राग दरबारी (उपन्यास) : श्रीलाल शुक्ल । Rag Darbari - Shrilal Shukla

श्रीलाल शुक्ल (31 दिसम्बर 1925 - 28 अक्टूबर 2011) हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। वह समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात थे। श्रीलाल शुक्ल अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी भाषा के विद्वान् थे। उनका सबसे लोकप्रिय उपन्यास 'राग दरबारी' वर्ष 1968 में छपा।

इस पोस्‍ट के माध्‍यम से  श्रीलाल शुक्ल के संक्षिप्‍त जीवन परिचय तथा इनके राग दरबारी उपन्‍यास के पात्र, उद्देश्‍य, कथन, समीक्षा एवं महत्‍वपूर्ण प्रश्‍नोत्तर की चर्चा करेंगे। 

राग दरबारी उपन्यास समीक्षा PDF

श्रीलाल शुक्ल का जीवन परिचय

लेखक का नाम :-श्रीलाल शुक्ल (Shrilal Shukla)

जन्म :- 31 दिसंबर, 1925 (अतरौली गाँव, लखनऊ, उत्तर प्रदेश) 

मृत्यु :- 28 अक्टूबर, 2011

भाषा :- अवधी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी

प्रमुख कृतियां :- 

  • उपन्‍यास -
    1. सूनी घाट का सूरज (1957)
    2. अज्ञातवास (1962)
    3. ‘राग दरबारी (1968)
    4. सीमाएँ टूटती हैं (1973)
    5. ‘पहला पड़ाव’(1987)
    6. ‘विश्रामपुर का संत (1998)
    7. राग विराग (2001)

  • व्यंग्य संग्रह - 

    1. अंगद का पाँव (1958)
    2. यहाँ से वहाँ (1970)
    3. उमरावनगर में कुछ दिन (1986)
    4. कुछ ज़मीन में कुछ हवा में (1990)
    5. आओ बैठ लें कुछ देरे (1995)

  • कहानी संग्रह - यह घर मेरा नहीं, इस उम्र में, सुरक्षा तथा अन्य कहानियाँ। 
  • आलोचना - अज्ञेय : कुछ राग और कुछ रंग, अमृतलाल नागर आदि। 
  • बाल साहित्य - बब्बर सिंह और उसके साथी 

पुरस्कार :- पद्मभूषण सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, ज्ञानपीठ पुरस्‍कार आदि। 

राग दरबारी (उपन्यास) : श्रीलाल शुक्ल

श्रीलाल शुक्ल हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। वह समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिए विख्यात थे।  उपन्यास 'राग दरबारी' (1968) के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, उनके इस उपन्यास पर एक दूरदर्शन-धारावाहिक का निर्माण भी हुआ। श्रीलाल शुक्ल को भारत सरकार ने वर्ष 2008 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया।

राग दरबारी उपन्यास के प्रमुख पात्र

राग दरबारी उपन्यास के प्रमुख पात्र निम्‍न है :-

रंगनाथ :- उपन्यास का मुख्य पात्र है, जो इतिहास विषय से एम. ए. करने के बाद पीएच. डी. शोध कार्य कर रहा है। रंगनाथ स्वास्थ्य लाभ हेतु अपने मामा वैद्य जी के गाँव शिवपालगंज आता है। गाँव में व्याप्त भ्रष्टाचार को देखते हुए भी वह कुछ नहीं कर पाता और समाज का एक नपुसक विद्रोही नेता सा प्रतीत होता है।

वैद्य जी :- उपन्यास के नायक पात्र के रूप में आदि से अन्त तक कथा के मुख्य केन्द्र में बने रहते हैं। वे व्यवहारकुशल, दोहरे चरित्र, स्वार्थी, रिश्वतखोर जैसे गुणों से परिपूर्ण भारतीय राजनीति के प्रतीक हैं।

