'राम की शक्ति पूजा' भी एक लम्बी कविता है। इसका कथानक बांग्ला की 'कृतिवास रामायण' पर आधारित है। इस कविता में कथा आधुनिकता से युक्त होकर अर्थ की कई भूमियों का स्पर्श करती है। इसके साथ ही इसमें इन्होंने युगीन चेतना व आत्मसंघर्ष का मनोवैज्ञानिक धरातल पर बड़ा ही प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत किया है। 'राम की शक्ति पूजा' में राम मानव अधिक हैं, ईश्वर कम। उन्हें शक्ति पूजा का सुझाव जामवन्त ने दिया। इस पूजा के बाद ही राम को रावण पर विजय का वरदान देवी से प्राप्त हुआ।
यहाँ राम की शक्ति पूजा कविता का सरल सारांश, विस्तृत व्याख्या, अनुच्छेद-वार विश्लेषण, पात्र-परिचय, विशेषताएँ, महत्त्वपूर्ण कथन और परीक्षा-उपयोगी प्रश्न-उत्तर दिए गए हैं। हिंदी साहित्य छात्रों और प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए उपयोगी सामग्री दी गई है।
'राम की शक्ति पूजा' कविता का सारांश
'राम की शक्ति-पूजा' सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण लंबी कथात्मक कविता है। इसका मुख्य कथानक कृतिवास की बंग्ला रामायण से लिया गया है। 'निराला बाल्यावस्था से लेकर युवाववस्था तक बंगाल में ही रहे और बंगाल में ही सबसे अधिक शक्ति का रूप दुर्गा की पूजा होती है।
उस समय शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार भारत देश के राजनीतज्ञों, साहित्यकारों और आम जनता पर कड़े प्रहार कर रही थी। ऐसे में निराला ने जहां एक ओर रामकथा के इस अंश को अपनी कविता का आधार बना कर उस निराश हताश जनता में नई चेतना पैदा करने का प्रयास किया और अपनी युगीन परिस्थितियों से लड़ने का साहस भी दिया।
इस कविता का सार निराला ने यह बताया कि एक दिन राम रावण युद्ध अनवरत जारी था। युद्ध भूमि युद्ध भूमि में राम का रण कौशल क्षीण हो रहा था। वो जो भी बाण चलाते वह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाता। तब राम युद्ध भूमि में दिव्य दृष्टि से देखे की वास्तव में आज क्या कारण है कि आज युद्ध में मेरा प्रभाव क्षीण हो रहा है।
तो उन्होंने देखा कि ओह आज तो साक्षात दुर्गा (शक्ति) रावण के रथ पर आरूढ़ है। तब राम किसी भी तरह युद्ध की आचार संहिता अर्थात् सूर्यास्त तक इंतजार किए। युद्ध से लौटकर जब उस दिन राम रात्रि विश्राम के समय अपने सेना नायकों के साथ शिला पट्टा पर बैठे थे तो पहली बार उनके नेत्र से आंसू गिरे। इस घटना से आहत होकर जामवंत ने पूछा प्रभु क्या बात है आज आपके नेत्र से आँसू। इस पर राम ने मात्र इतना ही बोला की अब ये युद्ध मैं जीत नहीं पाऊगाँ। जब पूरी सृष्टि जानती है कि मैं सत्य की रक्षा के लिए युद्धरत हूँ तो फिर शक्ति को मेरे साथ होना चाहिए।
आज दुर्गा अन्यायी के साथ है। "जिधर अन्याय शक्ति उधर "। यही मेरे आत्मीय कष्ट का कारण है। अन्यायी शक्तियाँ काफी संगठित है सबसे मूल बात यह है कि डर उनकी सबलता के कारण नहीं बल्कि मूल्यपरस्त शक्ति के उनसे हाथ मिलाने के कारण है।
राम कहते है नैतिक मूल्यों की समझ पर यह गहरी चोट है। राम की व्यथा मानव मन की पहचानी हुई व्यथा है। इस व्यथा को विभिषण समझ नहीं पाते मगर जामवन्त तुरंत समझ जाते है वे राम को सलाह देते है:-
"आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर, शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन" आराधन वैयक्तिक लाभ - अर्जन की प्रक्रिया है, रावण इसी से जुड़ा है इसके प्रत्युत्तर में दृढ़ आराधन बाह्य शक्ति से आंतरिक शक्ति के संतुलन की प्रक्रिया है।
