शोध का अर्थ, परिभाषाएँ, विशेषताएँ, प्रकार और महत्त्व | Research Meaning, Definitions & Types in Hindi

यह लेख शोध (Research) का अर्थ, परिभाषाएँ, विशेषताएँ, प्रकृति, उद्देश्य और विभिन्न प्रकारों का विस्तृत व व्यवस्थित विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसमें बेसिक एवं एप्लाइड रिसर्च, वर्णनात्मक, सहसम्बन्ध, व्याख्यात्मक, समन्वेशी और प्रायोगिक अनुसंधान सहित आगमन, निगमन, संरचित तथा असंरचित दृष्टिकोण को सरल रूप में समझाया गया है। इस लेख में प्रत्यक्षवाद (Positivism) और उत्तर-प्रत्यक्षवाद (Post-Positivism) जैसे महत्वपूर्ण शोध उपागमों का भी स्पष्ट विवेचन है, जो शोधकर्ताओं व विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है।

    शोध का अर्थ 

    Meaning of Research

    शोध अथवा अनुसन्धान का सामान्य अर्थ 'खोज करने' से है अर्थात् अनुसन्धान किसी लक्ष्य या उद्देश्य का अनुगामी होता है तथा उस उद्देश्य को आधार बनाकर क्रमबद्ध, व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक तरीके से उसे प्राप्त करने की कला है।

    यह शब्द अंग्रेजी के 'Research' के पर्याय की तरह प्रयोग होता है, जिसका सामान्य अर्थ पुनः खोज करना या नए उ‌द्देश्यों को प्राप्त करना है।

    अनुसन्धान किसी न किसी समस्या के वैज्ञानिक या तार्किक समाधान के रूप में सामने आता है, क्योंकि समाधान के पश्चात् उस समस्या या खोज से जुड़े कुछ नवीन सिद्धान्तों या अवधारणाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।

    अतः अनुसन्धान अपने अर्थ में किसी विषम समस्या, उद्देश्य तक पहुँचने या समाधान करने हेतु उसको आधार बनाकर बार-बार उसकी खोज करना तथा उसके आधार पर नए सिद्धान्तों का निर्माण करना है।

    शोध का अर्थ, परिभाषाएँ, विशेषताएँ, प्रकार और महत्त्व

    शोध की परिभाषाएँ 

    Definitions of Research

    विद्वानों द्वारा अनुसन्धान की निम्नलिखित परिभाषाएँ प्रस्तुत की गई हैं

    जेम्स ड्रेवर के अनुसार, "किसी क्षेत्र में ज्ञान अथवा सत्यापन हेतु की जाने वाली क्रमबद्ध खोज को शोध कहा जाता है।"

    जॉन डब्लू बेस्ट के अनुसार, "अनुसन्धान अधिक औपचारिक व्यवस्थित तथा गहन प्रक्रिया है, जिसमें वैज्ञानिक विधि विश्लेषण को प्रयुक्त किया जाता है। अनुसन्धान में व्यवस्थित स्वरूप को शामिल कर निष्कर्ष प्राप्त कर उनका औपचारिक आलेख तैयार किया जाता है।"

    सी. आर. कोठारी के अनुसार, "अनुसन्धान पद से तात्पर्य एक ऐसी विधि से है, जिसमें सोपानों के रूप में समस्या की पहचान, परिकल्पना का निर्माण, तथ्य और प्रदत्तों का संकलन, संकलित तथ्यों का विश्लेषण निहित रहता है। जिनकी अभिव्यक्ति समस्या विशेष के हल अथवा सैद्धान्तिक आधार के रूप में सामान्यीकृत धारणाओं के रूप में दिखाई दे।"

    जॉर्ज जे. मुले के अनुसार, "समस्याओं के समाधान के लिए व्यवस्थित रूप में बौद्धिक ढंग से वैज्ञानिक विधि के प्रयोग तथा अर्थापन को शोध कहा जाता है।"