रुप्पन बाबू :- रुप्पन वैद्य जी का छोटा बेटा है। यह आज की क्रान्तिकारी युवा पीढ़ी का प्रतीक है। परीक्षा में पास होने की रुचि न होने के कारण पिछले तीन वर्ष से दसवीं कक्षा में ही पढ़ रहा है। यह पात्र एक रंगीले नेता के रूप में हमारे समक्ष आता है।

बद्री पहलवान :- वैद्य जी का बड़ा बेटा है। यह पहलवान मनोवृत्ति वाला तथा पिता के अन्याय में साथ देने वाला उनका दाहिना हाथ है।

छोटे पहलवान :- गांव की राजनीति में एक सक्रिय पार्टनर बद्री अग्रवाल के एक, गांव की राजनीति में एक सक्रिय सहभागिता है और वैद्यजी द्वारा बुलाए गए बैठकों में लगातार सहभागिता है।

प्रिंसिपल साहिब :- यह हंगामल विद्यालय के प्रिंसिपल हैं, जो चाटुकार, चुगलखोर तथा अपने आप में चालाक व्यक्ति हैं।

खन्ना लेक्चरार :- ये इण्टरमीडिएट कॉलेज में इतिहास के लेक्चरार हैं। वे एक शोषित अध्यापक, ईमानदार व विद्रोही तथा समझौता न करने वाला व्यक्ति है।

जोगनाथ :- स्थानीय गुंडे, लगभग हमेशा नशे में वह प्रत्येक 2 सिलेबल्स के बीच "एफ" ध्वनि डालने से एक अनूठी भाषा बोलता है।

सनीचर :- असली नाम मंगलदास, लेकिन लोग उसे सनीचर कहते हैं। वह वैद्यजी का नौकर है और बाद में वैद्यजी द्वारा राजनीतिक रणनीति के उपयोग के साथ गांव की कठपुतली प्रधान (नेता) बनाया गया था।

लंगड़ :- वह अस्थायी आम आदमी का प्रतिनिधि है जो भ्रष्ट व्यवस्था का शिकार होता है।

बेला :- उपन्यास की एकमाल नारी पात्रा। रुप्पन' और बेद्री पहलवान दोनों के साथ प्रेम-प्रसंग होता है। बाद में दोनों ही इसे छोड़ देते हैं।

राग दरबारी उपन्यास की समीक्षा

'राग दरबारी' उपन्यास श्रीलाल शुक्ल जी का व्यंग्यपरक उपन्यास है। यह उपन्यास स्वतन्त्रता के बाद भारत के ग्रामीण परिवेश तथा अन्य क्षेत्रों में फैली अराजकता व अव्यवस्था को व्यग्यात्मक रूप से उजागर करता है। राग दरबारी उपन्यास की कथाभूमि शिवपालगंज है, किन्तु शुरू होती है रंगनाथ के शिवपालगंज आने से रंगनाथ के गाँव की तरफ जाने से उपन्यास की कथा का आरम्भ होता है और वहां से उसके वापस शहर आने पर कथा का अन्त होता है। इस पूरे घटनाक्रम के बीच में हैं 'शिवपालगंज', जो हिन्दुस्तान का कोई भी गाँव हो सकता है। गाँव में रंगनाथ के मामा रहते हैं या कहा जाए कि उनके साथ गाँव रहता है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मामा जी का नाम वैद्य जी से ही प्रसिद्ध है। वैद्य जी के दो पुत्र है, बद्री पहलवान और रुप्पन बाबू। ये दोनो वैद्य जी की सत्ता के सच्चे अधिकारी है। इस कथा की परिस्थिति अगर शिवपालगंज है। तो वो निश्चित रूप से 'छंगामल इण्टरमीडिएट कॉलेज' है।

