नागार्जुन की 'कालिदास' कविता का सारांश
प्रस्तुत कविता में नागार्जुन जी ने 'कालिदास' के अज्ञात प्रेम की अभिव्यक्ति की है। नागार्जुन जी का मानना है कि कालिदास ने अपनी रचनाओं मेघदूतम्, रघुवंशम्, अभिज्ञानशाकुन्तलम् आदि में प्रेम की जो मार्मिक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है, कहीं उनके अधूरे प्रेम की अभिव्यक्ति तो नहीं है, क्योंकि कालिदास जी ने अपनी इन रचनाओं में प्रेम-विरह-प्रसंग में मार्मिकता का जो परिचय दिया है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि ऐसा वर्णन वही व्यक्ति कर सकता है, जिसने इसे स्वयं जिया हो। नागार्जुन जी कहते हैं कि कालिदास ने जैसा विरह का वर्णन अपनी रचना 'रघुवंश' में किया है, वह बहुत मार्मिक है। इंदुमती के मरने पर उसके शोक में महाराज अज की विरह-वेदना के जो भाव कालिदास ने अभिव्यंजित किए हैं, वे बहुत मर्मस्पर्शी हैं, उसी तरह 'मेघदूतम्' में विरह से व्याकुल यक्ष द्वारा मेघों को अपना दूत बनाकर अपना जो सन्देश अपनी प्रेमिका तक पहुँचाया, वह भी विरह व्याकुल की अतिशय वेदना का प्रतीक है।
नागार्जुन जी, कालिदास से पूछते हैं कि हे कालिदास, जरा सच बतलाना ये विरह की ऐसी मर्मस्पर्शी वेदित अभिव्यक्तियाँ कहीं तुम्हारे अज्ञात उस प्रेम की तो नहीं, जो अधूरा रह गया हो? अतः प्रस्तुत कविता 'कालिदास' में नागार्जुन ने कालिदास के तीनों महान् काव्य ग्रन्थों 'कुमारसम्भव', 'रघुवंश' और 'मेघदूतम' में व्यंजित काव्य प्रयोजन की सहजाभिव्यक्ति दी है। नागार्जुन बाबा की कविता में प्रगतिवादी चेतना का सहज सौन्दर्य प्रतिफलित और परिलक्षित होता है।
कालिदास कविता में आये हुये प्रसंग
पहला प्रसंग - 'रघुवंशम्' महाकाव्य के प्रसंग पर आधारित है।
“कालिदास यह सच ....................अज रोया या तुम रोए थे।”
दूसरा प्रसंग - 'कुमारसंभव' महाकाव्य पर आधारित है।
“घृतमिश्रित सुखी समिधा-सम ..........……रति रोई या तुम रोए थे।”
तीसा प्रसंग - 'मेघदूत' महाकाव्य पर आधारित है।
“उन पुष्करावर्त मेघों का ..............….रोया यक्ष कि तू रोए थे?”
'कालिदास' कविता के कुछ पदों की व्याख्या
इन्दुमती के मृत्यु-शोक से
अज रोया या तुम रोए थे?
कालिदास, सच-सच बतलाना !
शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला में
घृतमिश्रित सूखी समिधा सम
तुमने ही तो दृग धोए थे
कालिदास, सच सच बतलाना।
रति रोई या तुम रोए थे?
वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घनघटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
चित्रकूट के सुभग शिखर पर
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा सुन्देशा,
उन पुष्करावर्त मेघों को
साथी बनकर उड़ने वाले
कालिदास, सच-सच बतलाना।
पर पीड़ा से पूर-पूर हो
थक थक कर औ चूर-चूर -चूर हो।
अमल-धवलगिरि के शिखरों पर
प्रियवर तुम कब तक सोए थे?
कालिदास, सच-सच बतलाना।
रोया यक्ष कि तुम रोए थे?
