शेखर : एक जीवनी (उपन्यास) - अज्ञेय । Shekhar: Ek Jeevani - Agyeya

सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। इन्हें प्रतिभा सम्पन्न कवि, शैलीकार, ललित निबन्धकार, सम्पादक तथा सफल अध्यापक के रूप से जाना जाता है। ये हिन्दी कथा साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार हैं। इन्होने मनोवैज्ञानिक उपन्यासों के क्षेत्र में एक नया आयाम स्थापित किया है।

इस पोस्‍ट के माध्‍यम से अज्ञेय के संक्षिप्‍त जीवन परिचय तथा इनके शेखर : एक जीवनी उपन्‍यास के पात्र, उद्देश्‍य, कथन, समीक्षा एवं महत्‍वपूर्ण प्रश्‍नोत्तर की चर्चा करेंगे। 

शेखर : एक जीवनी उपन्यास - अज्ञेय

    अज्ञेय का जीवन परिचय

    लेखक का पूरा नाम :- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'

    जन्म :- 7 मार्च, 1911 (कुशीनगर, उत्तर प्रदेश)

    मृत्यु :- 4 अप्रैल, 1987 (नई दिल्ली) 

    पिता :- पण्डित हीरानंद शास्त्री

    पत्नी :- कपिला वात्स्यायन

    प्रमुख कृतियां :- 

    • कविता संग्रह - 

      1. हरी घास पर क्षणभर
      2. बावरा अहेरी
      3. आँगन के द्वार पर
      4. कितनी नावों में कितनी बार आदि।

    • कहानियाँ -

      1. विपथगा 
      2. परम्परा 
      3. कोठरी की बात 
      4. शरणार्थी
      5. यदोल 

    • उपन्यास -

      1. शेखर एक जीवनी - प्रथम भाग (उत्थान),  द्वितीय भाग (संघर्ष) 
      2. नदी के द्वीप 
      3. अपने अपने अजनबी 
    • नाटक - उत्तरप्रियदर्शी
    • यात्रा वृतान्त -

      1. अरे यायावर रहेगा याद? 
      2. एक बूँद सहसा उछली

    • निबंध संग्रह -

      1. सबरंग त्रिशंकु 
      2. आत्मनेपद 
      3. आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य आलवाल 
      4. सब रंग और कुछ राग 

    • आलोचना -

      1. त्रिशंकु 
      2. आत्मनेपद 
      3. भवन्ती 
      4. अद्यतन

    • संस्मरण - स्मृति लेखा
    • डायरियां - भवंती, अंतरा और शाश्वती।
    • जीवनी - रामकमल राय द्वारा लिखित शिखर से सागर तक। 

    पुरस्कार/सम्मान :-

    1. साहित्य अकादमी 1964 मे (आंगन के पार द्वार)
    2. भारतीय ज्ञानपीठ 1978 में (कितनी नावों में कितनी बार) 
    महत्वपूर्ण बिंदु :-
    1. हिंदी साहित्य जगत में अज्ञेय को ‘प्रयोगवाद’ के प्रवर्तक (जनक) के रूप में जाना जाता हैं। 
    2. अज्ञेय ने सैनिक और विशाल भारत नामक पत्रिकाओं का सम्पादन का कार्य भी किया।
    3. यह क्रांतिकारियों के लिए बम बनाते थे, इसी कारण इन्हें 1930 में 6 वर्ष के लिए उन्हीं जेल के जाना पड़ा।

    शेखर : एक जीवनी (उपन्यास) - अज्ञेय

    'शेखरः एक जीवनी' अज्ञेय का बहुचर्चित मनोवैज्ञानिक उपन्यास है। यह उपन्यास दो भागों में विभक्त है- 'उत्थान और उत्कर्ष' इसका पहला भाग सन् 1941 में तथा दूसरा भाग सन् 1944 में प्रकाशित हुआ।

    शेखर : एक जीवनी उपन्यास के भाग

    यह उपन्यास दो भागों में विभक्त है। इनमें से प्रथम भाग का नामकरण किया गया है- 'उत्थान ' एवं द्वितीय भाग
    का नाम है- संघर्ष

    प्रथम भाग उत्‍थान - प्रकाशन वर्ष 1941 ई.

    प्रथम भाग के चार खण्ड है :-
    1. उषा और ईश्वर
    2. बीज और अंकुर
    3. प्रकृति और पुरुष
    4. पुरुष और परिस्थिति

    द्वितीय भाग उत्‍कर्ष - प्रकाशन वर्ष 1944 ई.

