छायावाद क्या है? : हिंदी साहित्य के ई.स. 1918 से 1936 के बीच के समय को हिंदी साहितय का छायावाद कहा जाता है। इस काल के नामकरण का श्रेय मुकुटधर पाण्डेय को जाता है। छायावाद में बहुत से महान कवि हुए। जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानंदन पंत, पंडित माखन लाल चतुर्वेदी को इस काल के प्रतिनिधि कवि माने गये हैं। इस लेख में हम छायावाद की सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करेंगें।
विभिन्न विद्वानों के अनुसार छायावाद की परिभाषा
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, “छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में समझना चाहिए एक तो रहस्यवाद के अर्थ में जहाँ उसका सम्बन्ध काव्यवस्तु से होता है अर्थात् जहाँ कवि उस अनन्त और अज्ञात प्रियतम को आलम्बन बनाकर अत्यन्त चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है' छायावाद का दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ में है।"
डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है। यह एक विशेष प्रकार की भाव पद्धति है, जीवन के प्रति विशेष भावात्मक दृष्टिकोण है।"
आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के अनुसार, “मानव तथा प्रकृति के सूक्ष्म किन्तु व्यक्त सौन्दर्य में आध्यात्मिक छाया का भाव छायावाद की सर्वमान्य व्याख्या हो सकती है।"
महादेवी वर्मा के अनुसार, “छायावाद तत्त्वत: प्रकृति के बीच जीवन का उद्गीत है।"
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “छायावाद के मूल में पाश्चात्य हस्यवादी भावना अवश्य थी। इस रहस्यवाद की मूल प्रेरणा अंग्रेज़ी की रोमाण्टिक भावधारा की कविता से प्राप्त हुई थी।"
उपरोक्त विद्वानों की परिभाषाओं से निम्न स्पष्ट है कि
- छायावाद में स्थूलता के स्थान पर सूक्ष्मता की झलक दिखाई देती है।
- छायावादी के काव्यों में रहस्यवादी प्रवृत्ति विद्यमान है।
- छायावाद में प्रेम व प्रकृति के साथ सौन्दर्य का काव्य माना गया है।
- छायावाद के काव्यों में स्वानुभूति की प्रधानता है।
- छायावाद की कविता अंग्रेज़ी रोमाण्टिक काव्यधारा से प्रभावित हुई है।
- छायावाद में सांस्कृतिक चेतना, मानवतावादी दृष्टिकोण की प्रमुख विद्यमान है।
छायावाद के प्रमुख कवि
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद हिन्दी के कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्ध-लेखक थे। वे हिन्दी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की थी जिसके द्वारा खड़ीबोली के काव्य में न केवल माधुर्य की रससिद्ध ही नहीं, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों का चित्रण भी किया। 'खड़ीबोली' को हिन्दी काव्य की सिद्ध भाषा बनाने में भी इनने काव्य का बहुत बड़ा योगदान है।
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
निराला जी हिन्दी साहितय की कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख आधार स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत एवं महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कई कहानियाँ, उपन्यास तथा निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेष रुप से कविता के कारण ही मानी जाती है।
सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत भी हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है। उनका जन्म कौसानी बागेश्वर में हुआ था। झरना, बर्फ, लता, भ्रमर-गुंजन, पुष्प, उषा-किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से उनके काव्य का उपादान बने। उनका स्वयंं का व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था। गौर वर्ण, लंबे घुंघराले बाल, सुंदर सौम्य मुखाकृति, सुगठित शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग दिखाता था।
महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा हिन्दी भाषा की कवयित्री थीं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तम्भों में से एक में उनका नाम आता हैं। आधुनिक युग की हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतन्त्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। उनके काव्यों में सामाजसुधार के कार्य के साथ-साथ महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी विद्यमान थी।
माखनलाल चतुर्वेदी
माखनलाल चतुर्वेदी भारत के एक कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यधिक प्रिय हुईं। उनकी भाषा सरल और ओजपूर्ण भावनाओं से पूर्ण थी। वह प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक भी रहें। वे एक सच्चे देशप्रेमी भी थे। उन्होंंने १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया तथा उन्हें जेल तक भी जाना पड़ा। उनकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण किया गया है, इसलिए वे सच्चे अर्थों में युग-चारण माने जाते हैं।
