लक्ष्मी नारायण मिश्र (Lakshmi Narayan Misra) का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के जलालपुर नामक गाँव में हुआ था। उनके नाटक वर्ष 1930 और 1950 के बीच बहुत लोकप्रिय हुए थे और विद्यालयों व महाविद्यालयों में मंचित किए जाते थे। मिश्रजी द्वारा रचित 'अशोक' नाटक के बाद उन्होंने सामाजिक एवं सांस्कृतिक नाटकों का सृजन किया। इन्होंने 'राजयोग', 'सिन्दूर की होली', सन्यासी, राक्षस का मन्दिर, मुक्ति का रहस्य, आधी रात आदि नाटकों की रचना की। इन सामाजिक-सांस्कृतिक नाटकों के प्रकाशन के बाद मिश्रजी हिन्दी के नाट्य साहित्य के एक प्रमुख स्तम्भ मान लिए गए।
नाटक के प्रमुख पात्र
रजनीकांत :- भगवंत सिंह का भतीजा, उम्र 17-18 वर्ष तथा चन्द्रकला का प्रेमी
मनोजशंकर :- मुरारीलाल के मित्र का लड़का है।
मुरारीलाल :- डिप्टीकलेक्टर जिसकी उम्र 40 वर्ष है, दस हजार रुपये लेकर रजनीकांत के हत्या का मार्ग निरापद कर देता है।
माहिरअली :- मुरारीलाल का पुराना मुंशी है।
भगवंत सिंह :- रजनीकांत का हत्या करने वाला।
हरनंदन सिंह :- रजनीकांत के पिता का मामा और
डॉक्टर :- चंद्रकला का चिकित्सक
चंद्रकला :- नाटक की प्रमुख पात्रा मुरारीलाल की बेटी, जो रजनीकान्त से प्रेम करती है और मृत रजनीकांत के हाथों अपनी माँग में सिंदूर भरकर उसकी विधवा बन जाती है।
मनोरमा :- रुढ़िवादी सोच वाली स्त्री पात्र जो चंद्रकांता की विरोधी है।
सिन्दूर की होली नाटक के अंक
अंक :- तीन अंक
दृश्य :- तीन दृश्य
- पहला दृश्य :- 9 बजे का
- दूसरा दृश्य :- साध्यकाल का
- तीसरा दृश्य :- 10 बजे रात्रि का
नाटक की विषयवस्तु :-
- सिन्दूर की होली नाटक की घटना एक ही दिन की घटना है।
- इस नाटक में मिश्र चिरंतन नारित्व की समस्या का प्रतिपादन किया है।
- नाटककार ने इस नाटक के पात्रों के माध्यम से समकालीन भारतीय समाज में होने वाली नारी की समस्याओं का चित्रण किया है।
- सिंदूर की होली नाटक में वैधव्य की समस्या को केंद्र में रखा गया है।
- इस नाटक में चंद्रकला केंद्रीय स्त्री पात्र है। जिसके द्वारा प्रणय व वैधव्य का संघर्ष अभिव्यक्त हुआ है।
- इस नाटक में भ्रष्टाचारी कानून व्यवस्था, निस्वार्थ और आदर्श प्रेम, परिवारिक विवाद एवं निर्दोष की हत्या आदि विषयों का चित्रण किया गया है
सिन्दूर की होली नाटक की समीक्षा
सिन्दूर की होली रचना का प्रकाशन वर्ष 1934 में हुआ। इस नाटक में दो पात्र मनोरमा और चन्द्रकान्ता हैं, जो एक-दूसरे के विरोधी हैं। मनोरमा वैधव्य का समर्थन करती है और चन्द्रकान्ता रोमाण्टिक प्रेम का। मनोरमा का विधवा-विवाह का विरोध स्वयं बुद्धिवाद का विरोध करने लगता है और रोमाण्टिक चन्द्रकान्ता का तर्क बुद्धिवाद हो जाता है। रोमाण्टिक भावुकता और यथार्थवादी बुद्धिवाद की टकराहट मिश्र जी के नाटकों में इस ढंग से चित्रित हुई है कि मिश्रजी भावुकता से मुक्त नहीं हो पाते। प्रायः सभी पात्रों में भावुकता लिपटी हुई है। मिश्रजी के व्यक्तित्व में ये दोनों तत्त्व पाए जाते हैं वे भीतर से भावुक हैं और बाहर से बुद्धिवादी हैं।
