शासन की बन्दूक कविता | नागार्जुन की प्रगतिवादी रचना का विश्लेषण

 'शासन की बन्दूक' कविता का सारांश

नागार्जुन अपनी कविता 'शासन की बन्दूक' में भ्रष्ट व्यवस्था को चुनौती देते दिखाई पड़ते हैं। उनका मानना है कि व्यवस्था बन्दूक के बल पर जनता पर शासन नहीं कर सकती। जनता के प्रतिरोध के आगे शासन की बन्दूक गौण होती है। नागार्जुन की कविताओं में जन साधारण का दुःख और वेदना दृष्टिगत होती है। उनके काव्य में लोक जीवन और प्रकृति के बीच अटूट सम्बन्ध मिलता है। इस प्रकृति में रूप, रस के साथ विरोध भी दृष्टिगोचर होता है। अमानवीय शासन-व्यवस्था के प्रति नागार्जुन के मन में विद्रोह और आक्रोश की भावना है, लेकिन साथ-ही-साथ उन्हें जनता की सामूहिक शक्ति पर भी दृढ़ विश्वास है। उसी विश्वास के परिणामस्वरूप उन्होंने 'शासन की बन्दूक' कविता की रचना की है।

शासन की बन्दूक कविता

'शासन की बन्दूक' कविता के कुछ पदों की व्याख्या 

खड़ी हो गई चांप कर कंकालों की हुक 
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बन्दूक 

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहे हैं थूक 
जिसमें कानी हो गई शासन की बन्दूक 

बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक 
धन्य-धन्य वह, धन्य वह शासन की बन्दूक 

सत्य स्वयं घालय हुआ, गई अहिंसा चूक 
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बन्दूक 

जली दूँठ पर बैठकर नई कोकिला कूक 
बाल न बाँका कर सकी शासन की बन्दूक

व्याख्या - नागार्जुन जी विद्रोही प्रवृत्ति के थे। जहाँ भी जन विरोधी चरित्र या अत्याचार देखा, उनका विरोध मुखर हो उठता था। पश्चिम बंगाल की राजनीति में सत्तर के दशक में हो रही सरकारी ताण्डव लीला से परिचित कराते हुए उन्होंने 1966 ई. में प्रस्तुत कविता शासन की बन्दूक लिखी। उन्होंने इस कविता में तत्कालीन राजनीति का मुखौटा उतारते हुए अपनी बेबाक भाषा में व्यंग्य किया कि उन कंकालनुमा व्यक्तियों की आवाज़ शासन की बन्दूक बनकर आकाश में विस्तृत होकर खड़ी हो गई है अर्थात् उन्होंने (राजनेताओं ने) अपनी आवाज़ को जनता पर जबरदस्ती थोप दिया है।

ऐसे तानाशाह हिटलरों के घमण्ड पर पूरी जनता थू-थू कर रही है, जिनके काल में शासन की बन्दूक कानी हो गई है। तात्पर्य यह है कि ऐसे तानाशाह राजनेताओं के नेतृत्व में शासन अव्यवस्थित हो गया है। इन नेताओं ने जनता की आवाज को सुनना बन्द कर दिया है। ऐसी स्थिति में विनोबा भावे जैसी महान् हस्ती भी उनके सामने मौन हो गई है। नागार्जुन जी ऐसी अवस्था पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि ऐसा शासन धन्य है, जहाँ सत्य घायल हो चुका है और चारों ओर हिंसा का वातावरण बन चुका है। शासन जनता पर जब चाहे और जहाँ चाहें अपनी बन्दूक तान रहा है। फिर भी ऐसे भ्रष्ट नेता जनता का कुछ नहीं कर सकते। इन्हें या तो अव्यवस्था को सुधारना पड़ेगा या शासन को छोड़ना होगा। प्रस्तुत कविता आज भी प्रासंगिक है।

विशेष - 

  • हिटलर के तानाशाही तन्त्र पर व्यंग्य किया गया है।
  • ठेठ खड़ी बोली, देशज शब्दों का प्रयोग।
  • अन्त्यानुप्रास अलंकार।

शासन की बन्दूक कविता के महत्वपूर्ण तथ्य

  1. रचनाकाल - 1966 ई.
  2. राजनीतिक कविता के लिए हिंदी में दोहों का प्रयोग किया गया।
  3. दमन की निरर्थकता और जनता की विजय में विश्वास।
  4. राजनीतिक व्यवस्था को चुनौती दी गई।
  5. हिटलरशाही या निरकुंशतावादी शासन व्‍यवस्‍था पर करारा व्यंग्य 
  6. शासन की बंदूक का विराट स्वरूप। 
  7. मुहावरेदार ठेठ खड़ी बोली व देशज शब्दों का प्रयोग किया गया। 
  8. “क्या बतलाऊँ जनकवि हूँ मैं / साफ कहूँगा क्यों हकलाऊँ।” – नागार्जुन का कथन 
  9. “दमन के लिए शासन बहुत सी बन्दूकें इस्तेमाल करता है। नागार्जुन ने उन सबको मिलाकर एक बड़ी बन्दूक बना ली है, जो नभ में विपुल-विराट सी छा गई है। नीचे क्षुब्ध जनता का समूह है, जिसे उन्होंने संक्षेप में कंकालों की हूक कहकर मूर्तिमान कर दिया है। चित्रण सौंदर्य का यह कौशल अन्य कवियों के राजनीतिक दोहों में नहीं है।"- रामविलास शर्मा का कथन 

Shasan Ki Bandook Kavita MCQ

प्रश्‍न 01. 'युगधारा' काव्य-संग्रह के रचनाकार कौन हैं ?
  1. माखनलाल चतुर्वेदी
  2. नागार्जुन
  3. केदारनाथ अग्रवाल
  4. मुक्तिबोध
उत्तर - 1. नागार्जुन


प्रश्‍न 02. 'खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक, नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक ।' उपर्युक्त पंक्ति के रचनाकार कार कौन हैं ?
  1. जयशंकर प्रसाद
  2. त्रिलोचन
  3. केदारनाथ अग्रवाल
  4. नागार्जुन
उत्तर - 4. नागार्जुन


प्रश्‍न 03. 'शासन की बंदूक' कविता में किसका चित्रण हुआ है ?
  1. सत्ता
  2. शोषक वर्ग
  3. तानाशाह सरकार
  4. उपर्युक्त में से सभी
उत्तर - 4. उपर्युक्त में से सभी


प्रश्‍न 04. नागार्जुन मैथिली भाषा में किस नाम से कविता लिखते थे ?
  1. नागार्जुन
  2. वैद्यनाथ मिश्र
  3. यात्री
  4. इनमें से कोई नहीं
उत्तर - 4. यात्री


प्रश्‍न 05. 'शासन की बंदूक' कविता में किस पर प्रहार किया गया हैं ?
  1. निरकुश शासन
  2. जनता
  3. शोषित समाज
  4. किसान
उत्तर - 1. निरकुश शासन

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