हिन्दी साहित्य में स्त्री विमर्श | Hindi Sahitya me Stri Vimarsh

स्त्री विमर्श - स्त्री अस्मिता के संदर्भ में किया गया विचार स्त्री विमर्श कहलाता है। हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श अन्य अस्मितामूलक विमर्शों की तरह ही विमर्श रहा है। स्त्री विमर्श को अंग्रेजी में ‘फेमिनिज्म’ कहा गया है।

स्त्री विमर्श के प्रवर्तक फ्रांसीसी लेखिका सिमोन द बिउवार हैं। उन्होंने अपनी रचना ‘The second sex’ में नारी के विमर्श पर पहली बार कटुतम शब्दों में लिखा था। नारी को वस्तु रूप में प्रस्तुत करने पर उन्होंने टिप्पणी की थी।

 उसके बाद ‘Modern Women’ में डोरोथी पार्कर ने इस बात की आलोचना किया कि नारी को नारी रूप में देखा जाए। वे कहती है- नारी पुरुष सब मानव रूप में स्वीकार है, यह द्वैत मान्यता पराधीन और सापेक्षता को जन्म देती है।

    स्त्री विमर्श की परिभाषाएँ

    स्त्री विमर्श से संबंधित अनेक विद्वानों ने अपने मत व तर्क दिये है जो इस प्रकार है - 

    सुमित्रानंदन के अनुसार – “स्त्री का बौद्धिक महत्त्व स्वीकारना स्त्री विमर्श है।”

    नासिरा शर्मा के अनुसार - “स्त्री को समानता, स्वतंत्रता एवं समाज में महत्त्व दिलाने के लिए किया गया चिंतन स्त्री विमर्श के अंतर्गत आता है।”

    रामचंद्र तिवारी के शब्दों में – “स्त्री के हक में उसे शोषण, अन्याय और उत्पीड़न से मुक्ति देने, उसका महत्त्व स्वीकार करने से संबंधित चिंतन ही स्त्री विमर्श है।”

    अज्ञेय ने स्‍त्री विमर्श के संबंध में कहा है कि  – “स्त्री की समस्याओं एवं उसकी अस्मिता के बारे में की गई चर्चाएँ ही स्त्री विमर्श है।”

    हिन्दी साहित्य में स्त्री विमर्श

    स्त्री अस्मितामूलक विमर्श

    स्त्री पूरे विश्व की जनसंख्या का आधा भाग है जो संसार पर उतना ही अधिकार रखती है जितना की पुरुष। भारत में स्त्री को देवी का दर्जा दिया गया है, जो सिर्फ एक किताबी बात प्रतीत होती है। स्त्री हजारों वर्षों से शोषण व दमन सहती आ रही हैं और वर्तमान में भी यह स्थिति बनी हुई है।

    दार्शनिकों का मानना है कि किसी भी समाज की प्रगति उस समाज की स्त्रियों की प्रगति से जोड़कर देखी जाती है, लेकिन भारतवर्ष में स्त्रियाँ वर्तमान समय में भी अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रही हैं। उसकी स्वयं की कोई पहचान नहीं है। पुरुष के साथ जुड़कर उसे पहचान मिली है। 

    स्त्रियों ने सती प्रथा, देवदासी प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, 'बालिका विवाह, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा और न जाने कितने ही दमनकारी सामाजिक कुरीतियों को सहा है। इन सभी परिस्थितियों से प्रतिकार करती हुई वह अपनी अस्मिता की बात करती हैं।

    किसी भी वर्ग का विकास उसकी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्थिति पर निर्भर करता है। आधुनिक भारत में महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार आया है, किन्तु राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्वं आशा के अनुरूप नहीं है।

    हिन्दी साहित्य में भी स्त्री अस्मिता की बात होती रही है। आज से लगभग सवा सौ वर्षों पहले का 'श्रद्धाराम फुल्लौरी' का उपन्यास 'भाग्यवती' से लेकर वर्तमान समय में भी साहित्य में स्त्री अस्मिता को चित्रित किया जा रहा है। प्रेमचन्द, भगवतीचरण वर्मा, जयशंकर प्रसाद जैसे लेखकों ने स्त्री अस्मिता के सवाल खड़े किए हैं। वह स्त्रियों की तत्कालिक परिस्थितियों को अपनी रचनाओं द्वारा उजागर करते हैं। हिन्दी साहित्य में स्त्री विमर्श को लेकर महत्त्वपूर्ण पुस्तके लिखी गई, जिससे पाठकों को 'स्त्री अस्मिता व स्त्री विमर्श क्या है' का ज्ञान हुआ।

    'परिधि पर-स्त्री' मृणाल पाण्डे, 'दुर्ग द्वार पर दस्तक' कात्यायनी, 'स्त्री का समय' क्षमा शर्मा की रचनाओं ने स्त्री की अस्मिता को उजागर किया है।