    सामान्य परिभाषा यह है कि ज्ञान की किसी भी शाखा में किसी नवीन तथ्यों, अवधारणाओं, सम्प्रत्ययों, सिद्धान्तों एवं विचारों की खोज हेतु अपनाई गई क्रमबद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया को ही 'शोध' या 'अनुसन्धान' कहा जाता है।

    उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अनुसन्धान या शोध वह क्रमबद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग द्वारा वर्तमान ज्ञान का परिमार्जन, उसका विकास अथवा किसी नए तथ्य की खोज द्वारा ज्ञानकोश में वृद्धि की जाती है।


    शोध की विशेषताएँ 

    Characteristics of Research

    अनुसन्धान वैज्ञानिक विधि की तरह कार्य करता है, जो पूर्वाग्रह से मुक्त और व्यक्तिपरक होता है। इस आधार पर अनुसन्धान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

    वस्तुनिष्ठता (Objectivity) यह अनुसन्धान का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलू है। यह वह प्रक्रिया है, जिसमें घटनाओं या वस्तुओं को बिना किसी पूर्व धारणाओं या भेदभाव से परखा जाता है। इसमें साक्ष्यों का भली-भाँति परीक्षण, सत्यापन के अतिरिक्त दूसरों के विचारों का सम्मान करने वाला भी होना चाहिए।

    अनुसन्धान की प्रक्रिया पर शोधकर्ता की स्वयं की उपस्थिति, व्यवहार और दृष्टिकोण का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।

    उदाहरणस्वरूप, यदि कोई अनुसन्धानकर्ता ग्रामीण शिक्षा तथा शहरी शिक्षा पर अनुसन्धान कर रहा हो तथा वह पहले से ही यह मान ले कि ग्रामीण पढ़ना-लिखना नहीं चाहते हैं तथा शहरी शिक्षित होते हैं, तो इसके कारण उसका अनुसन्धान प्रभावित हो सकता है।

    निश्चयात्मकता (Definiteness) निश्चयात्मकता का सिद्धान्त प्रक्रिया एवं परिणाम दोनों पर ही लागू होता है। इस प्रक्रिया का ध्यान सूचनाओं अथवा प्रदत्तों के नियोजन, संकलन परीक्षण इंत्यादि सभी चरणों में रखा जाता है।

    विश्वसनीयता (Reliability) यह अनुसन्धान का महत्त्वपूर्ण भाग है, क्योंकि यह स्थिरता और सत्यापनशीलता को प्रस्तुत करती है।

    उदाहरणस्वरूप, सटीक स्रोत अनुसन्धान की विश्वसनीयता को बढ़ाते हैं तथा त्रुटिपूर्ण स्रोत इसकी विश्वसनीयता को कम करते हैं। अनुसन्धानकर्ता को शोध में विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि वह आँकड़े अधिकारिक स्रोतों; जैसे सरकारी वेबसाइट आदि से लें।

    वैधता (Validity) अनुसन्धान में वैधता का अर्थ त्रुटिरहित परिणाम से है तथा यह विश्वसनीयता की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। यह मुख्य रूप से प्रक्रियाओं, अनुसन्धान उपकरणों, परीक्षण आदि से सम्बन्धित होता है। यह अनुसन्धान को सही दिशा में अग्रसर करने में सहायक होता है। विभिन्न प्रकारों की वैधता का निम्नलिखित रूपों में वर्णन किया गया है

