परीक्षा गुरु (उपन्यास) : लाला श्रीनिवास दास । Pariksha Guru - Lala srinivas das

लाला श्रीनिवास दास (1851-1887) हिंदी साहित्‍य के नाटककार व उपन्यासकार थे। उनके उपन्यास परीक्षा गुरू को रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी का अंग्रेजी ढंग का पहला मौलिक उपन्यास कहा है। जिसका प्रकाशन 25 नवम्बर 1882 को हुआ था। वे मथुरा के निवासी थे और हिंदी, उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी और फारसी के अच्छे ज्ञाता थे।

इस पोस्‍ट के माध्‍यम से लाला श्रीनिवास दास के संक्षिप्‍त जीवन परिचय तथा इनके परीक्षा गुरु उपन्‍यास के पात्र, उद्देश्‍य, कथन, समीक्षा एवं महत्‍वपूर्ण प्रश्‍नोत्तर की चर्चा करेंगे। 

परीक्षा गुरु उपन्यास PDF

    लाला श्रीनिवास दास का जीवन परिचय 

    लेखक का नाम :- लाला श्रीनिवास दास

    जन्म :- 1851

    मृत्यु :- 1887

    निवास स्‍थान :-  मथुरा, उत्तर प्रदेश

    भाषा :- हिंदी, उर्दू, संस्कृत, फारसी एवं अंग्रेजी 

    प्रकाशित कृतियाँ :-

    1. उपन्यास - परीक्षा गुरू (1882)
    2. नाटक - प्रह्लाद चरित्र, तप्ता संवरण, रणधीर और प्रेम मोहिनी व संयोगिता स्वयंवर। 
    3. निबंध - भरतखण्ड की समृद्धि,सदाचरण।

    महत्वपूर्ण बिंदु :-

    1. लाला श्रीनिवास दास का सबसे महत्त्वपूर्ण उपन्यास ‘परीक्षा गुरु' है जो 1882 में प्रकाशित हुआ।
    2. इस उपन्‍यास को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी का प्रथम उपन्यास माना है।

    परीक्षा गुरु  (उपन्यास) : लाला श्रीनिवास दास

    लाला श्रीनिवास दास का उपन्यास परीक्षा गुरु (1882) हिन्दी का प्रथम मौलिक उपन्यास माना जाता है। इस उपन्यास की कहानी दिल्ली के कारोबारी व साहूकार लाला मदनमोहन पर केन्द्रित है।

    परीक्षा गुरु उपन्‍यास का विषय व भाषा-शैली

    1. परीक्षा गुरु उपन्यास का विषय नीतिपरक व उपदेशात्मक है।
    2. इस उपन्‍यास में जगह-जगह इंग्लैण्ड और यूनान के इतिहास से दृष्टांत दिए गए हैं ये दृष्टांत मुख्यत: ब्रजकिशोर  के कथनों में आते हैं।
    3. उपन्यास के बीच-बीच में संस्कृत, हिंदी, फारसी के ग्रन्थों से ढेर सारे उद्धाहरण, ब्रज भाषा में काव्यानुवाद रूप में दिए गए हैं।
    4. उपन्‍यास में सरल बोलचाल की (दिल्ली के आस-पास की) भाषा में कथा बतलाई गई है। इसके बावजूद पुस्तक की भाषा गरिमायुक्त और अभिव्यंजनपूर्ण है।

    परीक्षा गुरु उपन्यास के प्रमुख पात्र

    परीक्षा गुरु उपन्यास के प्रमुख पात्र निम्‍न है :-

    लाला मदनमोहन :- यह दिल्ली का एक कारोबारी व साहूकार है, जो मध्यवर्गीय मनोवृत्ति से ग्रसित है। समस्त कथा लाला मदनमोहन पर केन्द्रित है।

    ब्रजकिशोर :- मदनमोहन का सच्चा मित्र, बुद्धिमान एवं शिक्षित वकील है। ब्रजकिशोर के सहयोग से ही लाला मदनमोहन संकटों से उभरते हैं।

