देवरानी-जेठानी की कहानी (उपन्‍यास) : पण्डित गौरीदत्त । Devrani Jethani ki Kahani - Pandit Gauri Dutt

पंडित गौरीदत्त (Pandit Gauri Dutt) - देवरानी-जेठानी की कहानी (1870) उपन्यास को हिन्दी का प्रथम उपन्यास होने का श्रेय जाता है। इसके उपन्यासकारं हिन्दी व देवनागरी के महान सेवक पण्डित गौरीदत्त हैं। इन्होंने मेरठ में 'नागरी प्रचारिणी सभा' की स्थापना की तथा देवनागरी लिपि के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक ग्रन्थ लिखे और अनेक पत्र-पत्रिकाएँ सम्पादित कीं। प्रस्तुत उपन्यास न केवल अपने कथ्य में गहरी सामाजिकता और यथार्थता को प्रस्तुत करता है अपितु भाषा-शैली और शिल्प की दृष्टि से भी अपने समय का सफल उपन्यास है।

इस पोस्‍ट के माध्‍यम से पण्डित गौरीदत्त के संक्षिप्‍त जीवन परिचय तथा इनके देवरानी-जेठानी की कहानी उपन्‍यास के पात्र, उद्देश्‍य, कथन, समीक्षा एवं महत्‍वपूर्ण प्रश्‍नोत्तर की चर्चा करेंगे। 

Devrani Jethani ki Kahani Upanyas - Pandit Gauri Dutt

    पंडित गौरीदत्त का जीवन परिचय

    लेखक का नाम :- पंडित गौरीदत्त 

    जन्म :- 1836 ( लुधियाना, पंजाब )

    मृत्यु :- 8 फ़रवरी 1906 

    पिता :- पंडित नाथू मिश्र

    सम्पादन एवं प्रकाशन :-

    1. नागरी-सौ अक्षर
    2. अक्षर दीपिका
    3. नागरी की गुप्त वार्ता
    4. लिपि बोधिनी
    5. देवनागरी के भजन और गौरी नागरी कोष
    6. नागरी और उर्दू का स्वांग
    7. देवनागरी गजट
    8. नागरी पत्रिका

    महत्वपूर्ण बिंदु :-

    1. पंडित गौरी दत्त ने मेरठ में नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की।
    2. नागरी लिपि परिषद ने गौरी दत्त के सम्मान में 'गौरीदत्त नागरी सेवी सम्मान' आरम्भ किया।
    3. इनकी सबसे महत्‍वपूर्ण कृति देवरानी जेठानी (1870) है। 
    4. गोपाल राय ने देवरानी जेठानी की कहानी को हिंदी का प्रथम उपन्यास माना है।

    देवरानी-जेठानी की कहानी (उपन्‍यास) : पण्डित गौरीदत्त

    देवरानी-जेठानी की कहानी (Devrani Jethani Ki Kahani) उपन्यास की अन्तर्वस्तु में तत्कालीन समाज का स्पष्ट चित्रण किया गया है। इसमें समकालीन नारी की सामाजिक-पारिवारिक स्थिति ही लेखक की चिन्ता का विषय थी। बालविवाह, विवाह में फिजूल खर्ची, बँटवारा, वृद्धों और बहुओं की समस्याएँ, स्त्री-शिक्षा आदि समस्याओं का वर्णन करने में इस उपन्यास का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अपनी भाषा के माध्यम से यह उपन्यास आज के साहित्यकारों का मार्गदर्शन भी करता है।

    देवरानी-जेठानी की कहानी उपन्यास के प्रमुख पात्र

    देवरानी-जेठानी की कहानी उपन्यास के प्रमुख पात्र निम्‍न है :-

    लाला सर्वसुख :- यह उपन्यास का प्रमुख पात्र है तथा मेरठ का एक प्रसिद्ध बनिया है, जो समय-समय पर उपन्यास की कथा को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    छोटेलाल :- छोटेलाल उपन्यास का मुख्य तथा सर्वसुख का छोटा बेटा है। वह पढ़ा-लिखा समझदार पात्र है।

