सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। इन्हें प्रतिभा सम्पन्न कवि, शैलीकार, ललित निबन्धकार, सम्पादक तथा सफल अध्यापक के रूप से जाना जाता है। ये हिन्दी कथा साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार हैं। इन्होने मनोवैज्ञानिक उपन्यासों के क्षेत्र में एक नया आयाम स्थापित किया है।
इस पोस्ट के माध्यम से अज्ञेय के संक्षिप्त जीवन परिचय तथा इनके शेखर : एक जीवनी उपन्यास के पात्र, उद्देश्य, कथन, समीक्षा एवं महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर की चर्चा करेंगे।
अज्ञेय का जीवन परिचय
लेखक का पूरा नाम :- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
जन्म :- 7 मार्च, 1911 (कुशीनगर, उत्तर प्रदेश)
मृत्यु :- 4 अप्रैल, 1987 (नई दिल्ली)
पिता :- पण्डित हीरानंद शास्त्री
पत्नी :- कपिला वात्स्यायन
प्रमुख कृतियां :-
- कविता संग्रह -
- हरी घास पर क्षणभर
- बावरा अहेरी
- आँगन के द्वार पर
- कितनी नावों में कितनी बार आदि।
- कहानियाँ -
- विपथगा
- परम्परा
- कोठरी की बात
- शरणार्थी
- यदोल
- उपन्यास -
- शेखर एक जीवनी - प्रथम भाग (उत्थान), द्वितीय भाग (संघर्ष)
- नदी के द्वीप
- अपने अपने अजनबी
- नाटक - उत्तरप्रियदर्शी
- यात्रा वृतान्त -
- अरे यायावर रहेगा याद?
- एक बूँद सहसा उछली
- निबंध संग्रह -
- सबरंग त्रिशंकु
- आत्मनेपद
- आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य आलवाल
- सब रंग और कुछ राग
- आलोचना -
- त्रिशंकु
- आत्मनेपद
- भवन्ती
- अद्यतन
- संस्मरण - स्मृति लेखा
- डायरियां - भवंती, अंतरा और शाश्वती।
- जीवनी - रामकमल राय द्वारा लिखित शिखर से सागर तक।
पुरस्कार/सम्मान :-
- साहित्य अकादमी 1964 मे (आंगन के पार द्वार)
- भारतीय ज्ञानपीठ 1978 में (कितनी नावों में कितनी बार)
- हिंदी साहित्य जगत में अज्ञेय को ‘प्रयोगवाद’ के प्रवर्तक (जनक) के रूप में जाना जाता हैं।
- अज्ञेय ने सैनिक और विशाल भारत नामक पत्रिकाओं का सम्पादन का कार्य भी किया।
- यह क्रांतिकारियों के लिए बम बनाते थे, इसी कारण इन्हें 1930 में 6 वर्ष के लिए उन्हीं जेल के जाना पड़ा।
शेखर : एक जीवनी (उपन्यास) - अज्ञेय
शेखर : एक जीवनी उपन्यास के भाग
प्रथम भाग उत्थान - प्रकाशन वर्ष 1941 ई.
- उषा और ईश्वर
- बीज और अंकुर
- प्रकृति और पुरुष
- पुरुष और परिस्थिति
द्वितीय भाग उत्कर्ष - प्रकाशन वर्ष 1944 ई.
