Methods of Research in Hindi : यह लेख शोध की पद्धतियों (Methods of Research) का विस्तृत एवं व्यवस्थित परिचय प्रस्तुत करता है। इसमें गुणात्मक एवं मात्रात्मक अनुसंधान, वर्णनात्मक, ऐतिहासिक, प्रायोगिक, सर्वेक्षण, केस स्टडी, सहसंबंध और व्याख्यात्मक शोध विधियों को सरल उदाहरणों सहित समझाया गया है। लेख में अनुसंधान की प्रकृति, महत्त्व, विशेषताएँ, उद्देश्य तथा शोध उपागम भी शामिल हैं, जिससे विद्यार्थी, शोधार्थी और शिक्षक सभी को स्पष्ट समझ मिल सके। यह सामग्री प्रतियोगी परीक्षाओं, शोध लेखन और शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
शोध की पद्धतियाँ, प्रकार, विशेषताएँ और महत्त्व
अनुसन्धान वस्तुतः एक विशेष प्रकृति की समस्या का वैज्ञानिक समाधान प्रस्तुत करता है, इसलिए समस्या की प्रकृति के अनुसार अनुसन्धान की विधि निर्धारित की जाती है। अनुसन्धान विधियों का वर्गीकरण विद्वानों ने अनेक प्रकार से किया है। किसी ने विषय क्षेत्र के अनुसार वर्गीकरण किया तो किसी ने शिक्षा सम्बन्धी, किसी ने मनोविज्ञान सम्बन्धी या किसी ने इतिहास सम्बन्धी अनुसन्धान के रूप में वर्गीकृत किया।
किसी विद्वान् ने इसके आँकड़े प्राप्त करने की विधि के आधार पर, तो किसी ने उसके आधार पर वर्गीकरण किया है।
शोध के प्रकार
बेस्ट एवं काहन द्वारा किया गया वर्गीकरण सबसे अच्छा माना जाता है। उनके अनुसार अनुसन्धान की छः प्रमुख विधियाँ/पद्धतियाँ मानी गई है-
- ऐतिहासिक शोध विधि (Historical Research Method)
- विवरणात्मक शोध विधि (Descriptive Research Method)
- प्रयोगात्मक शोध विधि (Experimental Research Method)
- क्रियात्मक शोध विधि (Action Research Method)
- मात्रात्मक या परिमाणात्मक शोध विधि (Quantitative Research)
- गुणात्मक शोध विधि (Qualitative Research)
1. ऐतिहासिक शोध विधि
Historical Research Method
जॉन डब्ल्यू. बेस्ट के अनुसार, "ऐतिहासिक अनुसन्धान का सम्बन्ध ऐतिहासिक समस्या के वैज्ञानिक विश्लेषण से है। इसके विभिन्न पद भूतकाल के सम्बन्ध में एक नई सूझ पैदा करते हैं, जिसका सम्बन्ध वर्तमान एवं भविष्य से होता है।"
ऐतिहासिक अनुसन्धान के द्वारा किसी भी वस्तु, विचार, घटना, समुदाय, समाज विशेष के बारे में उसके ऐतिहासिक तथ्यों, नियमों के बारे में वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इस विधि में ऐतिहासिक साक्ष्यों की आवश्यकता पड़ती है। ऐतिहासिक अनुसन्धान विधि में ऐतिहासिक स्रोतों का विश्लेषण दो प्रकार से किया जाता है, जिसमें प्राथमिक स्रोत तथा द्वितीयक या गौण स्रोत प्रमुख होते हैं, जो निम्न हैं
प्राथमिक स्रोत -
इसके अन्तर्गत वैसे तथ्यों को शामिल किया जाता है, जो अतीत की घटनाओं के अध्ययन क्षेत्र में जाकर स्वयं से संकलित की जाए; जैसे-
- लिखित स्रोत (न्यायालयों के पत्र, शिलालेख, आत्मचरित वर्णन, विज्ञापन पत्र, समाचार पत्र, वंशावलियाँ)
- मौखिक स्रोत (भाषाएँ, कहानियाँ, दन्त कथाएँ, उपाख्यान, लोक कथाएँ)
- कलात्मक स्रोत (सिक्के, मूर्तियाँ, ललित कथाएँ, ऐतिहासिक चित्र)
करलिंगर के अनुसार, "प्राथमिक 'स्रोत एक ऐतिहासिक' प्रदत्त मूल भण्डार होता है। यह किसी महत्त्वपूर्ण अवसर का मौलिक अभिलेख होता है।"