    • आन्तरिक वैधता (Internal Validity) दो या अधिक चूरों के मध्य अच्छे करणीय सम्बन्ध स्थापित करने की क्षमता ही, आन्तरिक वैधता कहलाता है। आन्तरिक वैधता कारण और प्रभाव के सम्बन्ध में अधिक सत्य है।
    • बाह्य वैधता (External Validity) अध्ययन को प्रभावित करने वाले कारकों को नियन्त्रित करना ही बाह्य वैधता कहलाता है। उदाहरणस्वरूप, किसी महाविद्यालय या विद्यालय में अध्यापक की प्रभावशीलता को जानने के लिए यदि शोध किया जा रहा है और छात्र इस पर अपनी प्रतिक्रिया भी दे रहे हैं। छात्रों द्वारा दी गई यह प्रतिक्रिया अध्यापक की उपस्थिति में प्रभावित हो सकती है, क्योंकि छात्र उसकी उपस्थिति में अपनी प्रतिक्रिया अध्यापक के भय के कारण बदल भी सकते हैं।

              शोध के अन्तर्गत आन्तरिक वैधता को विश्वसनीयता और बाह्य वैधता की सामान्यीकरण से जोड़ा जाता है।

    • यथार्थता (Accuracy) इसके अन्तर्गत शोध प्रक्रियाएँ और साधन एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। यथार्थता को मापने के लिए अनुसन्धान साधनों का उचित प्रकार से चयन किया जाता है तथा शोध प्रक्रिया के प्रत्येक चरण का अच्छे से परीक्षण किया जाता है।
    • सामान्यीकरण (Generalization) प्रत्येक शोध का मूल उद्देश्य सामान्यीकरण सिद्धान्त स्थापित करना होना चाहिए। शोध के इन लक्षणों का वर्णन दो स्तरों पर किया जा सकता है।
      • शोध समष्टि सामान्यतया छोटे से भाग पर होती है, लेकिन इसके निष्कर्षों को समिष्टि पर लागू माना जाता है।
      • निष्कर्षों के बाद एक विकसित अवधारणा को समान स्थितियों में सत्य माना जाता है।

    कार्यकारण सम्बन्ध की महत्ता (Importance of Cause and Effect) अनुसन्धान में कार्यकारण सम्बन्धों का महत्त्व है, क्योंकि यह वैज्ञानिक विधि है, जो किसी भी घटना के पीछे कार्य-कारण सम्बन्धों को ढूँढता है।

    अनुसन्धान चक्रीय प्रक्रिया है (Research is Circular) अनुसन्धान समस्या के साथ शुरू होकर समस्या के साथ ही समाप्त होती है, यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है, इसलिए यह एक चक्रीय प्रक्रिया है।

    तार्किकता (Logical) अनुसन्धान तार्किकता को विशेष महत्त्व देता है, जिसमें आगमनात्मक (Induction) एवं निगमनात्मक (Deduction) संकल्पनाओं को विशेष महत्त्व दिया जाता है। अतः कार्यकारण सम्बन्धों के साथ-साथ तार्किकता का महत्त्व अनुसन्धान में अधिक है।

    अनुभवात्मक आधारित संकल्पना (Experiential Research) शोध प्रत्यक्षीकरण तथा अवलोकनात्मक सिद्धान्तों पर आधारित होता है, क्योकि शोध में इसका अनुभव वस्तुनिष्ठता तथा विश्वसनीयता को बढ़ावा देता है।


    शोध की प्रकृति 

    Nature of Research

    • अनुसन्धान अपनी प्रकृति में वस्तुनिष्ठ (Objective) और तथ्यात्मक (Factual) होता है।
    • शोध मूलतः वैज्ञानिक प्रकृति का होता है, जिसमें प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण कर निष्कर्ष प्राप्त किया जाता है।
    • इसको प्रकृति चौद्धिकता से युक्त एवं तार्किक (Logical) होती है। यह विधि पुरानी त्रुटियों को शुद्ध कर नए-नए ज्ञान एवं सिद्धान्तों को सुधारने एवं स्थापित करने वाली प्रकृति का पालन करती है।
    • इसकी प्रकृति पूर्वाग्रह (Bias) से मुक्त होती है।
    • अनुसन्धान अपनी प्रकृति में नवीनता को प्रदर्शित करता है, क्योंकि इसके द्वारा प्राचीन तथ्य, सिद्धान्त, विधि में परिवर्तन कर नए तथ्यों, विधि या वस्तु की खोज करते हैं।
    • इसकी प्रकृति विश्लेषणात्मक भी होती है, क्योंकि अनुसन्धाने में सांख्यिकी की विधियों एवं आँकड़ों के द्वारा विश्लेषणात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।


