शिक्षण सहायक प्रणाली, ICT आधारित शिक्षण, मूल्यांकन प्रणाली और क्रेडिट सिस्टम की विस्तृत जानकारी — शिक्षण व अधिगम की प्रभावी प्रक्रिया पर अध्ययन।
शिक्षण सहायक प्रणाली
Teaching Support System
शिक्षण सहायक प्रणाली वह तन्त्र या व्यवस्था होती है, जिसमें शिक्षण कौशल, सहायक शिक्षण सामग्री आदि शामिल होते हैं, जो अधिगमकर्ता के क्षमता विकास में सहायक होता है। इसे विभिन्न वर्गों में बाँटकर देखा जा सकता है
परम्परागत शिक्षण सहायक प्रणाली
Traditional Teaching Support System
- परम्परागत सहायक प्रणाली में परम्परागत सहायक सामग्रियों का उपयोग होता है। इसमें वर्तमान की तुलना में निम्न स्तर की सहायक सामग्रियाँ पाई जाती हैं।
- इसमें शिक्षण सामग्री के रूप में दृश्य एवं श्रव्य आधारित सामग्रियाँ पाई जाती हैं। उदाहरणस्वरूप ब्लैक बोर्ड, मानचित्र, ग्लोब, पुस्तकें, पत्र, पत्रिकाएँ आदि।
- परम्परागत शिक्षण प्रणाली में शिक्षण कौशल तथा शिक्षण के विषय विस्तृत न होकर संकीर्ण व निम्न स्तर के पाए जाते हैं।
- परम्परागत शिक्षण प्रणाली में बौद्धिकता का विकास अपेक्षाकृत कम होता है।
- शिक्षक एवं शिक्षार्थी प्रत्यक्ष रूप से संवाद व तर्क-वितर्क कर समस्याओं का समाधान करते हैं।
- शिक्षण उपदेशात्मक, निर्देशात्मक तथ्यों पर आधारित होते हैं।
- शिक्षार्थी का मूल्यांकन जाँच में प्राप्त अंक या ग्रेड के अनुसार होता है अर्थात् इसमें बौद्धिकता कमजोर नजर आती है।
- इसमे विषय के अध्याय एवं टॉपिक के बीच सूक्ष्म संकेन्द्रण होता है, जिससे विस्तृत, व्याख्यात्मक, बौद्धिकपरक विचारों का अधिक विकास नहीं हो पाता है।
- शिक्षण बदलाव की ओर अधिक प्रगतिशील नहीं होता है। वर्तमान समय पर अधिक आधारित होता है।
आधुनिक शिक्षण सहायक प्रणाली
Modern Teaching Support System
- आधुनिक शिक्षण सहायक प्रणाली में उन्नत शिक्षण सामग्री तथा उच्च शिक्षण कौशल पाया जाता है।
- इसमें शिक्षण सहायक सामग्री श्रव्य, दृश्य तथा श्रव्य दृश्य आधारित सहायक सामग्रियाँ पाई जाती है।
- इसमें शिक्षण का स्तर उच्च पाया जाता है। शिक्षण विषयों के साथ शिक्षार्थी की बौद्धिकता के विकास पर भी बल दिया जाता है।
- इसमें प्रशिक्षित शिक्षक तथा नवीन तकनीक से पूर्ण कक्षाओं में शिक्षण कार्य संचालित होता है।
- शिक्षण में वर्तमान समय में ऑनलाइन सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं, जिससे बच्चे बिना कक्षा के वीडियो के माध्यम से शिक्षण कार्य करने में सक्षम हैं।
- कक्षाओं में विशेष रूप से कम्प्यूटर, वीडियो, स्लाइड आदि सामग्रियों का प्रयोग होता है।
- बच्चों की जाँच मनोवैज्ञानिक तरीकों से कराई जाती है।
- शिक्षण की जाँच परीक्षाओं में शिक्षार्थी द्वारा प्राप्त अंक के साथ-साथ विश्लेषणात्मक द्वारा बौद्धिकता की भी जाँच की जाती है।
- मानव का विकास कर उचित मानव संसाधन को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।
- आधुनिक शिक्षण में शिक्षको ने भी नवाचार को बढ़ाकर शिक्षण में सभी शिक्षार्थियों की नवीन प्रवृत्तियों को जन्म दिया है।