'राग दरबारी' आज़ादी के बाद स्थापित हुई व्यवस्था में ग्राम्य जीवन की समीक्षा है। जो 35 परिच्छेदों में विभाजित है। 1947 के बाद उत्तर भारत के गाँवो में जन्मी विसंगतियों को इस उपन्यास में समेटने का प्रयास किया गया है। यह उपन्यास स्वातन्त्र्योत्तर भारतीय ग्रामीण जीवन और राजनीति का जीता जागता दर्पण है, जो यथार्थ को ही नहीं दिखाता बल्कि सभ्यता की समीक्षा भी करता चलता है। उपन्यास में आदर्शवाद और यथार्थवाद के बीच की खीचतान को दिखाया गया है। शहर का पढ़ा-लिखा नौजवान (रंगनाथ) जब किताबी आदशों को लेकर गांव पहुँचता है, तो उसे हर एक संस्था भ्रष्ट लगती है। वो हर समय यही कोशिश करता है कि कैसे इस व्यवस्था को सुधारा जाए।

नौजवान ने जब देखा कि अन्याय के विरुद्ध लड़ने वालों का पलड़ा कमजोर हो रहा है, तो उसने उन लोगों की तरफ से आवाज उठाने की कोशिश भी की और उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से बेईमानी के विरुद्ध लड़ते रहने के लिए उकसाया भी। इतना सब करने के बाद भी जब उसकी कोशिशों का कोई परिणाम नहीं निकला तो वह हार मान लेता है और गाँव छोड़कर जाने का फैसला करता है।

कथा के अन्य पात्र उस नौजवान से कहते हैं- "जाओगे कहाँ हर जगह तो बेईमानी और भ्रष्टाचार व्याप्त है।" नौजवान का इस बात पर विचार है कि, 'क्या छोटे-बड़े रूप में हर जगह शासन ऐसे ही चलता है।"

उपन्यासकार का उद्देश्य स्वातन्त्र्योत्तर भारत के प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और विकृतियों को उभारकर दिखाना है। इसलिए शुक्ल जी ने वैद्य जी के व्यक्तित्व में व्याप्त उनकी मानसिकता तथा उनके कारनामों को बड़ी गहराई, सूक्ष्मता एवं विस्तार से उठाया है। वैद्य जी जैसे भ्रष्टाचारी एवं ढोगी व्यक्ति हर युग में होते रहे हैं। लेखक के शब्दों में "वैद्य जी थे और रहेंगे।" अर्थात् वैद्य जी एक काल के लिए नहीं एक परम्परा व एक रवैये एक व्यवहार के प्रतीक है। 

श्रीलाल शुक्ल जी ने वैद्य जी के माध्यम से स्वार्थी, तिकड़मी, सत्तालोलुप एवं दिखावे के सन्त जैसे लोगों का सजीव चित्र प्रस्तुत किया है, जो बगुला भगत है। सभी भ्रष्टाचारों, बुराइयों और अनैतिक कार्यों के पीछे उनका हाथ रहता है, किन्तु साथ ही उनके मुँह से प्रेम, सत्य, अहिसा तथा गीता की उक्तियाँ फुलझड़ी, की तरह निकलकर वातावरण को आलोकित करती रहती है।

राग दरबारी हिन्दी का ऐसा पहला उपन्यास है, जो आदि से अन्त तक व्यंग्य से पूर्ण है। इसका प्रत्येक पात्र साक्षात् व्यंग्य की सन्तति प्रतीत होता है तथा प्रत्येक वाक्य व्यंग्य के परिवार का लघु सदस्य है। वैद्य जो अपने गाँव के एकमात्र इण्टर कॉलेज के अध्यक्ष ही नहीं अपितु सर्वेसर्वा कॉलेज के सभी शिक्षक और व्याख्याता वैद्य जी के कृपापात्र हैं। वैद्य जी विद्यालय में इतिहास के शिक्षक है, जो इण्टर कॉलिज में पढ़ाने के साथ-साथ आटा पोसने की चक्की भी चलाते है। अगर विद्यालय में रहते हुए भी बिजली आ जाती है, तो वे क्लास छोड़कर चले जाते हैं।