    शोध के उद्देश्य 

    Objectives of Research

    किसी भी प्रकार का शोध अनुसन्धान किसी भी लक्ष्य या उद्देश्य का अनगामी होता है. अतः यह बात स्पष्ट है कि कोई भी अनुसन्धान लक्ष्य या उ‌द्देश्यविहीन नहीं हो सकता। जैसे ही किसी शोध/अनुसन्धान की पृष्ठभूमि निर्मित की जाती है, उसी समय उसका उद्देश्य निर्धारित हो जाता है।

    अनुसन्धान के उ‌द्देश्य निम्नलिखित है

    • नवीन तथ्यों को खोज करना।
    • नवीन तथ्यों की खोज के साथ-साथ पुराने तथ्यों की जाँच तथा मूल्यांकन करना।
    • किसी विशेष स्थिति का सही वर्णन कर समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करना।
    • किसी सिद्धान्त के अनुक्रमों, पारस्परिक सम्बन्धों तथा किसी घटना के साथ सह-सम्बन्धों की जानकारी प्राप्त करना।
    • अनुसन्धान हेतु नए वैज्ञानिक उपकरणों एवं सिद्धान्तों का विकास करना।

    सामान्यतः अनुसन्धान के उद्देश्यों को चार भागों में बाँटा गया है

    1. सैद्धान्तिक उ‌द्देश्य (Theoretical Objective) इसके अन्तर्गत वैज्ञानिक विधि के माध्यम से नवीन सिद्धान्तों एवं नियमों का प्रतिपादन किया जाता है तथा यह कार्य व्याख्यात्मक प्रकृति के होते हैं।

    2.. सुत्यात्मक उद्देश्य (Veriable Objective) वस्तुतः ये दार्शनिक प्रकृति के होते हैं, जिसमें दर्शन के आधार पर अन्तिम परिणाम की प्राप्ति की जाती है।

    3. तथ्यात्मक उद्देश्य (Factual Objective) वस्तुतः ये वर्णनात्मक प्रकृति के होते हैं। इसका कारण यह है कि इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु तथ्यों की खोज कर उनका विश्लेषण किया जाता है। इसमें ऐतिहासिक अनुसन्धानों, के प्रकार का सहारा लिया जाता है।

    4. व्यावहारिक उद्देश्य (Practical Objective) इन उद्देश्यों को विकासात्मक अनुसन्धान की श्रेणी में रखते हैं तथा इनकी प्राप्ति हेतु विभिन्न क्षेत्रों में क्रियात्मक अनुसन्धान का सहारा लिया जाता है। इसमें केवल उपयोगिता को ही महत्त्व प्रदान किया जाता है।


    शोध/अनुसन्धान के प्रकार

    Types of Research

    अनुसन्धान किसी भी समस्या के समाधान हेतु अपनाई गई क्रियाविधि के रूप में जाना जाता है। अनुसन्धान के विभिन्न प्रकारों के बीच काफी परस्पर व्यापकता भी है, जो निम्न प्रकार है


    Types of Research


    परिणाम के आधार पर शोध (On the Basis of Output)

    परिणाम के आधार पर अनुसन्धान दो प्रकार का होता है, जो निम्न प्रकार हैं

    1. मौलिक या प्राथमिक अनुसन्धान (Basic Research) इसके अन्तर्गत ज्ञान के वर्तमान संग्रह में वृद्धि की जाती है तथा इसके द्वारा सिद्धान्त तथा अवधारणाएँ विकसित होती हैं। अकादमिक दृष्टि से यह अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