    द्वितीय भाग के चार खण्ड है :-
    1. पुरुष और परिस्थिति
    2. बन्धन और जिज्ञासा
    3. शाश और शेखर
    4. धागे, रस्सियां

    शेखर : एक जीवनी उपन्यास के प्रमुख पात्र

    शेखर : एक जीवनी उपन्यास के प्रमुख पात्र निम्‍न है :-

    शेखर :- इस उपन्यास का मुख्य पात्र है, जिसको केन्द्र में रखकर यह उपन्यास लिखा गया है। यह विद्रोही स्वभाव का है एवं बन्धनों से घृणा करता है तथा उनसे मुक्ति चाहता है।

    सरस्वती :- शेखर की बहन है। वह शेखर की प्रेरक तथा गुरु भी है। सरस्वती ही शेखर के व्यक्तित्व को पूर्ण बनाने में सहयोग देती है।

    शारदा :- एक मद्रासी परिवार की लड़की है, जिसका चंचल स्वभाव तथा स्पष्टवादिता शेखर को अच्छी लगती है और वह उसकी ओर आकर्षित होता है।

    शशि :- शेखर की मौसेरी बहन है, जिसके प्रति शेखर आकर्षित होता है। वह शेखर की प्रेरणा शक्ति है, जो संघर्ष से जूझने वाली बहादुर नारी पात्र है।

    अन्‍य पात्र :- शेखर की माँ, मणिका तथा शान्ति अन्य पात्र हैं, जो कथा के विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

    शेखरः एक जीवनी उपन्यास की समीक्षा

    शेखर : एक जीवनी उपन्यास का प्रारम्भ 'ईश्वर' को लेकर प्रश्नाकुलता तथा समापन उलझन और द्वन्द्र में हुआ है। यह उपन्यास 'शेखर' नामक पात्र के जीवन पर आधारित है। तः इसे जीवनी प्रधान मनौवैज्ञानिक उपन्यास कहना अधिक उचित होगा।

    इस उपन्यास में शेखर मृत्यु से पूर्व अपने जीवन की स्मृतियों को याद करते हुए, उन घटनाओं का काल्पनिक साक्षात्कार कर रहा है, जो पहले घटित हो चुकी हैं। अतः इसमें शेखर के बचपन से लेकर फाँसी के तख्ते पर आने तक की समस्त घटनाओ का वर्णन मिलता है। इस प्रकार इसमें पूर्वदीप्ति (फ्लैश बैंक) पद्धति को अपनाया गया है। शेखर की ईश्वर के प्रति अनास्था, भयावह वस्तु को देखकर घबराना, ईश्वर के अस्तित्व के बारे में परिवार के सभ्य लोगों से पूछताछ, माँ के प्रति घृणा आदि बातों तथा घटनाओं का वर्णन किया गया है।

    'शेखर एक जीवनी' उपन्यास में शेखर की मनःस्थिति के आधार पर उसकी कथा परस्पर जुड़ती, सँवरती तथा निखरती चलती है। शेखर की मनःस्थिति में जो विकास हुआ, उसकी स्मृति के पट पर जो-जो चित्र उभरे, उसी के अनुसार कथा को आगे बढ़ाया गया है। कथावस्तु के विश्रृंखल होने का कारण शेखर की चंचल तथा उलझी हुई मनःस्थिति एवं साथ ही लेखक का ध्यान शेखर की मनः स्थिति पर ही केन्द्रित होना भी है। उसके व्यक्तित्व निर्माण और विकास के प्रति दृष्टि रखने के कारण कथा का क्रमिक विकास नहीं हो पाया।

    शेखर जन्म से ही विद्रोही स्वभाव का है। उसका विद्रोह समाज में व्याप्त रूढ़िगत मान्यताओं और परम्पराओं के प्रति है। वह समाज के प्रदत्त नियमों के भीतर अपने व्यक्तित्व का गला घोंटने को तैयार नहीं है। लेखक ने शेखर को ईमानदार एवं जिज्ञासु व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया है। उसमें 'अहं' भाव की प्रबलता है तथा उसका व्यक्तित्व 'काम' भावना से परिचालित है। वह समाज के एक ऐसे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जो स्वतन्त्र रहना चाहता है, अपने अहं की पुष्टि करना चाहता है, मन में उठे प्रश्नों का समाधान करना चाहता है तथा प्रेम चाहता है।

