अधिगमकर्ता या अध्येता | शिक्षार्थी की विशेषताएँ, किशोर-वयस्क अध्येता, वैयक्तिक विभिन्नता

इस लेख में अधिगमकर्ता या अध्येता की परिभाषा, विशेषताएँ, तथा किशोर और वयस्क शिक्षार्थियों की शैक्षिक, सामाजिक, भावनात्मक एवं संज्ञानात्मक विशेषताओं का विस्तार से अध्ययन किया गया है।

साथ ही इसमें वैयक्तिक विभिन्नता (Individual Differences) का अर्थ, प्रकार, कारण, अध्ययन की विधियाँ और शिक्षा क्षेत्र में उसकी भूमिका को स्पष्ट रूप से समझाया गया है।
यह सामग्री बी.एड., एम.एड. विद्यार्थियों, शिक्षक-प्रशिक्षुओं और शिक्षा मनोविज्ञान के छात्रों के लिए अत्यंत उपयोगी है।

    अधिगमकर्ता या अध्येता

    अध्येता का अर्थ है-'अध्ययन करने वाला'। अध्येता को शिक्षार्थी, विद्यार्थी या अधिगमकर्ता आदि नाम भी दिए गए हैं। अध्येता ही शिक्षण का केन्द्रबिन्दु होता है। शिक्षण की प्रारम्भिक प्रक्रिया में अध्येता अपरिपक्व अवस्था में होता है, किन्तु धीरे-धीरे वह सामाजिक एवं सांस्कृतिक गुणों के माध्यम से चारित्रिक गुणों को आत्मसात् कर परिपक्वता की श्रेणी में आ जाता है। यह परिपक्वता शिक्षण के माध्यम से आती है। अध्येता में अनुशासन की प्रवृत्ति विद्यालयी शिक्षा के माध्यम से विकसित होती है और वह एक पूर्ण नागरिक बनने की ओर अग्रसर होता है।

    अधिगमकर्ता की विशेषताएँ

    शिक्षार्थी/अधिगमकर्ता या अध्येता की मुख्य विशेषताएँ

    1. अधिगम का मूल उद्देश्य छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन लाना होता है। इसके माध्यम से अध्येता के शारीरिक एवं मानसिक स्थिति के आधार पर सीखने की प्रक्रिया को गति दी जाती है।
    2. अधिगमकर्ता का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ स्मरण एवं अनुभव को संगठित व परिष्कृत करना होता है। इस प्रकार, अध्येता सदैव एक अर्थपूर्ण लक्ष्य द्वारा निर्देशित होता है।
    3. अध्येता के अधिगम प्राप्ति का प्रेरणास्रोत स्वाभाविक रुचियाँ, अभिरुचियाँ एवं अभिवृत्तियाँ होती हैं, जो उन्हें किसी विषय या क्रियाओं को सीखने अथवा उदासीन रहने को उद्वेलित करता है।
    4. अध्येता की महत्त्वाकांक्षा, उसकी उपलब्धि और प्रेरणा के स्तर पर ही उसकी अधिगम प्रक्रिया की सफलता अथवा असफलता निर्भर करती है।
    5. अध्येता में अधिगम की इच्छा व्यक्तिगत एवं सामाजिक आवश्यकताओं से जागृत होती है।
    6. अध्येता के प्रमुख लक्ष्यों में विद्या प्राप्ति के साथ-साथ शारीरिक व मानसिक विकास एवं चारित्रिक सद्‌गुणों की अभिवृद्धि जैसे तत्त्व सम्मिलित किए जाते हैं।
    7. अधिगमकर्ता प्रशिक्षण या निर्देशात्मक योजना निर्माण में सहायक तत्त्व की तरह कार्य करते हैं।

    किशोर और वयस्क अभिकर्ता शिक्षार्थी की विशेषताएँ/अपेक्षाएँ

    मानव विकास का अध्ययन शिक्षा मनोविज्ञान का महत्त्वपूर्ण अंग होता है। शिक्षक को बालक की अभिवृद्धि के साथ-साथ उसमें होने वाले विभिन्न प्रकार के विकास तथा उसकी विशेषताओं का ज्ञान होना महत्त्वपूर्ण होता है।

    विकास की इन अवस्थाओं में 12 वर्ष से 18 वर्ष तक के आयु के बालक को किशोर अवस्था की श्रेणी में रखा जाता है तथा 18 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति या बालक को वयस्क (Adult) कहा जाता है।

    इन दो आयु वर्ग के व्यक्तियों में सोच, समझ आदि की प्रवृत्तियों में भिन्नता पाई जाती है। अतः शिक्षण के सम्बन्ध में इनका शैक्षिक, सामाजिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक तथा व्यक्तिगत भिन्नताएँ निम्न प्रकार हैं

