दलित अस्मिकतामूलक विमर्श एक भारतीय विमर्श है क्योंकि भारत में हिंदू धर्म में जाति आधारित संरचना है, जिसमें दलित सबसे नीचे पायदान पर है।
इसके केंद्र में दलित जाति के अंतर्गत शामिल मनुष्यों के अनुभवों, कष्टों एवं संघर्षों को स्वर देने की संगठित कोशिश की गई है। इस विमर्श ने भारत की अधिकांश भाषाओं में दलित साहित्य को जन्म दिया है।
हिंदी साहित्य में दलित साहित्य के विकास की दृष्टि से बीसवीं सदी के अंतिम दो दशक बहुत महत्वपूर्ण हैं।
दलित शब्द से अभिप्राय
दलित विमर्श आज के युग का एक ज्वलंत मुद्दा है । दलित साहित्य को लेकर कई लेखक संगठन बन चुके हैं और आज यह एक आंदोलन का रूप लेता जा रहा है । स्वाभाविक रूप से साहित्य , समाज और राजनीति पर इसका व्यापक असर पड़ रहा है।
दलित शब्द का शाब्दिक अर्थ है : जिसका दलन और दमन हुआ।
दूसरे शब्दों में - पीड़ित, शोषित, दबाया हुआ, कुचला हुआ या टूटा हुआ, जिनका हक छीना गया हो।
दलित की परिभाषा
हिंदी मानक कोश के अनुसार – “दलित शब्द का अर्थ है रौंदा हुआ मर्यादित, कुचला हुआ पदाक्रांत वर्ग, हिंदुओं में शुद्र, जिन्हें अन्य जातियों के सामान अधिकार प्राप्त नहीं है।”
रामचंद्र वर्मा के के अनुसार – “दलित शब्द का अर्थ है- मसला हुआ या दबाया हुआ, कुचला हुआ। जिसे समाज की मूल धारा से वंचित किया गया है, वह दलित है।”
मोहनदास नैमिषराय ने दलित शब्द के बारे में क्या कहा – “सर्वहारा वर्ग की सीमाओं में आर्थिक विसमता का शिकार दलित है”
ओमप्रकाश वाल्मीकि के शब्दों में – “दलित शब्द का अर्थ है जिसका दलन और दमन हुआ है, दबाया गया है, उत्पीड़ित, शोषित, सताया हुआ, गिराया हुआ, पस्त, हतोत्साहित वंचित आदि है।”
कंवल भारती के अनुसार – “दलित वह है, जिसपर अस्पृश्यता का नियम लागू किया जाता है, जिस कठोर व गंदे कामों के लिए विवश किया जाता है, जिसे शिक्षा ग्रहण करने एवं स्वतंत्र व्यवसाय करने से मना किया जाता है।”
प्रमुख दलित चिंतक
प्रमुख दलित चिंतक जिन्होंने दलित मुक्ति आंदोलन को आगे बड़ाने का काम किया-
(1) महात्मा ज्योतिराव फुले
महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले (11 अप्रैल 1827 - 28 नवंबर 1890) एक भारतीय समाजसुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें महात्मा फुले एवं जोतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है। सितम्बर 1873 में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया।
महिलाओं व पिछडे और अछूतो के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। महात्मा जोतिराव फुले भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और उनके साथ हो रहे भेदभाव के विरुद्ध थे।
(2) स्वामी अछूतानन्द 'हरिहर'
स्वामी अछूतानन्द 'हरिहर' (1879 - 1933) दलित चेतना प्रसारक साहित्यकार व समाजसुधारक थे। उनका मूल नाम हीरालाल था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ था। उन्होने आदि-हिन्दू आन्दोलन चलाया और भारत में ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी आन्दोलन का विरोध किया।