उपन्यास के एक प्रसंग में एक शिक्षक इण्टर के छात्रों को इतिहास पढ़ा रहे थे। वैद्य जी अपनी आदतानुसार क्लास छोड़कर चक्की चलाने चले गए। प्रिंसिपल ने उन दसवीं के छात्रों को इण्टर वाले छात्रों के साथ बिठाने के लिए शिक्षक से कहा तो उन्होंने कहा, दसवीं के छात्र इण्टरमीडिएट वाले लड़को के साथ कैसे पढ़ सकते हैं? प्रिंसिपल ने कहा- "जिस तरह अपर और लोअर क्लास में यात्री एक ही बस में सफर करते हैं, उसी तरह लड़के भी साथ-साथ पढ़ लेंगे।"

उपन्यासकार के रूप में श्रीलाल शुक्ल को प्रतिष्ठित करने वाला उपन्यास 'राग दरबारी है। इस उपन्यास की अत्युत्तम उपलब्धियों में आंचलिक सन्दर्भ में प्रतीकात्मक एवं व्यंग्यात्मक भाषायी सौष्ठव की गणना की जा सकती है। भाषा सौन्दर्य राग दरबारी की प्राणवान विशेषता है। लखनऊ नगर के ग्रामीण अंचल शिवपालगंज की बोलचाल की भाषा के विशिष्ट शब्दों से अलंकृत 'राग दरबारी', उपन्यास की दिव्य भाषा पाठको को मन्त्रमुग्ध कर देती है। उन आचालक शब्दों का सौंदर्य अपने में सर्वथा मौलिक है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि 'राग दरबारी' की भाषा सरल सामान्य हिन्दी होते हुए भी उसमे स्थानीय शब्दों की प्रचुरता है। यद्यपि उपन्यासकार ने अंचल का परिचय नहीं दिया, फिर भी उन्नाव जिले के कुछ ग्रामों के नाम तथा इस जिले की प्रकृति है से मेल खाती चरित्र वस्तु स्पष्ट कर देती है कि उन्नाव, फतेहपुर में प्रचलित शब्दों के बहुत ही सटीक प्रयोग ने 'राग दरबारी के सौन्दर्य को बढ़ा दिया है। 

अन्ततः कहा जा सकता है कि श्रीलाल शुक्ल ने इस उपन्यास के माध्यम से हमारे समाज के चरित्र को सामने रख दिया है अब यह हम पर निर्भर है कि हम इस समाज को किस दिशा में ले जाते हैं। 

हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और बुद्धिजीवी श्री अरुण कमल जी ने 'राग दरबारी' पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि "राग दरबारी समाप्त करके मुझे ऐसा लगा जैसे में नरक की यात्रा से लौटा हूँ, जिसे लोग तीर्थ यात्रा मानते रहे हैं। श्रीलाल शुक्ल का सबसे बड़ा काम यही है कि उन्होंने भारतीय गाँव के सनातन मिथक को तोड़ डाला।"

रागदरबारी उपन्यास के महत्त्वपूर्ण कथन

  1. कहा तो घास खोद रहा हूँ। इसी को अंगरेज़ी में रिसर्च कहते हैं। - रंगनाथ
  2. हर हिंदुस्तानी की यही हालत है। दो पैसे की जहाँ क़िफ़ायत हो, वह उधर ही मुँह मारता है। - मोतीराम 
  3. यूनिवर्सिटियों की हालत अस्तबल-जैसी है, बड़े-बड़े प्रोफेसर महज भाड़े के टट्टू हैं।
  4. वे पैदायशी नेता थे क्योंकि उनके बाप भी नेता थे।
  5. ऐसी कौन सहकारी यूनियन है जिसमें भ्रष्टाचार नहीं। - वैद्यजी
  6. सार्वजनिक जीवन का मूलमंत्र है- सबको दयनीय समझो, सबका काम करो, और सबसे काम लो। -रूप्पन बाबू
  7. वर्तमान शिक्षा पद्धति रास्ते में पड़ी हुई कुतिया है जिसे कोई भी सात मार सकता है।
  8. गालियों का मौलिक महत्व आवाज़ की ऊँचाई में है।
  9. मैं 'तू' और 'तू' मैं को मिटाकर 'मैं' की जगह 'तू' और 'तू' की जगह मैं बन जाना चाहता है। - वैद्यजी
  10. घोड़े की लात और मर्द की बात कभी खाली नहीं जाती। - चपरासी
  11. तुम मँझोली हैसियत के मनुष्य हो और मनुष्यता के कीचड़ में फँस गये हो तुम्हारे चारों ओर कीचड़ ही-कीचड़ है। - रंगनाथ
  12. उच्च शिक्षा रास्ते में पड़ी वह कुतिया है, जिसे कोई भी लात मारकर निकल सकता है। - स्वयं लेखक
  13. विलायत का एक चक्कर लगाने के लिए यदि साबित करना पड़ जाये कि हम अपने बाप की औलाद नहीं हैं, तो उसे साबित कर देंगे। - प्रींसिपल
  14. जहाँ जाओगे वहाँ, तुम्हें किसी खन्ना की ही जगह मिलेगी। - प्रींसिपल
  15. तुम्हारा गियर तो बिल्कुल अपने देश की हुकूमत जैसा है। - रंगनाथ
  16. हृदय परिवर्तन के लिए रौब की जरूरत होती है और रौब के लिए अंग्रेजी की।
  17. लेक्चर का मजा तो तब है जब सुननेवाले भी समझे मैं बकवास कर रहा हूं और बोलने वाला भी समझे कि मैं बकवास कर रहा हूँ।

