धनपत राय श्रीवास्तव जो प्रेमचंद (Premchand) नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया।
इस पोस्ट के माध्यम से मुंशी जी के संक्षिप्त जीवन परिचय तथा इनके सर्वप्रसिद्ध गोदान उपन्यास के पात्र, उद्देश्य, कथन, समीक्षा एवं महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर की चर्चा करेंगे।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
लेखक का नाम :- मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand)
पूरा नाम :- धनपत राय श्रीवास्तव व अन्य नाम नवाब राय
जन्म :- 31 जुलाई 1880, लमही (वाराणसी)
मृत्यु :- 8 अक्टूबर 1936, वाराणसी
पिता व माता :- मुंशी अजायब लाल और आनन्दी देवी
पत्नी :- शिवरानी देवी
साहित्यिक कृतियाँ :-
1. उपन्यास -- सेवासदन (1918)
- गोदान (1936)
- कर्मभूमि (1932)
- निर्मला (1925)
- कफ़न (1936)
- किशना (1907)
- रूठी रानी (1907)
- प्रेमाश्रम (1922)
- रंगभूमि (1925)
- कायाकल्प (1926)
- जलवए ईसार (1912)
- प्रतिज्ञा (1927)
- गबन (1928)
- संग्राम (1923)
- कर्बला (1924)
- प्रेम की वेदी (1933)
- कफ़न
- पूस की रात
- ईदगाह
- दो बैल
- सवा सेर गेहूँ
- हज-ए-अक्बर
- नमक का दारोग़ा
- दुनिया का सबसे अनमोल रतन
- शतरंज की बाज़ी
- बूढ़ी काकी
- शिकवा शिकायत
- दूध की क़ीमत
- नयी बीवी आदि।
- पुराना जमाना नया जमाना
- स्वराज के फायदे
- कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार
- हिन्दी-उर्दू की एकता
- महाजनी सभ्यता
- जीवन में साहित्य का स्थान।
गोदान (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद
उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद द्वारा वर्ष 1936 में रचा गया उपन्यास गोदान (Godan) हिंदी साहित्य की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रेमचन्द ने अपने उपन्यास में घटना के स्थान पर चरित्र की को उभारने का अधिक प्रयास किया है।
गोदान उपन्यास का उद्देश्य
- इस उपन्यास में चरित्रों की प्रकृति के अनुकूल जीवंत भाषा प्रयोग किया है।
- गोदान प्रेमचंद के यर्थाथवाद को समेटने वाला उपन्यास है।
- गाेदान उपन्यास में ग्रामीण व शहरी कथा के माध्यम से तत्कालीन औपनिवेशिक, पूँजीवादी सामंती व महाजनी शोषण की तस्वीर पेश की है।
- समकालीन समाज की समस्या की चित्रण।
- अंधविश्वासी प्रवृत्तियों का चित्रण।
गोदान उपन्यास के प्रमुख पात्र
गोदान उपन्यास के प्रमुख पात्र निम्न है :-
होरी :- होरी उपन्यास का नायक पुरुष पात्र है, जो ग्राम के जमींदार तथा महाजन के शोषण से परेशान है एवं चाहकर भी उसका कोई विरोध नहीं कर पाता।धनिया :- धनिया होरी की पत्नी तथा उपन्यास की नायिका है। यह उपन्यास में अपने अस्तित्व के प्रति सजग नहीं है।
गोबर :- होरी का पुत्र
झूनिया :- गोबर की पत्नी
रायासाहब :- जमींदार तथा सेमरी गाँव का निवासी
मेहता :- दर्शन शास्त्र के प्रफेसर
मालती :- आधुनिक नारी व डॉक्टर
भोला :- झुनिया के पिता
सोना और रूपा :- होरी के पुत्री
दातादीन - 'महाजन' है (इनसे गाँव के लोग पैसे उधार लेते हैं)
हीरा :- होरी के भाई
खन्ना :- मिल मालिक
गोविंदी :- खन्ना के पत्नी
ओंकारनाथ :- संपादक
दुलारी सहुआइन :- दुकान की मालकिन
सिलिया :- दलित चमार स्त्री
सोभा :- होरी के भाई
अन्य पात्र :- झिंगुरी सिंह, पटेश्वरीलाल, नोहरी, पुनिया, मिर्जा खुसेद आदि।
गोदान उपन्यास की समीक्षा
मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित 'गोदान' उपन्यास होरी तथा धनिया नामक एक कृषक दम्पति के जीवन के इर्द-गिर्द घूमता है। किसी भी ग्रामीण की भाँति ही होरी की भी यह हार्दिक अभिलाषा है कि उसके पास भी एक पालतू गाय हो, जिसकी वह सेवा करे। वस्तुतः इस उपन्यास के केन्द्र में गाय की लालसा है। इस दिशा में होरी द्वारा प्रारम्भ किए गए प्रयासों से आरम्भ होकर यह कहानी अनेक सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात करती हुई आगे बढ़ती है। गोदान जमींदार और स्थानीय साहूकारों के हाथों गरीब किसानों का शोषण और उनके अत्याचार की सजीव व्याख्या है। वास्तव में, 'गोदान' ग्रामीण जीवन का महाकाव्य है।
''गोदान महाकाव्य को किसान जीवन की समस्याओं, दुःखों और त्रासदियों पर लिखा गया महाकाव्य कहा जा सकता है। इसमें गाँव और शहर के आपसी द्वन्द्व, भारतीय ग्रामीण जीवन के दुःख, गाँवों के बदलते, टूटते, बिखरते यथार्थ तथा अमीदारी के जंजाल से आतंकित किसानों की पीड़ा का मार्मिक चित्रण है।''
यह उपन्यास होरी के नायकत्व के चारों ओर बुना गया है। होरी कोई धीरोदात्त नामक ही है, न ही उसके चरित्र में महानता और चमत्कार है। यह एक साधारण-सा पात्र है तथा साधारण से किसान का प्रतिनिधित्व करता है। धूप और संघर्षों से साँवली जो सूखी पड़ गई उसकी त्वचा, पिचका हुआ मुँह, घंसी हुई निस्तेज आँखें और कम में ही संघों की मार से बुढ़ाया हुआ मुख-होरी के इस बिम्ब से किसी भी जय किसान का चेहरा बरबस सामने आ जाता है।
पूर्ण गोदान में किसानों का खून चूसने वाली महाजनी सभ्यता का क्रूर शोषण एक दिखाई देता है। इस चक्र में फँसा हुआ होरी तथा उस जैसे असंख्य गुमनाम किसान साधन विहीन है। व्यवस्था के शोषण के शिकार ये किसान अपमान और बड़ा से भरी जिन्दगी को मर-मरकर जीते हैं। शोषण और संत्रास को चुपचाप सहते हने की इस लम्बी परम्परा को होरी न तो उलटता है और न ही पलटता है, केवल बदशित करता है। उसका यह मानना है कि जिन तलवों के नीचे गर्दन दबी हो, उनको सहलाने में ही कुशलता है।
यह उपन्यास जमीदार, अफसर, पटवारी, साहूकार तथा पुरोहित के आतंक में फँसे हुए होरी की लाचारी का मार्मिक चित्रण है। इस कहानी में होरी एक गरीब और गोषित भारतीय किसान की भाँति ही है। यह गरीबी की मार, बँटवारे का दर्द, कर्ज की मार, बैलों की जोड़ी बिक जाने या मर जाने का सदमा, आधा खेत तथा साझे की खेतों का अपमान और अपने खेतों की नीलामी का दंश सहता हुआ अन्त में मजदूरी करने को बाध्य हो जाता है। प्रेमचन्द जी ने होरी के चरित्र में विद्रोह तथा क्रान्ति की इच्छा न दिखाकर एक आम भारतीय किसान की भाँति दिखाया है। यह लेखक का बधार्थवादी नजरिया है, जिसके चलते होरी को महान् क्रान्तिकारी नायक न दिखाकर शोषण करने वालों का हृदय परिवर्तन न दिखाकर कथा को दुखान्त रूप दिया गया है। इस शिल्प को अपनाकर लेखक ने पाठक पर गहरा प्रभाव छोड़ने का प्रयास किया है और कथा को यथार्थ के निकटतम बनाए रखा है।
गोदान उपन्यास का निष्कर्ष :-
गोदान अन्ततः दो सभ्यताओं का संघर्ष है, एक ओर किसानी सभ्यता है, जिसका प्रतिनिधित्व होरी करता है, जबकि दूसरी ओर महाजनी सभ्यता है। सामन्ती मध्यता से महाजनी सभ्यता के इस बदलाव में आखिरकार होरी पराजित होता है। मुशी प्रेमचन्द जी ने परतन्त्र भारत में जिन समस्याओं को उठाया था, वे स्वतन्त्र भारत में भी जस की तस मौजूद है। इतिहास वर्तमान से ज्यो का त्यो चिपका हुआ है। सवाल यह उठता है कि 21वीं सदी में भी 'होरी' ही क्यों आत्महत्या करने को मजबूर है? पूंजीपति क्यों नहीं?