    छोटी बहू (देवरानी) :- छोटेलाल की पत्नी तथा उपन्यास की प्रमुख नारी पात्र है, जो पढ़ी-लिखी होने के साथ-साथ समझदार भी है। यह उपन्यास में जगह-जगह अपनी समझदारी का परिचय देती है।

    दौलतराम :- सर्वसुख का बड़ा बेटा है।  (इसकी पुत्री - मुलिया तथा छोटा पुत्र - कन्हैया)

    ज्ञानो (जेठानी) :- ज्ञानो दौलतराम की पत्नी तथा घर की बड़ी बहू है जो अनपढ़ है। वह सदैव अपनी सास तथा देवरानी की आलोचना करती है। 

    पार्वती तथा सुखदेई :- सर्वसुख की बेटियाँ 

    देवरानी-जेठानी की कहानी उपन्यास का विषय

    देवरानी-जेठानी की कहानी का विषय है:-
    1. इस उपन्‍यास के कथानक का केन्द्रीय विषय एक बनिया परिवार है।
    2. इस उपन्यास का उद्देश्य भारतीय समाज में व्‍याप्‍त रूढ़िवादी सोच को रेखांकित कर व नवजागरित करना।
    3. इस उपन्यास में स्त्रियों के बच्चों के पालन-पोषण में चेचक का टीका न लगवाना और बच्‍चों को गहने पहनाने आदि की झगड़ालूपन, अंधविश्वास अरुचि तथा उन्हें छोटी उम्र में बच्चों आलोचना की गई है।
    4. बाल विवाह, विवाह में फिजूलखर्ची, परिवारों में अलगावू, बँटवारा, स्त्रियों की आभूषण प्रियता, शिक्षा, स्त्री शिक्षा को बढ़ावा, माँ बाप का प्यार, बहुओं की समस्या आदि पर संपूर्ण कहानी केन्द्रित है। 
    5. पढ़ी-लिखी तथा अनपढ़ महिलाओं के गुण-दोषों का चित्रण किया गया है।  

     देवरानी-जेठानी की कहानी उपन्यास की समीक्षा

    'देवरानी-जेठानी की कहानी' उपन्यास की समीक्षा ‘देवरानी-जेठानी की कहानी' पुनर्जागरण की चेतना से सीधी जुड़ी हुई रचना है। पुनर्जागरण ने भारतीय समाज के जिस पक्ष को सबसे अधिक झकझोरा था, वह उसका नारी-विषयक दृष्टिकोण और उसके प्रति उसका व्यवहार था। अशिक्षा के कारण मध्यवर्गीय परिवारों की स्त्रियों की स्थिति दयनीय थी। नारी शिक्षा सामाजिक परिवर्तन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

    उपन्यास में सर्वसुख नाम का एक बनिया है, जिसके दो पुत्र (दौलत और छोटेलाल) तथा दो पुत्रियाँ (पार्वती और सुखदेई) हैं। सर्वसुख के बड़े बेटे दौलत की पत्नी बड़ी बहू (ज्ञानो) है तथा छोटे बेटे 'छोटेलाल' की पत्नी छोटी बहू के नाम से जानी जाती है। छोटी बहू (देवरानी) पढ़ी-लिखी तथा समझदार है जबकि बड़ी बहू (जेठानी) अनपढ़ है तथा सदैव अपनी सास तथा देवरानी की आलोचना करती है।

    छोटी बहू संस्कारी थी उसे धन सम्पत्ति तथा जायदाद का कोई लालच नहीं था, किन्तु बड़ी बहू लालची स्वभाव की थी। अपने लालची स्वभाव के कारण ही उसने अपने पति दौलतराम और सास को छोटी बहू के विरुद्ध भड़काकर घर का बँटवारा करवा दिया। उपन्यास के अन्त में भी उसकी स्वार्थ प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। जब जायदाद के बँटवारे में मण्डी की दुकान दौलतराम के हिस्से में आई थी, तब भी बड़ी बहू खुश नहीं थी, क्योंकि वह छोटेलाल के हिस्से में हवेली आने की बात पर वह मन ही मन असन्तुष्ट थी। इसलिए हवेली से जाते समय वह दो खिड़कियों के दरवाजे तथा चौखट उतार कर अपने साथ ले गई। इससे स्पष्ट होता है कि व्यक्ति को चाहे जितनी भी धन-सम्पत्ति मिल जाए, परन्तु वह दूसरों की सम्पत्ति देखकर कभी खुश नहीं रह सकता।

