मार्क्सवाद क्या है?, इसकी परिभाषा, सिद्धांत, विशेषताएं एवं मार्क्‍सवादी विचारक

कार्ल मार्क्स (Karl Marx) एक जर्मन दार्शनिक थे। इसके साथ ही वह इतिहासकार, राजनीतिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, पत्रकारिता आदि में विशेष्‍य योगदान दीया। उनके सबसे प्रसिद्ध कृति द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो व दास कपिटल हैं। 

    कार्ल मार्क्स का परिचय

    पूरा नाम : कार्ल हेनरिख मार्क्स

    जन्म : 5 मई 1818 ई. ट्रेवेज नगर, राइनलैंड (जर्मनी) 

    निधन : 14 मार्च 1883 ई. (लंदन)

    माता/पिता : हेनरिक मार्क्स और हेनरीट प्रेसबर्ग 

    पत्नि : जेनी वॉन वेस्टफेलन

    मार्क्सवाद क्या है,

    कार्ल मार्क्स के विचार व कथन  

    कार्ल मार्क्‍स के विचार व कथन निम्‍नलिखित है-  
      1. समाज में जो भी घटित होता है, वह सिर्फ पूँजी के लिए घटित होता है।
      2. समाज में केवल दो ही वर्ग हैं- 'पूँजिपति' और 'सर्वहारा' वर्ग।
      3. दुनियाभर के कर्मचारी, एकजुट; आपके पास अपनी चैन के अलावा खोने के लिए कुछ भी नहीं है।
      4. पिछले सभी समाजों का इतिहास वर्ग संघर्षों का इतिहास रहा है।
      5. दुनिया के मजदूरों एकजुट हो जाओ, तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, सिवाय अपनी जंजीरों के।
      6. इतिहास खुद दुहराता है, पहले त्रासदी की तरह, दूसरे एक मजा की तरह।
      7. लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता धर्म का अंत है।
      8. धर्म जनता के लिए अफीम है
      9. क्रांतियां इतिहास की इंजन हैं।
      10. अंतिम शब्द उन मूर्खों के लिए हैं, जिन्होंने पर्याप्त नहीं कहा है।
      11. इतिहास खुद को दोहराता है, पहले त्रासदी के रूप में, दूसरा प्रहसन के रूप में।
      12. साम्यवाद का सिद्धांत: सभी निजी संपत्ति को समाप्त करें।
      13. बहुत सारी उपयोगी चीजों के उत्पादन से बहुत सारे बेकार लोग पैदा होते हैं।
      14. आवश्यकता तब तक अंधी होती है, जब तक वह सचेत न हो जाए। स्वतंत्रता आवश्यकता की चेतना है।

    मार्क्सवादी विचारक

    मार्क्सवादी विचारधारा के प्रमुख विचारक में मुख्यतः कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स का नाम आता हैं, जिनकी विचारधारा ने समाजवादी और साम्यवादी आंदोलनों को बहुत प्रभावित किया। इसके अलावा भी कुछ अन्य प्रमुख मार्क्सवादी विचारक भी रहे हैं, जिनके द्वारा मार्क्‍सवादी सिद्धांत को आगे बढ़ाया और विस्तार करने का काम किया।

    इनमें से कुछ प्रमुख मार्क्सवादी विचारक निम्नलिखित हैं - 

    1. कार्ल मार्क्स (Karl Marx) - 

    कार्ल मार्क्‍स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद, वर्ग संघर्ष और श्रमिक वर्ग के उत्थान के सिद्धांतों को विकसित किया। उन्होंने अपनी प्रमुख कृतियों "द कॅपिटल" और "कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो" के माध्यम से पूंजीवाद की आलोचना की और समाजवाद और साम्यवाद की दिशा में विचार प्रस्तुत किए।

    2. फ्रेडरिक एंगेल्स (Friedrich Engels) -

    एंगेल्स, कार्ल मार्क्स के सहयोगी विचारक थे। उनकी कृति "एंटी-ड्यूरिंग" और " द कंडिशन ऑफ द वर्किंग क्लास इन इंग्लैंड" में समाजवाद और मार्क्सवादी सिद्धांतों का विस्‍तार किया।

    3. व्लादिमीर लेनिन (Vladimir Lenin) -

    लेनिन ने मार्क्सवाद को रूस की परिस्थितियों में लागू करने की कोशिश की और "मार्क्सवाद और क्रांति" तथा "राज्य और क्रांति" जैसी कृतियों के माध्यम से राज्य के बारे में मार्क्स के विचारों को आगे बढ़ाया। उन्होंने बोल्शेविक क्रांति का नेतृत्व किया, जो रूस में साम्यवादी शासन की स्थापना का कारण बनी।