द्वितीयक स्रोत -
किसी ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी मूल स्रोत से न कर किसी अन्य स्रोत से प्राप्त करना द्वितीयक स्रोत में शामिल है। यह प्राथमिक स्रोत की तुलना में कम विश्वसनीय होता है।
किसी का जीवन इतिहास, व्यक्तिगत विवरण, संस्मरण इत्यादि द्वितीयक स्रोत के उदाहरण हैं।
करलिंगर के अनुसार, "द्वितीयक स्रोत किसी ऐतिहासिक घटना या स्थिति का वह अभिलेख या रिकॉर्ड है, जो मूल भण्डार से एक या दो कदम दूर होते हैं।"
ऐतिहासिक शोध के पद या सोपान- सर्वप्रथम किसी समस्या का चुनाव करना।
- तत्पश्चात् समस्या की सीमा का निर्धारण करना।
- समस्या से सम्बन्धित परिकल्पनाओं का निर्माण करना।
- तथ्यों का संग्रह और प्रामाणिकता की जाँच करना।
- अन्त में परिणामों की व्याख्या और विवेचना करना।
ऐतिहासिक शोध के उद्देश्य
- भूत के आधार पर वर्तमान को समझना और भविष्य के लिए सतर्क रहना।
- शिक्षा मनोविज्ञान अथवा सामाजिक विज्ञानों में चिन्तन को नई दिशा देना।
- भूतकालीन तथ्यों के प्रति जिज्ञासा की तृप्ति।
- वर्तमान में, सिद्धान्त और क्रियाएँ जो व्यवहार में हैं, उनके उद्भव व विकास की परिस्थितियों का विश्लेषण करना।
ऐतिहासिक शोध के महत्त्व
- अनुसन्धानों की प्रकृति को समझने में सहायता प्रदान करता है।
- अतीत की त्रुटियों से सीख लेकर भविष्य के प्रति सतर्क करता है।
- यह शिक्षा एवं मनोविज्ञान के लिए वैज्ञानिक आधार प्रदान करता है।
- ऐतिहासिक अनुसन्धान अन्धविश्वासों एवं भ्रमों का निवारण करता है।
- इस अनुसन्धान से शुद्ध अनुसन्धान एवं व्यावहारिक अनुसन्धान दोनों ही दृष्टिकोण लाभान्वित होते हैं।
ऐतिहासिक शोध की समस्याएँ
- ऐतिहासिक अनुसन्धान की सबसे प्रमुख समस्या तथ्यों का बिखराव होना है, क्योंकि तथ्य एक जगह से प्राप्त नहीं किए जा सकते, जिस कारण अनुसन्धानकर्ता को अनेक पुस्तकालयों और संस्थानों में जाना पड़ता है।
- संस्थाओं एवं पुस्तकालयों में रखे प्रलेखों दस्तावेजों (Documents) का क्रम में न होना तथा उनका नष्टप्राय होना।
- विश्वसनीयता तथा वैधता की कमी, क्योंकि मौखिक स्रोत विश्वसनीय नहीं हो पाते।
ऐतिहासिक शोध के गुण
- इन सभी के बावजूद ऐतिहासिक अनुसन्धान विधि का मुख्य गुण यह है कि वह उन विषयों की जाँच करने में सक्षम होता है, जिसका किसी अन्य प्रकार से अध्ययन नहीं किया जा सकता।
- इस अनुसन्धान का महत्त्व इस बात में भी है कि यह शिक्षा, समाजशास्त्र, सामाजिक मनोविज्ञान तथा मानव विज्ञान में अपेक्षाकृत अधिक है, क्योकि इससे शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने में इस अनुसन्धान की आवश्यकता पड़ती है।
- ऐतिहासिक अनुसन्धान का महत्त्व शुद्ध एवं व्यावहारिक दोनों ही दृष्टिकोणों से है।
ऐतिहासिक शोध के दोष
- इसमें कार्य-कारण सम्बन्ध की स्थापना सम्भव नहीं है।
- इसमें सत्यापन सम्बन्धी क नाई का समावेश रहता है।
- इन अनुसन्धानों की वैधता और विश्वसनीयता में कमी पाई जाती है, क्योंकि ऐतिहासिक घटनाओं की यथार्थता को निर्धारित करना सरल नहीं है।
- इस अनुसन्धान में नियन्त्रण सम्बन्धी कठिनाई पाई जाती है।
ऐतिहासिक शोध के क्षेत्र की प्रमुख बातें
- शिक्षाशास्त्रियों व मनोवैज्ञानिकों के सुझाव।