- आधुनिक शिक्षण प्रणाली आधुनिक बदलाव के प्रति सजग है, ताकि अधिक-से-अधिक तकनीकों व अन्य सहायक सामग्रियों को अपनाकर शिक्षण को मजबूत बनाया जाए।
इस प्रकार आधुनिक शिक्षण सहायक प्रणाली, शिक्षक, शिक्षार्थी तथा शैक्षणिक वातावरण सभी दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है।
आईसीटी आधारित शिक्षण प्रणाली
ICT Based Support System
- सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) एक व्यापक क्षेत्र है, जिसमें सूचना के संचार के लिए सभी प्रकार की प्रौद्योगिकी समाहित है।
- यह रेडियो, टेलीविजन, सेलफोन, कम्प्यूटर आदि के अनुप्रयोगों से सूचना प्रसारण करता है।
- यह उच्च शिक्षा में शैक्षिक अवसरों को विस्तृत करने, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास एवं शिक्षा के गुणवत्ता बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण साधन है।
- इससे दूरवर्ती स्थानों में पढ़ाई की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।
- इससे उच्च शिक्षा के संस्थानों में अधिक पारदर्शिता प्रणाली लाने से शिक्षण की प्रक्रियाओं और अनुपालन के मापदण्डों को मजबूती मिलने की सम्भावना है।
- यह छात्रों के प्रदर्शन, नियुक्ति, वेबसाइट एनालिटिक्स और ब्राण्ड के ऑडिट के लिए सोशलमीडिया मैट्रिक्स के विश्लेषण के प्रयोग में सहायक होता है।
- यह उपग्रह और अन्य माध्यमों द्वारा पाठ्यक्रम वितरण के साथ दूरस्थ शिक्षा सुविधाजनक बनाने में सहायक है।
- इसके माध्यम से ई. लर्निंग और दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों में ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से शिक्षण अधिक रोचक और आसान हो रहा है।
- इसके माध्यम से शिक्षण को इण्टरनेट तथा वर्ल्ड वाइड वेब के माध्यम से शिक्षार्थी तक पहुँचने में मदद मिलती है।
- यह शैक्षणिक संस्था के दिन-प्रतिदिन के प्रशासनिक गतिविधियों को आसान तथा पारदर्शी तरीके से नियन्त्रित तथा समन्वय के साथ निगरानी करने में सहायक है।
- यह उच्च शिक्षण संस्थानों में पंजीकरण, नामांकन, पाठ्यक्रम आवण्टन, उपस्थिति की निगरानी आदि की जानकारियाँ उपलब्ध कराने में सहायक है।
मूल्यांकन प्रणाली
Evaluation System
मूल्यांकन का विकास शिक्षा में एक नवीन दृष्टिकोण का परिणाम है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली में मूल्यांकन की विभिन्न प्रविधियों के उपयोग पर बल दिया जा रहा है। यह मूल्यांकन मात्र शिक्षार्थियों की उपलब्धि को ही नहीं, बल्कि पाठ्यक्रम के विभिन्न उद्देश्यों के व्यापक स्तर को भी मापने का प्रयास करता है।
मूल्यांकन का अर्थ
यह किसी अवलोकन, निष्पत्ति, परीक्षा या किसी प्रत्यक्ष रूप में मापित प्रदत्तों को मूल्य प्रदान करना है। अन्य शब्दों में, मूल्यांकन एक सकारात्मक सतत प्रक्रिया है, जो शैक्षिक उद्देश्यों की सीमा निर्धारित करके उनकी प्राप्ति के स्तर को ज्ञात करवाकर उचित या अनुचित का निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है। इसका शाब्दिक अर्थ है- 'निर्णय प्रदान करना'।
