मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित 'महाभोज' पहले उपन्यास के रूप में छपा तत्पश्चात् नाटक के रूप में आया। यह हिन्दी साहित्य की एकमात्र कृति है, जो उपन्यास व नाटक दोनों ही रूपों में मंच पर सफलतापूर्वक मंचित हुई। महाभोज का बीजसूत्र 1977 में घटित बिहार के पटना जिले का बेलछी नरसंहार है। इस नाटक के मूल में भारत की आजादी के सपनों से मोहभंग, कानून और न्याय व्यवस्था के पतन, सत्ता और व्यवस्था का अपराधीकरण, अमानवीयता तथा जनता का केवल वोटर के रूप में परिणत होना है।
महाभोज नाटक के प्रमुख पात्र
बिसेसर उर्फ़ बिसू :- मुख्य पात्र, जो सरोहा गाँव की हरिजन बस्ती की आगजनी की घटना के सबूतों को सक्षम अधिकारियों को सौंपकर बस्ती के लोगों को न्याय दिलाना चाहता है, किन्तु राजनीतिक षड्यन्त्र में मारा जाता है।
हीरा :- बिसू के पिता
बिंदेश्वरी प्रसाद :- उर्फ़ बिंदा
रुक्मा :- बिंदा की पत्नी
दा साहब :- मुख्यमंत्री, गृह मंत्रालय का प्रभार भी
सदाशिव अत्रे :- सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष
जोरावर :- स्थानीय बाहुबली और दा साहब का सहयोगी
सुकुल बाबू :- पूर्व मुख्यमंत्री, सत्ता प्रतिपक्ष और सरोह गाँव की विधानसभा सीट के प्रत्याशी
लखनसिंह :- दा साहब का विश्वासपात्र व सरोहा गाँव की सीट से सत्ताधारी पार्टी का प्रत्याशी
लोचनभैया :- सत्ताधारी पार्टी के असंतुष्ट विधायकों के मुखिया
सक्सेना :- पुलिस अधीक्षक
दत्ता बाबू :- मशाल समाचार पत्र के संपादक
महाभोज नाटक की दृश्य योजना
महाभोज नाटक के कुल 11 दृश्य है, जो निम्ननानुसार है:-
- पहला दृश्य :- गांव का मैदान
- दुसरा दृश्य :- गांव का मैदान
- तीसरा दृश्य :- मुख्यमंत्री दा साहब की कोठी
- चौथा दृश्य :- गांव का मैदान
- पांचवाँ दृश्य :- दा साहब का कमरा
- छठवां दृश्य :- मशाल का दफ्तर
- सातवां दृश्य :- सरोहा गाँव का पंचायत
- आठवां दृश्य :- सरोहा गाँव का थाना
- नौवां दृश्य :- सरोहा गाँव का रेस्ट हाउस
- दसवां दृश्य :- दा साहब की बैठक
- ग्यारहवां दृश्य :- गांव में जोरावर सिंह का चौपाल
महाभोज नाटक का विषय :-
- राजनीतिक स्वार्थ में नैतिक पतन का चित्रण किया गया है।
- सत्य और ईमानदार लोगों व लोकतंत्रीय व्यवस्था के दुरुपयोग का चित्रण किया गया है।
- चाटुकारिता, पद-लोलुपता और भ्रष्टाचार का चित्रण।
- गरीब व दलितों के आवाज को दबाने का प्रयास।
- राजनीति में गांधी और धर्म के सिद्धांतों का दुरुपयोग किया गया।
- प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारों का स्वार्थवश बिकाऊ होना।
- गुनाहगारों को बचाने और बेगुनाहों को फंसाने का षड्यंत्र खेला गया है।
महाभोज नाटक की समीक्षा
महाभोज नाटक अँधेरे समय में अँधेरे के बारे में एक गीत था। यह नाटक भारतीय रंगमंच में एक ऐतिहासिक महत्त्व की परिघटना है, लेकिन दुःखद सच यह है कि नाटक में वर्णित स्थितियाँ-परिस्थितियाँ सुधरने के स्थान पर कहने, सुनने, देखने, समझने की सभी सीमाओं को पार कर शर्मनाक रूप से क्रूर से क्रूरतम रूप धारण कर आज आवश्यकता से अधिक खतरनाक और अराजक हो गई हैं। अत: आज 'महाभोज' नाटक का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है।