    किशोर अध्येता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

    1. शैक्षिक (Academic) - किशोर अवस्था में स्वयं परीक्षण, निरीक्षण, विचार और तर्क करने की प्रवृत्ति होती है। इसलिए शिक्षण का स्वरूप भी मानसिक विकास, शारीरिक विकास, व्यक्तिगत भिन्नता के अनुरूप होना चाहिए, जिससे किशोर अध्येता उसे अपनी समझ के अनुरूप आसानी से ग्रहण कर सके।
    2. सामाजिक (Social) - किशोर अवस्था में बालक में जीवन दर्शन, नए अनुभवों की इच्छा, निराशा, असफलता आदि के कारण अपराध प्रवृत्ति का विकास होता है। समाजसेवा की भावना का तीव्र विकास होता है। वह स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करना चाहता है। सामाजिक बुराइयों पर अपना तर्क देने लगता है। अतः शिक्षण इस अवस्था में सही मार्ग में सहायक होता है।
    3. भावनात्मक (Emotional) - किशोर अवस्था में भावनात्मक रूप से शिक्षाथी किसी भी तथ्य को समझने में जल्दी करते हैं। कल्पना, सत्य व असत्य और नैतिक और अनैतिक प्रश्न जानकर भी भावनात्मक प्रवृति के कारण उचित पथ प्रदर्शन के अभाव में गलत प्रवृतियों का शिकार भी हो जाते हैं। अतः शिक्षण का प्रारूप सही मार्ग दर्शन वाला होना आवश्यक होना चाहिए।
    4. संज्ञानात्मक (Cognitive) - किशोर अवस्था में मस्तिष्क का लगभग सभी दिशाओं में विकास होता है। वे कल्पना, नैतिक तथा अनैतिक के बारे में सजग हो जाते हैं। अतः शिक्षण क्षेत्र में किशोर की संज्ञानात्मक प्रवृत्ति महत्त्वपूर्ण होती है।

    अधिगमकर्ता की विशेषताएँ


    वयस्क अध्येता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है- 

    1. शैक्षिक (Academic) वयस्क अध्येता में स्वयं परीक्षण, विचार तथा तर्क की प्रवृत्ति का उचित विकास होता है। जिम्मेदारी व सही दिशा के बारे में तर्क का ज्ञान विकसित होता है, जिससे अध्येता शिक्षण कार्य को अपनी कर्मनिष्ठा तथा उत्तरदायित्व की भावना से करने के प्रति संकल्पित होते हैं।
    2. सामाजिक (Social) वयस्क व्यक्ति सामाजिक परिवेश में अच्छी तरह से समावेशित होता है, जिसमें वह सामाजिक रीति-रिवाजों, परम्पराओं आदि से बंधा होता है। वह सामाजिक रीति-रिवाजों पर उचित विचार व तर्क भविष्य के प्रभावों को देखते हुए देता है। इसमें अपराध प्रवृत्ति पर अकुंश होता है। इस प्रकार वयस्क अध्येता सामाजिक जिम्मेदारी को निभाते हुए शिक्षण कार्य को निष्ठापूर्वक करने में योग्य होते हैं।
    3. भावनात्मक (Emotional) वयस्क शिक्षार्थी भावनात्मक रूप से सही निर्णय लेने, किसी कार्य को करने के प्रति समर्थ होता है। वह भावनात्मक रूप से निर्णय न लेकर उचित तर्क के माध्यम से विचारों व तथ्यों को रखता है। शिक्षण इनके भावनात्मक प्रवृत्ति के विकास को और मजूबती प्रदान करने में सहायक होता है।
    4. संज्ञानात्मक (Cognitive) वयस्क शिक्षार्थी में मस्तिष्क का विकास लगभग पूर्ण हो गया होता है। वे कल्पना, मनोवैज्ञानिक, तथ्यहीन तर्कों के समाधान में सक्षम होता है। यह उचित निर्णय लेने में सक्षम होता है। इस प्रकार वयस्क अध्येता या शिक्षार्थी शिक्षण में भी संज्ञानात्मक निर्णय लेकर उचित निष्कर्ष प्रदान करता है। अतः वह धार्मिक, नैतिक, सामाजिक आदि शिक्षाओं व सम्बन्धी प्रवृत्तियों को परखने में उचित मनोविज्ञान का प्रयोग करता है।