(3) डॉ. भीमराव अम्बेडकर
भीमराव रामजी आम्बेडकर (14 अप्रैल 1891 – 6 दिसंबर 1956), डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, राजनीतिज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, लेखक और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से होने वाले सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था।
आम्बेडकर ने श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री थे तथा भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे।
दलित अस्मितामूलक विमर्श
साहित्य में भक्ति काल से दलित अस्मिता का आरम्भ होता है। दलित चेतना के विषय पर ज्योतिबा फूले और डॉ. अम्बेडकर ने महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं, आधुनिक समय के आरम्भ में दलित विमर्श को चेतना रूपी स्वर देने का प्रयास इन्हीं दोनों समाज सुधारकों द्वारा किया गया।
आजादी के 60 वर्ष बाद भी दलितों की स्थिति में आशा के अनुरूप सुधार नहीं हुए है, जिसके कारण वर्तमान समय में भी अस्मिता सम्बन्धी विषय प्रासंगिक है। भारत में हजारों वर्षों से जाति व्यवस्था विद्यमान रही है, जिसके कारण असमानता रूपी समाज स्थापित हो गया है, किन्तु शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् दलितों ने अपनी अस्मिता के सवाल खंड़े किए हैं। वह अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं।
वह अपने सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक अधिकारों की माँग कर रहे हैं। उनके द्वारा किए गए सवाल सामाजिक न्याय के सवाल हैं। दलित साहित्यकारों व लेखकों ने भी अपनी रचनाओं द्वारा दलित अस्मिता के सवाल सबके समक्ष रखे हैं।
ओमप्रकाश बाल्मीकि, श्यौराज सिंह बेचैन व तुलसीराम जैसे प्रख्यात दलित साहित्यकारों ने हिन्दी साहित्य में दलित अस्मितामूलुक विमर्श को समझाने की कोशिश की है। इन्होंने अपनी आत्मकथाओं 'जुठन' (ओमप्रकाश बाल्मीकि), - 'मेरा बचपन मेरे कंधों पर' (श्यौराजे सिंह बेचैन) व 'मुर्दहिया' (तुलसीराम) द्वारा दलित जीवन के हर पहलू पर प्रकाश डाला है व जनमानस को उसकी अस्मिता पर विचार करने के लिए मजबूर किया है।
इनकी कृतियाँ दलितों के जीवन की विडम्बना व संघर्ष को दर्शाती हैं। 'अपना गाँव' (कहानी) मोहनदास नैमिशराय, 'ठाकुर का कुआँ' (कविता) ओमप्रकाश बाल्मीकि, (नो बार) जय प्रकाश कर्दम, 'शिकंजे का दर्द' (आत्मकथा) सुशीला टाकभोरे, ये सभी रचनाएँ दलित मुक्ति संघर्ष आन्दोलन की आन्तरिक वेदना व दलित अस्मिता से पाठकों को रू-ब-रू कराती है।
दलित आंदोलन
दलित आंदोलन, भारतीय समाज में दलितों के अधिकारों के लिए चलाया गया एक सामाजिक आंदोलन है। दलित आंदोलन की शुरुआत ज्योतिराव गोविंदराव फुले ने की थी। उन्होंने ही सबसे पहले दलित शब्द का इस्तेमाल किया था। दलित आंदोलन को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने किया।