'महाभोज' का ताना-बाना सरोहा नामक गाँव के इर्द-गिर्द बुना गया। यह गाँव उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित है, जहाँ विधानसभा की एक सीट के लिए चुनाव होना है। कहानी बिसेसर उर्फ बिस्सू की मौत की घटना से प्रारम्भ होती है। सरोहा गाँव की हरिजन बस्ती में आगजनी की घटना में दर्जनों व्यक्तियों की निर्मम हत्या हो चुकी थी। बिस्सू के पास इस हत्याकाण्ड के प्रमाण थे, जिन्हें वह दिल्ली जाकर 'सक्षम प्राधिकारियों को सौंपना और बस्ती के लोगों को न्याय दिलाना चाहता था, किन्तु राजनीतिक षड्यन्त्र द्वारा बिस्सू को ही जेल में डालकर इस प्रतिरोध को कुचल देने का प्रयास किया जाता है। बिसू की मौत के पश्चात् उसका साथी बिन्देश्वरी उर्फ बिन्दा इस प्रतिरोध को जीवित रखता है। बिन्दा को भी राजनीति और अपराध के चक्र में फँसाकर सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है।
अन्तत: नौकरशाही वर्ग का ही एक चरित्र पुलिस अधीक्षक सक्सेना वंचितों के प्रतिरोध को जारी रखता है। पिछड़ी और वंचित जाति के लोगों के साथ अत्याचार और प्रतिनिधि चरित्रों द्वारा उसका प्रतिरोध कथा को गति प्रदान करता है। इसमें नैतिकता 'अन्तर्द्वन्द्व, अन्तर्विरोध से जूझते सत्ताधारी वर्ग, सत्ता प्रतिपक्ष, मीडिया और नौकरशाही वर्ग के अवसरवादी चरित्र पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी है।
समग्रतः हिन्दी नाटक के क्षेत्र में स्वातन्त्र्योत्तर काल भारतेन्दु-काल के बाद सर्वाधिक सक्रियता का काल रहा है। इस दौर में कथ्य और शिल्प के स्तर पर तीव्र परिवर्तनों ने हिन्दी नाटक को एक नई दिशा दी। संचार माध्यमों के दबाव के पश्चात् ये परिवर्तन हिन्दी नाटक के विकास के प्रति आश्वस्त करते हैं।
महाभोज नाटक के महत्वपूर्ण कथन
- ”मरे और सोयें आदमी में अन्तर ही कितना होता है भला? बस, एक सांस की डोर, वह टूटी और आदमी गया।”, कथन है।- सूत्रधार (महेश) का
- “आवेश राजनीति का दुश्मन है। राजनीति में विवेक और धीरज चाहिए।”, कथन है।- दा साहब का
- “अखबारों को तो स्वतंत्र होना ही चाहिए। वे ही हमारे कामों के असली दर्पण होते हैं।”, कथन है।- दा साहब का
- “जिस दिन गांव की हालत सुधरेगी उस दिन बापू का सपना पूरा होगा।”, कथन है।- दा साहब का अपनी पत्नी से
- ”जातिवाद का जैसा घिनौना रूप आजादी के बाद देखने को मिला है।”, कथन है।- नरोत्तम का
- ”आर्थिक सहायता से गरीबी पर जरूर मरहम लगाया जा सकता है, पर प्रियजनों के बिछूने के दुस पर नही आदमी का दुस जिस दिन पैसे से दूर होने लगेगा, इंसानियत उठ जायेगी दुनिया से।”, कथन है।- दा साहब का
- “चार पैसे हाथ मे हो जाने से ही जात ऊँची हो जायेगी उनको ? हमारे साथ हुक्का पानी पीने लगेंगे ?”, कथन है।- जोरावर का दा साहब से
महाभोज नाटक के संबंध में विद्वानों के मत
मन्नू भंडारी के अनुसार - "उपन्यास के रूप में महाभोज न चरित्र-प्रधान है न समस्या प्रधान.... महाभोज आज के राजनितिक माहौल को उजागर करने वाला स्थिति प्रधान उपन्यास है।"