    अज्ञेय की चरित्र-चित्रण की शैली उल्लेखनीय है। वे पात्रों के चरित्रांकन में कल्पना का नहीं अपितु तथ्यों का सहारा लेते हुए उनकी चारित्रिक विशेषताओं को उजागर करते हैं। अज्ञेय 'शेखर' को मनोवैज्ञानिक पात्र के रूप में इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि घटनाओं की अधिकता होने पर भी उसका व्यक्तित्व डगमगाता नहीं है। यह उनके लेखन की विशेषता है। शेखर के जीवन में जो भी परिस्थितियाँ आती हैं, वह सब शेखर की आन्तरिक मूल प्रकृति की ही उपज हैं।

    उपन्यास में अज्ञेय ने शेखर की गूढ़तम प्रवृत्तियों को चित्रित करने के लिए सूक्ष्म और कलात्मक प्रयोग किया है। उन्होंने शेखर के पात्र को फाँसी जैसी विकट परिस्थितियों में अतीत के जीवन को जीने की प्रेरणा देकर उसे सफल बना दिया है। अज्ञेय ने शेखर के स्वप्न के मनोविश्लेषण द्वारा उसके भूतकाल के जीवन, वर्तमान जीवन तथा भविष्य के जीवन की दिशा को समझाया है। इस स्वप्न के द्वारा ही पाठक शेखर के समस्त जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करता है।

    अज्ञेय ने इस उपन्यास में अपने समय की राजनीतिक हलचलों और सामाजिक सच्चाइयों को पृष्ठभूमि में रखते हुए स्वतन्त्रता एवं क्रान्ति की अवधारणाओं पर भी विचार किया है। लेखक स्वाधीनता पूर्व की परिस्थितियों से भी परिचय कराने में सफल रहा है। लेखक ने इस उपन्यास में मृत्यु, अहिंसा, स्वतन्त्रता, प्रेम आदि विषयों पर भी विचार व्यक्त किए हैं। इस पूरे उपन्यास में शेखर के व्यक्तित्व की गुत्थियों को सुलझाया गया है। अहंभाव, भय तथा नारी-पुरुष से जुड़ी काम वर्जनाओं को उपन्यास में इस प्रकार पिरो दिया गया है कि वे अलग से जोड़े हुए नहीं लगते। 

    प्रस्तुत उपन्यास का उद्देश्य एक व्यक्ति के जीवन की विविध स्थितियो के सन्दर्भ में उसकी मनोग्रन्थियो का विश्लेषण कर समाज में उसका स्वतन्त्र रूप स्थापित करना है। उपन्यास में सामाजिक धरातल के विभिन्न पक्षों पर शेखर के मन का विश्लेषण किया गया है।

    उपन्‍यास की भाषा - शैली - 

    आलोच्य उपन्यास के संवाद पात्रानुकूल, नाटकीय तथा संक्षिप्त हैं। यदि शिल्प की बात करे तो इस उपन्यास का शिल्प बेजोड़ है। अज्ञेय भाषा के धनी है, उनके पास सक्षम भाषा है, जो बिम्बों और प्रतीको से युक्त होकर कहीं-कहीं काव्य जैसा आनन्द देने लगती है। उपन्यास में कुछ स्थानों पर लालित्यपूर्ण काव्य भाषा भी प्रयुक्त हुई है। उसमें अलंकारों, प्रतीकों का प्रयोग हुआ है। कथा के अन्त में भी प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग हुआ है। प्रतीकात्मक भाषा के प्रयोग ने उपन्यास के शिल्प को विशिष्टता प्रदान की है।

    उपन्‍यास का निष्‍कर्ष - 

     अतः कहा जा सकता है कि 'शेखरः एक जीवनी' एक ऐसा मनोवैज्ञानिक उपन्यास है, जो हिन्दी उपन्यासों को नई दिशा प्रदान करता है तथा नए उपन्यासकारों को नई प्रेरणा देता है। इस प्रकार यह एक सफल मनोवैज्ञानिक उपन्यास है।