दलित आंदोलन के कुछ प्रमुख आंदोलन और घटनाएं निम्नलिखित है -
- महाड़ आंदोलन (1927)
- नासिक का कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन (1930-31)
- लंदन के प्रथम गोलमेज परिषद में दलितों के राजनीतिक अधिकारों की मांग (1930)
- नागपुर में 'शेड्यूल्ड कास्ट फ़ेडरेशन' का गठन (1942)
- दलित महिला फ़ेडरेशन की स्थापना (1942)
- सिद्धार्थ कॉलेज और मिलिंद कॉलेज की स्थापना
दलित आंदोलन से जुड़े कुछ और आंदोलन और संगठन -
- नेशनल दलित मूवमेंट फ़ॉर जस्टिस (NDMJ)
- दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन
कुछ प्रमुख दलित काव्य संग्रह एवं दलित रचनाकार
दलित रचनाकारों ने अपनी पहचान, मुक्ति और विकास के संघर्ष पर साहित्यिक कार्य किया। इनमें लघु कथाएँ, कविताएँ, उपन्यास, नाटक तथा अन्य लेख शामिल हैं। इन लेखों को ही हम दलित काव्य संग्रह कहते है जो इस प्रकार है -
प्रारम्भिक दलित कविताएँ या काव्य कृतियाँ
1. हीरा डोम - अछूत की शिकायत (कविता)2. बिहारी लाल हरित - अछूतों का पैगम्बर, चमार हूँ मैं
3. मंसाराम विद्रोही - दलित पचासा
आधुनिक दलित कविताएँ या काव्य कृतियाँ
2. मोहनदास नैमिशराय - सफर एक बयान, आग और आन्दोलन
3. सूरजपाल चौहान - प्रयास, क्यों विश्वास करूँ, कब होगी वह भोर, वह दिन जरूर आएगा
4. दयानंद बटोही - यातना की आँखे, युगपुरुष डॉ. अम्बेडकर
5. सुशीला टांकभौरे - स्वाति बूँद और खारे मोती, यह तभी जानो, तुमने उसे कब पहचाना, हमारे हिस्से का सूरज
6. परमानंद राम - एकलव्य
7. शीलबोधी - कोलार जल रहा
8. कर्मशील भारती - कलम को दर्द कहने दो
9. सोहनपाल सुमनाक्षर - सिंधु घाटी बोल रही है
10. श्यौराज सिंह बेचैन - नई फसल, क्रौंच हूँ मैं, भोर के अंधेरे में
11. कंवल भारती - तुम्हारी निष्ठा क्या होती
12. एन. सिंह - दर्द के दस्तावेज, सतह से उठते हुए
13. कुसुम वियोगी - टुकड़े-टुकड़े दंश, व्यवस्था के विषधर
14. पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी - द्वार पर दस्तक
15. रजनी तिलक - करोड़ों पदचाप हूँ, हवा सी बेचैन युवतियां
16. सी.बी. भारती - आक्रोश
17. मनोज सोनकर - गजल गंध
18. जयप्रकाश कर्दम - गंगा नहीं घर में, बस्तियों से बाहर, तिनका-तिनका आग
19. अनीता भारती - रूखसाना का घर
20. मलखान सिंह - सुनो ब्राह्मण, ज्वालामुखी के मुहाने से
21. कर्मानंद आर्य - अयोध्या से मगहर
22. सुदेश तनवर - रात के इस शहर में, नियति नहीं यह मेरी
23. ईश कुमार गंगानिया - हार नहीं मानूँगा
दलित कहानी संग्रह
- आधुनिक युग के दलित कवियों में पहला स्थान हीरा डोम और स्वामी अछूतानन्द का लिया जाता है।
- दलित विमर्शकारों ने सन् 1914 ई. में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हीरा डोम की कविता अछूत की शिकायत को ही हिन्दी की प्रथम दलित कविता माना है।
