हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग में जिन कवियों ने काव्य को गीतात्मकता, भावुकता, जन-संवेदना और मानवीय जीवन-दर्शन से समृद्ध किया, उनमें डॉ. हरिवंश राय बच्चन का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। वे केवल मधुशाला के कवि नहीं थे, बल्कि एक ऐसे रचनाकार थे जिन्होंने अपनी आत्मकथाओं, अनुवादों, गीति-काव्य और चिंतनपरक रचनाओं से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। उनकी कविताओं में जीवन की उदासी भी है और उल्लास भी, पीड़ा भी है और उसका समाधान भी, व्यक्तिगत अनुभव भी हैं और समाज का सामूहिक जीवन भी।
संक्षिप्त जीवन परिचय | Brief Biography
| विवरण | जानकारी |
|---|---|
| पूरा नाम | हरिवंश राय श्रीवास्तव |
| उपाधि | डॉ. (डाक्टरेट – कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय) |
| जन्म | 27 नवम्बर, 1907 ई. |
| जन्मस्थान | प्रयाग, इलाहाबाद |
| मृत्यु | 18 जनवरी, 2003 ई. |
| मृत्यु स्थान | मुंबई |
| पेशा | लेखक, कवि, प्राध्यापक |
| माता | सरस्वती देवी |
| पिता | प्रताप नारायण श्रीवास्तव |
| पत्नी | श्यामा बच्चन, तेजी बच्चन |
| पुत्र | अमिताभ बच्चन, अजिताभ बच्चन |
| कर्म-क्षेत्र | अध्यापक, लेखक और कवि |
| प्रमुख रचनाएँ | क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक, प्रवास की डायरी, मधुशाला, मधुकलश, मधुबाला, निशा-निमन्त्रण, एकान्त संगीत |
| भाषा | हिन्दी भाषा |
| साहित्य काल | छायावादोत्तर काल |
| विधाएं | आत्मकथा, काव्य, कविता |
| पुरस्कार | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1968), पद्म भूषण (1976), सरस्वती सम्मान |
जन्म एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि | Birth and family background
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर 1907 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) जिले के बाबूपट्टी गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव एक संपन्न कृषक और समाज में सम्मानित व्यक्ति थे, जबकि माता सरस्वती देवी धार्मिक और संस्कारी स्वभाव की महिला थीं। उनका असली उपनाम ‘श्रीवास्तव’ था, लेकिन बचपन में परिवारजन उन्हें प्यार से “बच्चन” कहकर बुलाते थे, जिसका अर्थ होता है ‘छोटा बच्चा’। आगे चलकर यही नाम उनकी पहचान बन गया और वे साहित्य जगत में हरिवंश राय बच्चन के नाम से अमर हो गए।
हरिवंश राय बच्चन शिक्षा जीवन | Harivansh Rai Bachchan Education
बच्चन जी का बचपन गाँव के साधारण और सादगी भरे वातावरण में बीता। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही पूरी की, लेकिन माध्यमिक शिक्षा के लिए उन्हें इलाहाबाद जाना पड़ा। पढ़ाई में गहरी रुचि रखने वाले बच्चन जी ने लगातार मेहनत की और 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. की डिग्री हासिल की। उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद वे अध्यापन कार्य से जुड़े और यहीं से उनके बौद्धिक एवं साहित्यिक जीवन की असली शुरुआत हुई।उच्च शिक्षा और विदेश यात्रा | Higher Education and Travel Abroad