गोदान उपन्यास के महत्वपूर्ण कथन
- क्या ससुराल जाना है जो पांचों पोशाक लाई है। - होरी ने धनिया से
- तो क्या तू समझती है, मैं बूढ़ा हो गया? अभी तो चालीस भी नहीं हुए। मर्द साढे पर पाढे होते हैं। - होरी ने धनिया से
- सोना बड़े आदमियों के लिए है। हम गरीबों के लिए तो रूपया ही है। जैसे जौ को राजा कहते हैं गेहूं को चमार इसलिए न कि गेहूं बडे आदमी खाते हैं, जौ हम लोग खाते हैं। - होरी
- जब अपनी गर्दन दूसरों के पैरों के तले दबी हो तो उन पैरों को सहलाने में कुशल है। - होरी
- हम लोग समझते हैं कि बड़े आदमी बहुत सुखी होंगे लेकिन, सच पूछो तो वे हमसे ज्यादा दुखी हैं। - होरी
- हमारी गरदन दूसरों के पैरों के नीचे दबी हुई है,अकड़ कर निबाह नहीं हो सकता। - होरी ने गोबर से
- कुछ बातें तो उसमें ऐसी है कि अगर तुम में होती तो तुम सचमुच देवी हो जाती है। - प्रो.मेहता ने मालती से
- स्त्री पुरुष से उतनी ही श्रेष्ठ है जितना प्रकाश अंधेरे से। - प्रो.मेहता
- मैं प्रकृति का पुजारी हूं और मनुष्य को उसके प्राकृतिक रूप में देखना चाहता हूं जो प्रसन्न होकर हँसता है, दुखी होकर रोता है और क्रोध में आकर मार डालता है। जो दुःख और सुख में दोनों का दमन करते हैं,जो रोने को कर्मचारी और हँसने को हल्कापन समझते हैं उनसे मेरा कोई मेल नहीं है। - प्रो.मेहता
- संसार में छोटे – बड़े हमेशा रहेंगे और उन्हें हमेशा रहना चाहिए। इसे मिटाने की चेष्टा करना मानव जाति का सर्वनाश करना होगा। - प्रो.मेहता
- स्त्रिया स्त्रियां नहीं है वे देवी है, दिव्य हैं वे पुरुष से बहुत श्रेष्ठ और ऊपर है। - प्रो.मेहता
- मेरे जेहन में औरत वफा और त्याग की मूर्ति है जो अपनी बेजुबानी से कुर्बानी से अपने को बिल्कुल मिटाकर पति की आत्मा का अंश बन जाती है। - प्रो.मेहता
- विवाह को मैं सामाजिक समझौता मानता हूं और उसे तोड़ने का अधिकार न पुरुष को है, न स्त्री को। समझौता करने के पहले आप स्वाधीन है , समझौता हो जाने के बाद आपके हाथ कट जाते है। - प्रो.मेहता
- मैं समझता हूं कि नारी केवल माता है, और इसके उपरांत वह जो कुछ है, वह सब मातृत्व का उपक्रम मात्र। - प्रो.मेहता
- यह तुम रोज-रोज मालिकों की खुशामद करने क्यों जाते हो? बाकी न चुके तो प्यादा आकर गालियाँ सुनाता है, बेगार देनी ही पड़ती है। नजर नज़राना सब तो हमसे भराया जाता है फिर किसी की क्यों सलामी करो? - गोबर ने अपने पिता होरी से
- यह सब मन को समझाने की बातें हैं। भगवान सबको बराबर बनाते हैं यहां जिसके हाथ में लाठी है, वही गरीबों को कुचलकर बड़ा आदमी बन जाता है। - गोबर
- जलसों में, शामियाने के पीछे खड़े होकर उसने भाषण सुना है और यह भी सुना है कि कोई देवी और देवता मनुष्य का भाग्य नहीं बदलता, मनुष्य अपनी स्थितियों के लिए स्वयं जिम्मेदार है और इसलिए वही भाग्य को बदल भी सकता है। - गोबर
- हम लोग दाने-दाने को मोहताज हैं, देह पर साबुत कपड़े नहीं है, चोटी का पसीना एड़ी तक आता है, तब भी गुजर जाते नहीं होता। उन्हें क्या? मजे से गद्दी – पसंद लगाए बैठे हैं, सैकड़ों नौकर चाकर है हजारों आदमियों पर हुकूमत है। - गोबर
- गांव वाले निकाल देंगे तो क्या संसार में दूसरा गांव दूसरे गांव ही नहीं है। रुपए हो तो न हुक्का पानी का काम है न जात बिरादरी का। - गोबर
- तुम हमें बड़ा आदमी समझते हो? हमारे नाम बड़े हैं पर दर्शन छोटे। ……बड़े आदमियों की इच्छा और बैर केवल आनंद के लिए है। हम इतने बड़े आदमी हो गए हैं कि हमें नीचता और कुटिलता में ही निःस्वार्थ और परम आनंद मिलता है। - रायसाहब