    वैयक्तिक विभिन्नताएँ : अर्थ एवं स्वरूप

    Individual Differences: Meaning and Nature

    प्रकृति का नियम है कि संसार में कोई भी दो व्यक्ति पूर्णतया एक जैसे नहीं हो सकते, यहाँ तक कि जुड़वाँ बच्चों में भी कई समानताओं के बावजूद कई अन्य प्रकार की असमानताएँ दिखाई पड़ती हैं। जुड़वाँ बच्चे शारीरिक बनावट से तो एकसमान दिख सकते हैं, किन्तु उनके स्वभाव, बुद्धि, शारीरिक-मानसिक क्षमता आदि में अन्तर होता है। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में इस प्रकार की विभिन्नता को ही वैयक्तिक विभिन्नता कहा जाता है। वर्तमान युग में व्यक्तिगत विभिन्नताओं का बहुत महत्त्व है तथा इस प्रत्यय का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसीसी मनोवैज्ञानिक गाल्टन ने किया।

    प्रत्येक शिक्षार्थी स्वयं में विशिष्ट होता है, इसका तात्पर्य है कि कोई भी शिक्षार्थी अपनी योग्यताओं, रुचियों एवं प्रतिभाओं में एक समान नहीं हो सकता। वैयक्तिक विभिन्नता के सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिकों द्वारा कुछ परिभाषाएँ दी गई है, जो इस प्रकार है

    स्किनर के अनुसार, "वैयक्तिक विभिन्नताओं से हमारा तात्पर्य व्यक्तित्व के उन सभी पहलुओं से है, जिनका मापन व मूल्यांकन किया जा सकता है।"

    जेम्स डेवर के अनुसार, "कोई व्यक्ति अपने समूह के शारीरिक तथा मानसिक गुणों के औसत से जितनी भिन्नता रखता है, उसे वैयक्तिक भिन्नता कहते हैं।"

    टॉयलर के अनुसार, "शरीर के रूप-रंग, आकार, कार्य, गति, बुद्धि, ज्ञान, उपलब्धि, रुचि, अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली भिन्नता को वैयक्तिक भिन्नता कहते हैं।"

    प्रत्येक शिक्षार्थी स्वयं में विशिष्ट है। इसका अर्थ है कि कोई भी दो शिक्षार्थी अपनी योग्यताओं, रुचियों और प्रतिभावों में एकसमान नहीं होते।

    वैयक्तिक विभिन्नताओं के प्रकार

    मनोवैज्ञानिकों ने वैयक्तिक विभिन्नताओं को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया है, जो निम्न प्रकार हैं

    1. भाषा के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नताएँ अन्य कौशलों की तरह ही भाषा भी एक प्रकार का कौशल है। प्रत्येक व्यक्ति में भाषा के विकास की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ पाई जाती हैं।

    2. लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता सामान्यतः स्त्रियों की शारीरिक संरचना पुरुषों से अलग होती है।

    3. बुद्धि के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता परीक्षणों के आधार पर ज्ञात हुआ है कि सभी व्यक्तियों की बुद्धि एकसमान नहीं होती।

    4. परिवार एवं समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता मानव के व्यक्तित्व के विकास पर उसके परिवार एवं समुदाय का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। इसलिए समुदाय के प्रभाव को वैयक्तिक विभिन्नता में भी देखा जा सकता है।

    5. जाति से सम्बन्धित वैयक्तिक विभिन्नता समाज में जाति एवं नस्ल सम्बन्धित विभिन्नताएँ पाई जाती हैं, इन्हें दूर करने के लिए व्यक्ति को पूर्वाग्रहों, रूढ़ियों, पूर्वधारणाओं तथा नकारात्मक मनोवृत्तियों (Attitude) से हटकर सोचना चाहिए।

    6. संवेग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता संवेगात्मक विकास बालकों में विभिन्नता लिए हुए होता है।

    7. कुछ बालक शान्त स्वभाव के होते हैं, जबकि कुछ बालक चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं।

    8. धार्मिक आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता संसार का प्रत्येक धर्म सहिष्णुता, प्रेम, बन्धुत्व, भाईचारा, मानवता का पाठ सिखाता है, लेकिन विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोगों में धार्मिक आधार पर वैयक्तिक विभिन्नताएँ उनके आचरण एवं व्यवहार में अलग-अलग होती हैं।

    9. शारीरिक विकास के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता शारीरिक दृष्टि से व्यक्तियों में अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ देखने को मिलती हैं।

    10. शारीरिक भिन्नता रंग, रूप, आकार, भार, कद, शारीरिक गठन, लिंग-भेद, शारीरिक परिपक्वता आदि के कारण होती है।

    11. अभिवृत्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता बालकों की अभिवृत्ति के निर्धारण में पारिवारिक वातावरण का अधिक योगदान होता है।

    12. व्यक्तित्व के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता प्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तित्व के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता देखने को मिलती है। कुछ बालक अन्तर्मुखी होते हैं और कुछ बहिर्मुखी।