- प्रयोगशाला एवं संस्थाओं द्वारा किए गए व्यावहारिक कार्य।
- विभिन्न समय अवधि में विचारों के बदलाव व विकास की स्थिति।
- विशेष प्रकार की विचारधारा का प्रभाव व उसके स्रोत।
- पुस्तक सूची की तैयारी।
2. विवरणात्मक शोध विधि
Descriptive Research Method
इसके अन्तर्गत स्पष्ट परिभाषित समस्या पर कार्य किया जाता है। यह विशेष सरल एवं अत्यन्त कठिन, दोनों प्रकार का हो सकता है। यह क्या है को स्पष्ट करता है। इसके अन्तर्गत समस्या समाधान हेतु उपयोगी सूचना प्राप्त करते हैं। इसके लिए कल्पनापूर्ण नियोजन आवश्यक है। यह अनुसन्धान संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों हो सकता है।
इस अनुसन्धान विधि में वर्तमान स्थिति का वर्णन एवं विश्लेषण किया जाता है; इसे अप्रयोगात्मक अनुसन्धान भी कहा जाता है।
बेस्ट वर्णनात्मक अनुसन्धान की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि "वर्णनात्मक अनुसन्धान क्या है?" इसका वर्णन एवं विश्लेषण करता है।
परिस्थितियाँ अथवा सम्बन्ध जो वास्तव में वर्तमान है, अभ्यास जो चालू है, विश्वास विचारधारा अथवा अभिवृत्तियाँ जो पाई जा रही हैं, प्रक्रियाएँ जो चल रही हैं, अनुभव जो प्राप्त किए जा रहे हैं अथवा नई दिशाएँ जो विकसित हो रही हैं, इन्हीं से इसका सम्बन्ध है।"
वर्णनात्मक अनुसन्धान में शोधकर्ता समस्या से सम्बन्धित तथ्यों का न केवल एकत्रण ही करता है, बल्कि समस्या से सम्बन्धित विभिन्न चरों का आपसी सम्बन्ध भी ढूँढने का प्रयास करता है।
विवरणात्मक शोध के उद्देश्य
- भविष्य के अनुसन्धान के प्राथमिक अध्ययन में सहायता करना।
- मनोवैज्ञानिक विशेषताओं से परिचय प्राप्त करना और शैक्षिक नियोजन में सहायता करना।
- मानव व्यवहार के विभिन्न पक्षों की जानकारी प्राप्त करना।
- किसी विषय या घटना की स्थिति का शीघ्र अध्ययन करना।
- वर्तमान परिस्थितियों की पहचान करना।
विवरणात्मक शोध के प्रकार
विभिन्न लेखकों द्वारा विवरणात्मक अनुसन्धान को कई प्रकार से वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया है, परन्तु वान डैलेन द्वारा प्रस्तावित वर्गीकरण सबसे उत्तम माना गया है।
इसी के आधार पर विवरणात्मक अनुसन्धान को तीन प्रमुख भागों में बाँटा गया है, जो निम्न हैं
1. सर्वेक्षण अध्ययन (Survey Study)
इसका अर्थ वर्तमान क्रिया में सुधार के लिए वर्तमान परिस्थिति से सम्बन्धित आँकड़ों को एकत्र करना है। इस सर्वेक्षण में वर्तमान स्तर का निर्धारण, वर्तमान तथा मान्य स्तर की तुलना एवं वर्तमान स्तर का विकास करना प्रमुख होता है।
सर्वेक्षण अध्ययन की विशेषताएँ (Characteristics of Survey Study)
- इसमें अनुसन्धान का आधार प्रतिदर्श (Sampling) होता है, जिसका चयन यादृच्छिक रूप से किया जाता है।
- इसका स्वरूप अप्रायोगिक (Non-Experimental) होता है।
- यह भविष्य के विकासक्रम को सूचित कर वर्तमान नीतियों का निर्धारण करता है।
- यह अनुसन्धानों के लिए आवश्यक उपकरणों के निर्माण में सहायता प्रदान करता है।
- इसका सम्बन्ध एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र तथा जनसंख्या से होता है।
सर्वेक्षण अध्ययन के प्रकार (Types of Survey Study)