    कामनी :- लाला मदनमोहन की पत्नी

    प्रियंवदा :- ब्रजकिशोर की पत्नि

    लेखक ने मदन मोहन के 5 चाटुकार दरवारियों की चर्चा की है :-

    1.  मुंशी चुन्नीलाल - इनका मन पढ़ने-लिखने में कम लगता था ऐसी बातें याद कर रखी हैं जिन्हें वह नए आदमी के सामने सुनाकर अपना प्रभाव जमा लेता है। यह स्वार्थी है।
    2. मास्टर शम्भुदयाल - मदनमोहन को पढ़ाने आता था पर पढ़ना भूलकर दोनों में दोस्ती हो जाती है।
    3. पुरुषोत्तम - इसके मन में लोगों को धनवान मदन मोहन के प्रति ईर्ष्या भरी पड़ी है जनवान, विद्धवान, और बुद्धिमान देखकर इसको ईर्ष्या होती है।
    4. हकीम अहमद हुसैन- कम हिम्मतवाला व्यक्ति है। मदन मोहन के लिए औषधि उसी की इच्छानुसार देता है।
    5. बाबू वैद्यनाथ - रेलवे में नौकर है। अंग्रेजी अच्छा जानता  है। लोभ में ये भी मदन का दरबारी बन जाता है।

    'परीक्षा गुरु' उपन्यास की समीक्षा

    परीक्षा गुरु  उपन्‍यास लाला मदनमोहन पर केन्द्रित हे। लाला मदनमोहन अत्यधिक सम्पन्न व्यक्ति हैं, लेकिन वह पश्चिमी आधुनिकता के प्रवाह में पड़कर लगातार अपव्यय के कारण कई तरह के संकटों में फँस जाता है। लाला मदनमोहन के कई चाटुकार मित्र हैं जो उसको अवनति की ओर ले जाते हैं।

    अवनति पर ले जाने के लिए वे (चाटुकार मित्र) उन्हें (मदनमोहन) फिजूलखर्ची, विषयासक्ति, सुरा (शराब), वैश्या, जुआ आदि साधनों का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उस समय केवल ब्रजकिशोर ही मदनमोहन का साथ देता है और यही मदनमोहन को कुपथ (बुरे रास्ते) पर जाने से रोकने के लिए उपदेश भी देता रहता है। अन्ततः वह अपने बुद्धिमान एवं शिक्षित वकील मित्र लाला ब्रजकिशोर के प्रयासों से ही संकटों से उबरता है और पुन: चापलूसों (चाटुकार) व दुर्व्यसनों के चक्कर में न पड़ने की दृढ़-प्रतिज्ञा लेता है।

    लेखक ने स्थान-स्थान पर यह स्पष्ट करना चाहा है कि बिगाड़ने वाले स्वार्थी मित्र, विपत्ति आने पर मदनमोहन का साथ छोड़ जाएँगे। अतः विपत्ति की परीक्षा ही सच्चे या स्वार्थी मित्र का निर्णय कराती है।

    लाला मदनमोहन ऐसी व्यापारी-महाजनी संस्कृति के प्रतीक हैं, जो सामन्तवादी प्रवृत्ति से जकड़े हुए हैं, उनके माध्यम से उपन्यासकार ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि व्यापार-वाणिज्य की जो निरन्तर बढ़ती हुई शक्ति है, वह चापलूसों और सामन्ती अविवेक से घिरी हुई है और यदि हम भारत का विकास चाहते हैं, तो हमें भारत को ऐसी कुप्रवृत्तियों से मुक्त कराना होगा ताकि हमारा, हमारे भारत का विकास हो सके।

    प्रस्तुत उपन्यास में मुख्य रूप से देश के प्रति चिन्ता व्यक्त की गई है। हमें अपनी पूँजी का संरक्षण करना चाहिए और उस पूँजी का संरक्षण तथा उपयोग अपने देश हित के लिए करना चाहिए।

    परीक्षा गुरु को समकालीन जीवन का प्रतिनिधि बनाने के लिए तथा यथार्थ देशकाल के समावेश से कथा को वास्तविक तथा व्यापक बनाने के लिए, लेखक ने अनेक विधियों का प्रयोग किया है; जैसे- लेखक ने मूलकथा में ऐसे अनुकूल प्रसंगों की योजना की है, जिसमें बातचीत एवं कथा के स्वाभाविक विकास में देशकाल व्यक्त हुआ है- यहाँ लेखक ने प्रत्यक्ष वर्णन नहीं किया अपितु इसे नाटकीय विधि से पात्रों की बातचीत से स्वाभाविक क्रम में व्यंजित किया है।