    शेखरः एक जीवनी उपन्यास विशेष -

    1. अज्ञेय का शिल्प बेजोड़ है, विशेष रूप से उनके प्रतीक और बिम्ब का प्रयोग किया है। 
    2. इस उपन्यास का अन्त भी प्रतीकात्मक भाषा में हुआ है। 
    3. शेखर रूढ़ नैतिकता का घोर विरोधी है।
    4. शाशि एवं शेखर का सम्बन्ध भी इसी रूढ़िबद्धता के विरुद्ध स्वातन्त्र्य की खोज है।
    5. शेखर समाज के प्रदन्त, नियमों के भीतर अपने व्यक्तित्व का गला घोटने को तैयार नहीं है।
    6. पंक्ति- "मैं कहता हूँ,ओ विद्रोहियों, आओ, पहले इसी दम्भ को काटो ! ज्ञानी, समझो घोषित करो कि हम सवस्था से नहीं, हम इस ऐसेपन के ऐतादृशत्व (बाहिष्कार) मात्र के विरोधी हैं। - शेखर
    7. उपर्युक्त पंक्ति से स्पष्ट है कि शेखर : एक जीवनी के केंद्र में ' शेखर का विद्रोह उपस्थित है। उसके विद्रोह की प्रेरणा उसके युग- यथार्थ में निहित न होकर उसके मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व में निहित है।

    शेखरः एक जीवनी पर विद्वानों की राय

    1. डॉ. रामस्वरूप चतुवेदी के अनुसार - शेखर अपनी जिन गुणों की वजह से समकालीन हिंदी साहित्य पर छा गया और उत्तरोत्तर अपना प्रभाव गहरा करता गया उनमें उम उपन्यास का नया रचना-संघटन एक मुख्य तत्व है।
    2. डॉ. गणेशन के अनुसार - हिंदी में शेखर व्यक्ति की विविध मानसिक ग्रंथियों का विश्लेषण कर समझने का प्रयास है और आज तक किसी मनोवैज्ञानिक उपन्यास का अध्ययन शेखर से अधिक वैज्ञानिक नहीं हुआ है।
    3. इलाचंद्र जोशी के अनुसार - शेखर एक जीवनी ने दो दशकों से अधिक का समय पारकर यह सिद्ध कर दिया है कि सब मिलाकर पाठकीय संवेदना उसके अनुकूल है।
    4. डॉ. केदारनाथ शर्मा के अनुसार - अज्ञेय ने शेखर- एक जीवनी की कथा में शेखर के जीवन के निर्माण, विनाशक तत्वों को, उसकी विकास दिशाओं का जितना चित्रण किया है, उतना उसके जीवन का नहीं। क्योंकि उनका मुख्य उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष के जीवन के मूल तत्वों का विश्लेषण, उनका अन्वेषण और उद्घाटन करना था।
    5. रामकमल राय के अनुसार - शेखर एक जीवनी जहाँ एक सर्जक व्यक्तित्व के निर्माण को कथा है, वहीं एक स्वाधीन व्यक्तित्व के निर्माण की भी कथा है।
    6. गिरिराज किशोर के अनुसार - शेखरः एक जीवनी इस बार पढ़ते समय मुझे यह बात गहराई से महसूस हुई कि अज्ञेय का यह उपन्यास परतंत्रता के खिलाफ़ और आज़ादी के लिए एक खुली जद्दोजहद है।