यह मुख्य रूप से समस्या की प्रकृति पर निर्भर करता है। सर्वेक्षण अध्ययन के प्रमुख पाँच प्रकार है
(i) विद्यालय सर्वेक्षण (School Survey) विद्यालय सर्वेक्षण में प्राप्त सूचनाओं के आधार पर विद्यालयों की क्षमता का आकलन कर उसके विकास का प्रयास किया जाता है, इसमें शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों को शामिल किया जाता है। इस प्रक्रिया में निरीक्षण (Observation), प्रश्नावली (Questionnaire), साक्षात्कार (Interview), मानक परीक्षण (Standardized Test), प्राप्तांक पत्र (Score Card) तथा मूल्यांकन मापदण्ड (Rating Scale) का सहारा लिया जाता है।
(ii) कार्य विश्लेषण (Work Analysis) इसमें कार्यकर्ताओं की कार्य पद्धति, कमजोरियों की पहचान कर मानव शक्ति के उपयोग को पहचाना जाता है।
(iii) प्रलेखी विश्लेषण (Documentary Analysis) इसके अन्तर्गत भूतकालीन अर्थात् ऐतिहासिक अनुसन्धानों तथा वर्तमान अर्थात् विवरणात्मक अनुसन्धान के विषय वस्तु का विश्लेषण किया जाता है। इसमें प्रलेख, कहानी, उपन्यास, कविता, टी.वी शामिल होते हैं।
(iv) जनमत सर्वेक्षण (Public Opinion Survey) इसका उपयोग औद्योगिक, राजनीतिक एवं शैक्षिक क्षेत्र में किया जाता है, क्योंकि इन क्षेत्रों में जनता की मनोवृत्ति तथा उनके जनमत को ध्यान में रखकर सर्वेक्षण किया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में जनमत संग्रह द्वारा विद्यालय की क्रियाओं के प्रति जनता का रुख जानने का प्रयास किया जाता है।
(v) समुदाय सर्वेक्षण (Community Survey) इस सर्वेक्षण द्वारा सम्पूर्ण समुदाय के लोगों को शामिल किया जाता है जिसमें इतिहास, भौगोलिक तथा आर्थिक परिस्थितियाँ, सरकार एवं कानून तथा जनसंख्या को कारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। समुदाय सर्वेक्षण हेतु प्रश्नावली, साक्षात्कार एवं सांख्यिकी विधि का प्रयोग किया जाता है।
2. अन्तर-सम्बन्धों का अध्ययन (Inter-Relationship Studies)
यह उस अध्ययन को प्रदर्शित करता है, जिसमें अनुसन्धानकर्ता वर्तमान स्थिति के सर्वेक्षण के साथ-साथ उन सभी तत्त्वों को भी खोजने का प्रयास करता है, जो घटनाओं से सम्बन्धित होते हैं। यह मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं
i) व्यक्ति अध्ययन (Case Study) युंग के अनुसार, "यह किसी व्यक्ति या ( समूह का गहन अध्ययन है जिसे जीवन घटना का इतिहास कहा जाता है।" इसके अन्तर्गत किसी सामाजिक इकाई, एक व्यक्ति, परिवार, समूह सामाजिक संस्था का अध्ययन किया जाता है। इसमें आत्मकथा, डायरी, पत्र, माता-पिता, पड़ोसी, मित्र जीवन से सम्बन्धित घटनाओं, विद्यालय प्रमाण पत्र का सहारा लिया जाता है। इसके उपकरण के रूप में प्रश्नावली, निरीक्षण, साक्षात्कार मनोवैज्ञानिक परीक्षण विधि का सहारा लिया जाता है।
(ii) कार्य-कारण तुलनात्मक अध्ययन (Casual Comparative Study or Expost-facto Research) यह विधि-कार्य कारण सम्बन्धों के आधार पर कार्य करती है, जिसका यह मानना है कि किसी-न-किसी घटना का कोई कारण अवश्य होता है तथा जहाँ कारण उपस्थित न हो वहाँ कार्य नहीं हो सकता। यह एक प्रकार का प्रायोगिक अनुसन्धान होता है, जिसमें यादृच्छीकरण का अभाव पाया जाता है।