क्या आप जानना चाहेंगे :-
छायावाद की प्रवृत्तियां/विशेषताएं :-
आत्म अभिव्यक्ति
छायावादी कविता में कवियों ने अपने व्यक्तिगत जीवन के निजी प्रसंगों को खोजने का प्रयास किया। इन्होंने अपनी भावनाओं की खुलकर अभिव्यक्ति की।
सौन्दर्य चित्रण
छायावादी कवि मूलतः प्रेम व सौन्दर्य के कवि हैं। छायावादी कवियों ने नारी को उसकी प्रेमिका के रूप में ग्रहण किया जो हृदय व यौवन की सम्पूर्ण विभूतियों से परिपूर्ण है।
नारी का उदात्त रूप में चित्रण
छायावादी कवियों ने नारी को उदात्त रूप प्रदान करते हुए उसे पुरुष की प्रेरक शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया। नारी दया, क्षमा, साहस, प्रेम, करुणा की मूर्ति है, श्रद्धा की पात्र है।
प्रकृति चित्रण
पन्त जी ने यह माना कि प्रकृति जीवन के सर्वाधिक निकट है। इसके दावे को नजरअन्दाज़ नहीं किया जा सकता। मानव को प्रकृति ने सिर्फ दिया ही है बदले में वह कोई अपेक्षा नहीं करती। यही वजह है कि उन्होंने प्रकृति के प्रेम के आगे नारी प्रेम को भी त्याज्य माना।
दुःख और वेदना की अभिव्यक्ति
छायावादी काव्य में दुःख और वेदना की अभिव्यक्ति प्रमुखता महादेवी वर्मा तो वेदना की कवयित्री हैं। वे अपने जीवन की तुलना नीर भरी बदली से करती हैं।
रहस्यवाद
छायावाद की एक प्रमुख प्रवृत्ति रहस्यवाद है। पन्त की 'मौन निमन्त्रण' कविता में रहस्यवाद की अभिव्यक्ति अत्यन्त मनोरम ढंग से हुई है जहाँ कवि को प्रकृति के उपादानों में उस अज्ञात सत्ता के 'मौन निमन्त्रण' का आभास होता है
कल्पनाशीलता
छायावादियों ने काव्य कर्म के लिए कल्पनाशीलता को महत्त्वपूर्ण माना। प्रसिद्ध स्वच्छन्दतावादी आलोचक आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने साहित्य और कल्पना की अटूट रिश्ते की चर्चा की।
शिल्पगत विशेषताएँ
छायावादी कवियों ने अपने काव्य में लाक्षणिकता का प्रयोग किया है, जिससे भाषा अत्यन्त सशक्त एवं प्रभावमयी बन गई है। छायावादी कवियों ने अपने काव्य में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है;
बिम्ब योजना
छायावादी कवियों ने अपने काव्य में बिम्ब का प्रयोग अत्यन्त सफलतापूर्वक किया है। कवि शब्दों द्वारा ऐसा चित्र उपस्थित करता है, जिससे इन्द्रियों के सामने वर्ण्य-विषय का एक चित्र प्रकट हो जाता है, इसे वह पाठक के सम्मुख प्रस्तुत करना चाहता है। पाठक उस बिम्ब से तादात्म्य स्थापित कर लेता है। कहीं पर यह श्रव्य बिम्ब होता है, कहीं पर स्पर्श बिम्ब होता है
प्रतीक योजना
छायावादी काव्य की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता प्रतीक योजना है।
कवि छायावाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ
कवि
रचनाऍं
जयशंकर प्रसाद
उर्वशी, वनमिलन, प्रेमराज्य, अयोध्या का उद्धार, शोकोच्छवास, बभ्रुवाहन, कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, महाराणा का महत्व; झरना, आँसू, लहर, कामायनी
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, सरोज स्मृति, राम की शाक्ति पूजा
सुमित्रानंदन पंत
उच्छ्वास, ग्रन्थि, वीणा, पल्लव, गुंजन, युगान्त, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, रजतशिखर, उत्तरा, वाणी, पतझर, स्वर्ण काव्य, लोकायतन
महादेवी वर्मा
नीहार, रश्मि, नीरजा व सांध्य गीत
माखन लाल चतुर्वेदी
कैदी और कोकिला, हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिनी, पुष्प की अभिलाषा
दामोदर कवि
लखनसेन पद्मावती कथा'
सिया राम शरण गुप्त
मौर्य विजय, अनाथ, दूर्वादल, विषाद, आर्द्रा, पाथेय, मृण्मयी, बापू, दैनिकी
सुभद्रा कुमारी चौहान
त्रिधारा, मुकुल, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी, वीरों का कैसा हो वसंत
राम कुमार वर्मा
रूपराशि, निशीथ, चित्ररेखा, आकाशगंगा
उदय शंकर भट्ट
राका, मानसी, विसर्जन, युगदीप, अमृत और विष
वियोगी
निर्माल्य, एकतारा, कल्पना
लक्ष्मी नारायण मिश्र
अन्तर्जगत
छायावाद का निष्कर्ष
इस लेख में हमने छायावाद की सम्पूर्ण जानकारी को साक्षा करने की कोशिश की है। इसमें हमने छायावाद की परिभाषा, विशेषता, प्रमुख कवि एवं उनकी रचानाएँँ को देखा तथा सम्पूर्ण जानकारी पर विस्तृत शोध करके आपके समक्ष प्रस्तुत की गई है। पर फिर भी कोई श्रुटि आपको नजर आए तो हमें comments करके बता सकते है। इस लेख को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद!
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर:
हिंदी साहित्य का इतिहास
हिंदी साहित्य का काल विभाजन >> आदिकाल >> भक्तिकाल : 1. निर्गुण काव्य: (अ) संत काव्य, (ब) सूफी काव्य 2. सगुण काव्य: (अ) राम काव्य, (ब) कृष्ण काव्य >> रितिकाल >> आधुनिक काल : भारतेंदु युग >> व्दिवेदी युग >> छायावाद >>(स्वच्छंदतावाद) >> प्रगतिवाद >> प्रयोगवाद >> नई कविता