नाटक के महत्वपूर्ण कथन
- “परिवार का योग्य व्यक्ति मरता है तो दुःख होता ही है लेकिन कोई करे तो क्या करे ? संसार मे कोई भी पूरे तौर पर सुखी तो रहने नहीं पाता। यही संसार की लीला है।”, कथन है। - मुरारीलाल का भगवन्तसिंह से
- “इस शैतान की कार्रवाइयों से घबराकर साथ ही साथ हँसना और रोना मुझे तो नहीं भूल रहा है । कच्ची उम्र में गिरस्ती का बोझा पड़ गया।”, कथन है। - माहिर अली का मुरारीलाल से
- “इसका मतलब कि कीचड़ में कमल नहीं उगना चाहिये । लेकिन जो स्वभाव है वह, कमल ताल के कीचड़ में उगेगा, लेकिन गंगा के बालू में नहीं। यही तो लोग नहीं समझते।”, कथन है। - मनोरमा का चन्द्रकला से
- “वह तो युग दूसरा था जब हृदय का रस संचित रहता था और या किसी ओर बह उठता था।”, कथन है। - चन्द्रकला का मनोरमा से
- “कानून और कला का साथ नहीं हो सकता न ? कानून दण्ड देगा, कला क्षमा करेगी। कानून सन्देह करेगा, कला विश्वास करेगी।”, कथन है। - मनोरमा का मुरारीलाल से
- “सत्य का बना लेना इतना सरल होता तो फिर संसार से झूठ का नाम निकल जाता या कम से कम शराबी की शराब, हत्यारे की हत्या, चोर की चोरी यह सब कुछ सत्य हो उठता।”, कथन है। - मनोरमा का मुरारीलाल से
- “पुरुष का सबसे बड़ा रोग स्त्री है और स्त्री का सब बड़ा रोग है पुरुष। यह रोग तो मनुष्यता का है।”, कथन है। - मनोरमा का मनोज शंकर से
- “मनुष्य अपनी आदिम अवस्था में आज से कहीं अधिक स्वस्थ था…इसीलिये कि तब डाक्टर न थे । मनुष्य था, और शक्ति और जीवन का केन्द्र प्रकृति थी। स्वास्थ्य कृत्रिम साधनों और बोतल की दवाओं ने स्वास्थ्य की जड़ काट दी। स्वास्थ्य तो आप लोगों की आलमारियों में बन्द है… लेकिन यह बहुत दिन नहीं चलेगा । प्रकृति अपना बदला लेगी।”, कथन है। - मनोज शंकर का डॉक्टर से
- “सारा संसार मरता है। एक ओर मृत्यु हो रही है दूसरी ओर जन्म हो रहा है । यह कोई नई बात नही है।”, कथन है। - मनोज शंकर का चंद्रकला से
- “पुरुष की चार हाथ की सेज में ही हमारा संसार सीमित हैं। पुरुष ने स्त्री की कमजोरी को उसका गुण बना दिया और वह उसी प्रशंसा में -सदैव के लिये आत्म-समर्पण कर बैठी। दूसरो की रक्षा मे हम अपनी रक्षा नहीं कर सकीं।, कथन है। - चंद्रकला का मनोरमा से
सिन्दूर की होली नाटक से संबंधित प्रश्नोत्तर
- मनोरमा
- चन्द्रकला
- मुरारीलाल
- मनोजशंकर
- 10 वर्ष
- 8 वर्ष
- 9 वर्ष
- 12 वर्ष
- मृत्यु के द्वारा पर
- यौवन के द्वार पर
- स्वर्ग के द्वार पर
- नरक के द्वार पर
- मनोजशंकर
- हरनन्दन सिंह
- डाक्टर
- रजनीकांत
- हास्य-प्रधान नाटक
- समस्यात्मक नाटक
- मनोवैज्ञानिक नाटक
- ऐतिहासिक नाटक
- दो सो
- चार सो
- पांच सो
- एक हजार
- मुरारी लाल
- मनोज शंकर
- माहिर अली
- इनमें से कोई नहीं
- मनोरमा
- चंद्रकांति
- चित्रलेखा
- इनमें से कोई नहीं
- पुरुष
- स्त्री
- दोनों
- इनमें से कोई नहीं
- रजनीकान्त की हत्या से
- रजनीकान्त के बंगले से
- डिप्दी मुरारीलाल के बंगले से
- मनोजशंकर के पिता की हत्या से