(iii) सह-सम्बन्धात्मक अध्ययन (Correlation Study) कार्य-कारण तुलनात्मक अध्ययन में सह-सम्बन्धात्मक अध्ययन को भी शामिल किया जाता है, जिसमें दो-या-दो से अधिक चरों, घटनाओं या वस्तुओं के पारस्परिक सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। सह-सम्बन्धात्मक अध्ययन मुख्यतः धनात्मक सह-सम्बन्ध, ऋणात्मक सह-सम्बन्ध एवं शून्य सह-सम्बन्ध के रूप में होते हैं।
3. विकासात्मक अध्ययन (Developmental Study)
विकासात्मक अध्ययन में न केवल वर्तमान परिस्थितियों का अध्ययन किया जाता है, बल्कि उसमें समय के साथ होने वाले परिवर्तनों का भी अध्ययन किया जाता है।
यह मुख्यतः तीन प्रकार का होता है-
(i) अनुदैर्ध्य अध्ययन (Longitudinal Study) इसमें बच्चों के विकास का अध्ययन समयान्तराल पर किया जाता है।
(ii) प्रतिनिध्यात्मक अध्ययन (Cross Sectional Study) इसमें एक ही समय में विभिन्न आयु के बच्चों का अध्ययन एकसाथ किया जाता है। इसमें समय और श्रम की बचत होती है।
(iii) उपनति अध्ययन (Trend Study) इसमें किसी विशिष्ट जनसंख्या से सम्बन्धित आँकड़ों को एकत्र किया जाता है तथा उसका वर्णन किया जाता है।
3. प्रयोगात्मक शोध विधि
Experimental Research Method
इस विधि में अनुसन्धानकर्ता सदैव नवीन तथ्यों की खोज करता रहता है तथा यह शोधकर्ताओं के ज्ञान को बढ़ान में सहायक होता है। इस विधि में अनुसन्धानकर्ता स्वतन्त्र चर तथा आश्रित चर के मध्य कार्य-कारण सम्बन्धों का अध्ययन करता है। यह परिकल्पना के परीक्षण की एक विधि है तथा इसके बारे में यह कंहा जाता है कि यह पद्धति इस तथ्य का वर्णन तथा विश्लेषण करती है कि क्या होगा? प्रयोगात्मक विधि की मूलभूत अवधारणा को जेम्स एस मिल ने निम्न रूप से वर्णित किया है "यदि दो परिस्थितियाँ पूर्ण समान हैं तथा एक परिस्थिति में एक तत्त्व को जोड़ दिया जाए या घट्टा दिया जाए, परन्तु दूसरी स्थिति में कोई भी परिवर्तन न हो, यदि ऐसी स्थिति में कोई परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है, तो वह जोड़े गए या कम किए जाने वाले तत्त्व का परिणाम होता है।" वस्तुतः प्रयोगात्मक अनुसन्धान विधि जॉन स्टुअर्ट मिल के एकल चर के नियम (Laws of Single Variable) पर आधारित है।
प्रयोगात्मक अनुसन्धान में निम्नलिखित तीन चरों के आधार पर व्याख्या की जा सकती है
(i) स्वतन्त्र चर (Independent Variable) जिस चर में प्रयोगकर्ता परिवर्तन करता है, उसे 'स्वतन्त्र चर' कहते हैं। इसे 'प्रायोगिक चर' भी कहा जाता है। इसका प्रयोग किसी चर के प्रभाव को जानने के लिए किया जाता है।
इसके दो प्रकार संचालित चर तथा जैविक चर होते हैं। चरों के जोड़ घटाव करना संचालित चर तथा जोड़-तोड़ न हो पाने वाले चर, जैविक चर कहलाते हैं।
(ii) आश्रित चर (Dependent Variable) स्वतन्त्र चर में परिवर्तन या जोड़-तोड़ (Manipulation) के बाद उसका प्रभाव जिस चर पर देखा जाता है, उसे आश्रित चर कहा जाता है; जैसे- पढ़ाने की विधि के प्रभाव का अध्ययन शैक्षिक उपस्थिति पर करना।
(iii) बाह्य चर (Extraneous Variable) ऐसा चर जिनका अध्ययन प्रयोगकर्ता अपने परीक्षण में नहीं करता है वह 'बाह्य चर' कहलाता है। यह चर आश्रित चर को भी प्रभावित करता है।