    13. गत्यात्मक कौशलों के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता कुछ व्यक्ति किसी कार्य को अधिक कुशलता से कर पाते हैं, जबकि कुछ अन्य लोगों में कुशलता का अभाव होता है।

    वैयक्तिक विभिन्नता के कारण

    मनोवैज्ञानिको ने वैयक्तिक विभिन्नताओं के निम्नलिखित कारण बताए है

    1. वंशानुक्रम व्यक्तिगत विभिन्नताओं का एक महत्त्वपूर्ण कारण वंशानुक्रम को माना जाता है।

    2. वातावरण या परिवेश वातावरण के कारकों के द्वारा भी बालकों में अन्तर पाया जाता है। कहा जाता है, जिस प्रकार का पारिवारिक या सामाजिक वातावरण होगा, बालकों के व्यक्तित्व का विकास भी वैसा ही होगा।

    3. आयु एवं बुद्धि बालक की आयु एवं बुद्धि में वृद्धि होने के साथ-साथ उसका शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक विकास भी होता रहता है। इसी विकास के कारण उनमें व्यक्तिगत विभिन्नता आती रहती है।

    4. परिपक्वता परिपक्वता एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति किसी कार्य के करने में स्वयं को सक्षम पाता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, "एक बालक तब तक नहीं सीख सकता जब तक वह सीखने के लिए तैयार न हो अथवा परिपक्व न हो।"

    5. लैंगिक विभिन्नताएँ लैंगिक विभिन्नता के कारण भी व्यक्तिगत विभिन्नताएँ पाई जाती हैं।

    Individual Differences in Education


    वैयक्तिक विभिन्नता जानने की विधियाँ

    मनौवैज्ञानिकों ने वैयक्तिक विभिन्नता का अध्ययन करने के लिए अनेक विधियों का प्रतिपादन किया है, जिनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण विधियों का प्रतिपादन इस प्रकार किया जा रहा है

    1. बुद्धि परीक्षण

    2. उपलब्धि परीक्षण

    3. संवेग परीक्षण

    4. अभिक्षमता परीक्षण

    5. अभिरुचि परीक्षण

    6. व्यक्तित्व परीक्षण

    शिक्षा के क्षेत्र में वैयक्तिक विभिन्नता

    Individual Differences in Education Field

    शिक्षा के क्षेत्र में भी वैयक्तिक विभिन्नताएँ महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं, जो निम्न प्रकार हैं

    शिक्षा का स्वरूप (Nature of Education)

    मनोविज्ञान इस बात पर जोर देता है कि बालकों की रुचियों, क्षमताओं, योग्यताओं आदि में अन्तर होता है। अतः सभी बालकों के लिए समान शिक्षा का आयोजन सर्वथा अनुचित है।

    इसी बात को ध्यान में रखते हुए मन्दबुद्धि, पिछड़े हुए बालक तथा शारीरिक दोष वाले बालकों के लिए अलग-अलग विद्यालयों में अलग-अलग प्रकार की शिक्षण तथा प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है, जो निम्न हैं

    • वैयक्तिक विभिन्नता का ज्ञान शिक्षकों एवं विद्यालय प्रबन्धकों को कक्षा के वर्गीकरण में सहायता प्रदान करता है।
    • शिक्षार्थी वैयक्तिक भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। अतः एक शिक्षक को सीखने के विविध अनुभवों को उपलब्ध कराना चाहिए।
    • कक्षा का आकार तय करने में भी वैयक्तिक विभिन्नता का ज्ञान विशेष सहायक होता है। यदि कक्षा के अधिकतर बालक अधिगम में कमजोर हों, तो कक्षा का आकार कम होना चाहिए।
    • वैयक्तिक विभिन्नता का सिद्धान्त व्यक्तिगत शिक्षण पर जोर डालता है। इसके अनुसार बालकों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर उसकी शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि उसका सर्वांगीण विकास हो सके।

    पाठ्यक्रम का निर्धारण (Determination of Syllabus)

    पाठ्यक्रम के निर्धारण एवं विकास में भी वैयक्तिक विभिन्नता की प्रमुख भूमिका होती है। बालकों की आयु, कक्षा आदि को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक कक्षा के लिए अलग प्रकार की पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता है एवं उन्हें अलग प्रकार से लागू भी किया जाता है। उदाहरणस्वरूप बच्चों की पुस्तकें अधिक चित्रमय एवं रंगीन होती हैं, जबकि जैसे-जैसे कक्षा एवं आयु में वृद्धि होती जाती है, उनकी पुस्तकों के स्वरूप में भी अन्तर दिखाई पड़ता है। इसी प्रकार प्राथमिक कक्षा के बच्चों को खेलकूद के द्वारा शिक्षा देने पर जोर दिया जाता है।

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