    2. व्यावहारिक अनुसन्धान (Applied Research) इस अनुसन्धान के द्वारा किसी समस्या विशेष का समाधान करने वाले तत्त्व शामिल होते हैं अर्थात् अगर अनुसन्धानकर्ता तथ्यों के आधार पर किसी क्रियात्मक समस्या का समाधान करे, तो उसे व्यावहारिक अनुसन्धान कहेंगे।

    तर्क के आधार पर शोध On the Basis of Logic

    तर्क के आधार पर अनुसन्धान का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया गया है

    1. आगमन (Inductive) यह एक ऐसी प्रणाली है जिसमें हम विभिन्न अनुभवों के सामान्यीकरण द्वारा वांछित ज्ञान को प्राप्त करते हैं।

    2. निगमन (Deductive) ज्ञान प्राप्ति हेतु यह एक ऐसी तर्क प्रणाली है, जिसमें सामान्य से विशेष की ओर चलते हैं।


    जाँच के आधार पर शोध (On the Basis of Investigation)

    जाँच के आधार पर अनुसन्धान का वर्गीकरण दो प्रकार से किया जाता है

    1. संरचित दृष्टिकोण (Structured Approach) यह दृष्टिकोण निगमन विधि के समान ही है।

    2. असंरचित दृष्टिकोण (Unstructured Approach) इस दृष्टिकोण का आगमन विधि तथा गुणात्मक अनुसन्धान से निकटतम सम्बन्ध है।


    उद्देश्यों के आधार पर शोध (On the Basis of Objectives)

    उ‌द्देश्यों के आधार पर अनुसन्धान को पाँच श्रेणियों में विभाजित किया गया है

    1. वर्णनात्मक अनुसन्धान (Descriptive Research) इस अनुसन्धान द्वारा 'स्थिति का वर्णन' किया जाता है। इसके अन्तर्गत 'क्या है' या 'क्या था' जैसे प्रश्नों का उत्तर दिया जाता है। इस अनुसन्धान में अनुसन्धानकर्ता का चरो पर कोई नियन्त्रण नहीं होता। इसमें सर्वेक्षण और पर्याप्त व्याख्या के साथ-साथ तथ्यों की खोज को सम्मिलित किया जाता है। वर्णनात्मक अनुसन्धान के भी तीन प्रारूप है, जो निम्न है

    (i) घटनोत्तर अनुसन्धान (Ex-Post Facto Research) यह अनुसन्धान किसी घटना के सन्दर्भ में आयोजित किया जाता है तथा यह घटना के स्वतन्त्र चर से सम्बन्धित है।

    (ii) ऐतिहासिक अनुसन्धान (Historical Research) इसके अन्तर्गत वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भूतकालीन तथा वर्तमान घटनाओं की चर्चा की जाती है। सामान्यतया यह किसी विषय के ऐतिहासिक पहलू पर ध्यान केन्द्रित करता है।

    (iii) विश्लेषणात्मक अनुसन्धान (Analytical Research) इसके अन्तर्गत पहले से ही उपलब्ध तथ्यों एवं जानकारी का उपयोग किया जाता है।

    2. सहसम्बन्ध अनुसन्धान (Correlational Research) इस अनुसन्धान के अन्तर्गत किसी स्थिति के दो पक्षों के बीच सम्बन्धों का ज्ञान होता है। इसके द्वारा निश्चित परिस्थितियों में प्रमुख कारको की पहचान की जा सकती है।

    3. व्याख्यात्मक अनुसन्धान (Explanatory Research) इस प्रकार के अनुसन्धान के अन्तर्गत किसी घटना के दो पक्षों के बीच 'क्यों' और 'कैसे' आदि प्रश्नों के उत्तर देने की चेष्टा की जाती है।

