरल और लचीली व्यवस्था उपलब्ध कराता है।
मुक्त अधिगम विधि के दोष -
- शिक्षण की मुक्त अधिगम विधि विषयों के बदलते स्वरूप के लिए उपयुक्त नहीं है। इसमें समय, विशेषज्ञता और संसाधनों की आवश्यकता होती है।
- यह विधि छात्रों में भावात्मक शिक्षण उद्देश्यों और मनःप्रेरक स्थिति को उत्पन्न कर पाने में सक्षम नहीं है।
6. पर्यवेक्षण/निरीक्षण विधि (Observation Method)
शिक्षार्थी केन्द्रित पर्यवेक्षण विधि में विषय के सभी पहलुओं के अध्ययन पर बल दिया जाता है। यह विधि शिक्षण की एक रोचकपूर्ण पद्धति है, जो विद्यार्थियों की पूर्ण सक्रियता को सुनिश्चित करती है। यह विधि कला और विज्ञान संकाय दोनों ही विषयों में लोकप्रिय है, किन्तु विज्ञान में इसका प्रचलन सर्वाधिक लोकप्रिय है।
पर्यवेक्षण विधि के गुण
- शिक्षण की यह विधि विद्यार्थियों में स्वाध्याय की प्रवृत्ति का संचार करती है।
- इसमें विद्यार्थी को अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार अध्ययन अवसरों की प्राप्ति होती है।
- इसके माध्यम से शिक्षक और शिक्षार्थियों के मध्य सहभागिता के उच्च स्तर स्थापित होते हैं।
पर्यवेक्षण विधि के दोष
- पर्यवेक्षण विधि को छोटी कक्षाओं के बच्चों के लिए प्रयोग में नहीं लाया जा सकता।
- इस विधि में सीखने के लिए अधिक समय और संसाधन की आवश्यकता होती है।
- शिक्षण की इस विधि के द्वारा मानविकी के कुछ विषयों यथा- राजनीति विज्ञान या नागरिकशास्त्र के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम की शिक्षा देना सम्भव नहीं है।
7. खेल शिक्षण विधि (Game Teaching Method)
शिक्षण में खेलों को सर्वाधिक महत्त्व फ्रोबेल ने दिया और खेल विधि की दार्शनिक व्याख्या भी दी है। इस विधि के जनक ब्रिटेन के गणितज्ञ कोल्डवेल कुक थे। इन्होंने ही सबसे पहले गणित विषय में खेल विधि का उपयोग किया। यह विधि सभी आयु वर्ग के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है।
खेल शिक्षण विधि के गुण -
- खेल विधि द्वारा छात्रों में सृजनात्मक कौशलों के साथ-साथ जीवन कौशलों; जैसे-समस्या का समाधान करने, तर्क पूर्ण ढंग से सोचना, संप्रेषण शक्ति, टीम भावना आदि का विकास होता है।
- इस विधि में छात्रों में स्फूर्ति के साथ-साथ शारीरिक विकास भी होता है।
- यह विधि शारीरिक, संज्ञानात्मक, भावात्मक, अधिगम रोचकता, सहजता
- और ऊर्जा देने वाली होती है।
खेल शिक्षण विधि के दोष -
- इस विधि से बच्चों में खेल की भावना अधिक विकसित होती है, किन्तु उनमें सीखने की दिलचस्पी कम हो जाती है।
- इसे पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक स्तर पर अनुपयोगी समझा जाता है।
8. अन्वेषण / अनुमानी विधि (Heuristic Method)
अन्वेषण/अनुमानी विधि में शिक्षार्थी बिना सहायता प्राप्त किए अपनी समस्या का समाधान ढूंढते हैं। शिक्षण की यह विधि प्रतिभागियों को सक्रिय रखती है, उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करती है और स्वयं द्वारा ज्ञान प्राप्ति पर बल देती है। इससे छात्र में 'जाँच की भावना' (Spirit of Inquiry) का विकास होता है जो न केवल ज्ञान प्राप्ति, अपितु छात्र में अन्वेषक प्रवृत्ति को बढ़ाने में भी सहायक है। अन्वेषण विधि का मुख्य उद्देश्य विज्ञान व गणित विषयों की केवल तथ्यात्मक जानकारी अथवा ज्ञान प्रदान करना ही नहीं, अपितु यह सिखाना है कि उन विषयों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है और उसकी सम्भावना क्या है। इस विधि को मुख्यतः एच. ई. आर्मस्ट्रांग द्वारा प्रतिपादित किया गया है।