    तत्कालीन समाज में बाल विवाह का प्रचलन था, किन्तु छोटेलाल और उसकी बहू (छोटी बहू) ने अपने पुत्रों का बाल-विवाह न कराकर उनकी पढ़ाई- लिखाई पर अधिक ध्यान दिया। 'नन्हे' (छोटी बहू और छोटेलाल का पुत्र) की सगाई कई जगह से आई, किन्तु छोटेलाल और उसकी बहू ने सगाई वापस कर दी। पुराने समाज में यह बहुत बड़ी बात थी, किन्तु छोटेलाल और उसकी पत्नी ने समाज के विपरीत जाकर यह निर्णय लिया। इसके साथ ही उस समय विधवा विवाह का प्रचलन भी नहीं था। यदि किसी स्त्री का पति अल्पायु में स्वर्ग सिधार जाए तो उसकी पत्नी को पुनर्विवाह का कोई अधिकार नहीं था, किन्तु इस उपन्यास में छोटेलाल की बहू की मामा की बेटी जिसका नौ वर्ष की आयु में विवाह हुआ था, उसका पति पतंग उड़ाते हुए छत से नीचे गिर गया। और उसकी मृत्यु हो गई। इस कारण वह मात्र 10 वर्ष की अवस्था में विधवा हो गई, उसने अपने जीवन के सब रास-रंग खो दिए, जिसके अभी खेलने-खाने के दिन थे, वह दिन उसको कठिनाई में बिताने पड़े। छोटेलाल की बहू के प्रयासों से उसका पुनर्विवाह कराया गया।

    उपन्‍यास की भाषा - शैली :- 

    देवरानी-जेठानी की कहानी की भाषा का जनभाषा से सहज जुड़ाव, किस्सागोई अर्थात् कथा कहने के तरीके (शब्द में ही छिपे हुए अर्थ) का अनूठा संस्कार, लोकभाषा के अर्थगर्भित शब्दों का सचेत प्रयोग, बोलचाल और उसमें मुहावरेदार लोकोक्तियों का जुड़ाव-ये सब विशिष्टताएँ उपन्यास की कथा की भाषा का सृजन करती हैं। इसके साथ ही पण्डित गौरीदत्त ने अपने उपन्यास में बोलचाल के शब्द युग्मों का सफल प्रयोग भी किया है; जैसे-  “और जब कभी भाव चढ़ा देखता तो हजार का नाज-पात लेकर दुकान में डाल देता और फायदा देख उसे बेच डालता। ब्याज-बट्टा और गिरवी-पाते की भी उसे बहुतेरी आमदनी थी। हाट-हवेली, धन-दौलत, दूध-पूत, परमेश्वर का दिया उसके पास सब कुछ था।" 

    उपन्‍यास का निष्‍कर्ष :- 

    हम सह सकते है कि 'देवरानी-जेठानी की कहानी' निश्चय ही नए समय की ऐसी पुस्तक है, जिससे आज का उपन्यास लेखक भी कुछ दिशा-निर्देश पा सकता है। पण्डित गौरीदत्त ने अपनी इस कृति से स्पष्ट कर दिया है कि वे इसकी रचना स्त्री-शिक्षा के लिए ही कर रहे थे। इस तरह यह उपन्यास हमारी हिन्दी भाषा के लिए एक अनमोल धरोहर है।