- प्रारम्भिक दलित कहानियां में - वचनबद्ध (1975), सतीश (मुक्ति स्मारिका पत्रिका में), सबसे बड़ा सुख (1978 ई.) मोहनदास नैमिशराय (कथालोक में प्रकाशित), अंधेर बस्ती (1980 ई.) ओम प्रकाश वाल्मीकि (निर्णायक भीम में प्रकाशित) आदि प्रमुख हैं।
कुछ प्रमुख दलित कहानी संग्रह
दलितों द्वारा लिखी गई कहानियॉं निम्न लिखित हैै-
2. मोहनदास नैमिशराय - आवाजें, हमारा जवाब, दलित कहानियां
3. जयप्रकाश कर्दम - खरोंच
4. सूरजपाल चौहान - हैरी कब आएगा, नया ब्राह्मण, धोखा, प्रसिद्ध कहानियां साजिश, छूत का दिया, अहिल्या।
5. दयानंद बटोही - सुरंग, कफन खोर
6. कुसुम वियोगी - चार इंच की कलम, अंतिम बयान
7. श्यौराज सिंह बेचैन - अस्थियों के अक्षर, शोध प्रबन्ध
8. अजय नावरिया - पटकथा तथा अन्य कहानियां. पाँच कहानियाँ, यस सर
9. सुशीला टांकभौरे - अनुभूति के घेरे, टूटता वहम, संघर्ष
10. रूपनारायण सोनकर - जहरीली जड़े, आंग्ल
11. किशनपाल परख - पथेरा
12. पूनम तूषामड़ - मेले में लड़की
13. सत्य प्रकाश - रक्तबीज, सायरन
14. एच.आर. हरनोट - दारोश तथा अन्य कहानियाँ
15. शत्रुघ्न कुमार - हिस्से की रोटी
16. विपिन बिहारी - कंधा, बिवाइयां, नींव की पहली ईंट
17. कावेरी - द्रोणाचार्य एक नहीं
18. रजत रानी मीनू - हम कौन है
19. अनीता भारती - एक थी कोठे वाली तथा अन्य कहानियां
20. रजनी दिसोदिया - चरपाई
हिन्दी दलित उपन्यास का विकास
- रामजी लाल सहायक द्वारा सन् 1954 ई० में प्रकाशित 'बंधन मुक्त' उपन्यास हिन्दी का प्रथम दलित उपन्यास है। किन्तु यह अप्राप्य है।
- सन् 1980 ई० में प्रकाशित डी०पी० वरुण कृत 'अमर ज्योति' रचना कालक्रम की दृष्टि से दूसरा दलित उपन्यास है। किन्तु यह अत्यन्त निम्न कोटि की रचना है।
- सभी दलित आलोचकों एवं विद्वानों ने सन् 1994 ई० में जयप्रकाश कर्दम द्वारा रचित 'छप्पर' को प्रथम दलित उपन्यास स्वीकार किया जाता है।
हिन्दी के अन्य दलित उपन्यास निम्नलिखित हैं -
2. प्रेम कपाड़िया - मिट्टी की सौगन्ध
3. जय प्रकाश कर्दम - छप्पर, करुणा, श्मशान का रहस्य
4. सत्य प्रकाश - जस तस भई सबेर
5. अजय नावरिया - उधर के लोग
6. विपिन बिहारी - बोझ मुक्त मरोड़, हमलावर, अपने भी
7. कैलाश चन्द्र चौहान - भंवर
8. के. नाथ - पलायन, गाँव का कुंआ
9. एम.आर. हरनोट - हिडिम्ब
10. सुशीला टांकभौरें - तुम्हें बदलना ही होगा
कुछ प्रमुख दलित नाटक
2. मोहनदास नैमिशराय - अदालतनामा, हैलो कामरेड, हिन्दी रेडियो नाटक
3. सुशीला टांकभौरे - रंग और व्यंग्य, नंगा सत्य
4. रूपनारायण सोनकर - विषधर, रहस्य, डिप्टी कलेक्टर, छायावती, महानायक
5. रत्नकुमार सांभरिया - बीमा (एंकाकी) समाज की नाक
6. ओमप्रकाश वाल्मीकि - दो चेहरे
7. कर्मशील भारती - फांसी
कुछ प्रमुख दलित आत्मकथाएं
हिन्दी में अन्य दलित आत्मकथा निम्नांकित हैं-
2. मोहनदास नैमिशराय - अपने-अपने पिंजरे (भाग-1) 1996 ई., (भाग-2) 2000 ई., रंग कितने संग मेरे (2018)
3. सूरज पाल चौहान - तिरस्कृत (2002 ई.), संतप्त (2006 ई.)
4. डी.आर. जाटव - मेरा सफर मेरा मंजिल (2000 ई.)