अन्वेषण विधि के गुण -
- यह विधि विद्यार्थी में स्वयं सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है।
- इस शिक्षण विधि की प्रकृति वैज्ञानिक है। अतः यह विधि शिक्षार्थियों में खोजी अभिवृत्ति के विकास में सहायता करती है।
- यह विधि 'करके सीखने' के सिद्धान्त पर आधारित है और इसके अध्यापक व शिक्षार्थी के मध्य प्रगाढ़ता में अभिवृद्धि होती है।
अन्वेषण विधि के दोष -
- अन्वेषण विधि के माध्यम से शिक्षण कार्य में अधिक समय लगता है, इससे सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को नियत समय पर पूर्ण करना कठिन हो जाता है।
- शिक्षण की यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयुक्त नहीं है।
- इस विधि में वास्तविक ज्ञान प्राप्ति पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता।
9. प्रयोगशाला विधि (Laboratory Method)
यह विधि खोज के सिद्धान्त पर आधारित है, जिसके द्वारा किसी परिणाम पर पहुँचने के लिए खोज द्वारा तथ्यों का उल्लेख होता है। इस विधि में छात्र प्रयोगशाला में प्रयोग द्वारा स्वयं ही निष्कर्ष निकालकर अवधारणा विकसित करते हैं। यह विधि आगमन विधि का ही वृहत् एवं विस्तृत प्रयोगात्मक स्वरूप कहलाती है।
प्रयोगशाला विधि के गुण -
- प्रयोगशाला विधि में छात्रों द्वारा सीखा गया ज्ञान रुचिपूर्ण एवं स्थायी होता है।
- विद्यार्थी के ज्ञान में अधिकाधिक वृद्धि होती है।
- प्रयोगशाला में अनुसन्धान के साथ-साथ उन्हें तथ्यों, सम्प्रत्ययों और वैज्ञानिक निष्कर्षों को समझने का अवसर प्राप्त होता है।
- यह विधि छात्रों में विज्ञान के महत्त्व को समझने में सहायक है।
प्रयोगशाला विधि के दोष -
- यह विधि उच्च वर्ग की कक्षाओं के लिए उपयुक्त है तथा यह केवल अध्ययन काल तक ही उपयोगी है।
- इस विधि में धन का व्यय अधिक होता है, साथ ही इसमें समय भी अधिक लगता है।
- यह व्यक्ति केन्द्रित विधि है।
शिक्षण नीतियाँ, विधियाँ एवं युक्ति में अन्तर
- शिक्षण नीतियों शिक्षक द्वारा की गई ऐसी कौशलपूर्ण व्यवस्था है जो विद्यार्थियों में उद्देश्यों के अनुसार व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए की जाती है।
- शिक्षण विधियाँ शिक्षण विधि, शिक्षण उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होती है।
- शिक्षण युक्ति शिक्षण युक्ति से अभिप्राय व्याख्या, दृष्टान्त आदि में इस युक्ति का प्रयोग किया जाता है, जैसे प्रश्नोत्तर, व्याख्या आदि।
ऑफलाइन शिक्षण बनाम ऑनलाइन शिक्षण
Offline V/S Online Methods
ऑफलाइन शिक्षण
- ऑफलाइन शिक्षण, शिक्षण की वह विधि है, जिसमें शिक्षक एवं छात्र प्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं। इसमे शिक्षक एवं अधिगमकर्ता (Learners) के मध्य प्रत्यक्ष वाद-विवाद होता है, जिससे अधिगमकर्ता प्रत्यक्ष रूप से अपने विचार, प्रश्न व सुझाव देकर सन्तुष्ट होते हैं।
- अधिगमकर्ता विभिन्न अध्ययन सामग्रियों को प्रत्यक्ष रूप से स्पर्श कर उससे प्रभावित होता है। इसमें शिक्षार्थी को कक्षा में शामिल होकर ही शिक्षण करना पड़ता है।