    यह भी देखें 👇

    हबीब तनवीर :- आगरा बाज़ार
    सर्वेश्वरदयाल सक्सेना :- बकरी

    देवरानी-जेठानी की कहानी उपन्‍यास के महत्वपूर्ण कथन 

    1. बिरादरी के लोग हँसेंगे और तट्टै मारेंगे कि फलाने के घर तुगाइयों में लड़ाई हुई थी तो उसने अपने बड़े बेटे को जुदा कर दिया। देखो यह कैसी चहु आई इसने हमारी बात में बट्टा लगाया और घर तीन तेरह कर दिया। - सर्वसुख 
    2. वह लड़का बड़ा बुद्धिमान और भाग्यदाता होगा क्योंकि इसके छीदे दाँत हैं. चोड़ा गाधा है और हँसगुख है। - पुरोहित 
    3. लाला जी अब तुम बैठ के भगवान का भजन करो और इस जगत की माया मोह को छोड़ो। - छोटेलाल 
    4. मनुष्य को चाहिए कि जितनी चादर देखे उत्तने पाँव प्रसारे। मुझे यह बात अच्छी नहीं लगती जैसे और हमारे बनिये छाट-हवेली गिर्वा रखके वा दुकान में से एजार दो हजार रुपये जो बड़ी कठिनाई से पैदा किये हैं, बिवाह में लगाकर बिगड़ जाते हैं। - लाला सर्वसुखजी 
    5. तुम दौलत राम की सगाई रख लो। आई हुई लक्ष्मी घर से कोई नहीं करता। और रुपया-पैसा हाथ-पैरों का मेल है। जागे लीठिया लौंडे का भाग है। - सुखदेई की माँ 
    6. भगवान उत्ते बेरी यहाँ भी चैन नहीं दे - शानो 
    7. बहिन जिस पै जैसी आती होगी वैसीं करेगी। और यह मेरी देवरानी बड़ी खोट और चुपचोट्टी है। मेरा देवर सार बीजें तावे है। दोनों खसम जोरू खावे हैं। किसी को एक चीज नहीं दिखलाते। - ज्ञानो बड़ी बहू 
    8. तुम्हारा केसा स्वभाव से बाहर की लुगाइयों के सामने तो बोली ठाली की बात मत कहा करो। इसमें घर की बदनामी है। - छोटी बहू(ज्ञानो से)
    9. हमारी वह कहावत है- दांत घिसे और खुर घिसे, पीठ बोझ ना ले। ऐसे बड़े बेल को कौन बंथि भूस दे। - लाला सर्वसुख 

     देवरानी-जेठानी की कहानी उपन्यास महत्वपूर्ण तथ्य

    1. देवरानी जेठानी की कहानी को गोपाल राय तथा डॉ. पुष्पपाल सिंह ने हिन्दी का पहला उपन्यास माना है।
    2. सर्वप्रथम यह उपन्यास मेरठ के एक लीयो उस 'छापाखाना-ए-जियाई' में प्रकाशित हुआ।
    3. इसकी 500 प्रतियां प्रकाशित की गई थी। इसकी एक प्रति का मूल्य उस समय '12 आने' था ।
    4. इसकी प्रति अभी भी नेशनल लाइब्रेरी कलकत्ता में सुरक्षित है।
    5. 150 वर्ष पूर्व संक्रमणकालीन भारत की संस्कृति को जानने के लिए इससे बेहतर उपन्यास नहीं हो सकता।
    6. यह उपन्यास तत्कालीन सामाजिक परिदृश्य से गहरी पहचान स्थापित कराता है।
    7. यह छोटे आकार का सिर्फ 35 पृष्ठों की कृति है।
    8. इस उपन्यास में विराम-चिह्नों का प्रयोग नहीं किया गया है या बहुत ही कम मात्रा में दृष्टिगोचर होता है।
    Devrani Jethani ki Kahani Upanyas - Pandit Gauri Dutt

    Devrani Jethani ki Kahani Upanyas MCQ

    प्रश्‍न 01. देवरानी जेठानी की कहानी उपन्यास का प्रकाशन वर्ष है।

    1. 1970
    2. 1870
    3. 1872
    4. 1888

    उत्तर: 2. 1870


    प्रश्‍न 02. देवरानी जेठानी की कहानी उपन्यास के संपादक है।

    1. गौरीदन्त
    2. शुक्ल
    3. देवराज सिंह
    4. पुष्पाल सिंह

    उत्तर: 1. गौरीदन्त


    प्रश्‍न 03. देवरानी जेठानी की कहानी उपन्यास को पहला उपन्यास किसने माना है?