फिर राम जी शक्ति आराधना करने और शक्ति को 108 कमल चढ़ाने का निर्णय करते है। शक्ति उनकी परीक्षा लेती है और एक कमल को छुपा देती है। तब राम जी को याद आता है कि उनकी माता उनको राजीव नयन कहती थी। ऐसे सोचकर वे अपनी एक आँख शक्ति को अर्पित करने का निर्णय करते है। तभी शक्ति प्रकट होती है और दर्शन देती है तथा राम जी को विजय होने का वरदान देती है।
'राम की शक्तिपूजा' के कुछ पदों की व्याख्या
ज्योति के पत्र पर लिखा
अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर।
आज का तीक्ष्ण शरविधृतक्षिप्रकर, वेगप्रखर,
शतशैल सम्वरणशील, नील नभगर्जित स्वर,
प्रतिपल परिवर्तित व्यूह
भेद कौशल समूह
राक्षस विरुद्ध प्रत्यूह,
व्याख्या -
कवि कहते हैं कि पूरे दिन के भयंकर युद्ध के चलते-चलते शाम हो गई। सूर्यास्त हो गया। दिन के अस्त होते हृदय पर मानो राम-रावण का आज का यह अनिर्णयकारी युद्ध इतिहास बनकर रह गया। कवि कहते हैं कि राम-रावण के दोनों पक्षों के योद्धा बड़ी ही तीव्रता से धनुषों पर बाण चढ़ाकर शत्रु पक्ष की ओर फेंक रहे थे। उनकी गति तीव्र थी। उन बाणों में सैकड़ों भालों को भी रोकने की क्षमता थी। उनके बाणों की टंकार से नीलाकाश गुंजायमान हो रहा था। दोनों पक्ष पल-पल में अपने नए व्यूह बदलते थे। दोनों पक्षों की ओर से शुत्र-पक्ष के व्यूहों और युद्ध-कौशल का भेदन किया जा रहा था। दोनों पक्ष एक-दूसरे को असफल बनाने के लिए प्रयत्नशील थे। राम की सेना अपने तीव्र प्रहारों से राक्षस सेना के कौशल को धता बता रही थी अर्थात् उनके कौशल का सफलता पूर्वक प्रतिहार कर रही थी।
विशेष -
- यहाँ तत्सम शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया गया है।
- उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा तथा युद्ध का समीप वर्णन होने के कारण स्वाभावोक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है।
ले आये कर पद क्षालनार्थ पटु हनुमान
अन्य वीर सर के गये तीन सन्ध्या विधान
वन्दना ईश की करने की लौटे सत्वर,
सब घेर राम को बैठे आज्ञा को तत्पर,
पीछे लक्ष्मण, सामने विभीषण भल्लधीर,
सुग्रीव, प्रान्त पर पादपद्य के महावीर,
यथुपति अन्य जो, यथास्थान हो निर्निमेष
देखते राम को जितसरोजमुख श्याम देश।
व्याख्या -
रघुकुल के मणि श्रेष्ठ राम एक श्वेत पत्थर पर बैठे हुए थे। उसी समय चतुर हनुमान उनके हाथ-पैरों को धोने के लिए साफ पानी ले आए। शेष सभी वीर योद्धा संध्याकालीन पूजा-पाठ के लिए समीप के सरोवर के किनारे पर चले आए। वे अपने संध्या के कर्मों से जल्दी ही निवृत्त हो वापिस आ गए। वे लोग राम की आज्ञा को सुनने के लिए तत्पर होकर उन्हें घेरकर बैठ गए। लक्ष्मण राम जी के पीछे और विभीषण सामने बैठे थे और धैर्यशाली जामवन्त भी उनके साथ बैठे थे। राम के एक ओर सुग्रीव थे और श्रीराम के चरणों के पास महावीर हनुमान जी बैठे थे। शेष सभी योद्धा अपने उचित और योग्य स्थानों पर बैठकर बिना पलके झपकाए रात्रि के नील कमल के समान सुन्दरता को जीतने वाले श्याम-मुख श्रीराम की ओर देख रहे थे।
विशेष -
- यहाँ रूपक, प्रतीक आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
- प्रस्तुत पद में कवि ने पौराणिक संस्कृति को देखते हुए यथा स्थान बैठने के विधान को स्पष्ट किया है।
- 'पाद-पद्म के महावीर' में कवि ने हनुमान जी की श्री राम के प्रति दास्य भक्ति को चित्रित किया है।
सहसा नभ से अंजनारूप का हुआ उदय।
बोली माता "तुमने रवि को जब लिया निगल
तब नहीं बोध था तुम्हें, रहे बालक केवल,
यह वही भाव कर रहा तुम्हें व्याकुल रह रहा।
यह लज्जा की है बात कि माँ रहती सह सह।
यह महाकाश, है जहाँ वास शिव का निर्मल,
पूजते जिन्हें श्रीराम उसे ग्रसने को चल
क्या नहीं कर रहे तुम अनर्थ? सोचो मन में,
क्या दी आज्ञा ऐसी कुछ श्री रघुनन्दन ने?