एडम्स के शब्दों में, "किसी प्रक्रिया या वस्तु के महत्त्व का निर्धारण ही मूल्यांकन करना है।"
कोठारी आयोग द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार, "मूल्यांकन एक निरन्तर प्रक्रिया, सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एकीकृत भाग और शैक्षिक उद्देश्यों से पूरी तरह सम्बन्धित है। यह विद्यार्थियों की अध्ययन आदतों और शिक्षक की निर्देशन विधि पर अत्यधिक प्रभाव डालता है और इस प्रकार न केवल शैक्षिक उपलब्धियो, अपितु इनके सुधार में भी सहायता करता है।"
मूल्यांकन के उद्देश्य
- मूल्यांकन सभी छात्रो को शैक्षिक उपलब्धि के स्तर को निर्धारित करता है।
- मूल्यांकन प्रणाली का प्रयोग शैक्षिक निष्पत्ति के आधार पर विद्यार्थियों को निर्देशन एवं परामर्श प्रदान करने के लिए किया जाता है।
- इसके माध्यम से छात्रों को ग्रेडिंग, वर्गीकरण एवं प्रोन्नति का आकलन किया जाता है।
- योग्यता के आधार पर छात्रों को पुरस्कार एवं छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है।
- विद्यार्थियों की असफलताओं के कारण का पता लगाकर उनका उपचार करने हेतु मूल्यांकन आवश्यक है।
- यह शिक्षक की शिक्षण प्रभावशीलता जानने का महत्त्वपूर्ण माध्यम है।
- शिक्षण विधियों में सुधार करने हेतु और उसके विकास के लिए समय-समय पर किया गया मूल्यांकन प्रभावी और परिणामोत्पादक स्थिति प्राप्ति के लिए अनिवार्य है।
मूल्यांकन का महत्त्व
- शिक्षण एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। अतः शिक्षार्थी में अधिगम के विकास और स्थिति की सही जानकारी प्राप्त करने के लिए सतत मूल्यांकन प्रणाली का होना भी आवश्यक है।
- मूल्यांकन एक व्यापक प्रणाली है, जो शिक्षार्थियों के व्यवहार के तीनों पक्षों-ज्ञानात्मक, भावनात्मक और क्रियात्मक पक्षों में हुए परिवर्तन का लक्ष्य निर्धारित करता है।
- शिक्षा को सामाजिक उद्देश्यों और आवश्यकताओं के अनुरूप निर्धारित किया जाता है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति सामाजिक आदर्श और आकांक्षा के अनुरूप हो रहा है अथवा नहीं, इस हेतु मूल्यांकन बतौर एक आवश्यक प्रक्रिया के रूप में कार्य करता है।
- मूल्यांकन प्रणाली एक उद्देश्यनिष्ठ प्रक्रिया है। यह पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति और उसकी उपलब्धि का आकलन करता है।
- मूल्यांकन का अर्थ निर्णयन है। इसके माध्यम से ही शिक्षक शिक्षण सम्बन्धी विधियों, उद्देश्यों, सीखने के अनुभवों की प्रभावशीलता आदि के विषय में सही निर्णय ले पाने में सक्षम हो पाते हैं।
- शिक्षण में मूल्यांकन प्रणाली शिक्षार्थी केन्द्रित गतिविधियों का भी आकलन करता है। इसके तहत यह पता लगाया जाता है कि विद्यार्थियों में पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर अपेक्षित परिवर्तन हुआ है अथवा नहीं।