- पुरुष और परिस्थिति
- बन्धन और जिज्ञासा
- शाश और शेखर
- धागे, रस्सियां
शेखर : एक जीवनी उपन्यास के प्रमुख पात्र
शेखर :- इस उपन्यास का मुख्य पात्र है, जिसको केन्द्र में रखकर यह उपन्यास लिखा गया है। यह विद्रोही स्वभाव का है एवं बन्धनों से घृणा करता है तथा उनसे मुक्ति चाहता है।
सरस्वती :- शेखर की बहन है। वह शेखर की प्रेरक तथा गुरु भी है। सरस्वती ही शेखर के व्यक्तित्व को पूर्ण बनाने में सहयोग देती है।
शारदा :- एक मद्रासी परिवार की लड़की है, जिसका चंचल स्वभाव तथा स्पष्टवादिता शेखर को अच्छी लगती है और वह उसकी ओर आकर्षित होता है।
शशि :- शेखर की मौसेरी बहन है, जिसके प्रति शेखर आकर्षित होता है। वह शेखर की प्रेरणा शक्ति है, जो संघर्ष से जूझने वाली बहादुर नारी पात्र है।
अन्य पात्र :- शेखर की माँ, मणिका तथा शान्ति अन्य पात्र हैं, जो कथा के विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
शेखरः एक जीवनी उपन्यास की समीक्षा
उपन्यास की भाषा - शैली -
उपन्यास का निष्कर्ष -
शेखरः एक जीवनी उपन्यास विशेष -
- अज्ञेय का शिल्प बेजोड़ है, विशेष रूप से उनके प्रतीक और बिम्ब का प्रयोग किया है।
- इस उपन्यास का अन्त भी प्रतीकात्मक भाषा में हुआ है।
- शेखर रूढ़ नैतिकता का घोर विरोधी है।
- शाशि एवं शेखर का सम्बन्ध भी इसी रूढ़िबद्धता के विरुद्ध स्वातन्त्र्य की खोज है।
- शेखर समाज के प्रदन्त, नियमों के भीतर अपने व्यक्तित्व का गला घोटने को तैयार नहीं है।
- पंक्ति- "मैं कहता हूँ,ओ विद्रोहियों, आओ, पहले इसी दम्भ को काटो ! ज्ञानी, समझो घोषित करो कि हम सवस्था से नहीं, हम इस ऐसेपन के ऐतादृशत्व (बाहिष्कार) मात्र के विरोधी हैं। - शेखर
- उपर्युक्त पंक्ति से स्पष्ट है कि शेखर : एक जीवनी के केंद्र में ' शेखर का विद्रोह उपस्थित है। उसके विद्रोह की प्रेरणा उसके युग- यथार्थ में निहित न होकर उसके मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व में निहित है।
शेखरः एक जीवनी पर विद्वानों की राय
- डॉ. रामस्वरूप चतुवेदी के अनुसार - शेखर अपनी जिन गुणों की वजह से समकालीन हिंदी साहित्य पर छा गया और उत्तरोत्तर अपना प्रभाव गहरा करता गया उनमें उम उपन्यास का नया रचना-संघटन एक मुख्य तत्व है।
- डॉ. गणेशन के अनुसार - हिंदी में शेखर व्यक्ति की विविध मानसिक ग्रंथियों का विश्लेषण कर समझने का प्रयास है और आज तक किसी मनोवैज्ञानिक उपन्यास का अध्ययन शेखर से अधिक वैज्ञानिक नहीं हुआ है।
- इलाचंद्र जोशी के अनुसार - शेखर एक जीवनी ने दो दशकों से अधिक का समय पारकर यह सिद्ध कर दिया है कि सब मिलाकर पाठकीय संवेदना उसके अनुकूल है।
- डॉ. केदारनाथ शर्मा के अनुसार - अज्ञेय ने शेखर- एक जीवनी की कथा में शेखर के जीवन के निर्माण, विनाशक तत्वों को, उसकी विकास दिशाओं का जितना चित्रण किया है, उतना उसके जीवन का नहीं। क्योंकि उनका मुख्य उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष के जीवन के मूल तत्वों का विश्लेषण, उनका अन्वेषण और उद्घाटन करना था।