    कथावस्तु, केन्द्रीय विचार और चित्रण पद्धति को देखते हुए 'परीक्षा गुरु' को उपन्यास की अपेक्षा उपदेशाख्यान कहना अधिक उपयुक्त होगा। 'परीक्षा गुरु' में पात्रों के कार्य-व्यापार भी विरल (कम) हैं। इस उपन्यास के पात्र कार्य में कम तथा वार्तालाप में अधिक संलग्न रहते हैं।

    उपन्‍यास का निष्‍कर्ष :-

    इस उपन्यास के पात्र जीते-जागते प्राणी न होकर किसी-न-किसी गुण या दोष के प्रतीक बन गए हैं। अन्ततः कहा जा सकता है कि केन्द्रीय विचार, उसके दृष्टान्तीकरण तथा चित्रित जीवन में वैशिष्ट्य के अभाव के कारण 'परीक्षा गुरु' उपदेशाख्यान की श्रेणी में आता है। परीक्षा गुरु के पात्रों और उनके कार्यव्यापारों की यथार्थता, वस्तुशिल्प की नवीनता और भाषा सम्बन्धी यथार्थवादी दृष्टिकोण के कारण यह रचना उपन्यास के अधिक निकट है।

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    परीक्षा गुरु उपन्यास के बारे में विद्वानों की राय

    1. डॉ. प्रतापनाराण टंडन के अनुसार - यह उपन्यास शिक्षाप्रद रचना है जो भाषा आदि की प्रौढ़ता और स्पष्टता की दृष्टि से महत्व रखता है तथा नैतिक आदर्श और राष्ट्रप्रेम की जो भावना आगे चलकर उत्तर भारतेंदु काल के उपन्यासों में मिलती है उसका सूत्रपात इसी युग में किया जा चुका था और इस दृष्टिकोण से उपन्यास की अनेक प्रवृत्तियों का श्रेय इसी युग की रचनाओं को है।
    2. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार - लाला श्रीनिवास दास व्यवहार में दक्ष और संसार का ऊँचा नीचा समझने वाले पुरुष थे। अतः उनकी भाषा संयत और साफ-सुथरी तथा रचना बहुत कुछ सोद्देश्य होती थी।
    3. बच्चन सिंह के अनुसार- इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें नया बर प्रतिध्वनि सुनाई पड़‌ती है। अपनी भाषा की उन्नति के साथ इसमें नये बंग को खेती और कल-कारखाने की उन्नति पर बल दिया गया है। अंग्रेज़ों को नहस का निषिद्ध ठहराया गया है। देशी भाषा में शिक्षा देने पर जोर दिया गया है। अक्कत की कद्र न करने की निंदा की गयी है। पुरानी पीढ़ी की कर्मठता को अनुकरणीय बताया गया है। इसी तरह उस युग को समग्रता में समेटने का जो प्रयास लातारी ने किया है, वह प्रशंसनीय हैं।
    4. आचार्य रामचंद्र शुक्ल- परीक्षा गुरु अंग्रेजी ढंग का पहला मौलिक उपन्यास है।

    परीक्षागुरु उपन्यास के महत्त्वपूर्ण कथन

    परीक्षा गुरु उपन्यास में आए महत्वपूर्ण कथन निम्नलिखित हैं :-

    1. मनुष्य जिस बात को मन से चाहता है उसका पूरा होना ही सुख का कारण है और उसमें हर्ज पडने ही से दुख होता है। - मिस्टर शंभू दयाल 
    2. मनुष्य के मन के विचार ना सुधरे तो पढ़ने लिखने से क्या लाभ हुआ। - लाला ब्रजकिशोर
    3. वर्तमान समय के अनुसार सब के फायदे की बातों पर सतशास्त्र और शिष्टाचार की एकता से बर्ताव करना सच्ची स्वतंत्रता है। - लाला ब्रजकिशोर
    4. जरूरत भी अपनी-अपनी रूचि के समान अलग-अलग होती है। - चुन्नीलाल
    5. मनुष्य के चित्त से बढ़कर कोई वस्तु कोमल और कठोर नहीं है। - लाला ब्रजकिशोर
    6. आदमी की पहचान जाहिरी बातों से नहीं होती उसके बर्ताव से होती है। -लाला ब्रजकिशोर
    7. निस्संदेह मित्रता ऐसी ही चीज है पर जो लोग प्रीति का शौक नहीं जानते वह किसी तरह इसका भेद नहीं समझ सकते। - ब्रजकिशोर
    8. देश की उन्नति अवनति का आधार बहुत निवासियों की प्रकृति पर है सब देशों में सावधान और असावधान मनुष्य रहते हैं। - लाला ब्रजकिशोर
    9. पति ही स्त्री का जीवन है पति बिना स्त्री को जी कर क्या करना। - कामिनी
    परीक्षा गुरु उपन्यास के पात्र