रागदरबारी उपन्‍यास के बारे में विद्वानों के कथन

  1. डॉ. गोपाल राय के अनुसार - " 'रागदरबारी' उत्तरप्रेश के पूर्वांचल के एक कस्बानुमा गाँव शिवपालगंज की कहानी है उस गाँव की जिंदगीं का दस्तावेज़, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ग्राम विकास और 'ग़रीबी हटाओ' के आकर्षण नारों के बावजूद घिसठ रहीं हैं।"
  2. नेमिचंद्र जैन के अनुसार - आज के भारतीय जीवन की विभिन्न स्थितियों के प्रभावी चित्र 'रागदरबारी' में है जो हमारे अति-परिचित अनुभव को फ़िर से ताज़ा कर जाते हैं।"
  3. डॉ. रामदरश मिश्र के अनुसार -  आज की राजनीति ने भारतीय गाँव की ज़िंदगी को कितना तोड़ दिया है उसमें कैसे-कैसे अजनबी स्वर उभार दिये हैं। लेखक ने बहुत सहज भाव से इस यथार्थ को मूर्त्त किया है।"
  4. डॉ. चन्द्रभानु सोनवणे  के अनुसार -  श्रीलाल शुक्ल ने शिवपालगंज के प्रवृत्तियों का उद्घाटन अपना उद्देश्य समझा है। अतः मनुष्य के मन के भीतर छिपे हुए सूक्ष्म-से-सूक्ष्म पहलुओं को संवादों के माध्यम से उद्घाटित कर खोखले मनुष्य के कृत्रिम रूप को उजागर किया है।"।
  5. डॉ. नामवर सिंह  के अनुसार - रागदरबारी जैसे उपन्यास के लेखक श्रीलाल शुक्ल को इतनी देर से ज्ञानपीठ पुरस्कार देने के लिए ज्ञानपीठ अकादमी को पश्चाताप करना होगा। ज्ञानपीठ इसी पश्चाताप की हक़दार है।"