    4. जोसेफ स्टालिन (Joseph Stalin) -

    स्टालिन ने सोवियत संघ में मार्क्सवादी सिद्धांतों को लागू किया और उनके तहत कृषि सामूहिकीकरण और औद्योगिकीकरण जैसे नीतियों को लागू किया। हालांकि, उनके शासनकाल में कई आलोचनाएं और विवाद भी उठे।

    5. माओ ज़ेडोंग (Mao Zedong) -

    माओ ने चीन में मार्क्सवाद को "माओवाद" के रूप में अपनाया, जिसमें किसान वर्ग को केंद्रीय भूमिका में रखा गया। उनका "ग्रेट लीप फॉरवर्ड" और "कल्चरल रिवोल्यूशन" जैसे कार्यक्रम चीन में मार्क्सवादी सिद्धांतों के प्रयोग के उदाहरण थे।

    6. एंटोनियो ग्राम्शी (Antonio Gramsci) -

    ग्राम्शी ने हेजेमनी (सांस्कृतिक प्रभुत्व) और वैचारिक नेतृत्व के विचारों का विस्तार किया। उन्होंने यह माना कि समाज में शासक वर्ग केवल आर्थिक शक्ति से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और वैचारिक प्रभुत्व से भी शासन करता है।

    7. लुई अल्थुस्सेर (Louis Althusser) -

    अल्थुस्सेर ने संरचनावादी मार्क्सवाद को विकसित किया और यह सिद्धांत प्रस्तुत किया कि राज्य और समाज के संस्थान वर्ग संघर्ष को बनाए रखने में भूमिका निभाते हैं।

    8. ग्योरगी लुकाच (Georg Lukacs) -

    लुकाच ने मार्क्सवाद को साहित्य, संस्कृति और इतिहास के अध्ययन के संदर्भ में विस्तारित किया। उन्होंने "हिस्टॉरिकल मटेरियलिज़्म" पर कार्य किया और ऐतिहासिक भौतिकवाद के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

    इन विचारकों के योगदान से मार्क्सवाद ने न केवल राजनीति और समाजशास्त्र में बल्कि संस्कृति, साहित्य, और दर्शन में भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।

    कार्ल मार्क्स की पुस्तकों के नाम

    कार्ल मार्क्स की प्रमुख पुस्तकों के नाम निम्‍नलिखित है:- 

    1. कम्युनिस्ट घोषणापत्र (The Communist Manifesto)
    2. दास कैपिटल (Das Kapital)
    3. आर्थर रोसेल (Critique of the Gotha Programme)
    4. आर्थिक और दार्शनिक मैनुस्क्रिप्ट (Economic and Philosophic Manuscripts of 1844)
    5. इदीयोलॉजी का जर्मन आलोचना (The German Ideology)
    6. कंट्रीब्यूशन टू द क्रिटिक ऑफ पोलिटिकल इकोनॉमी (Contribution to the Critique of Political Economy)
    7. फ्रांसीसी क्रांति पर आलोचना (The Eighteenth Brumaire of Louis Bonaparte)
    8. पेरिस कम्यून पर आलोचना (The Civil War in France)
    9. प्रोलेटेरियट और बुर्जुआ (Wage Labour and Capital)
    10. सोशलिस्ट आंदोलन और उसका इतिहास (The History of the Socialist Movement) - 

    मार्क्सवाद क्या है?

    मार्क्सवाद एक दार्शनिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक सिद्धांत है जिसे कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा 19वीं सदी में विकसित किया था। इस सिद्धांत का मूल उद्देश्य समाज में विद्यमान असमानताओं और शोषण को समझना और इन्हें समाप्त करने के लिए एक वैकल्पिक समाज का निर्माण करना था।

    मार्क्सवाद की परिभाषा

    ''कार्ल मार्क्स और एगेल्स द्वारा जिस शोषण विहीन और वर्ग वहीन समाज की कल्पना की गई जिसमें समानता पर अत्यधिक बल दिया गया उसी विचारधारा को मार्क्सवाद कहा जाता है।"

    दूसरे शब्‍दों में प्रगतिवाद का सम्बन्ध मार्क्सवाद से है। राजनीति के क्षेत्र में जो मार्क्सवाद है साहित्यिक क्षेत्र वही प्रगतिवाद है। हिन्दी की प्रगतिवादी कविता मार्क्सवाद से प्रभावित है। प्रगतिवादी विचारधारा का मूलाधार मार्क्सवाद या साम्यवाद है, जिसके प्रवर्तक कार्ल मार्क्स थे। 

