‘जागो फिर एक बार’ कविता : सार, विश्लेषण, व्याख्या एवं विशेषताएँ

हिंदी साहित्य के नवजागरण काल की प्रेरणादायक कविताओं में सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की रचना ‘जागो फिर एक बार’ विशेष स्थान रखती है। यह कविता न केवल राष्ट्रीय चेतना का आह्वान करती है, बल्कि वर्षों से सोए हुए आत्मविश्वास, साहस और शक्ति को पुनः जागृत करने का संदेश देती है। निराला जी ने प्रकृति के विविध रूपों—प्रभात, उषा, तारे, कलियों और चकोर—के माध्यम से जनमानस को आलस्य, दीनता और कायरता त्यागकर उठ खड़े होने की प्रेरणा दी है।

इस ब्लॉग में हम इस प्रसिद्ध कविता का सरल सार, पंक्ति-दर-पंक्ति व्याख्या, इसके प्रतीकात्मक अर्थ, अलंकार एवं नवजागरण की भावना को गहराई से समझेंगे। यदि आप हिंदी कविता, साहित्य विश्लेषण या निराला की रचनाओं को जानना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।

जागो फिर एक बार कविता

 'जागो फिर एक बार' कविता का सारांश

'जागो फिर एक बार' कविता 'निराला' जी का एक नवजागरण का गीत है। नवजागरण युग की प्रमुख पुकार बन्धनों के प्रति जागरूक होने और उनके तोड़ने के लिए प्रयत्नशील होने से है। वस्तुतः यह राष्ट्रीय उद्बोधन का युग है, जिसमें दासता और अन्याय को समाप्त करके मुक्ति पाने का संघर्ष व इच्छा जगाई है। 'जागो फिर एक बार' उनकी प्रसिद्ध कविता है, जिसमें प्रकृति और ऐतिहासिक सांस्कृतिक प्रतीकों के माध्यम से जनमानस को जगाने, उसमें आत्मविश्वास का संचार करने का प्रयास है। बन्धनों को तोड़ने के लिए सक्रिय होना आवश्यक है। एक ओर तो कवि प्रभात बेला के माध्यम से जागरण का आह्वान देता है। वहीं दूसरी ओर हजारों वर्षों से आलस्य की नींद में सोए जनसामान्य को जगाते हुए कवि परम्परा और इतिहास के उदाहरण से प्रेरणा लेने का सन्देश देता है। देश के निवासी वीर है, लेकिन दीनता और कायरता से पीड़ित हैं। कवि उन्हें अपनी शक्ति का बोध कराता हुआ कहता है

"शेरों की माँद में 
आया है आज स्यार 
जागो फिर एक बार"

सोई हुई जनशक्ति को जगाना, उसे आत्मबोध कराना कवि अपना दायित्व समझता है। वह भारतीय जनता को याद दिलाता है कि तुम्हारी दीन-हीन पीड़ित दशा के लिए तुम स्वयं ही जिम्मेदार हो। शासक का तुम्हारे प्रति जो पाशविक व्यवहार है, उसके परिणामतः तुममें आलस्य और कायरता आ गई है, जिस कारण तुम्हारी आत्मशक्ति और शारीरिक बल सुप्त प्राय हो गया है। अपनी श्रेष्ठता को पहचानते हुए जागो और अपने शौर्य और शक्ति को सिद्ध करो

'जागो फिर एक बार' के कुछ पदों की व्याख्या

(1)
जागो फिर एक बार !
प्यार से जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें 
अरुण-पंख तरुण-किरण 
खड़ी खोलती है द्वार
जागो फिर एक बार!

व्याख्या - 

निराला जी देश के नवयुवकों में चेतना भरते हुए कहते हैं कि हे युवाओं जागरूक हो जाओ और अपने अधिकार के लिए संघर्ष करो और बन्धन को तोड़ने के लिए प्रयत्नशील रहो। कवि कहता है कि आकाश के तारे भी तुम्हें प्यार से जगाते हुए हार मान गए हैं अर्थात् भोर हो चुकी है अब तुम्हें जागना ही होगा।

कवि कहते हैं कि सुबह की बेला में उषा की तरुण किरण अपने लालिमा लिए पंखों को लेकर तुम्हारे द्वारों को खोल चुकी है, इसलिए हे युवाओं जाग जाओ! कहने का तात्पर्य यही है कि कवि युवाओं में नव चेतना को जागृत कर रहा है। वह उन्हें अन्याय के प्रति जागरूक करना चाहता है। वह चाहता है कि अब दासता और अन्याय के विरुद्ध अपनी चेतना को जगाकर खड़े हो जाओ। कवि देश के युवाओं को मुक्ति के लिए प्रयत्नशील रहने के लिए प्रेरित कर रहा है।

विशेष - 

  • प्रस्तुत कविता 'जागो एक बार' एक नवजागरण गीत है।
  • यहाँ मानवीयकरण अलंकार (अरुण-पंख तरुण किरण खड़ी खोलती है द्वार) का प्रयोग किया गया है।

(2)
अस्ताचल चले रवि, 
शशि-छवि विभावरी में 
चित्रित हुई है देख 
यामिनीगन्धा जगी, 
एकटक चकोर-कोर दर्शन-प्रिय 
आशाओं भरी मौन भाषा बहु भावमयी 
घेर रहा चन्द्र को चाव से 
आया कलियों में मधुर 
मद-उर-यौवन उभार-
जागो फिर एक बार!