रागदरबारी उपन्‍यास के महत्वपूर्ण बिंदु

    1. इसमें लेखक ने स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता का बड़ा ही सटीक वर्णन किया है।
    2. यह व्यंग्य की उच्च कोटि का उपन्यास है। 
    3. रागदरबार का अनुवाद अंग्रेजी सहित लगभग 16 भारतीय भाषाओं में हो चुका है।
    4. रागुदरबारी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के एक कस्बा नुमा गाँव शिवपालगंज की कहानी है, जो 35 अध्यायों में विभक्त है।
    5. रागदरबारी एक दूरदर्शन व्यारावाहिक के रूप में (1986) नजर आता है।
    6. इसका लेखन 1964 के अंत में शुरू हुआ और अपने अंतिम रूप में 1967 में समाप्त हुआ।
    7. उपन्यास में अनेक पात्र हैं और लगभग सभी किरदारों को समान अहमियत दी गई है।
    8. वर्तमान समय तक इस पुस्तक की 5 लाख से ज्यादा प्रतियां विक चुकी हैं। 
    9. इस उपन्यास में आदर्शवाद और यथार्थवाद की खींचतान को दिखाया गया है।
    10. कहानी का मुख्य बिंदु यही है कि जब आदर्शवाद और यथार्थवाद टकराते हैं तो पहले हार मानने वाला आदर्शवाद ही होता है। 
    11. 50 साल पहले जिसे श्रीलाल शुक्लजी ने आज का भविष्य तय किया वह वास्तव में सच साबित हुआ।
Rag Darbari Upanyas - Shrilal Shukla

Rag Darbari Upanyas MCQ

प्रश्‍न 01. राग दरबारी उपन्यास में किस गांव का उल्लेख हुआ है
  1. मेरीगंज
  2. बेलारी
  3. शिवपालगंज
  4. इनमें से कोई नहीं
उत्तर: 3. शिवपालगंज


प्रश्‍न 02. रागदरबारी उपन्यास की एकलौती स्त्री पात्र कौन सी है
  1. कमली
  2. बेला
  3. फुलवा
  4. गुलाबो
उत्तर: 2. बेला


प्रश्‍न 03. निम्नलिखित में से कौन-सा उपन्यास व्यंगपरक उपन्यास है?
  1. राग दरबारी
  2. आपका बण्टी
  3. धरती धन न अपना
  4. मैला आँचल
उत्तर: 1. राग दरबारी


प्रश्‍न 04. वर्तमान शिक्षा पद्धति रास्ते में बड़ी कुतिया है जिसे कोई भी लात मार सकता है " यह कथन किस उपन्यास का है
  1. मैला आंचल
  2. राग दरबारी
  3. गोदान
  4. परीक्षा गुरु
उत्तर: 2. राग दरबारी


प्रश्‍न 05. रागदरबारी के संदर्भ में असत्य है ?
  1. 'रागदरबारी' उपन्यास का प्रकाशन 1968 ई. में हुआ
  2. इस पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ
  3. 'रागदरबारी' उपन्यास रिपोतार्ज शैली में रचित हैं।
  4. इसकी कथावस्तु मोहनलालगंज टाउन एरिया पर आधारित है
उत्तर: 4. इसकी कथावस्तु मोहनलालगंज टाउन एरिया पर आधारित है


प्रश्‍न 06. श्रीलाल शुक्ल के किस उपन्यास का पन्द्रह भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी में भी अनुवाद प्रकाशित हुआ?
  1. विश्रामपुर का सन्त
  2. राग दरबारी
  3. सूनी घाट का सूरज
  4. आदमी का जहर
उत्तर: 3. राग दरबारी


प्रश्‍न 07. 'राग दरबारी' उपन्यास में किस जीवन की समीक्षा है?
  1. शहरी जीवन
  2. आधुनिक जीवन
  3. ग्रामीण जीवन
  4. इनमें से कोई नहीं
उत्तर: 3. ग्रामीण जीवन


प्रश्‍न 08. 'राग दरबारी' उपन्यास में कान-सा पात्र नायक के रूप में आदि से अन्त तंक कथा के केन्द्र में बना रहता है?
  1. रंगनाथ
  2. रुप्पन
  3. वैद्यजी
  4. ब्रदी पहलवान
उत्तर: 2. वैद्यजी


प्रश्‍न 09. 'राग दरबारी' उपन्यास की भाषा कैसी है?
  1. व्यंग्यात्मक
  2. प्रतीकात्मक
  3. आँचलिक
  4. ये सभी
उत्तर: 1. व्यंग्यात्मक


प्रश्‍न 10. 'राग दरबारी' उपन्यास में बेला किसकी प्रेमी थी ?
  1. रंगनाथ
  2. रुप्पन
  3. मोचीराम
  4. सनीचर
उत्तर: 2. रुप्प