    मार्क्सवाद का उदय 19वीं शताब्दी के मध्य में हुआ, जब यूरोप में उदारवाद अपने चरम पर था, परन्तु उदारवाद लोगों अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा जिसके विरोध में मार्क्स ने 1844 ई. में वैज्ञानिक समाजवाद की स्थापना की।

    मार्क्सवादी विचारधारा

    मार्क्सवादी विचारधारा को तीन भागों में बाँटा जा सकता है - 

    1. द्वन्द्वात्मक भौतिक विकासवाद
    2. मूल्य वृद्धि का सिद्धान्त
    3. मानव सभ्यता के विकास की व्याख्या

    मार्क्स के अनुसार, संसार की उत्पत्ति नहीं हुई, बल्कि उसका धीरे-धीरे विकास हुआ। भौतिक जगत ही इस विकास का कारण है। मार्क्सवाद आत्मा-परमात्मा, स्वर्ग-नरक, मृत्यु के बाद के जीवन का अस्तित्व स्वीकार नहीं करता।

    मार्क्स के अनुसार, भौतिक विकास को परिचालित करने वाली पद्धति का नाम द्वन्द्र है। द्वन्द्व का अर्थ संघर्ष से है। दो विरोधी शक्तियों के संघर्ष से तीसरी शक्ति या वस्तु विकसित होती है, आगे चलकर तीसरी को चौथी वस्तु से संघर्ष करना पड़ता है और उसमें से पाँचवीं का उद्भव या विकास होता है। 

    इसी क्रम से भौतिक जगत में नई-नई वस्तुओं एवं शक्तियों का विकास होता है। प्रत्येक नई विकसित वस्तु को मार्क्स ने प्रथम दो से अधिक उच्चतर, श्रेष्ठतर माना है। इस प्रकार द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का अर्थ दो शक्तियों के पारस्परिक द्वन्द्व से भौतिक जगत का विकास होना है। मूल्य वृद्धि की व्याख्या करते हुए कार्ल मार्क्स ने उत्पत्ति के चार अंग निर्धारित किए हैं

    1. मूल पदार्थ
    2. स्थूल साधन
    3. श्रमिक का श्रम
    4. मूल्य वृद्धि

    मार्क्स कहते हैं कि पूँजीपतियों ने श्रमिकों का शोषण किया है। पूँजी के बल पर स्थूल साधनों पर पूँजीपतियों का एकाधिकार होता है। उत्पादित वस्तु में श्रमिकों का श्रम भी शामिल होता है, क्योंकि ये श्रमिक पूँजीपतियों को लाभ पहुँचाते हैं। इसी अर्जित लाभ वाली पूँजी से ये श्रमिकों का शोषण करते हैं। 

    मार्क्स का कहना है कि लाभ पूँजीपति को नहीं बल्कि श्रमिक को मिलना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं होता, इससे समाज में दो वर्गों-पूँजीपति व श्रमिक का विकास हुआ। मजदूर, किसान, गरीब या श्रमिक सभी शोषक वर्ग के अन्तर्गत आते हैं। मार्क्स ने शोषण का विरोध किया है, वे इसे समाप्त करके साम्यवाद स्थापित करना चाहते हैं।

    मार्क्सवाद के सिद्धांत

    मार्क्सवाद के सात प्रमुख सिद्धांत हैं, जैसे 

    1. द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद
    2. ऐतिहासिक भौतिकवाद 
    3. अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
    4. वर्ग संघर्ष
    5. क्रांति
    6. सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व 
    7. साम्यवाद आदि। 
    मार्क्सवाद क्या है

    मार्क्सवादी वर्ग सिद्धांत

    मार्क्स दुनिया के सभी मनुष्यों को चाहे वे किसी भी जाति या देश से सम्बन्धित हो, दो जातियाँ या वर्ग मानते हैं। इन्हें चार कालों में बाँटा जा सकता है

    1. दास प्रथा
    2. सामन्ती प्रथा
    3. पूँजीवादी व्यवस्था
    4. साम्यवादी व्यवस्था

    प्रथम युग दास प्रथा का युग था। इस युग में श्रमिक के व्यक्तित्व, उसके श्रम, उत्पत्ति के साधन व उत्पादन इन सभी पर मालिक अर्थात् शोषक का पूर्ण अधिकार था।

    दूसरा युग सामन्ती युग के रूप में आया। इस युग में मजदूर के व्यक्तित्व को स्वतन्त्रता मिली, परन्तु शेष तीनों पर शोषण का अधिकार था। दास प्रथा में तो व्यक्तिगत स्वतन्त्रता नहीं थी, परन्तु इस युग में मजदूर को व्यक्तित्व की स्वतन्त्रता प्राप्त हो गई। इस प्रकार यह नई व्यवस्था पुरानी दास प्रथा से बेहतर थी।