नौट स्वतन्त्र चर या आश्रित चर के मध्य सम्बन्ध को 'नियन्त्रण चर' प्रभावित करता है। नियन्त्रण चर ऐसा चर जिसे प्रयोग विधि के दौरान नियन्त्रित कर उसके प्रभाव को उदासीन कर देता है, नियन्त्रण चर कहलाता है।
प्रयोगात्मक शोध विधि की विशेषताएँ
- प्रयोगात्मक विधि एक वैज्ञानिक विधि है, जो एक चर नियम की अवधारणा पर आधारित है।
- इस विधि में पुनरावृत्ति की विशेषता पाई जाती है, जिससे दूसरे अनुसन्धानकर्ता के निष्कर्ष की जाँच की जा सकती है।
- इस विधि में बाह्य चरों का नियन्त्रण आवश्यक होता है तथा इसके लिए विलोपन (Elimination), यादृच्छिकीकरण (Randomisation), सह-प्रसरण आदि का उपयोग किया जाता है।
- यह विधि आणविक है, क्योंकि इसमें व्यवहार के आणविक तत्त्वों का अध्ययन होता है।
- इस विधि में पूर्वाग्रह या पक्षपात का अभाव रहता है। यह विधि वस्तुनिष्ठ होने के कारण प्राप्त आँकड़ों का गुणात्मक (Qualitative) तथा परिमाणात्मक (Quantitative) विश्लेषण आसानी से कर सकता है।
प्रयोगात्मक शोध विधि के चरण
समस्या का चयन एवं उसका परिभाषीकरण
↓
समस्या की पहचान
↓
परिकल्पनाओं का निर्माण
↓
प्रदत्तों का संकलन
↓
प्रदत्त विश्लेषण एवं विवेचन
↓
उचित निष्कर्ष और परिणाम की प्राप्ति
4. क्रियात्मक शोध विधि
Action Research Method
सामान्यतः विद्वानों द्वारा अनुसन्धान की उपरोक्त तीन विधियों (ऐतिहासिक, विवरणात्मक तथा प्रयोगात्मक) का ही वर्णन किया गया है, परन्तु इन विधियों से उच्च शिक्षण संस्थानों की समस्याओं का समाधान कर पाना सम्भव नहीं था।
अतः शिक्षण संस्थानों की समस्याओं के समाधान के लिए क्रियात्मक अनुसन्धान विधि का सिद्धान्त अपनाया गया। यह सैद्धान्तिक ज्ञान की खोज न कर व्यावसायिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है।
एस. एम. कोरे के अनुसार, "क्रियात्मक अनुसन्धान एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यवसायी अपने निर्णय में निर्देशित होने के लिए, सुधार लाने एवं मूल्यांकन के लिए अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अनुभव करता हैं।
क्रियात्मक शोध की विशेषता
- इसके द्वारा शैक्षिक समस्याओं का समाधान किया जाता है।
- इसमें व्यावहारिकता पर अधिक बल दिया जाता है।
- यह अनुसन्धान किसी संस्था या समुदाय तक ही सीमित होता है।
- यह अनुसन्धान तात्कालिक समस्याओं के समाधान से सम्बन्धित होता है।
- यह अनुसन्धान विकासात्मक अनुसन्धान को बढ़ावा देता है।
क्रियात्मक शोध के उद्देश्य
- शिक्षण संस्थानों में समस्याओं के समाधान हेतु विद्यार्थियों व शिक्षकों में वैज्ञानिक तकनीक एवं अभिवृत्ति का विकास करना।
- विद्यार्थियों के निष्पादन स्तर को उच्च करने में सहायता करना।
- विद्यालय प्रणाली एवं वातावरण में परिवर्तन कर एक स्वस्थ शिक्षण वातावरण का निर्माण करना।
- विद्यालयों की कार्य दशा में सुधार कर कर्मचारियों का निष्पादन स्तर उच्च करना।
क्रियात्मक शोध के चरण
समस्या का चयन (Selection of the Problem)
↓
समस्या का मूल्यांकन (Evaluation of the Problem) ↓
परिकल्पनाओं का निर्माण (Formulation of Hypothesis)
↓
प्रदत्त संकलन (Data Collection)
↓