- मूल्यांकन एक सहकारी प्रक्रिया है। विद्यार्थी के शैक्षणिक विकास के सन्दर्भ में कोई अकेला निर्णय कारगर नहीं होता जब तक कि वह निर्णय सहकारीपूर्ण नहीं हो। इसके अन्तर्गत शिक्षाथों के मूल्यांकन के लिए शिक्षक सहित, अभिभावक, मित्रो आदि का दृष्टिकोण जानना आवश्यक हो जाता है।
- इसके माध्यम से शिक्षार्थियों के कमजोर और मजबूत पक्ष को रेखांकित किया जा सकता है और तत्पश्चात् आवश्यक निर्देश दिए जा सकते हैं। यह छात्र जीवन के सही मार्गदर्शन में निर्णायक होते हैं।
- यह प्रणाली विद्यार्थी को अधिक प्रयास करने की प्रेरणा देती है। मूल्यांकन से छात्र सजग हो जाता है और अधिक बेहतर परिणाम हेतु अपने प्रयास तेज कर देता है।
- इसके माध्यम से चयन प्रक्रिया, नियुक्ति, पदोन्नति और वर्गीकरण जैसे निर्णय अधिक व्यावसायिक (Professional) ढंग से लेने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
मूल्यांकन के तत्त्व और प्रकार मूल्यांकन के तत्त्व
मूल्यांकन प्रणाली में मूल्यांकन के कुछ प्रमुख तत्त्व होते हैं, जो मूल्यांकन को बेहतर बनाते हैं। इन तत्त्वों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से है
- उच्च स्तर के समर्थन के साथ उच्च उम्मीदों का सुमेलन शिक्षक का मूल्यांकन पेशेवर शिक्षण मानको पर आधारित होना चाहिए, जिससे यह पता चलता है कि शिक्षकों को क्या जानना चाहिए और क्या करने में सक्षम होना चाहिए। इसके अतिरिक्त शिक्षकों को अपने प्रदर्शन पर नियमित रूप से समय पर प्रतिक्रिया और बेहतर बनने के लिए प्रयास करना चाहिए। साथ ही शिक्षकों के अतिरिक्त विद्यालय का वातावरण, शिक्षण उपकरण इत्यादि भी शिक्षण प्रणाली को बेहतर बनाने में सहयोग करते है अर्थात् इन सभी प्रक्रिया का लक्ष्य शिक्षक अभ्यास में व्यवस्थित रूप से सुधार करना और छात्रों को सीखने में वृद्धि करना है।
- विभिन्न स्रोतों से शिक्षण और छात्रों के सीखने के साक्ष्य को शामिल करना सामान्य तौर पर प्रत्येक वर्ष के परीक्षणों के आधार पर छात्रों को सोखने के लाभ के उपाय शिक्षकों को बहुत कम जानकारी प्रदान करते हैं और पूरी तरह से निर्देश की गहराई को नहीं दर्शाते हैं। हम सभी जानते हैं कि एक सन्तुलित दृष्टिकोण सबसे अच्छा काम करता है। उदाहरण के लिए शिक्षक अवलोकन, छात्र कार्य और छात्रों का आकलन इत्यादि।
- जानकारी का उपयोग शिक्षकों को रचनात्मक प्रतिक्रिया प्रदान करने के लिए होना चाहिए न कि उन्हें शर्मिदा करने के लिए मूल्यांकन का उद्देश्य शिक्षकों के अभ्यास में सुधार करना होना चाहिए न कि उनको शर्मिंदा करना। इस तरह के प्रयास से शिक्षकों एवं शिक्षण प्रणाली में गुणात्मक रूप से वृद्धि होती है।
- मूल्यांकन प्रणालियों की गुणवत्ता और उन्हें मजबूती से लागू करने की विद्यालय की क्षमता में विश्वास पैदा करना इसका तात्पर्य यह है कि शिक्षक को अभ्यास का पालन करने के लिए एक वैध उक्ति का प्रयोग करना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वे कक्षाओं का निष्पक्ष और निरन्तर निरीक्षण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षकों का कई बार अवलोकन करना, अनेक पर्यवेक्षकों का उपयोग करना चाहिए। इससे शिक्षा एवं शिक्षण में आवश्यक सहयोग प्राप्त होता है।