- रामकमल राय के अनुसार - शेखर एक जीवनी जहाँ एक सर्जक व्यक्तित्व के निर्माण को कथा है, वहीं एक स्वाधीन व्यक्तित्व के निर्माण की भी कथा है।
- गिरिराज किशोर के अनुसार - शेखरः एक जीवनी इस बार पढ़ते समय मुझे यह बात गहराई से महसूस हुई कि अज्ञेय का यह उपन्यास परतंत्रता के खिलाफ़ और आज़ादी के लिए एक खुली जद्दोजहद है।
उपन्यास के पात्रों का महत्त्वपूर्ण कथन
- तुम वह सान रही हो, जिस पर मेरा जीवन बराबर चढ़ाया जाकर तेज होता रहा है, जिस पर मँज-मॅज कर मैं कुछ बना हूँ। - शेखर
- शायद मृत्यू का ज्ञान, और जीवन की कामना एक ही चीज़ है। यह बहुत बार सुनने में आता है कि जीना वही जानता है जो मरना जानता है, यह नहीं सुना जाता है कि जीवन सबसे अधिक प्यारा उसको होता है, जो मरना जानता है. पर है यह भी ध्रुवसत्य। - शेखर
- मुझे तो फ़्राँसी की कल्पना सदा मुग्ध ही करती रही है- उसमें साँप की आँखों-सा एक अत्यंत तषारमय किंतु अमोघ सम्मोहन होता है...। - शेखर
- मूर्ति का निर्माण हो सकता है, मृतिका का नहीं। उसी मिट्टी से अच्छी प्रतिमा भी स्थापित की जा सकती है. बुरी भी, जहाँ मिट्टी हीन हो कितने ही प्रचार से कितनी ही शिक्षा से कितने ही जाज्वल्यमान बलिदान से मूर्ति नहीं बन सकती। - शेखर
- क्या प्यार की भावना किसी स्थूल, एकाकी विषय से अलग नहीं की जा सकती? क्या जरूरी है कि 'मैं प्यार करता हूँ' इस वाक्य का अनिवार्य अनुवर्ती हो. यह प्रश्न कि 'किसे प्यार? और 'कौन' भी एक ही हो? क्या जारी मानवता को ही प्यार नहीं किया जा सकता. क्या प्यार को ही प्यार नहीं किया जा सकता। - शेखर
- शेखर कोई बड़ा आदमी नहीं है। वह अच्छा आदमी भी नहीं है लेकिन वह मानवता की संचित अनुभूतियों के प्रकाश में ईमानदारी से अपने को पहचानने की कोशिश कर रहा है। वह जागरूक, स्वतंत्र और ईमानदार है। - अज्ञेय
- शेखर नि:संंदेह एक व्यक्ति का अभिन्नतम निजी दस्तावेत है. यद्यपि वह माथ ही उस व्यक्ति के युग संघर्ष का युग प्रतिविम्ब भी है। - अज्ञेय
- कुछ करूंगा जिसे क्रांति कहते हैं। सब चीत उलट-पुलट कर रख दूँगा - शेखर
- मुझे विश्वास है कि विद्रोही बनते नहीं, उत्पन्न होते हैं। विद्रोह-बुद्धि परिस्थितिया से संघर्ष की सामर्थ्य, जीवन की क्रियाओं से परिस्थितियों के घात-प्रतिघात म नहीं निर्मित होती। वह आत्मा का कृत्रिम परिवेष्टन नहीं है, उसका अभिन्ननम अंग है। - शेखर
- फाँसी ! जिस जीवन को उत्पन्न करने में हमारे संसार की सारी शक्तियाँ, हमारे विकास, हमारे विज्ञान, हमारी सभ्यता द्वारा निर्मित सारी क्षमताएँ या औज़ार असमर्थ है, उसी जीवन को छीन लेने में, उसी का विनाश करने में, ऐसी भोली हृदयहीनता-फ़ाँसी! - शेखर
- इसलिए नहीं कि तुम जीवन में सबसे पहले आई या कि तुम सबसे ताजी स्मृति हो। इसलिए कि मेरा होना अनिवार्य रूप से तुम्हारे होने को लेकर हैं। - शेखर ने शशि के प्रति।