परिकल्पनाओं का परीक्षण (Hypothesis Testing)
↓
परिणाम, निष्कर्ष एवं सुझाव प्राप्ति (Result, Conclusion and Suggestion)
5. मात्रात्मक या परिमाणात्मक शोध विधि
Quantitative Research
मात्रात्मक या परिमाणात्मक अनुसन्धान के अन्तर्गत पहले उपकल्पना का निर्धारण होता है तथा सिद्धान्त पहले से ही निर्धारित रहते हैं। शोध तथा आँकड़ों पर आधारित होने के कारण इसका निष्कर्ष भी आकड़ों द्वारा ही निर्धारित होता है। यह अनुसन्धान किसी भी प्रकार के भाव से रहित होता है। इस अनुसन्धान में सूचना सांख्यिकीय रूप में प्राप्त होती है। यह अनुसन्धान संरचित साक्षात्कार, अवलोकन, अभिलेख तथा रिपोर्ट की समीक्षा का डाटा संग्रहण होता है।
6. गुणात्मक शोध विधि
Qualitative Research
इस अनुसन्धान का उद्देश्य मानव व्यवहार तथा उसे नियन्त्रित करने वाले कारणों को समझना होता है। इस विधि के अन्तर्गत क्या, कहाँ, कब, क्यों और कैसे आदि प्रश्नों की जाँच की जाती है। इस अनुसन्धान में संकल्पना (Hypothesis) का प्रयोग नहीं करते हैं, यह विकल्प खुला रखते हैं। यह अनुसन्धान मात्रात्मक के स्थान पर व्यक्तिगत अनुभवों के विश्लेषण पर बल देता है।
उदाहरणस्वरूप, यदि हमें शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षण प्रभावशीलता के बारे में अध्ययन करना है, तो जो सम्बन्धित तथ्य सामने आते हैं, उन्हीं का प्रेक्षण और रिकॉर्डिंग करके वर्णात्मक तथ्यों के रूप में शिक्षक प्रभावशीलता की गुणात्मक तथ्यों पर टिप्पणी की जाएगी।
गुणात्मक अनुसन्धान के अन्तर्गत कुछ विशिष्ट विधियों का प्रयो। किया जाता है, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है
- समूह-केन्द्रित अनुसन्धान (Focus Group Research) इसके अन्तर्गत अनुसन्धानकर्ता कुछ व्यक्तियों के समूह को किसी विषय पर चर्चा करने के लिए एकत्रित करता है। इसमें सदस्यों की संख्या कम ही होती है।
- प्रत्यक्ष अवलोकन (Direct Observation) इसके अन्तर्गत बाह्य पर्यवेक्षक के द्वारा समूह एकत्र किया जाता है।
- गहन साक्षात्कार (Indepth Interviews) इसके अन्तर्गत तथ्यों की गहराई तक जाने का प्रयास किया जाता है।
- कथात्मक अनुसन्धान (Narrative Research) इसके द्वारा मुख्य साहित्य की समीक्षा की जाती है।
- घटनाजन्य अनुसन्धान (Phenomenological Research) इसके अन्तर्गत अनुसन्धानकर्ता व्यक्तियों से किसी घटना के विषय में उनके अनुभवों को समझने का प्रयास करता है।
- जातिवृत्त अनुसन्धान (Ethnography) जातिवृत्तात्मक का मूल मानवशास्त्र में है। इस अनुसन्धान का उद्देश्य भौतिक और सामाजिक पर्यावरण का निर्धारण करना है।
- व्यक्तिगत अध्ययन अनुसन्धान (Case Study Research) यह मनोवैज्ञानिक विकार, सामाजिक शास्त्र, व्यापार क्षेत्र आदि में प्रदत्तों को एकत्रित करने की विधि है। यह एक व्यक्ति, परिवार, समूह या समुदाय हो सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य इकाई के जीवन स्तर को समझना है।
- प्रदत्त आधारित सिद्धान्त (Grounded Theory) इसके अन्तर्गत शोधकर्ता द्वारा एकत्रित किए गए प्रदत्तों के विश्लेषण के आधार पर किसी सिद्धान्त को विकसित किया जाता है।


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