- शिक्षक विकास और मूल्यांकन को सामान्य कोर राज्य मानक संरेखन करना कई अध्ययनों से यह पता चलता है कि अधिकांश शिक्षक सामान्य कोर राज्य मानक को पूरा करने के लिए आवश्यक रूप से निर्देशात्मक कार्यों को संभालने में एक लम्बा रास्ता तय करते हैं। जबकि अधिकांश शिक्षक कक्षा प्रबन्धन कौशल में निपुण होते हैं। उदाहरण के लिए शिक्षकों को लम्बे समय तक बहुत सारी सामग्री व्यवस्थित करने के लिए सिखाया जाता है, जबकि उन्हें उच्च स्तर के प्रश्न पूछने या कठिन चर्चा में छात्रों को शामिल करने के लिए नही सिखाया जाता है।
- शिक्षण प्रणाली को समयानुकूल, नवाचार के समायोजित करना शिक्षक विकास और मूल्यांकन सार्वजनिक स्कूली शिक्षा के मिशन को प्राप्त करने के लिए एक वाहन के रूप में होना चाहिए तथा उस मिशन को शिक्षा के एक बाहरी मॉडल से विकसित होना चाहिए जो कई स्थानों पर एक नए प्रतिमान में मौजूद है, जो छात्रों को जीवन, कॉलेज और करियर के लिए तैयार करेगा। अतएव शिक्षा प्रणाली समयानुकूल, नए प्रतिमानों व नवाचारों से समायोजित होना चाहिए। यह मूल्यांकन का एक प्रमुख तत्त्व है।
मूल्यांकन के प्रकार
मनोवैज्ञानिकों ने मूल्यांकन प्रणाली को तीन भागों में विभाजित किया है, जो निम्न प्रकार हैं
1. निर्माणात्मक या रचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) बालकों के विकास की लगातार प्रतिपुष्टि (feedback) के लिए निर्माणात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) का उपयोग किया जाता है। इसके अन्तर्गत शिक्षक अध्यापन (पढ़ाना) के दौरान यह जाँच करते हैं कि बच्चों ने अभिवृत्तियों, अभिभूतियों तथा ज्ञान को कितना प्राप्त किया है। यह मूल्यांकन अध्याय के बीच-बीच में किया जाता है।
2. योगात्मक संकल्पनात्मक/अन्तिम मूल्यांकन (Summative Evaluation) यह मूल्यांकन सत्र की समाप्ति के बाद होता है। इसके अन्तर्गत शिक्षक यह जाँच करते हैं कि बच्चों ने ज्ञान को किस सीमा तक प्राप्त किया है।
3. निदानात्मक मूल्यांकन (Diagnostic Evaluation) जो विद्यार्थी पढ़ाई के दौरान असफल होते हैं। उन विद्यार्थियों की असफलता के कारणों का पता लगाना निदानात्मक मूल्यांकन कहलाता है।
उच्च शिक्षा में विकल्प आधारित क्रेडिट प्रणाली में मूल्यांकन
विकल्प आधारित क्रेडिट प्रणाली
- विकल्प आधारित क्रेडिट प्रणाली पाठ्यक्रम की वह प्रणाली है, जिसमें छात्रों को पाठ्यक्रमों को चुनने का विकल्प होता है अर्थात् इसमें विज्ञान के विद्यार्थी को कला, वाणिज्य आदि अन्य विषयों को चुनने का विकल्प होता है।
- दिल्ली विश्वविद्यालय ने सत्र 2015-16 से इस पाठ्यक्रम को स्नातक के पाठ्यक्रमों में शामिल किया है।
- इसका मूल विचार छात्रों की जरूरतों को ध्यान में रखना है, ताकि भारत व विदेशों में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिकता बनी रहे। इसमें पाठ्यक्रम मूल, निर्वाचित या मृदु कौशल पाठ्यक्रम के रूप में सन्दर्भित होता है।