    Pariksha Guru Upanyas MCQ

    प्रश्‍न 01. लाला श्रीनिवास ने सदादर्श पत्र कब निकाला -

    1. 1872 ई.
    2. 1874 ई.
    3. 1877 ई.
    4. 1875 ई.

     उत्तर: 2. 1874 ई.


    प्रश्‍न 02. अधिकतर विद्वानों के अनुसार हिंदी के प्रथम उपन्यासकार है।

    1. बालकृष्ण भट्ट
    2. प्रतापनारायण मिश्र
    3. लाला श्रीनिवास दास
    4. ठाकुर जगमोहन

    उत्तर: 3. लाला श्रीनिवास दास


    प्रश्‍न 03. हिंदी का प्रथम उपन्यास माना जाता है।

    1. नूतन ब्रह्मचारी
    2. सुलोचना
    3. बिरजा
    4. परीक्षा गुरु

    उत्तर: 4. परीक्षा गुरु


    प्रश्‍न 04. लाला श्रीनिवास को अखबार नवीश नाम किसने दिया था।

    1. डॉ. रामकुमार वर्मा
    2. डॉ. बच्चनसिंह
    3. हजारीप्रसाद द्विवेदी
    4. आ. शुक्ल

    उत्तर: 4. आ. शुक्ल


    प्रश्‍न 05. लाला श्रीनिवास का जन्म कहाँ हुआ।

    1. काशी
    2. लखनऊ
    3. मथुरा
    4. जयपुर

    उत्तर: 3. मथुरा


    प्रश्‍न 06. लाल श्रीनिवास ने किस पत्रिका का संपादन किया था।

    1. हिंदी प्रदीप
    2. प्रजा हितैषी
    3. ब्राह्मण
    4. सदादर्श

    उत्तर: 4. सदादर्श


    प्रश्‍न 07. परीक्षा गुरु उपन्यास का रचनाकाल है।

    1. 1880 ई.
    2. 1886 ई.
    3. 1882 ई.
    4. 1887 ई.

    उत्तर: 3. 1882 ई.


    प्रश्‍न 08. बालकृष्ण भट्ट के उपन्यास नूतन ब्रह्मचारी का रचनाकाल है।

    1. 1884 ई.
    2. 1885 ई.
    3. 1886 ई.
    4. 1887 ई.

    उत्तर: 4. 1887 ई.


    प्रश्‍न 09. लाला श्रीनिवास के नाटक रणधीर प्रेममोहिन का रचनाकाल है।

    1. 1884 ई.
    2. 1877 ई.
    3. 1886 ई.
    4. 1872 ई.

    उत्तर: 2. 1877 ई.


    प्रश्‍न 10. हिंदी का प्रथम दुखांत नाटक माना जाता है।

    1. सती प्रताप
    2. तत्पासंवरण
    3. रणधीर प्रेममोहिनी
    4. वेण संहार

    उत्तर: 3. रणधीर प्रेममोहिनी

    यह भी पढ़े: 

    { इकाई – VI, हिन्दी उपन्यास }

    लाला श्रीनिवास दास :परीक्षा गुरू
    प्रेमचन्द :गोदान
    हजारी प्रसाद द्विवेदी :बाणभट्ट की आत्मकथा
    फणीश्वर नाथ रेणु :मैला आंचल
    यशपाल :- झूठा सच
    अमृत लाल नागर :- मानस का हंस
    भीष्म साहनी :तमस
    श्रीलाल शुक्ल :राग दरबारी
    कृष्णा सोबती :जिन्दगी नामा
    मन्नू भंडारी :आपका बंटी
    जगदीश चन्द्र :- धरती धन न अपना