डॉ. नामवर सिंह (Dr. Namvar Singh) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और प्रमुख समकालीन आलोचक हैं। संस्कृति और सौन्दर्य नामवर सिंह जी का प्रसिद्ध निबंध है, जिसे UGC NET के पाठ्यक्रम में सामाहित्य किया गया है। इस पोस्ट में नामवर जी का जीवन परिचय एवं संस्कृति और सौन्दर्य निबंध की व्याख्या एवं इससे संबंधित प्रश्नोत्तर के बारे में चर्चा की गई है। इसे जानने के लिए आप इस पोस्ट को अंत तक आवश्यक पढ़े।
लेखक परिचय : नामवर सिंह
पूरा नाम :- डॉ. नामवर सिंह (Dr. Namvar Singh)
जन्म :- 1 मई, 1927 (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
मृत्यु :- 19 फरवरी 2019
पुरस्कार :- उपाधि साहित्य अकादमी पुरस्कार (1971), शलाका सम्मान (1991) एवं साहित्य भूषण सम्मान (1993)
नामवर सिंह की प्रमुख रचनाएँ
नामवर सिंह की रचनाएं :- हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग (1952), छायावाद (1955), इतिहास ऐतिहासिक चित्रण (1957), आधुनिक साहित्य की अभिव्यक्तियाँ (1965), कहानी : नई कहानी (1965), कविता के नये चित्रण (1968), दूसरी परंपरा की खोज (1982)।
नामवर सिंह के निबंध :- बकलम खुद (1951 ई.), संस्कृति और सौंदर्य (1982 ई.), वाद विवाद संवाद (1989 ई.), संस्कृतिद (1989 ई.), संस्कृति और सौंदर्य निबंध 1982 ई .।
संस्कृति और सौन्दर्य - नामवर सिंह
नामवर सिंह ने 'संस्कृति और सौन्दर्य' निबन्ध में द्विवेदी जी के संस्कृति एवं सौन्दर्य सम्बन्धी दृष्टिकोण की व्यापकता और प्रासंगिकता का उद्घाटन किया है। इस लेख में नामवर सिंह ने दो बातों- संस्कृति और सौन्दर्य पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया है। लेखक ने समकालीन सन्दर्भों में संस्कृति के प्रति आसक्ति या मोह को जड़ता बताया है।
नामवर जी द्वारा इस निबन्ध के माध्यम से द्विवेदी जी के संस्कृति चिन्तन को उजागर करने का मूल उद्देश्य यह था कि तथाकथित खुद को आधुनिक और प्रगतिशील समझने वाले संस्कृति को लेकर कितने जड़ हैं, जबकि संस्कार एवं विचार पूर्णतः धार्मिक और स्वभाव से आचार्य और कुछ हद तक दक्षिणपन्थी समझे जाने वाले द्विवेदी जी का संस्कृति चिन्तन कितना प्रगतिशील एवं उदार है। नामवर सिंह ने द्विवेदी के सात्विक सौन्दर्य बोध को 'निराला' के सौन्दर्य बोध से जोड़ते हुए कहा है – “श्याम तन भर बँधा यौवन।" वे प्रगतिशील सौन्दर्य चेतना का आधुनिक क्रम निर्धारित करते हैं।
नामवर सिंह जी ने द्विवेदी जी की लालित्य मीमांसा के तीन सूत्रों की चर्चा की है। पहले सूत्र के अनुसार द्विवेदी जी सौन्दर्य को सौन्दर्य न कहकर 'लालित्य' कहना चाहते थे। दूसरे सूत्र के अनुसार द्विवेदी जी की दृष्टि में कला और सौन्दर्य की सृष्टि विलास मात्र नहीं, बल्कि बन्धनों के विरुद्ध विद्रोह है। तीसरे सूत्र की चर्चा करते हुए नामवर सिंह जी लिखते हैं- “द्विवेदी जी की 'लालित्य मीमांसा' का तीसरा सूत्र है कि सौन्दर्य एक सृजना है- मनुष्य की क्षमता का परिणाम है।”
अन्त में नामवर सिंह जी द्विवेदी जी के सौन्दर्य सम्बन्धी चिन्तन का सार प्रस्तुत करते हुए कहते हैं—“जीवन का समग्र विकास ही सौन्दर्य है। यह सौन्दर्य वस्तुतः एक सृजन-व्यापार है। इस सृजने की क्षमता मनुष्य में अन्तर्निहित है। वह सौन्दर्य-: -सृजन की क्षमता के कारण ही मनुष्य है। इस सृजन व्यापार का अर्थ है बन्धनों से विद्रोह। इस प्रकार सौन्दर्य विद्रोह है— मानव मुक्ति का प्रयास है।”
निबंध के महत्वपूर्ण बिंदु:-
- ससंस्कृति और सौंदर्य निबंध मूलत: हजारी प्रसाद द्विवेदी पर आधारित है।
- इस निबंध का प्रकाशन वर्ष - 1982 ई.।
- इस निबंध में नामवर जी ने सौन्दर्यपरक दृष्टि का मूल्यांकन किया है ।
- 'संस्कृति और सौंदर्य' निबंध में नामवर सिंह ने लिखा है - " सच कहा जाए तो आर्य संस्कृति की शुद्धता के अंहकार पर चोट करने के लिए ही ' अशोक के फूल ' लिखा गया है, प्रकृति - वर्णन करने के लिए नहीं।
- निबंधकार नामवर सिंह एक प्रगतिवादी समीक्षक है।
- नामवर सिंह रूपवाद या कलावाद के खतरों के प्रति सजग हैं।
- निबंधकार नामवर सिंह एक आलोचक हैं, सिद्धांतवादी नहीं ।
- निबंध में निम्न बातों पर गौर किया गया है:-
- जीवन का समग्र विकास ही सौंदर्य है।
- यह सौंदर्य वस्तुतः एक सृजन व्यापर है।
- इस सृजन की क्षमता मनुष्य में अन्तर्निहित है।
- वह इस सौंदर्य सृजन की क्षमता के कारण ही मनुष्य है।
- इस सृजन व्यापर का अर्थ है बंधन से विद्रोह।
- इस प्रकार सौंदर्य विद्रोह है - मानव मुक्ति का प्रयास है।
संस्कृति और सौन्दर्य निबंध से संबंधित प्रश्नोत्तर:
1) प्रकृति वर्णन
2) संस्कृति की मिश्रता को उजागर करना
3) आर्य संस्कृति की शुद्धता के अहंकार पर चोट
4) सामासिक संस्कृति को प्रोत्साहन
प्रश्न 02. 'संस्कृति और सौंदर्य' निबंध मूलत: निम्न में से किस रचनाकार पर आधारित है?
1) हजारीप्रसाद द्विवेदी
2) विद्यानिवास मिश्र
3) रामदरश मिश्र
4) विवेकी राय
उत्तर: 1) हजारीप्रसाद द्विवेदी