तुम सेवक हो, छोड़कर धर्म कर रहे कार्य,
क्या असम्भाव्य हो यह राघव के लिये धार्य?"
कपि हुए नम्र, क्षण में माता छवि हुई लीन,
उत्तरे धीरे धीरे गह प्रभुपद हुए दीन।
व्याख्या -
कवि कहते हैं कि हनुमान को बल से नहीं, बल्कि बुद्धिचार्य से जीतो, इतना पवन पुत्र हनुमान में आश्चर्य का भाव भरते हुए आकाश में हनुमान जी की महाशक्ति से कहकर भगवान शिव शान्त हो गए। तत्पश्चात् महाशक्ति माता अंजना के रूप में प्रकट हो गईं। अंजना रूपी माता ने कहा- तुमने जब बचपन में सूर्य निगल लिया था, तब तुम्हें उचित अनुचित का ज्ञान नहीं था। जब तुम बालक ही थे। आज फिर तुमने वही बाल-बुद्धि का प्रयोग कर स्वयं को व्याकुल कर रखा है। यह बड़े ही शर्म का विषय है कि मैं तुम्हारी माँ होकर तुम्हारे ये 'अनुचित कार्य सहती रहती हैं। क्या तुम्हें पता भी है, यह महान् आकाश है, जहाँ निर्मल स्वभाव वाले भगवान् शिव का वास है, जिसे तुम्हारे आराध्य श्रीराम भी पूजते हैं और तुम उसी को प्रसने चले हो। हे हनुमान, क्या तुम यह अनर्थ नहीं कर रहे हो? जरा इस पर मन में विचार करो। क्या ऐसा कार्य करने की आज्ञा तुम्हें रघुनन्दन श्रीराम ने दी है। तुम अपने स्वामी श्रीराम के सेवक हो। अपने धर्म को छोड़कर, जो तुम यह कार्य कर रहे हो, क्या इसे श्रीराम के लिए भी सहन करना सम्भव होगा?
इतना सुनते ही महावीर हनुमान शान्त हो गए और कुछ क्षणों में ही उनके सामने से उनकी माता अंजना की छवि विलीन हो गई। हुनमान जी धीरे-धीरे आकाश से उतरे और प्रभु श्रीराम के चरणों को पकड़कर उनकी सेवा में रत हो गए।
विशेष -
- यहाँ महावीर हनुमान की विकरालता के साथ-साथ उनकी सरलता का भी परिचय कवि ने दिया है।
- प्रस्तुत पद में समासोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया है।
राम की शक्ति पूजा कविता के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य
✅ आधार - कृतिवास रामायण (बांग्ला)
✅ प्रकाशन वर्ष - 1936 ई.
✅ संकलन - अनामिका
✅ पहली बार छपी - दैनिक, भारत, इलाहबाद
✅ 312 पंक्तियों की लंबी कविता, प्रबंधात्मक कविता, मन्त्र काव्य, शक्ति काव्य
✅ इस कविता में अनुच्छेद -11
✅ विषय वस्तु - 8 दिनों की
✅ प्रमुख संवाद - राम, सुग्रीव और जामवंत
✅ रस - वीर या शांत, उदात्त गुण
✅ प्रमुख पात्र - राम, लक्ष्मण, हनुमान, सुग्रीव, विभीषण, जामवंत, अंगद, नल, गवाक्ष, महाशक्ति.
✅ गौण पात्र - शिव, अंजना
✅ शिविर में भाग - सुग्रीव, विभीषण, जामवंत, अंगद, हनुमान, नल, नील और गवाक्ष.