- क्रांतिकारी की बनावट में एक विराट्, व्यापक प्रेम की सामर्थ्य तो आवश्यक है ही, साथ ही उसमें एक और वस्तु नितांत आवश्यक, अनिवार्य है- घृणा को क्षमता, एक कभी न मरने वाली, जला डालनेवाली, घोर मारक, किंतु इतना संब हाते हुए भी यह तटस्थ सात्विक घृण की क्षमता...। - शेखर
- इम पत्र में प्यार की बाते नहीं करूंगी। जो चला गया है. उसका प्यार केवल चंदना है. और वेदना को चुप रहना चाहिए। केवल तुम्हारे प्यार की बात करूंगी। - शशि
- such a big silly boy like you अर्थात् ऐसा बुद्ध जैसे तुम। - शारदा
- शिक्षा देना संसार अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझता है, किंतु शिक्षा अपने मन की, शिष्य के मन की नहीं, क्योंकि संसार का 'आदर्श व्यक्ति' व्यक्ति नहीं है. एक टाइप है और संसार चाहता है कि सर्वप्रथम अवसर पर ही प्रत्येक व्यांका का ठाक-पीटकर, उसका व्यक्तित्व कुचलकर, उसे तक टाइप में सम्मिलित कर लिया जाय...। - शेखर
- उसके संसार के अलावा एक और संसार है, जिसमें पक्षी रहते हैं. जिसमें स्वच्छादता है। जिसमें विश्वास है, जिसमे स्नेह है. जिसमें सोचने की या खेलने की अबाध स्वतंत्रता है जिसका एकमात्र नियम है वही होओ जो कि तुम हो। - शेखर
- दुख को छाया एक तरह की तपस्या ही है, उससे आत्मा शुद्ध होती है। - शशि
शेखरः एक जीवनी उपन्यास के महत्वपूर्ण बिंदु
- क्या शेखर एक जीवनी, अज्ञेय की अपनी जीवनी है।
- इस विषय में अज्ञेय कहते हैं- मैं फिर कहता हूँ कि आत्मघाट ही आत्मानुभूत नहीं होता परघटित भी आत्मानुभूत हो सकता है और मेरी वेदना शेखर को अभिसिंचित कर रही है।
- शेखर एक जीवनी में शेखर नामक व्यक्ति का जीवन चरित्र किया गया है।
- यह उपन्यास की कठिन भाषा होने के बाद भी यह सभी को बहुत पसंद आया।
- शेखर एक जीवनी अज्ञेय का मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास है।
- इस उपन्यास में अज्ञेय ने बालमन पर पड़ने वाले काम, अहम् और भय के प्रभाव तथा उसकी प्रकृति पर मनोवैज्ञानिक ढंग से विचार किया है।
- इस उपन्यास का तीसरा भाग भी अज्ञेय जी ने लिखा था, पर वे उसमें कुछ संशोधन करना चाहते थे, जो न कर सके, परिणामत: वह प्रकाशित न हो सका।
Shekhar: Ek Jeevani Upanyas MCQ
- 1941
- 1942
- 1943
- 1944
- डायरी शेली में
- आत्मकथा शैली
- पूर्व दीप्ती शैली
- पत्रात्मक शैली
- भ्रष्टाचार पर प्रहार
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- व्यक्ति स्वातंत्र्य की खोज
- काम एवं अध्यात्म के द्वंद्व का चित्रण
- सरस्वती
- शारदा
- शशि
- मालती
- सारंगदेव
- नारंग
- बुद्धदेव
- गणपति
- शारदा
- शशि
- सरस्वती
- प्रतिभा
- उषा और ईश्वर- बीज और अंकुर- प्रकृति और पुरुष- पुरुष और परिस्थिति
- बीज और अंकुर- उषा और ईश्वर- प्रकृति और पुरुष- पुरुष और परिस्थिति
- पुरुष और परिस्थिति- बीज और अंकुर- उषा और ईश्वर- प्रकृति और पुरुष
- उषा और ईश्वर- बीज और अंकुर- पुरुष और परिस्थिति- प्रकृति और पुरुष
- परीक्षा गुरु
- गोदान
- शेखर: एक जीवनी
- देवरानी-जेठानी की कहानी
- सरस्वती
- शारदा का
- शशि
- अज्ञेय
- प्रवेश
- उत्थान
- पतन
- उत्कर्ष