1940 के दशक में बच्चन जी ने अपनी पढ़ाई को और आगे बढ़ाने के लिए इंग्लैंड का रुख किया और वहाँ के प्रसिद्ध कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। यहाँ उन्होंने विश्व-प्रसिद्ध अंग्रेज़ी कवि W.B. Yeats पर गहन शोध कार्य किया। उनकी मेहनत और लगन का परिणाम यह हुआ कि वर्ष 1955 में उन्हें Ph.D. की उपाधि प्रदान की गई। यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन के लिए महत्वपूर्ण थी, बल्कि हिन्दी साहित्य और भारतीय समाज के लिए भी गर्व का विषय बनी, क्योंकि विदेश से इस तरह की उच्च शिक्षा प्राप्त करना उस दौर में बहुत बड़ी बात मानी जाती थी।
हरिवंश राय बच्चन पारिवारिक जीवन | Harivansh Rai Bachchan Family Life
बच्चन जी का व्यक्तिगत जीवन कई उतार-चढ़ाव से गुज़रा। उनकी पहली पत्नी श्यामा, जिनसे उनका विवाह 1926 में हुआ था, क्षय रोग से पीड़ित हो गईं और विवाह के कुछ ही वर्षों बाद उनका निधन हो गया। यह घटना बच्चन जी के लिए गहरा सदमा थी, जिसने उनके व्यक्तित्व और काव्य दोनों पर गहरा प्रभाव छोड़ा। उनकी कविताओं में उस दौर में वियोग, पीड़ा और अकेलेपन की गूँज स्पष्ट रूप से सुनाई देती है।
बाद में उन्होंने तेज़ी बच्चन से विवाह किया। तेज़ी जी आधुनिक विचारधारा वाली, प्रगतिशील और सामाजिक रूप से सक्रिय महिला थीं, जिन्होंने बच्चन जी के जीवन को एक नई दिशा दी। इस दांपत्य जीवन से उनके दो पुत्र हुए—अमिताभ बच्चन, जो आगे चलकर हिन्दी फिल्म जगत के महानायक बने, और अजिताभ बच्चन।
हरिवंश राय बच्चन साहित्यिक जीवन | Harivansh Rai Bachchan literary life
हरिवंश राय बच्चन जी का साहित्यिक जीवन बेहद समृद्ध और बहुआयामी रहा। वे हिंदी कविता के उत्तर-छायावाद काल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। उनकी रचनाओं में व्यक्तिगत जीवन के अनुभव, सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाएँ बखूबी अभिव्यक्त होती हैं।
प्रमुख कविता एवं काव्य संग्रह | Major Poems and Poetry Collections
हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख कविता एवं काव्य संग्रह निम्नलिखित है -
- तेरा हार (1929)
- मधुशाला (1935)
- मधुबाला (1936)
- मधुकलश (1937)
- आत्म परिचय (1937)
- निशा निमंत्रण (1938)
- एकांत संगीत (1939)
- आकुल अंतर (1943)
- सतरंगिनी (1945)
- हलाहल (1946)
- बंगाल का काल (1946)
- खादी के फूल (1948)
- सूत की माला (1948)
- मिलन यामिनी (1950)
- प्रणय पत्रिका (1955)
- धार के इधर-उधर (1957)
- आरती और अंगारे (1958)
- बुद्ध और नाचघर (1958)
- त्रिभंगिमा (1961)
- चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962)
- दो चट्टानें (1965)
- बहुत दिन बीते (1967)
- कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968)
- उभरते प्रतिमानों के रूप (1969)
- जाल समेटा (1973)
- नई से नई – पुरानी से पुरानी (1985)
बच्चन की आत्मकथा | Bachchan's Autobiography
बच्चन की आत्मकथाएँ हिन्दी साहित्य की धरोहर हैं। ये चार खंडों में प्रकाशित हुईं –
- क्या भूलूँ क्या याद करूँ (1969)
- नीड़ का निर्माण फिर (1970)
- बसेरे से दूर (1977)
- दशद्वार से सोपान तक (1985)
- प्रवास की डायरी (1971) (डायरी साहित्य)
हरिवंश राय बच्चन अन्य विविध रचनाएँ | Harivansh Rai Bachchan Other Miscellaneous Works
हरिवंश राय बच्चन की अन्य विविध रचनाएं निम्न लिखत है -
- बच्चन के साथ क्षण भर (1934)
- खय्याम की मधुशाला (1938)
- सोपान (1953)
- मैकबेथ (1957)
- जनगीता (1958)
- ओथेलो (1959)
- उमर खय्याम की रुबाइयाँ (1959)
- कवियों में सौम्य संत: पंत (1960)
- आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि: सुमित्रानंदन पंत (1960)
- आधुनिक कवि (1961)