मन्नू भंडारी के अनुसार - ''महाभोज की तकलीफ एवं संधर्ष सुपरिचित स्थिति से दिल दहला देने वाला, लेकिन मात्र एक कलात्मक साक्षात्कार भर है, जबकि देश की संघर्षरत जनता के लिए साहस और प्रति रोध का हथियार भी"
डॉ० राम चन्द्र तिवारी के अनुसार - "इसमें महाभोज राजनितिक अवमूल्यन का नग्र स्वरुप दिखाया गया है।"
महाभोज नाटक के महत्वपूर्ण तथ्य
- इस नाटक का प्रकाशन सर्वप्रथम उपन्यास के रूप में 1979 ई. में हुआ था। यह राजनिति पर आधारित एक यथार्थ परक नाटक है।
- इस उपन्यास को नाटक के रूप में सन् 1982 ई. में प्रकाशित किया गया।
- इसका नाटक का पहला मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली के रंग मंडल द्वारा मार्च 1982 ई. में हुआ था ।
- इस नाटक का कथानक 1977 ई. में घटित बिहार के पटना जिले का बेलछी नरसंहार पर आधारित है।
- हिंदी साहित्य जगत में महाभोज पहली ऐसी कृति है। जिसे उपन्यास और नाटक दोनों विधाओं में प्रकाशित किया गया है।
- इस नाटक में सरोहा गाँव का जिक्र है। यह गाँव उत्तर प्रदेश पश्चिम भाग में स्थित है।
Mahabhoj Natak MCQ
प्रश्न 01. 'महाभोज' नाटक में बिसू (बिसेसर) की लाश को कौन नोच-नोंचकर खा जाता है ?
- गिद्ध
- चील
- शेर
- चीता
उत्तर : 1. गिद्ध
प्रश्न 02. 'महाभोज' नाटक में बिसू (बिसेसर) की लाश कहाँ पर मिली ?
- घर के किनारे नाली में
- घर पर पंखे में लटकी हुयी
- सड़क के किनारे पुलिया पर
- घर के पास रेलवे स्टेशन पर
उत्तर : 3. सड़क के किनारे पुलिया पर
प्रश्न 03. 'महाभोज' किस प्रकार का उपन्यास है?
- राजनीतिक
- सामाजिक
- आँचलिक
- मनोविश्लेषणवादी
उत्तर : 2. सामाजिक
प्रश्न 04. 'महाभोज' उपन्यास का प्रकाशन वर्ष है-
- 1965
- 1975
- 1979
- 1983
उत्तर : 3. 1979
प्रश्न 05. महाभोज' उपन्यास का नाट्य रूपांतर कब प्रकाशित हुआ?
- 1980 में
- 1982 में
- 1983 में
- 1981 में
उत्तर : 3. 1983 में
प्रश्न 06. बाल मनोवैज्ञानिक से संबंधित उपन्यास हैं
- तमस
- रागदरबारी
- धरती धन ना अपना
- आपकाबंटी
उत्तर : 4. आपकाबंटी
प्रश्न 07. निम्नलिखित में से मन्नू भंडारी को कौनसा पुरस्कार नहीं मिला?
- दिल्ली शिखर सम्मान
- साहित्य अकादमी पुरस्कार
- राजस्थान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
- हिंदी अकादमी पुरस्कार
उत्तर : 2. साहित्य अकादमी पुरस्कार
प्रश्न 08. मन्नू भंडारी ने अपने पति राजेंद्र यादव के साथ मिलकर कौनसा उपन्यास लिखा?
- स्वामी
- महाभोज
- आपका बंटी
- एक इंच मुस्कान
उत्तर : 4. एक इंच मुस्कान
प्रश्न 09. महानोज' उपन्यास की कथावस्तु किससे संबंधित है?
- सरोहा ग्राम से।
- टिटहरी ग्राम से।
- पिपरिया ग्राम से।
- बेलारी ग्राम से।
उत्तर : 1.. सरोहा ग्राम से।
प्रश्न 10. महाभोज उपन्यास के पात्र हैं
- सुकुल बाबू
- त्रिलोचन रावत
- दा साहब
- उपर्युक्त सभी
उत्तर : 4. उपर्युक्त सभी
प्रश्न 11. 'महाभोज' नाटक में किसका कहना है कि सुकुल बाबू की मीटिंग में एक लाख आदमी जुटेंगे?
1. जमना बहन
2. लखन
3. पाण्डेय जी
4. दा साहब
उत्तर : 2. लखन