    तीसरा युग पूँजीवादी व्यवस्था का था। इसमें मजदूर के व्यक्तित्व एवं उसके श्रम पर मजदूर का अधिकार हो गया था, परन्तु शेष दो पर अभी भी मालिक (शोषक) का ही अधिकार था।

    मार्क्स का कहना है कि मजदूर वर्ग को लाभ तो तभी प्राप्त हो सकता है जब उत्पादन के साधनों पर उसका पूर्ण अधिकार हो, ऐसा इस चौथा युग साम्यवादी व्यवस्था में ही सम्भव था और इसी को कार्ल मार्क्स लागू करना चाहते थे। इस व्यवस्था में मजदूरों की सत्ता होती है। 

    इस व्यवस्था में मजदूरों की प्रतिनिधि सरकार द्वारा उत्पादन के सभी साधनों पर नियन्त्रण होता है। प्रत्येक को उसके श्रम के अनुरूप फल की प्राप्ति होती है। मार्क्सवाद का मुख्य लक्ष्य साम्यवादी व्यवस्था को स्थापित करना था। 

    मार्क्सवाद के अनुसार, इस व्यवस्था में वर्गभेद तथा शोषण का अन्त हो जाएगा, इसलिए राज्य की आवश्यकता नहीं रहेगी। इस व्यवस्था के लिए मार्क्स क्रान्ति को भी आवश्यक मानता है।

    मार्क्सवाद धर्म, ईश्वर, स्वर्ग-नरक इत्यादि का विरोध करता है। पूँजीपतियों के प्रति घृणा, शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति व प्रेम तथा नारी का यथार्थ चित्रण करता है। हिन्दी साहित्य में प्रगतिवादी चेतना की शुरुआत 1936 ई. से पहले ही तय हो चुकी थो। रूस के साम्यवाद तथा पश्चिमी देशों का प्रभाव भारत पर हुआ। यहाँ के बुद्धिजीवी वर्ग इससे प्रभावित हुए। छायावाद से साम्यवाद का प्रभाव परिलक्षित होने लगा था। इसमें निराला व पन्त का नाम उल्लेखनीय है।

    1935 ई. के दौरान भारत में साम्यवादी आन्दोलन की शुरुआत हो गई थी। पेरिस में 1935 ई. में स्थापित 'प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन' नामक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना हो चुकी थी, जिसकी एक शाखा 1936 ई. में भारत में स्थापित हुई। इसे स्थापित करने का श्रेय सज्जाद जहीर व डॉ. मुल्कराज आनन्द को जाता है। 1936 ई. में ही प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई जिसका पहला अधिवेशन मुंशी प्रेमचन्द की अध्यक्षता में लखनऊ में हुआ। प्रगतिवादी साहित्य ने शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई एवं किसानों, मजदूरों को संघर्ष के लिए बल प्रदान किया। प्रगतिवादी साहित्य जनसाधारण के लिए काव्य की रचना करता है।

    कार्लमार्क्स के कार्य एवं विचार

    1. कार्लमार्क्स हीगेल के विचारों से प्रभावित थे।
    2. कार्ल मार्क्स ने 'होली फेमिली' नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई जिसमे उन्होंने सर्वहारा वर्ग और भौतिक दर्शन की सैद्धांतिक विचारधारा पर सबसे अधिक प्रकाश डाला।
    3. मार्क्स ने अपने साम्यवादी घोषणा-पत्र में पूँजीवाद को समाप्त करने का संकल्प लिया था।
    4. मार्क्स के अनुसार विश्व में अशांति एवं असंतोष का कारण गरीबों और अमीरों के मध्य का वर्ग संघर्ष ही है।
    5. वर्ग विहीन समाज की स्थापन करना मार्क्स का प्रमुख उद्देश्य था। मार्क्स ने विश्व को संघर्ष करने की प्रेरणा दिया।
    6. मार्क्स ने कहा 'लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है।'

    मार्क्सवाद की विशेषताएं

    1. मार्क्सवाद पूंजीवाद के विरोध की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत पूंजीवाद की नीतियों का खंडन होता है।
    2. यह पूंजीवाद व्यवस्था को पूर्ण तरीके से समाप्त करने हेतु हिंसात्मक साधनो का प्रयोग करता है।
    3. मार्क्सवाद के कारण दलित, निम्न वर्गीय लोगों एवं श्रमिकों को समानता का अधिकार प्राप्त होता है
    4. शोषण का अंत होता है।
    5. मार्क्सवाद समाज में पूर्ण रूप से धर्म विरोधी तत्व की भांति कार्य करता है
    6. मार्क्सवाद अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत द्वारा पूंजीवाद के जन्म को स्पष्ट करता है।