    स्त्री विमर्श का महत्व

    स्त्री विमर्श का महत्व समाज के विकास और समानता की दिशा में अत्यधिक महत्वपूर्ण कदम है। यह विचारधारा स्‍त्री के अधिकारों, उनके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति में सुधार की दिशा में काम करती है। स्त्री विमर्श को हम निम्न लाइन से समझ सकते हैं -

    1. महिलाओं और पुरुषों के बीच समान अधिकारों और अवसरों की वकालत करता है।
    2. महिलाओं के खिलाफ भेदभाव, हिंसा और शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाता है।
    3. समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों को लेकर जागरूकता फैलाता है।
    4. महिलाओं को शिक्षा और आत्मनिर्भरता के अवसर प्रदान करता है।
    5. पुरानी सामाजिक धारणाओं को चुनौती देकर महिलाओं की स्थिति में सुधार लाता है।
    6. महिलाओं को समान वेतन और रोजगार के अवसर प्राप्त करने में मदद करता है।
    7. महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों से अवगत कराता है और उनका संरक्षण करता है।

    स्त्री विमर्श के उद्देश्य

    स्त्री विमर्श के उद्देश्य निम्नलिखित हैं -

    1. समानता का अधिकार - 21 वीं सदी में भी महिलाओं को कागज पर तो समान अधिकार प्राप्‍त है, परंतु उन्‍हें प्राप्‍त करना उतना ही मुश्‍किल है। महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार और अवसर प्राप्त हो, ताकि वह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से पुरूषों के समान सामान्‍य स्थिति में आ सके। 

    2. शिक्षा और सशक्तिकरण - महिलाओं ने शिक्षा और ज्ञान प्राप्‍त हो, ताकि वह अपने अधिकारी के लिए आवाज उठा सके। 

    3. स्वास्थ्य और सुरक्षा - महिलाओं के शारीरिक, मानसिक और यौन स्वास्थ्य संबंधी खतरा हमेशा से रहा है। उनसे वह लड़ सके तथा उन पर हो रही हिंसा को समाप्‍त कर सके। 

    4. आर्थिक स्वतंत्रता - भारत पुरूष प्रधान देश रहा है, महिला बस आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना चाहती है तथा पुरूषों के समान वेतन व रोजगार के अवसर सुनिश्चित करना चाहती है।

    5. कानूनी अधिकारों का संरक्षण करना।

    6. सामाजिक बदलाव - महिलाओं के खिलाफ हो रहे सामाजिक भेदभाव, उत्पीड़न और हिंसा को समाप्त कर, समााज में सम्‍मान से जीवन यापन करना महिला का अंतिम उद्देश्‍य है। 

    भारतीय स्त्री विमर्श आंदोलन

    सती प्रथा के खिलाफ आंदोलन (1829) - राममोहन राय ने सती प्रथा (पत्नी का पति की मृत्यु के बाद उसकी चिता में जलना) के खिलाफ संघर्ष किया। उनके प्रयासों से ब्रिटिश सरकार ने सन 1829 ई. में इस प्रथा को अवैध घोषित कर दिया।

    महिला शिक्षा के लिए आंदोलन - 19वीं शताबदी में भारतीय समाज में स्‍त्री की शिक्षा  के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर, राममोहन राय, स्वामी विवेकानंद आदि लोग समने आए। जिन्‍होने ने स्‍त्री शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा अनेक नये स्कूलों की स्थापना की।

    बाल विवाह के खिलाफ आंदोलन - ईश्वर चंद्र विद्यासागर के प्रयास के परिणामस्‍वरूप विवाह जैसी कुप्रथा को समाप्त किया गया तथा सन 1860 में बाल विवाह रोकने के लिए कानून बना।

    नारी जागरण आंदोलन - इस आंदोलन के प्रमुख आंदोलन कर्ता  राजा राममोहन राय, कस्तूरबा गांधी, सारोजिनी नायडू थे, जिसका उद्देश्य महिलाओं की सामाजिक स्थिति और अधिकारों को सुधारना था। यह आंदोलन महिलाओं के लिए समानता, शिक्षा, और उनके स्थान को समाज में मजबूती से स्थापित करने के लिए था। 

                भारतीय स्त्री विमर्श आंदोलन ने समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष किया। इन आंदोलनों ने महिलाओं को जागरूक किया और उन्हें समाज में समानता, शिक्षा, सुरक्षा और अधिकारों के लिए लड़ने का एक मंच प्रदान किया। इन आंदोलनों का असर आज भी महसूस होता है, और महिलाएं अब अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अधिक सशक्त और जागरूक हैं।