    उपन्यास के पात्रों का महत्त्वपूर्ण कथन

      1. तुम वह सान रही हो, जिस पर मेरा जीवन बराबर चढ़ाया जाकर तेज होता रहा है, जिस पर मँज-मॅज कर मैं कुछ बना हूँ। - शेखर
      2. शायद मृत्यू का ज्ञान, और जीवन की कामना एक ही चीज़ है। यह बहुत बार सुनने में आता है कि जीना वही जानता है जो मरना जानता है, यह नहीं सुना जाता है कि जीवन सबसे अधिक प्यारा उसको होता है, जो मरना जानता है. पर है यह भी ध्रुवसत्य। - शेखर
      3. मुझे तो फ़्राँसी की कल्पना सदा मुग्ध ही करती रही है- उसमें साँप की आँखों-सा एक अत्यंत तषारमय किंतु अमोघ सम्मोहन होता है...। - शेखर
      4. मूर्ति का निर्माण हो सकता है, मृतिका का नहीं। उसी मिट्टी से अच्छी प्रतिमा भी स्थापित की जा सकती है. बुरी भी, जहाँ मिट्टी हीन हो कितने ही प्रचार से कितनी ही शिक्षा से कितने ही जाज्वल्यमान बलिदान से मूर्ति नहीं बन सकती। - शेखर
      5. क्या प्यार की भावना किसी स्थूल, एकाकी विषय से अलग नहीं की जा सकती? क्या जरूरी है कि 'मैं प्यार करता हूँ' इस वाक्य का अनिवार्य अनुवर्ती हो. यह प्रश्न कि 'किसे प्यार? और 'कौन' भी एक ही हो? क्या जारी मानवता को ही प्यार नहीं किया जा सकता. क्या प्यार को ही प्यार नहीं किया जा सकता। - शेखर
      6. शेखर कोई बड़ा आदमी नहीं है। वह अच्छा आदमी भी नहीं है लेकिन वह मानवता की संचित अनुभूतियों के प्रकाश में ईमानदारी से अपने को पहचानने की कोशिश कर रहा है। वह जागरूक, स्वतंत्र और ईमानदार है। - अज्ञेय
      7. शेखर नि:संंदेह एक व्यक्ति का अभिन्नतम निजी दस्तावेत है. यद्यपि वह माथ ही उस व्यक्ति के युग संघर्ष का युग प्रतिविम्ब भी है। - अज्ञेय
      8. कुछ करूंगा जिसे क्रांति कहते हैं। सब चीत उलट-पुलट कर रख दूँगा - शेखर
      9. मुझे विश्वास है कि विद्रोही बनते नहीं, उत्पन्न होते हैं। विद्रोह-बुद्धि परिस्थितिया से संघर्ष की सामर्थ्य, जीवन की क्रियाओं से परिस्थितियों के घात-प्रतिघात म नहीं निर्मित होती। वह आत्मा का कृत्रिम परिवेष्टन नहीं है, उसका अभिन्ननम अंग है। - शेखर
      10. फाँसी ! जिस जीवन को उत्पन्न करने में हमारे संसार की सारी शक्तियाँ, हमारे विकास, हमारे विज्ञान, हमारी सभ्यता द्वारा निर्मित सारी क्षमताएँ या औज़ार असमर्थ है, उसी जीवन को छीन लेने में, उसी का विनाश करने में, ऐसी भोली हृदयहीनता-फ़ाँसी! - शेखर
      11. इसलिए नहीं कि तुम जीवन में सबसे पहले आई या कि तुम सबसे ताजी स्मृति हो। इसलिए कि मेरा होना अनिवार्य रूप से तुम्हारे होने को लेकर हैं। - शेखर ने शशि के प्रति।
      12. क्रांतिकारी की बनावट में एक विराट्, व्यापक प्रेम की सामर्थ्य तो आवश्यक है ही, साथ ही उसमें एक और वस्तु नितांत आवश्यक, अनिवार्य है- घृणा को क्षमता, एक कभी न मरने वाली, जला डालनेवाली, घोर मारक, किंतु इतना संब हाते हुए भी यह तटस्थ सात्विक घृण की क्षमता...। - शेखर
      13. इम पत्र में प्यार की बाते नहीं करूंगी। जो चला गया है. उसका प्यार केवल चंदना है. और वेदना को चुप रहना चाहिए। केवल तुम्हारे प्यार की बात करूंगी। - शशि
      14. such a big silly boy like you अर्थात् ऐसा बुद्ध जैसे तुम। - शारदा
      15. शिक्षा देना संसार अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझता है, किंतु शिक्षा अपने मन की, शिष्य के मन की नहीं, क्योंकि संसार का 'आदर्श व्यक्ति' व्यक्ति नहीं है. एक टाइप है और संसार चाहता है कि सर्वप्रथम अवसर पर ही प्रत्येक व्यांका का ठाक-पीटकर, उसका व्यक्तित्व कुचलकर, उसे तक टाइप में सम्मिलित कर लिया जाय...। - शेखर
      16. उसके संसार के अलावा एक और संसार है, जिसमें पक्षी रहते हैं. जिसमें स्वच्छादता है। जिसमें विश्वास है, जिसमे स्नेह है. जिसमें सोचने की या खेलने की अबाध स्वतंत्रता है जिसका एकमात्र नियम है वही होओ जो कि तुम हो। - शेखर
      17. दुख को छाया एक तरह की तपस्या ही है, उससे आत्मा शुद्ध होती है। - शशि