राम की शक्ति पूजा' कविता महत्त्वपूर्ण कथन
- ये अश्रु राम के - हनुमान
- समवरो, देवि निज तेज नहीं वानर-शिव
- तुमने जब रवि को लिया निगल - अंजना
- हे सखा - विभीषण
- आज प्रसन्न वदन वह नहीं देख कर जिसे - विभीषण
- रावण-लम्पट, खल कल्मष, गताचार - विभीषण
- मित्रवर, विजय होगी न समर -राम विभीषण से
- अन्याय जिधर है, उधर शक्ति -राम विभीषण से
- आया न समझ में यह दैवी विधान -राम विभीषण से
- देखा है महाशक्ति रावण को लिए अंक -राम विभीषण से
- रघुवर विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण - जामवंत
- आराधन का दृढ आराधन से दो उत्तर -जामवंत (पुरुष सिंह -राम )
- शक्ति की करो मौलिक कल्पना करो पूजन - जामवंत
- छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो रघुनन्दन -जामवंत
- उत्तम निश्चय यह भल्लनाथ - राम
- मातः दशभुजा, विश्वज्योति मैं हूँ आश्रित -राम
- देखो, बंधुवर! सामने स्थित जो वह भूधर - राम
- चाहिए हमें एक सौ आठ कपि इंदीवर - राम ने हनुमान से कहा था
- धिक साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध - राम
- यह है उपाय - राम (खुद की आँख निकलने हेतु )
- साधु साधु साधक धीर धर्म धन धान्य राम - महाशक्ति
- होगी जय, होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन - महाशक्ति
राम की शक्ति पूजा के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. निराला जी की कविता 'राम की शक्ति' पूजा है।
- कालजयी रचना
- सर्जनात्मकता
- काव्यात्मक रचना
- कोई नहीं
उत्तर - 1. कालजयी रचना
प्रश्न 2. 'राम की शक्ति पूजा' निराला ने कब लिखा?
- 1936
- 1937
- 1938
- 1941
उत्तर - 1. 1936
प्रश्न 3. किस कविता में राम को अवतार न मानकर एक बरि पुरुष के रूप में देखा गया है
- कुकुरमुता
- तोड़ती पथर
- अपराजिता
- राम की शक्ति पूजा
उत्तर - 4. राम की शक्ति पूजा
प्रश्न 4. आधुनिकता के परिपेक्ष में जीवन संघर्ष के उतार-चढ़ाव आशा-निराशा के पल प्रतिपल मन की संवेदनाओं का सुन्दर सजीव रूप का चित्रण किया गया है।
- सरोज स्मृति में
- राम की शक्ति पूजा में
- कुकुरमुता
- तोड़ती पथर
उत्तर - 2. राम की शक्ति पूजा
प्रश्न 5. बीरता उदारता तथा करूणा का भाव निराला के व्यत्तित्व में रही है किसमें
- राम की शक्ति पूजा
- सरोज स्मृति
- अपराजिता
- बसन्त की परी के प्रति
उत्तर - 1. राम की शक्ति पूजा
प्रस्तुति पंक्ति कि कविता की है।
- अशारण-शरण राम
- भजन कर हरि के चरण, मन
- हे मानस के सकाल
- राम की शक्ति पूजा
उत्तर - 4. राम की शक्ति पूजा
वेग-प्रखर,-शतशेलसम्वरणशील,
नील नभ गर्जित-स्वर, प्रतिपल-परिवर्तित-व्यूह-भेद-कौशल-समूह, -
राक्षस-विरुद्ध प्रत्यूह, क्रुद्ध-कपि-विषम-हूह
प्रस्तुत पंक्ति किस कविता का है
- सरोज स्मृति
- राम की शक्ति पूजा
- अशरण-शरणराम
- हेमानस मेशकल
उत्तर - 2. राम की शक्ति पूजा
बिंध महोल्लास से बार-बार आकाश विकाल।
प्रस्तुत पंक्ति किस कविता का है
- सरोज स्मृति
- राम की शक्ति पूजा
- अशरण-शरण राम
- हे मानस के समाल
उत्तर - 2. राम की शक्ति पूजा
'हे सखा', विभीषण बोले, "आज प्रसन्न वदन
वह नहीं देख कर जिसे समग्र वीर वानर-
भल्लूक विगत-श्रम हो पाते जीवन-निर्जर;
प्रस्तुत पंक्ति में कवि है -
- सूरदास
- कविरदास
- तुलसीदास
- सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
उत्तर - 4. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
प्रश्न 10. राम की शक्तिपूजा में युद्ध के प्रथम दो पहर कैसे बीते
- राघव-लाघव
- रावण-वारण
- राघव-लाघव, रावण-वारण
- रावण-त्वारण
उत्तर - 3. राघव-लाघव, रावण-वारण

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