    स्त्री विमर्श और हिंदी साहित्य

    स्त्री विमर्श से संबंधित उपन्यास और उपन्यासकार

    स्‍त्री विमर्श से संबंधित प्रमुख उपन्‍यास एवं उपन्‍यासकार निम्‍नलिखित है - 
      1. मंजुला भगत – अनारो, बेजान घर में, खातुल, तिरछी बौछार, गंजी
      2. ममता कालिया – बेघर, एक पत्नी के नोट्स
      3. मन्नू भंडारी – आपका बंटी 
      4. प्रभा खेतान – आओ बेबे घर चले, छिन्नमस्ता, पीली आँधी
      5. चित्रा चतुर्वेदी – महा भारती, अंबा हनी मैं भीष्मा
      6. नासिर शर्मा – शाल्मली, ठीकरे की मंगनी
      7. अलका सारावगी – कलि कथा वया बाईपास, शेष
      8. सूर्यबाला – सुबह के इंतजार तक, यामिनी कथा
      9. कुसुम कुमार – हिरामन हाइस्कूल
      10. चंद्रकांता – अपने-अपने कोणार्क
      11. मैत्रयी पुष्पा – बेतवा बहती है, चाक, झुला नट, त्रिया हट
      12. चित्र मुद्गल – एक जमीन अपनी, आवा
      13. राजी सेठ- तत्सम, कठगुलाब से गुजरते हुए
      14. उषा प्रियंवदा – पचपन खंभे लाल दीवारे रुकोगी नहीं राधिका, शेष यात्रा
      15. कृष्णा सोबती – मित्रों रमजानी, दिलोदानिश, ऐ लड़की
      16. मृदुला सिंह – उसके हिस्से की धूप, चित्त्कोबरा, मैं और मैं, कठगुलाब
      17. सुरेन्द्र वर्मा – मुझे चाँद चाहिए
      18. रामदरस मिश्र – बिना दरवाजे का मकान
      19. भीष्म साहनी – बसंती
      20. विष्णु प्रभाकर – अर्द्धनारीश्वर

    स्त्री विमर्श से संबंधित प्रमुख कहानियाँ

    स्‍त्री विमर्श से संबंधित प्रमुख कहानीयॉं एवं कहानीकार निम्‍नलिखित है - 
      1. बंग महिला (राजेन्द्र बाला घोष) – दुलाईवाली, चन्द्रदेव से मेरी बातें  
      2. नासिर शर्मा – खुदा वापसी
      3. उर्मिला शिरीष –  चीख
      4. मृदुला गर्ग – कितनी कैदे
      5. शिवानी – स्वयं सिद्धा, रति विलाप
      6. उषा देवी मित्रा – छोटी सी कहानी
      7. मन्नू भंडारी – एक बार और
      8. उषा प्रियंवदा – वापसी प्रतिध्वनियाँ
      9. सूर्यबाला – दिशाहीन मैं
      10. नमिता सिंह – महाभोज
      11. मैत्रयी पुष्पा – पगला गई है भागवती
      12. उषा यादव – कापुरुष
      13. राजीसेठ – अकारण तो नहीं
      14. दीप्ती खंडेलवाल – शेष-अशेष, वह तीसरा, कड़वे सच
      15. निरुपमा सोबती – संक्रमण, भीड़ में तुम, खामोशी को पीते हुए
      16. मन्नू भंडारी – तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है, मैं हार गई,एक प्लेट सैलाब

    स्त्री विमर्श पर आधारित आत्मकथाएँ

    स्‍त्री विमर्श से संबंधित प्रमुख आत्‍मकाथाऍ और आत्‍मकथाकार निम्‍नलिखित है - 
    1. कृष्णा अग्निहोत्री – लगता नहीं दिल मेरा
    2. रमणिका गुप्ता – हादसे, आपहुदरी
    3. प्रतिमा अग्रवाल – मोड़ जिंदगी का, दस्तक जिंदगी की
    4. प्रभा खेतान – अन्य से अनन्य
    5. कुसुम बंसल –  जो कहा नहीं गया
    6. शीला झुनझुनवाला – कुछ कही कुछ अनकही
    7. मैत्रयी पुष्पा –  गुड़िया भीतर गुड़िया, कस्तूरी कुंडल बसे
    8. चन्द्रकिरण – पिंजरे की मैना
    9. निर्मला जैन – जमाने में हम

    स्त्री विमर्श से संबंधित आलोचनात्मक रचनाएँ

    स्‍त्री विमर्श से संबंधित प्रमुख आलोचना और आलोचनाकार निम्‍नलिखित है - 
    1. प्रभा खेतान – उपनिवेष में स्त्री
    2. नासिरा शर्मा – औरत के लिए और
    3. राधा कुमार – स्त्री संघर्ष का इतिहास
    4. अनामिका – स्त्रीत्व का मानचित्र
    5. कात्यायनी – दुर्ग द्वार पर दस्तक
    6. रमणिका गुप्ता – स्त्री मुक्ति संघर्ष और इतिहास
    7. गीता श्री – नागपास में