ऑनलाइन शिक्षण
- ऑनलाइन शिक्षण कम्प्यूटर आधारित नेटवर्क से सम्बद्ध होते हैं। इससे अधिगमकर्ता घर पर रहकर भी शिक्षण प्राप्त करता है। इसमें अधिगमकर्ता वीडियो के माध्यम से लाभान्वित होते हैं, हालांकि इसमें शिक्षक से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है।
- वर्तमान में इस दिशा में सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से इसे बढ़ावा दिया जा रहा है; जैसे स्वयं योजना, स्वयं प्रभा योजना आदि।
भारत सरकार द्वारा संचालित प्रमुख शिक्षण योजना
स्वयं योजना (Swayam Yojana)
- स्वयं योजना भारत सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई है। इस योजना के तहत देश के छात्रों को मुफ्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम प्रदान किया जाता है।
- इसके तहत आईआईटी, आईआईएम और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों सभी छात्रों के लिए मुफ्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम पेश करेंगे। छात्र इसके माध्यम से कोर्स का चुनाव कर पढ़ सकते हैं।
स्वयंप्रभा योजना (Swayamprabha Yojana)
- यह भी सरकार की मुफ्त ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने की पहल है।
- इसके माध्यम से वेबसाइट पर जाकर किसी भी विषय के बारे में पढ़ सकते हैं।
- इसके माध्यम से स्कूल के छात्रों से लेकर कॉलेज के छात्र पढ़ सकते हैं।
- इस वेबसाइट की शुरुआत मानव संसाधन विकास मन्त्रालय और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् ने माइक्रोसॉफ्ट की मदद से शुरू किया है।
नोट इस प्रकार भारत सरकार इस दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयास कर रही है।
मेसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज (MOOCs)
MOOCs (Massive Open Online Courses) बड़ी संख्या में विश्व के सभी लोगों के लिए बिना शुल्क के उपलब्ध कराए जाने वाले स्टडी कोर्सेज है। इससे सभी लाभान्वित हो सकते हैं। अतः यह एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
सूक्ष्म शिक्षण
Micro Teaching
सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षण का एक नवीन अनुसन्धान है, जिसमें एक समय में एक ही शिक्षण कौशल को चुना जा सकता है। यह शिक्षक के व्यवहार को निश्चित उद्देश्यों के अनुसार ढालने में सहायक होता है। इस प्रक्रिया का उपयोग शिक्षक अपनी कक्षाओं को रोचक, उद्देश्यपूर्ण एवं ज्ञान की प्रयोगशाला के रूप में बनाने में समर्थ होते हैं। यह एक प्रशिक्षण तकनीक है और इसे किसी भी स्थिति में शिक्षण तकनीक समझना उचित नहीं है।
सूक्ष्म शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं
- प्रशिक्षु को सीखने और नए शिक्षण कौशल को नियन्त्रित परिस्थितियों में आत्मसात् करने योग्य बनाना।
- शिक्षार्थियों में नए कौशल का विकास करना।
- प्रशिक्षु को शिक्षण में विश्वास करने योग्य बनाना।
सूक्ष्म शिक्षण के लाभ निम्नलिखित हैं
- सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण उपकरण है, जिससे शिक्षण अभ्यास और प्रभावी शिक्षक तैयार किए जाते हैं।
- यह शिक्षण को सुगमता प्रदान करता है। इस शिक्षण कार्यक्रम को वास्तविक एवं कृत्रिम दोनों कक्षा में किया जा सकता है।


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