    4. समन्वेशी अनुसन्धान (Exploratory Research) इस प्रकार के अनुसन्धान को मुख्य अनुसन्धान का 'लघुरूप' भी कहा जाता है। यह सामान्यतया अनुसन्धान के प्रारम्भ में किया जाता है। इसके द्वारा किसी घटना के दो या दो से अधिक पहलुओं के बीच सम्बन्ध स्पष्ट करने का प्रयास किया जाता है। इस अनुसन्धान का उद्देश्य तथ्यों को परिभाषित करना, समस्याओं को स्पष्ट करना, पृष्ठभूमि की जानकारी प्राप्त करना आदि है।

    5. प्रायोगिक अनुसन्धान (Experimental Research) इस अनुसन्धान द्वारा कारण और प्रभाव सम्बन्धों को उजागर किया जाता है। उदाहरणस्वरूप, धूम्रपान के कारण फेफड़ों का कैसर होता है, जो एक निश्चित कारण और प्रभाव को दर्शाता है।


    अवधारणा के आधार पर शोध (On the Basis of Concept)

    अवधारणा के आधार पर अनुसन्धान को दो वर्गों में बाँटा गया है

    1. वैचारिक अनुसन्धान (Conceptual Research) यह अनुसन्धान दार्शनिकों एवं विचारकों द्वारा नई अवधारणाओं को विकसित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

    2. अनुभवसिद्ध अनुसन्धान (Empirical Research) यह अनुसन्धान अवलोकन तथा अनुभव पर निर्भर होता है।


    अनुसन्धान या शोध का महत्त्व

    वर्तमान शैक्षणिक व्यवस्था में अनुसन्धान का महत्त्व दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. क्योंकि प्रत्येक शिक्षण संस्थान एवं पाठ्यक्रम में शोध को अनिवार्यतः शामिल किया गया है। इसी आधार पर शोध के निम्नलिखित महत्त्वों की पहचान की गई है

    • अनुसन्धान ज्ञान को विस्तारित तथा परिमार्जित (Confined) करने में सहायक होता है।
    • समाज में नए ज्ञान एवं विचारों का प्रसार करता है।
    • अनुसन्धान किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है।
    • अनुसन्धान व्यक्ति के बौद्धिक चिन्तन (Intellectual Thinking) एवं विकास को गति प्रदान करता है।
    • यह किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह को समाप्त करने में सहायक सिद्ध होता है।
    • अनुसन्धान किसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु वैज्ञानिक तरीकों का प्रतिपादन करता है।
    • इसका महत्त्व किसी भी समस्या का समाधान प्रस्तुत करने में प्रयुक्त होता है।


    प्रत्यक्षवाद एवं उत्तर प्रत्यक्षवाद शोध के उपागम 

    Research Approach of Positivism and Post-Positivism

    समाजशास्त्र के शोधकर्ताओं के मध्य शोध के दो प्रमुख उपागम प्रत्यक्षवाद और उत्तर प्रत्यक्षवाद प्रसिद्ध हैं। इन दोनों का वर्णन निम्न प्रकार है

    प्रत्यक्षवाद

    प्रत्यक्षवाद (Positivism) की वैज्ञानिक व्याख्या सर्वप्रथम फ्रांसीसी विचारक ऑगस्ट कॉम्टे ने की थी, इसलिए कॉम्टे को 'प्रत्यक्षवाद का जनक' कहा जाता है। कॉम्टें ने प्रत्यक्षवाद की व्याख्या अपनी रचनाओं 'Course of Positive Philosophy' (1842) तथा "The System of Positive Polity' (1851) में की है। वस्तुतः प्रत्यक्षवाद कॉम्टे की अध्ययन पद्धति है, जो विज्ञान पर आधारित है।

    कॉम्टे के अनुसार, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अपरिवर्तनीय प्राकृतिक नियमों द्वारा व्यवस्थित व निर्देशित होता है। अतः इसे केवल विज्ञान की विधियों द्वारा समझा जा सकता है, न कि धार्मिक या तात्विक आधारों पर। इस प्रकार निरीक्षण, परीक्षण, प्रयोग और वर्गीकरण पर आधारित वैज्ञानिक विधियों द्वारा सब कुछ समझना और उससे ज्ञान प्राप्त करना ही प्रत्यक्षवाद है।