- मैंने तुमसे सौ बार हजार बार कह दिया, मेरे मुंह पर भाइयों का बखान न किया करो । उनका नाम सुनकर मेरी में लग जाती है।.…. सारा गांव देखने आया, उन्ही के पांव में मेहंदी लगी हुई थी, मगर आये कैसे? जलन हो रही होगी कि इसके घर में गाय आ गई। छाती फटी जाती होगी। - धनिया
- हमको कुल परतिष्ठा इतनी प्यारी नहीं है महाराज की उसके पीछे एक जीव की हत्या कर डालते। ब्याहता न सही, पर उसकी बांह तो पकड़ी है मेरे बेटे ने। किस मुंह से निकाल देती ? - धनिया ने दातादीन से
- हमने जमीदार के खेत जोते हैं,वह अपना लगान ही तो लेगा, उसकी खुशामद क्यों करें, उसके तलवे क्यों सहलाए। - धनिया
- देख लिया तुम्हारा न्याय और तुम्हारी अक्ल की दौड़। गरीबों का गला काटना दूसरी बात है,दूध का दूध और पानी का पानी करना दूसरी । - धनिया
- ये हमारे गांव के मुखिया है, गरीबों का खून चूसने वाले, सूद ब्याज ड्योढी – सवाई, नजर – नजराना, घूस-घास जैसे भी हो गरीब को लूटो। उस पर सुराज चाहिए। जेल जाने से सुराज ने मिलेगा, सुराज मिलेगा न्याय से। - धनिया
- नारी का धरम है कि गम खाय, वह तो उजड्डा है,क्यों उसके मुंह में लगती है। - दातादिन ने धनिया से
- जाना ही नहीं कि लड़कपन और जवानी कैसी होती है। - हीरा ने धनिया से
- तेरी जैसी राच्छसिन के हाथ में पकड़कर जिंदगी तलख हो गयी। - हीरा ने धनिया से
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गोदान और प्रेमचन्द्र से संबंधित साहित्यकारों के कथन
- बाबू गुलाबराय के अनुसार :- मुंशीजी, किसानों के कवि हैं। उनके सुख-दुख में शरीफ होकर उनके साथ रोने- हँसने वाले सहृदय व्यक्ति हैं।
- देव के अनुसार :- प्रेमचन्द्र शताब्दयों से पददलित अपमानित और निस्पषित, (अच्छी तरह से पिसा हुआ) कृषकों की आवाज थे।
- रामविलास शर्मा के अनुसार :- होरी का चरित्र भारत के अज्ञेय किसान का चरित्र है। गोदान उसके भगीरथ प्रयत्न की गाथा है।
- डॉ. मक्खन शर्मा के अनुसार :- गोदान विश्वास साहित्य की अमर कृतियों में स्थान पाकर भारत का सौभाग्य सूर्य बन गया है।
- डॉ. विशम्भर मानव के अनुसार :- गोदान आधुनिक भारतीय जीवन भारतीय जीवन का दर्पण है। वह सामान्य और मदय वर्ग की समस्याओं को लेकर चलता है। प्रेमचन्द्र जी ग्राम्य जीवन है। जीवन को चित्रित करने में कैसे सिद्धहस्त थे यह किसी से छिपा नहीं है।
गोदान उपन्यास महत्वपूर्ण तथ्य
- गोदान प्रेमचन्द का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है।
- इसमें भारतीय ग्राम समाज, कृषक जीवन की विसंगतियों एवं शोषण के विविध रूपों का चित्रण किया गया है।
- गोदान ग्राम्य जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य है।
- इस उपन्यास में प्रगतिवाद, गांधीवाद और मार्क्सवाद (साम्यवाद) का पूर्ण परिप्रेक्ष्य में चित्रण हुआ है।
- गोदान उपन्यास में दो कथाएं एक साथ चलती हैं। ग्रामीण कथा मुख्यत: आधिकारिक है और नगर की कथा गौण अथवा प्रासंगिक है ।
Godaan Upanyas MCQ
- 1935 ई.
- 1936 ई.
- 1937 ई.
- 1938 ई.
- मेहता
- राय साहब
- गोबर
- होरी
- सेमरी
- बेलारी
- मऊ
- झूँसी
- 20 रुपये में
- 90 रुपये में
- 80 रुपये में
- 70 रुपये में
- मेहता को
- ओंकारनाथ को
- झिंगुरी को
- राय साहब को
- गोमती
- माधवी
- सरस्वती
- लक्ष्मी
- पटेश्वरी को
- झिंगुरी सिंह को
- मातादीन को
- दातादीन को
- होरी का
- राय साहब का
- खन्ना का
- ओंकारनाथ का
- 5 बीघा
- 6 बीघा
- 7 बीघा
- 8 बीघा
- चुहिया ने
- लतिया ने
- दुलारी ने
- जंगी व कामता ने
- मेहता को
- मालती को
- राय साहब को
- ओंकार नाथ को
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