- नेहरू: राजनैतिक जीवनचरित (1961)
- नये पुराने झरोखे (1962)
- अभिनव सोपान (1964)
- चौंसठ रूसी कविताएँ (1964)
- नागर गीता (1966)
- बच्चन के लोकप्रिय गीत (1967)
- डब्लू बी यीट्स एंड अकल्टिज़म (1968)
- मरकत द्वीप का स्वर (1968)
- हैमलेट (1969)
- भाषा अपनी भाव पराये (1970)
- पंत के सौ पत्र (1970)
- किंग लियर (1972)
- टूटी छूटी कड़ियाँ (1973)
हरिवंश राय बच्चन के प्रमुख सम्मान और पुरस्कार | Harivansh Rai Bachchan Honors and Awards
- 1968 – दो चट्टानें कृति के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार (हिन्दी कविता)
- 1968 – सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
- 1968 – एफ्रो-एशियाई सम्मेलन का कमल पुरस्कार
- सरस्वती सम्मान – आत्मकथा के लिए (बिड़ला फाउंडेशन द्वारा)
- 1976 – भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण (साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान हेतु)
हरिवंश राय बच्चन की विशेषताएँ | Harivansh Rai Bachchan Facts
- हरिवंश राय बच्चन कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में डॉक्टरेट करने वाले दूसरे भारतीय थे।
- उन्होंने लोकधुनों पर आधारित अनेक गीतों की रचना की। उनकी कविता की सहजता और संवेदनशीलता उन्हें विशिष्ट बनाती है।
- उनकी काव्य-शैली समकालीन कवियों से भिन्न थी, इसलिए उन्हें नवीन युग का प्रारंभकर्ता माना जाता है।
- बच्चन व्यक्तिवादी गीतकाव्य तथा हालावादी धारा के प्रमुख कवि माने जाते हैं।
- जब उनके पुत्र अमिताभ बच्चन ने फिल्म जगत में कदम रखा, तो वे विशेष रूप से प्रसन्न नहीं थे। उनकी इच्छा थी कि अमिताभ किसी नौकरी में कार्यरत हों।
- हिंदी फिल्मों में भी उनकी रचनाओं का प्रयोग हुआ है, जैसे – सिलसिला फिल्म का गीत “रंग बरसे”, अग्निपथ फिल्म की प्रसिद्ध पंक्ति “अग्निपथ… अग्निपथ”, तथा अलाप फिल्म का गीत “कोई गाता मैं सो जाता”।
- 1970 के दशक में उन्होंने चार खंडों में आत्मकथा प्रकाशित की, जिसने साहित्य जगत में गहरा प्रभाव डाला। इसका संक्षिप्त अंग्रेज़ी अनुवाद 1998 में Afternoon of Times पत्रिका में प्रकाशित हुआ।
- उनकी कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता स्वाभाविकता है। वे बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए भी गहन प्रभाव उत्पन्न करने में सक्षम थे।
हरिवंश राय बच्चन की मृत्यु | Harivansh Rai Bachchan Death
2002 की सर्दियों से उनकी तबीयत धीरे-धीरे खराब होने लगी। जनवरी 2003 से उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगी। हालत लगातार बिगड़ती गई, और आखिरकार 18 जनवरी 2003 को सांस संबंधी बीमारी के चलते मुंबई में 95 वर्ष की आयु में हरिवंश राय जी का निधन हो गया।
हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख कविताएं | Poems of Harivansh Rai Bachchan
मधुशाला की प्रसिद्ध पंक्तियाँ
(1)
"मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला।
पहले भोग तुम्हीं कर लेना, बाद मुझे देना वाला,
किसी और का इसमें तृण भी, नहीं होगा अधिकार —
यह मेरी मधुशाला।"
(2)
"मुसलमान औ हिन्दू हैं दो, एक मगर उनका प्याला,
एक मगर उनका मदिरालय, एक मगर उनकी हाला।
दोनों रहते साथ न जब तक मंदिर–मस्जिद में जाते,
बैर बढ़ाते मंदिर–मस्जिद, मेल कराती मधुशाला।"
(3)
"मृत्यु क्या है? जीवन की भी, मधुशाला की एक हाला।
जीवन क्या है? चलने का ही, एक अनवरत मधुप्याला।