    कॉम्टे के अनुसार प्रत्यक्षवादी दृष्टिकोण के चरण

    • सर्वप्रथम अध्ययन-विषय को चुनते हैं

    • अवलोकन या. निरीक्षण द्वारा उस विषय से सम्बन्धित प्रत्यक्ष होने वाले तथ्यों को एकत्रित करते हैं

    • इसके पश्चात् इन तथ्यों का विश्लेषण करके सामान्य विशेषताओं के आधार पर इनका वर्गीकरण किया जाता है

    • तत्पश्चात् विषय से सम्बन्धित कोई निष्कर्ष निकालते हैं


    प्रत्यक्षवाद की प्रमुख विशेषताएँ / मान्यताएँ

    • प्रत्यक्षवाद अथवा वैज्ञानिक पद्धति की प्रमुख विशेषताएँ/मान्यताएँ निम्नलिखित हैं
    • प्रत्यक्षवाद का लक्ष्य केवल उन घटनाओं का वर्णन करना है, जिसे हम प्रत्यक्ष रूप से देख (अनुभव) या निरीक्षण कर सकते हैं। इसके अन्तर्गत किसी भी स्तर पर काल्पनिक चिन्तन का सहारा नहीं लिया जाता है।
    • प्रत्यक्षवाद एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है, जिसका लक्ष्य सत्य को उजागर करना है। इसमें मात्रात्मक विधि पर बल दिया जाता है।
    • प्राकृतिक घटनाओं की तरह सामाजिक घटनाएँ भी कुछ नियमों के आधार पर घटित होती हैं। अतः इन नियमों को वैज्ञानिक पद्धति द्वारा खोजा जा सकता है।
    • प्रत्यक्षवाद वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ वैज्ञानिक कार्यप्रणाली से भी सम्बन्धित होता है।
    • प्रत्यक्षवाद अपने को धार्मिक व दार्शनिक विचारों से दूर रखता है।
    • प्रत्यक्षवाद एक उपयोगितावादी विज्ञान है और उस रूप में विश्वास करता है कि प्रत्यक्षवाद के माध्यम से प्राप्त ज्ञान को सामाजिक पुनर्निर्माण के साधन के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।


    उत्तर-प्रत्यक्षवाद

    उत्तर-प्रत्यक्षवाद (Post-Positivism) यह तर्क देता है कि तार्किक तर्क के साथ आनुभविक टिप्पणियों को जोड़कर एक घटना के बारे में उचित अनुमान लगाया जा सकता है। उत्तर प्रत्यक्षवाद मानता है कि वैज्ञानिकों के सोचने और काम करने के तरीके और दैनिक जीवन में हमारे सोचने के तरीके अलग-अलग नहीं हैं। वैज्ञानिक तर्क और सामान्य ज्ञान तर्क अनिवार्य रूप से एक ही प्रक्रिया है तथा दोनों के बीच कोई अन्तर नहीं है, केवल अंश में ही अन्तर है।

    उत्तर-प्रत्यक्षवाद के अनुसार सभी अवलोकन अस्थिर हैं और इसमें त्रुटि है और यह सभी सिद्धान्त पुनः प्रयोज्य (Usable) हैं। उत्तर-प्रत्यक्षवाद का मानना है कि विज्ञान का लक्ष्य वास्तविकता के बारे में सही तरीके से लक्ष्य प्राप्त करना है, फिर हम लक्ष्य को प्राप्त कर सकें या नहीं कर सकें।

    उत्तर-प्रत्यक्षवाद महत्त्वपूर्ण तीन विकासों पर बल देता है, जो निम्नलिखित है

    1. मात्रात्मक और गुणात्मक रणनीति का प्रयोग

    2 प्रश्न शोध पर आधारित रणनीति की इच्छा

    3. इसके पैटर्न का तरीका मात्रात्मक बनाम गुणात्मक होता है।

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