- यह प्रणाली सभी केन्द्रीय, राज्य और मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों के लिए एकसमान होता है।
- इसके तीन मुख्य पाठ्यक्रम होते हैं, मूल, वैकल्पिक और बुनियादी।
- एक प्रभावी और सन्तुलित परिणाम प्रदान करने हेतु तीनों मुख्य पाठ्यक्रमों का मूल्यांकन और उपयोग किया जाता है।
क्रेडिट प्रणाली के मूल्यांकन के तत्त्व
यह प्रणाली निम्न प्रकार से कार्य करती है
- सेमेस्टर मूल्यांकन सेमेस्टर के अनुसार होता है। इसमें एक छात्र विज्ञान, कला, वाणिज्य के लिए तीन साल और अभियान्त्रिकी के चार साल के पाठ्यक्रमों के आधार पर प्रगति करता है। इसके तहत प्रत्येक सेमेस्टर में 15-18 सप्ताह का शैक्षणिक कार्य होता है, जो 90 शिक्षण दिवस के रूप में होता है।
- क्रेडिट प्रणाली प्रत्येक पाठ्यक्रम को एक निश्चित क्रेडिट सौंपा जाता है। जब छात्र पाठ्यक्रम उत्तीर्ण करता है, तो उसे पाठ्यक्रम पर आधारित क्रेडिट प्राप्त होता है। यदि एक छात्र एक सेमेस्टर उत्तीर्ण करता है, तो उसे दोहराना नहीं होता है।
- क्रेडिट हस्तान्तरण यदि कुछ कारणों से छात्र यदि अध्ययन का भार सहन नहीं कर पाता है, तो वह कम क्रेडिट प्राप्त करने का अधिकार रखता है, किन्तु अगले सेमेस्टर में इस क्रेडिट की भरपाई करने की पूरी आजादी होती है।
- व्यापक निरन्तर मूल्यांकन इसमें छात्रवृत्ति का मूल्यांकन न केवल शिक्षकों द्वारा बल्कि छात्रों द्वारा स्वयं भी सम्भव होता है।
- ग्रेडिंग यूजीसी ने 10 अंक ग्रेडिंग प्रणाली शुरू की है, जो मूल्यांकन में सहायक होती है, जैसे-
इस प्रकार विकल्प आधारित क्रेडिट प्रणाली का क्रियान्वयन एक छात्र के समग्र प्रदर्शन को सिंगल सिस्टम के सार्वभौमिक तरीके से मूल्यांकन करने की दिशा में अच्छी प्रणाली है।
क्रेडिट की गणना
इसमें क्रेडिट प्रति सेमेस्टर के एक घण्टे के शिक्षण के बराबर होता है, जिसमें शिक्षण (T), व्याख्यान (L) तथा क्षेत्र कार्य (P) प्रति सप्ताह दो घण्टा शामिल होता है।
इसमें प्रत्येक सेमेस्टर में एक का कुल क्रेडिट L+T+P का कुल योग होता है।
कम्प्यूटर आधारित जाँच
Computer Based Testing
- कम्प्यूटर आधारित जाँच डिजिटल संसाधनों के माध्यम से होती है। इसमें इण्टरनेट आधारित कम्प्यूटर पर जाँच होती है। इसके साथ ही इण्टरनेट वातावरण में ही इसका मूल्यांकन भी होता है।
- कम्प्यूटर आधारित जाँच में विद्यार्थी को यूजर आईडी और पासवर्ड आवण्टित किया जाता है। यह पूर्व व्यवस्थित कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर में दर्ज भी होता है।
- जाँच के समय विद्यार्थी निर्धारित जाँच केन्द्र पर पहुँचकर जाँच देता है। इसमें विद्यार्थी यूजर आईडी और पासवर्ड की सहायता व निर्देशित मानक के अनुरूप निर्धारित समय हेतु परीक्षा प्रारम्भ करता है।
- जाँच प्रारम्भ होते ही समय की गणना प्रारम्भ हो जाती है। इसमें अगले प्रश्न तथा सेव करने हेतु 'सेव एण्ड नेक्स्ट बंटन' का प्रयोग करना होता है।
- इसमें भिन्न रंगों के बटनों का भी उपयोग होता है, जो यह बताते हैं कि आपने कितना प्रश्न किया, कितना बाकी है आदि।