दुख क्या है? बस एक ठोकर है, सुख क्या? चलना मतवाला।
जीवन की मधुशाला ही है, मृत्यु की भी मधुशाला।"
(4)
"एक बरस में, एक बार ही, जलती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाजी, जलती दीपों की माला।
दुनिया वालों, किन्तु किसी दिन आ मधुशाला में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज मनाती मधुशाला।"
(5)
"पथिक बनो तुम, चलना होगा, गंतव्य मिलेगा हाला,
प्याला ही होगा साथी, और मधुशाला ही होगी माला।
तुम न रुकना, तुम न झुकना, चलते जाना मधुशाला,
जीवन है चलने का नाम, और जीवन है मधुशाला।"
अग्निपथ
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
नीड़ का निर्माण
नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह चले झोंके कि काँपे भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित घोंसलों पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़, ईंट, पत्थर के महल-घर;
बोल आशा के विहंगम, किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता गर्व से निज तान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर!
क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के कंठ में खग पंक्ति गाती;
एक चिड़िया चोंच में तिनका लिए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन उनचास को नीचा दिखाती!
नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर!
जो बीत गई
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाई कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाई फिर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अंदर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई
हरिवंश राय बच्चन प्रेरणादायी उद्धरण और उनका भावार्थ | Inspirational Quotes
1. “कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।”
👉 असफलता कितनी ही बार क्यों न मिले, लेकिन जो व्यक्ति निरंतर प्रयत्न करता रहता है, अंततः वही विजयी होता है। हार केवल तभी स्थायी होती है जब इंसान प्रयास करना छोड़ दे।
2. “नीड़ का निर्माण फिर-फिर।”
👉 जैसे पक्षी बार-बार टूटे हुए घोंसले को बनाते हैं, वैसे ही मनुष्य को भी बार-बार असफल होने पर हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। जीवन में नए निर्माण और नए प्रयास करते रहना ही सफलता का रहस्य है।
3. “मुसलमान औ हिन्दू हैं दो, एक मगर उनका प्याला,
एक मगर उनका मदिरालय, एक मगर उनकी हाला।”* (मधुशाला)
👉 बच्चन जी मानवता और एकता का संदेश देते हैं। धर्म अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन इंसान की जरूरतें, भावनाएँ और जीवन-दर्शन एक ही हैं। असली शक्ति एकता और भाईचारे में है, न कि भेदभाव में।
4. “मृत्यु भी अब तो मृत्यु नहीं, जीवन की एक कहानी है।”
👉 मृत्यु अंत नहीं है, बल्कि जीवन का नया अध्याय है। आत्मा अमर है, केवल शरीर बदलता है। इसीलिए मृत्यु को भय की तरह नहीं, बल्कि जीवन की यात्रा का हिस्सा समझना चाहिए।
5. “तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी — अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!” (अग्निपथ)
👉 जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है, लेकिन इंसान को कभी थककर बैठना, हारकर रुकना या पीछे मुड़ना नहीं चाहिए। जो निरंतर आगे बढ़ता है, वही मंज़िल पाता है।
6. “लहरों को गिनकर नौका पार नहीं होती।”
👉 केवल कठिनाइयों की गिनती करने से मंज़िल नहीं मिलती। साहसपूर्वक कदम बढ़ाना ही सफलता की कुंजी है।