व्याख्या -

कवि कहता है कि सूर्य अस्ताचल की ओर रुख कर चुका है। चन्द्रमा की छवि रात के आकाश में चित्रित हो चुकी है। रजनीगन्धा के पुष्प भी खिल चुके हैं। चकोर भी अपने प्रियतय को निहारने के लिए मौन भाषा में आशाओं के साथ चन्द्रमा के चारों ओर चक्कर लगा रहा है। कलियाँ विकसित हो चुकी हैं अर्थात् उनमें नव यौवन उभर आया है। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करते हुए नवजागरण का आह्वान किया है। कवि कहता है कि प्रकृति में जिस प्रकार सुबह होते ही नए-नए मनमोहक परिवर्तन होने लगते हैं, उसी तरह हे नवयुवकों! अब आलस्य को त्याग दो। इन गुलामी के अँधेरों में सोए हुए काफी समय बीत चुका है। अब संघर्षरत होकर इस दासता के बन्धन से मुक्त होने का प्रयत्न करो।

विशेष -

  • यहाँ कवि ने प्रकृति का अनुपम चित्र खींच दिया है।
  • उपरोक्त पद में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है।

'जागो फिर एक बार' (कविता) के संबंध में महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

✅ 'जागो फिर एक बार' कविता के रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी हैं।

✅ निराला जी की यह कविता 'परिमल' कविता संग्रह में संकलित है। जिसका प्रकाशन 1930 ई. में हुआ था।

✅ इस कविता में कवि ने भारत के अतीत का गौरवमय चित्रण किया है। इसी संदर्भ में कवि भारतियों को जागते रहने का संदेश देते हुए कहते हैं।

'जागो फिर एक बार' कविता के प्रश्न उत्तर

प्रश्‍न 1. महाप्राण निराला कैसे कवि थे।

उत्तर- विद्रोही विचारधारा के


प्रश्‍न 2. कौन छायावाद के चार प्रमुख स्‍तंभ में से एक हैं।

उत्तर- निराला जी


प्रश्‍न 3. निराला जी की कविता मे किस चीज की प्रधानता हैं।

उत्तर- दार्शिनिकता की 


प्रश्‍न 4. किस ने छायावाद को जन्म दिया है।

उत्तर-  निराला जी ने


प्रश्‍न 5. जागो फिर एक बार कविता के कवि कोन हैं

उत्तर- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला


प्रश्‍न 6. निराला जी ने इस कविता में कैसी बोली का प्रयोग किया हैं

उत्तर-  खड़ी बोली


प्रश्‍न 7. क्या अदभुत और अनूठा हैं

उत्तर-  भाषा-प्रयोग


प्रश्‍न 8. निराला के काव्य में किस का चित्रण हैं।

उत्तर- छायावाद, रहस्यवाद, प्रगतिवाद का


प्रश्‍न 9. निराला का किस पर जबरदस्त अधिकार हैं

उत्तर- भाषा पर


प्रश्‍न 10. हिंदी साहित्य में कौन एक प्रबल शक्ति के रूप मे प्रकट हुए हैं

उत्तर- निराला जी


प्रश्‍न 11. प्रगतिवाद में शाब्दिक दृष्टि से प्रगति का आशय है।

उत्तर- आगे बढ़ना


प्रश्‍न 12. प्रस्तुत कविता मे किस और गौरव का स्मरण दिलाया है। के अतीत के गर्व

उत्तर- भारत के


प्रश्‍न 13. देश भक्त किस का स्मरण करा रहा है

उत्तर- गुरु गोविंद सिंह का


प्रश्‍न 14. हिंदी साहित्य में सूर्यकांत त्रिपाठी किस नाम से जाने जाते हैं। 

उत्तर- 'महाप्राण निराला'


प्रश्‍न 15. किसको आधुनिक हिंदी भाषा के डिक्टेटर कहते है।

उत्तर- निराला जी को


प्रश्‍न 16. निराला जी किस के पोषक कवि हैं

उत्तर- प्रगतिवाद के


प्रश्‍न 17. प्रस्तुत कविता मे किस की भावना जाग्रत करने का का ओज भरा संदेश दिया है।

उत्तर- देशप्रेम की

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