5. माता प्रसाद - झोपड़ी से राजभवन (2002), दलित राज्यपाल की संघर्ष यात्रा
6. श्यौराज सिंह 'बेचैन' - बेवक्त गुजर गया माली (2006), मेरा बचपन मेरे कंधों पर (2009)
7. रमाशंकर आर्य - घुटन (2005)
8. रूपनारायण सोनकर - नागफनी (2007), मेरे जीवन की बाइबिल (2007)
9. डॉ. धर्मवीर - मेरी पत्नी और भेड़िया (2009)
10. तुलसीराम - मुर्दहिया (2010), मर्णिकर्णिका (2013)
11. सुशीला टांकभौरे - एक अनपढ़ कहानी, शिकंजे का दर्द (2011)
12. दयानंद बटोही - अपमान का दर्द
13. रजनी तिलक - अपनी जमीं-अपना आसमां (2018)
14. कावेरी - टुकड़ा-टुकड़ा जीवन (2018)
नोट- पहली दलित महिला आत्मकथा 'दोहरी अभिशाप' कौशल्या वैसंत्री जी है।
कुछ प्रमुख दलित आलोचनात्मक रचनाएँ
हिन्दी साहित्य के प्रमुख दलित आलोचक और आलोचना निम्नलिखित है-
2. ओमप्रकाश वाल्मीकि दलित - साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र, मुख्यधारा और दलित साहित्य
3. जयप्रकाश कर्दम - जाति: एक विमर्श, दलित साहित्य एवं चिंतनः समकालीन परिहश्य
4. मोहनदास नैमिशराय - भारतीय दलित आंदोलन एक संक्षिप्त इतिहास, दलित उत्पीड़न की परम्परा और वर्तमान, हिन्दी दलित साहित्य, भारतीय दलित आन्दोलन का इतिहास
5. सूरजपाल चौहान - समकालीन हिन्दी दलित साहित्य एक विचार-विमर्श
6. डॉ. धर्मवीर - प्रेमचंद की नीली आंखें, कबीर के आलोचक, प्रेमचंद सामन्त का मुंशी, दलित चिंतन का विकास, अभिसप्त चिंतन से इतिहास चिंतन की ओर
8. कंवल भारती - दलित विमर्श की भूमिका, दलित चिंतन में इस्लाम, लोकतंत्र में भागीदारी के सवाल, कांशी राम के दो चेहरे, संत रैदास एक विश्लेषण, दलित धार्म की अवधारणा, दलित साहित्य और विमर्श के आलोचक
9. श्यौराज सिंह बेचैन - उत्तर सदी के दलित कथा साहित्य में दलित विमर्श
10. तेज सिंह - आज का दलित साहित्य
11. रजनी तिलक - भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फूले ,समकालीन भारतीय दलित महिला लेखन
12. रजत रानी मीनू - अस्मितामूलक विमर्श और दलित साहित्य
दलित पत्रिकाएँ और उसके सम्पादक
प्रमुख दलित पत्रिकाएँ और उसके सम्पादक निम्न हैं -
2. भीमराव अम्बेडकर - बहिष्कृत भारत (1927)
3. भीमराव अम्बेडकर - समता (1928)
4. भीमराव अम्बेडकर - जनता (1930)
5. रघुनन्दन प्रसाद - दलित मित्र (1937)
7. अज्ञात - अस्मितादर्श (1961)
8. नामदेव ढकसाल व जे०पी पवार - पैंथर (1975)
9. पैंथर संगठन द्वारा - आक्रोश (1978)
10. देवेश चौधरी - तीसरा पक्ष (2000)
13. डॉ० तुलसीराम - भारत अश्वघोष
14. ओमप्रकाश वाल्मीकि - प्रज्ञा साहित्य (1995)
15. जय प्रकाश कर्दम - दलित साहित्य वार्षिकी
17. रमणिका गुप्ता - युद्धरत आम आदमी
18. जयप्रकाश कर्दम - पश्यन्ती (1997)
19. जयनारायण - कल के लिए (1998)
20. विभांशु दिव्या - राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप) (1997)
22. सपना सोनकर - नागफनी
23. विमल थोराट - दलित अस्मिता