7. “मन का विश्वास टूटे तो हार है, मन का साहस जागे तो जीत है।”
👉 वास्तविक हार या जीत बाहरी परिस्थितियों से तय नहीं होती, बल्कि हमारे मनोबल और आत्मविश्वास से होती है।
8. “जहाँ तक दिखे, रास्ता वही तक तय करो, आगे बढ़ोगे तो नया रास्ता स्वयं दिखेगा।”
👉 जीवन की पूरी राह हमेशा साफ़ दिखाई नहीं देती। जितना दिख रहा है, उतना चलते जाओ। धीरे-धीरे रास्ता खुद बनता जाएगा।
9. “जीवन का असली आनंद संघर्ष में है, सुविधा में नहीं।”
👉 संघर्ष हमें मजबूत और कर्मशील बनाता है। केवल आराम और सुविधा में जीवन का असली अर्थ नहीं है।
10. "कभी फूलों की तरह मत जीना, जिस दिन खिलोगे टूटकर बिखर जाओगे, जीना है तो पत्थर की तरह जियो, एक दिन तराशे गए तो, भगवान बन जाओगे।" -- यहां सब कुछ बिकता है
फूल क्षणिक सौंदर्य और नाशवान जीवन का प्रतीक हैं, जबकि पत्थर स्थायित्व और धैर्य का। हमें जीवन में क्षणिक आकर्षण के बजाय मजबूत, सहनशील और उपयोगी बनना चाहिए। इस स्वार्थी समाज में सब बिकता है, मगर असली इंसानियत और सच्चे मूल्य ही अमर रहते हैं।
निष्कर्ष | conclusion
हरिवंश राय बच्चन केवल मधुशाला के कवि नहीं, बल्कि हिन्दी साहित्य के उस युग-पुरुष थे जिन्होंने साहित्य, समाज और संस्कृति को एक साथ साधा। उनका जीवन व्यक्तिगत संघर्षों, साहित्यिक उपलब्धियों और सामाजिक योगदानों का आदर्श उदाहरण है। उनकी कविताएँ आज भी पाठकों को जीवन के आनंद और संघर्ष दोनों को स्वीकारने की प्रेरणा देती हैं।
हरिवंश राय बच्चन के जीवन से जुड़े लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर | Short answer questions
प्रश्न 1. हरिवंश राय बच्चन का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर. इनका जन्म 27 नवम्बर 1907 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
प्रश्न 2. बच्चन जी का वास्तविक नाम क्या था?
उत्तर. उनका वास्तविक नाम हरिवंश राय श्रीवास्तव था।
प्रश्न 3. "बच्चन" नाम उन्हें कैसे मिला?
उत्तर. उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में "बच्चन" उपनाम अपनाया, जो बाद में उनके पूरे परिवार की पहचान बन गया।
प्रश्न 4. हरिवंश राय बच्चन की प्रारंभिक शिक्षा कहाँ हुई?
उत्तर. उनकी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद में हुई थी।
प्रश्न 5. बच्चन जी ने उच्च शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?
उत्तर. उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (इंग्लैंड) से अंग्रेज़ी साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
प्रश्न 6. बच्चन जी की पहली प्रसिद्ध कृति कौन-सी है?
उत्तर. उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति "मधुशाला" (1935) है।
प्रश्न 7. हरिवंश राय बच्चन किस प्रकार की काव्य-धारा से जुड़े थे?
उत्तर. वे छायावादोत्तर काव्यधारा से जुड़े तथा हालावादी और व्यक्तिवादी गीत काव्य के प्रमुख कवि थे।
प्रश्न 8. हरिवंश राय बच्चन को कौन-सा प्रमुख साहित्यिक पुरस्कार मिला?
उत्तर. उनकी कृति "दो चट्टानें" के लिए उन्हें 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
प्रश्न 9. उनकी आत्मकथा कितने भागों में प्रकाशित हुई?
उत्तर. उनकी आत्मकथा चार भागों में प्रकाशित हुई।
प्रश्न 10. हरिवंश राय बच्चन का निधन कब हुआ?
उत्तर. उनका निधन 18 जनवरी 2003 को हुआ।




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