व्याख्या - प्रस्तुत कविता कालिदास नागार्जुन जी की कालजयी रचना है। इस रचना में नागार्जुन ने कालिदास की प्रसिद्ध 'रघुवंश' व 'मेघदूत' के प्रमुख दो पात्रों को आधार बनाकर उनके भाव को प्रस्तुत किया है।
नागार्जुन कहते हैं कि हे कालिदास ! 'तुम्हारे महाकाव्य 'रघुवंश' के पात्र 'अज' ने जब विदर्भ राजकुमारी इन्दुमती से प्रेम किया और नारद की वीणा से गिरे पुष्प के आघात से इन्दुमती की मृत्यु हो गई, तो उसके शोक में अज की विरह वेदना क्या तुम्हारी वेदना तो नहीं बन गई थी अर्थात् अज की विरह वेदना ने कहीं तुम्हारी कोई अधूरी प्रेम कहानी को तो नहीं जाग्रत कर दिया था।
कहीं अज का वो इन्दुमती के प्रति निश्छल प्रेम तुम्हारे प्रेम की स्मृति तो नहीं बन गया था। नागार्जुन जी कहते हैं कि जब कामदेव ने शिवजी की महासमाधि को भंग करने का प्रयास किया था, तब शिवजी ने क्रोध में आकर अपनी तीसरी आँख से निकली उस प्रचण्ड अग्नि में कामदेव को उसी प्रकार भस्म कर डाला था, जिस प्रकार घी से तर-बतर यज्ञ की लकड़ी यज्ञाग्नि में भस्म हो जाती है। कामेदव की मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी रति ने कामदेव के शोक में जो आँसू बहाए थे, कहीं हे कालिदास ! वे आँसू तुम्हारे तो नहीं थे। कहने का तात्पर्य है कि रति के उन विरहित आँसुओं ने कहीं तुम्हारे हृदय में दबी प्रेम की चिंगारियों को हवा तो नहीं दे दी थी। रति के आँसू कहीं तुम्हारे आँसू तो नहीं बन गए थे।
कालिदास के अज्ञात प्रेम की ओर संकेत करते हुए नागार्जुन जी आगे कहते हैं कि हे कालिदास ! तुम्हारे काव्य 'मेघदूतम्' के प्रमुख पात्र, अलकापुरी से निष्काषित यक्ष को जब अपनी प्रेमिका की याद सताती है, तो वह अपनी प्रेमिका को सन्देश भेजने का निश्चय करता है, लेकिन चित्रकूट के शिखर पर एकाकी जीवन व्यतीत करते उस यक्ष को कोई संदेशवाहक नहीं मिलता। वह वर्षा ऋतु में आषाढ़ के - प्रथम दिन पर आकाश में उमड़ते-घुमड़ते पुष्करावर्त मेघों को अपना दूत बनाकर अपनी प्रेमिका के पास भेजता है। अतः हे कालिदास ! सच बतलाना ! उन पुष्करावर्त मेघों का साथी बनकर उनके साथ यक्ष की पीड़ा को अपनी पीड़ा बनाकर तथा उसकी प्रेमिका तक पहुँचने में उन श्वेत पर्वतों की चोटियों पर थककर, हे प्रिय कालिदास तुम कब तक सोए थे।
नागार्जुन जी कहते हैं कि हे कालिदास! जरा सच बताओ कि अपनी प्रेमिका के विरह में रोने वाले यक्ष थे कि तुम थे। अर्थात् जिस प्रेम की विरह-वेदना में यक्ष जला था क्या तुमने भी उस विरह-वेदना को सहा था।
विशेष -
- यहाँ कवि ने कालिदास के अज्ञात प्रेम की अभिव्यंजना की है।
- लाक्षणिकता का प्रयोग।
- उपमा अलंकार का प्रयोग।
- संस्कृत निष्ठ खड़ीबोली भाषा का प्रयोग।
Kalidasa Kavita MCQ
- युगधारा
- सतरंगे पंखों वाली
- तुमने कहा था
- पुरानी जूतियों का कोरस
- 1959
- 1956
- 1953
- 1952
- अज-इंदुमती प्रसंग ।
- कामदेव का भस्म करने का प्रसंग।
- यक्ष की विरह वेदना का प्रसंग।
- शंकुतला-दुष्यंत का प्रसंग।
- 1938
- 1952
- 1954
- 1959
- मेघदूत, कुमारसंभव, रघुवंशम
- कुमारसंभव, रघुवंशम, मेघदूत
- मेघदूत, रघुवंशम, कुमारसंभव
- रघुवंशम, कुमारसंभव, मेघदूत*
- कामदेव और रति के विषय में
- यक्ष और उसका विरह के विषय में
- शंकुतला-दुष्यंत के विषय में
- अज और इंदमती के विषय में
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