- जाँच समाप्त होते ही सबमिट बटन का प्रयोग करना होता है, जिससे आपकी जाँच प्रति कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर में सेव हो जाती है।
- सबमिट बटन के प्रयोग के बाद कम्प्यूटर की स्क्रीन पर जाँच का विवरण आ जाता है, जिसमें यह विवरण होता है कि आपने कितने प्रश्न किए, कितने छोड़े आदि।
कम्प्यूटर आधारित जाँच का मूल्यांकन
- कम्प्यूटर आधारित जाँच का मूल्यांकन कम्प्यूटर में सॉफ्टवेयर के माध्यम से होता है।
- जाँच का मूल्यांकन कम समय में हो जाता है। छात्र भी सन्तुष्ट होता है, उसका विवरण उसे खण्डवार कम समय में मिल जाता है।
- छात्रों की संख्या की अधिकता का इस पर दबाव नहीं पड़ता है।
- मूल्यांकन में त्रुटियों की सम्भावना कम होती है। पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है। एकसाथ अधिक विद्यार्थियों की जाँच सम्भव है।
- विद्यार्थी द्वारा माँगी गई जाँच रिपोर्ट की पूर्ति एवं पुनः मूल्यांकन में आसान होती है।
मूल्यांकन प्रणाली में नवाचार
Innovation in Evaluation System
मूल्यांकन शिक्षण एवं सीखने दोनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें नवाचार का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। यह वर्तमान की जरूरतों व वर्तमान पद्धतियों में नई तकनीकों का समावेश कर मूल्यांकन की प्रक्रिया को सरल व पारदशीं तथा त्रुटिहीन तथा गुणवत्ता पूर्ण बनाता है। अतः कुछ महत्त्वपूर्ण नवाचार विधि इस प्रकार हैं
- प्रश्नावली को जटिल व प्रासंगिक मुद्दे आधारित बनाकर मूल्यांकन करना। इसमें उन मुद्दों को शामिल करना, जिससे शिक्षार्थी प्रभावित होते हैं। इससे शिक्षार्थी की बौद्धिकता तथा उद्देश्यों दोनों का मूल्यांकन सम्भव है।
- शिक्षार्थी या बच्चों को साक्षात्कार के माध्यम से मूल्यपरक मूल्यांकन कर, इस समूह में विद्यार्थियों को शामिल कर व प्रश्नों को पूछकर भी मूल्यांकन किया जा सकता है, जिससे बौद्धिकता के आत्मविश्वास को बढ़ावा मिलेगा और शिक्षण मूल्यांकन भी सकारात्मक होगा।
- विद्यार्थियों से किसी पत्र के बारे में जानकर और उनका उस पर पक्ष जानकर भी बौद्धिकता को मापा जा सकता है। ऐसे ही किसी अन्य घटना को उनके प्रोजेक्ट कार्य में समाहित कर भी शिक्षण प्रक्रिया में मूल्यांकन को प्रभावी बनाया जा सकता है।
- शिक्षण कार्य को दृश्यपरक तन्त्रों की सहायता से एक प्रकार से रुचिकर बनाकर, नवीन तकनीकों को सहायक सामग्री बनाकर, शिक्षार्थी की रुचि को पैदाकर शिक्षण में योगदान को बढ़ाकर, तुलनात्मक परियोजनाओं, कार्यकुशलताओं एवं व्यक्तिगत प्रभाव डालकर भी शिक्षण प्रक्रिया में मूल्यांकन को प्रभावी बनाया जा सकता है।
- शिक्षण में शिक्षार्थी के लक्ष्य उन्मुखी प्रयोजनों के माध्यम से भी मूल्यांकन किया जा सकता है।
- इस प्रकार वर्तमान में नवीन तकनीकों; जैसे-ऑडियो-वीडियो द्वारा संचालित तकनीकी, कम्प्यूटर आधारित तकनीकों, व्यक्तिगत प्रभावों आदि का उपयोग मूल्यांकन को प्रभावी बनाने में किया जा सकता है।



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