    A, शुक्ल
    B, गोपाल राय
    C, नामवर सिंह
    D, पुष्पाल सिंह

    1. A, B
    2. B, C
    3. B, D
    4. इनमें से कोई नहीं। 

    उत्तर: 3. B, D


    प्रश्‍न 04. निम्नलिखित में से देवरानी जेठानी की कहानी उपन्यास कहा से प्रकाशित हुआ है।

    1. मेरठ- एक लीथो प्रेस छापा खाना ए जिया
    2. मेरठ - एक लीथो बुक सेंटर से
    3. दिल्ली राजकमल प्रकाशन 
    4. आगरा - एक लीथो प्रेस छापाखान ए जियाई

    उत्तर:  1. मेरठ- एक लीथो प्रेस छापा खाना ए जियाई


    प्रश्‍न 05. देवरानी जेठानी की कहानी उपन्यास की 500 प्रतियों का कितना मूल्य था?

    1. 25 आना
    2. 10 आना
    3. 12 आना
    4. 8 आना

    उत्तर: 3. 12 आना


    प्रश्‍न 06. देवरानी जेठानी की कहानी उपन्यास को गोपाल राय कहा से प्रकाशित कराया था

    1. निकेतन पटना - 1966
    2. निकेतन काशी - 1870
    3. निकेतन - दिल्ली - 1970
    4. निकेतन - कोलकता - 1980

    उत्तर: 1. निकेतन पटना - 1966


    प्रश्‍न 07. ''दया उनकी मुझे पर अधिक वित्त से जो मेरी कहानी पढ़े चिन्त से। रही भूल मुझे से जो इसमे कही, बना अपनी पुस्तक में लेबे वही।'' निम्नलिखित में से यह पंक्ति किसकी है?

    1. इंशाअल्लाह खा
    2. गौरीदन्त
    3. विश्वनाथ त्रिपाठी
    4. प्रेमचन्द

    उत्तर: 2. गौरीदन्त


    प्रश्‍न 08. निम्नलिखित में से में देवरानी जेठानी की कहानी उपन्यास मे सर्वसुख को मां बाप कितने साल के उम्र पर छोड़कर मर गए थे।

    1. 4 साल
    2. 10 साल
    3. 5 साल
    4. 7 साल

    उत्तर: 3. 5 साल


    प्रश्‍न 09. निम्नलिखित में से में देवरानी जेठानी की कहानी उपन्यास मे सर्वसुख के मां बाप किस बीमारी से मर गए थे?

    1. चेचक
    2. मलेरिया
    3. हैजे
    4. डगू

    उत्तर: 3. हैजे

     

    प्रश्‍न 10. "आई हुई लक्ष्मी घर से कोई नही फेरता है, और रुपया पैसा हाथ पैरों का मैल है। निम्नलिखित में से देवरानी जेठानी की कहानी उपन्यास में किसका कथन है

    1. पिता जी
    2. माता जी
    3. देवरानी
    4. जेठानी

    उत्तर: 1. पिता जी

    यह भी पढ़े: 

    { इकाई – VI, हिन्दी उपन्यास }

    लाला श्रीनिवास दास :परीक्षा गुरू
    प्रेमचन्द :गोदान
    हजारी प्रसाद द्विवेदी :बाणभट्ट की आत्मकथा
    फणीश्वर नाथ रेणु :मैला आंचल
    यशपाल :- झूठा सच
    अमृत लाल नागर :- मानस का हंस
    भीष्म साहनी :तमस
    श्रीलाल शुक्ल :राग दरबारी
    कृष्णा सोबती :जिन्दगी नामा
    मन्नू भंडारी :आपका बंटी
    जगदीश चन्द्र :- धरती धन न अपना