    शेखरः एक जीवनी उपन्यास के महत्वपूर्ण बिंदु

    1. क्या शेखर एक जीवनी, अज्ञेय की अपनी जीवनी है।
    2. इस विषय में अज्ञेय कहते हैं- मैं फिर कहता हूँ कि आत्मघाट ही आत्मानुभूत नहीं होता परघटित भी आत्मानुभूत हो सकता है और मेरी वेदना शेखर को अभिसिंचित कर रही है।
    3. शेखर एक जीवनी में शेखर नामक व्यक्ति का जीवन चरित्र किया गया है।
    4. यह उपन्‍यास की कठिन भाषा होने के बाद भी यह सभी को बहुत पसंद आया।
    5. शेखर एक जीवनी अज्ञेय का मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास है।
    6. इस उपन्‍यास में अज्ञेय ने बालमन पर पड़ने वाले काम, अहम् और भय के प्रभाव तथा उसकी प्रकृति पर मनोवैज्ञानिक ढंग से विचार किया है।
    7. इस उपन्यास का तीसरा भाग भी अज्ञेय जी ने लिखा था, पर वे उसमें कुछ संशोधन करना चाहते थे, जो न कर सके, परिणामत: वह प्रकाशित न हो सका।
    Shekhar: Ek Jeevani Upanyas - Agyeya

    Shekhar: Ek Jeevani Upanyas MCQ

    प्रश्‍न 01. अज्ञेय द्वारा रचित शेखर: एक जीवनी भाग-1 का प्रकाशन वर्ष है?
    1. 1941 
    2. 1942 
    3. 1943 
    4. 1944
    उत्तर: 1. 1941


    प्रश्‍न 02. अज्ञेय द्वारा रचित उपन्यास ‘शेखर: एक जीवनी’ किस शैली में है?
    1. डायरी शेली में 
    2. आत्मकथा शैली  
    3. पूर्व दीप्ती शैली 
    4. पत्रात्मक शैली
    उत्तर: 3. पूर्व दीप्ती शैली


    प्रश्‍न 03. ‘शेखर: एक जीवनी’ उपन्यास का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    1. भ्रष्टाचार पर प्रहार 
    2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता 
    3. व्यक्ति स्वातंत्र्य की खोज 
    4. काम एवं अध्यात्म के द्वंद्व का चित्रण
    उत्तर: 3. व्यक्ति स्वातंत्र्य की खोज


    प्रश्‍न 04. ‘शेखर: एक जीवनी’ उपन्यास के पात्र नहीं हैं?
    1. सरस्वती 
    2. शारदा 
    3. शशि 
    4. मालती  
    उत्तर: 4. मालती 


    प्रश्‍न 05. शेखर के बचपन का नाम क्या था?
    1. सारंगदेव 
    2. नारंग 
    3. बुद्धदेव 
    4. गणपति
    उत्तर: 3. बुद्धदेव


    प्रश्‍न 06. शेखर के जीवन में आनेवाली लड़कियों में से शेखर के चरित्र को सर्वाधिक प्रभावित कौन लड़की करती है?
    1. शारदा 
    2. शशि 
    3. सरस्वती 
    4. प्रतिभा  
    उत्तर: 2. शशि


    प्रश्‍न 07. ‘शेखर: एक जीवनी’ (प्रथम भाग) के खंडों का सही क्रम है?
    1. उषा और ईश्वर- बीज और अंकुर- प्रकृति और पुरुष- पुरुष और परिस्थिति
    2. बीज और अंकुर- उषा और ईश्वर- प्रकृति और पुरुष- पुरुष और परिस्थिति
    3. पुरुष और परिस्थिति- बीज और अंकुर- उषा और ईश्वर- प्रकृति और पुरुष 
    4. उषा और ईश्वर- बीज और अंकुर- पुरुष और परिस्थिति- प्रकृति और पुरुष 
    उत्तर: 1. उषा और ईश्वर- बीज और अंकुर- प्रकृति और पुरुष- पुरुष और परिस्थिति


    प्रश्‍न 08. इनमें से किस उपन्यास को ‘प्रकाशमान पुच्छल तारा’ कहा गया है?
    1. परीक्षा गुरु         
    2. गोदान 
    3. शेखर: एक जीवनी 
    4. देवरानी-जेठानी की कहानी
    उत्तर: 3. शेखर: एक जीवनी


    प्रश्‍न 09. “क्रांतिकारी बनाए नहीं जाते जन्मजात होते हैं।” यह किसका का कथन है?
    1. सरस्वती 
    2. शारदा का 
    3. शशि 
    4. अज्ञेय
    उत्तर: 4. अज्ञेय


    प्रश्‍न 10. अज्ञेय ने ‘शेखर: एक जीवनी’ उपन्यास के पहला भाग का नाम क्या दिया है?
    1. प्रवेश 
    2. उत्थान 
    3. पतन 
    4. उत्कर्ष   
    उत्तर: 2. उत्थान