फणीश्वरनाथ 'रेणु' (Phanishwar Nath Renu) हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे। उपन्यास को आंचलिक कहने तथा उसकी महत्ता की ओर आलोचकों का ध्यान आकृष्ट करने का श्रेय सुप्रसिद्ध उपन्यासकार 'फणीश्वरनाथ रेणु' को प्राप्त है। इन्होंने अपने उपन्यासों में आंचलिक जीवन की हर धुन, गन्ध, लय, ताल, सुर, सुन्दरता और कुरूपता को शब्दों में बाँधने की सफल कोशिश की है। 'रेणु' जी को जितनी ख्याति हिन्दी साहित्य में अपने उपन्यास 'मैला आँचल' से मिली, उतनी अन्यत्र किसी कृति से नहीं मिली। इस रचना के लिए इन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।
इस पोस्ट के माध्यम से फणीश्वरनाथ रेणु के संक्षिप्त जीवन परिचय तथा इनके मैला आँचल उपन्यास के पात्र, उद्देश्य, कथन, समीक्षा एवं महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर की चर्चा करेंगे।
फणीश्वरनाथ रेणु का जीवन परिचय
लेखक का नाम :- फणीश्वरनाथ रेणु (Phanishwar Nath Renu)
जन्म :- 4 मार्च, 1921 (पूर्णिया ज़िला, बिहार)
मृत्यु :- 11 अप्रैल, 1977
पिता :- शिलानाथ
विषय :- कहानी, उपन्यास, रिपोर्ताज, संस्मरण, रेखाचित्र
प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ :-
- उपन्यास -
- मैला आंचल
- परती परिकथा
- जूलूस
- दीर्घतपा
- कितने चौराहे
- पलटू बाबू रोड
- रिपोर्ताज -
- ऋणजल-धनजल
- नेपाली क्रांतिकथा
- वनतुलसी की गंध
- श्रुत अश्रुत पूर्वे
- प्रसिद्ध कहानियाँ -
- मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम)
- एक आदिम रात्रि की महक
- लाल पान की बेगम
- पंचलाइट
- तबे एकला चलो रे
- ठेस
- संवदिया
सम्मान :-
- मैला आंचल उपन्यास के लिये रेणु जी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
महत्वपूर्ण बिंदु :-
- 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से योगदान दिया।
- रेणु जी को आजादी के बाद का प्रेमचन्द की संज्ञा दी जाती है।
मैला आंचल (उपन्यास) : फणीश्वरनाथ रेणु
मैला आंचल उपन्यास के प्रमुख पात्र
डॉ. प्रशान्त :- उपन्यास का नायक तथा एक युवा डॉक्टर है, जो अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद पिछड़े गाँव को अपने कार्यक्षेत्र के रूप में चुनता है।
कमली :- कहानी की नायिका है, जो किसी अज्ञात बीमारी से पीड़ित है।
विश्वनाथ प्रसाद :- गाँव के तहसीलदार (लोगों का शोषण करता है)
बालदेव :- कांग्रेस के कार्यकर्ता (स्वतंत्रता सेनानी)
बाबनदास :- शारीरिक रूप से अक्षम हैं।
सेवादास :- मठ के पुजारी
लक्ष्मी :- सेवादास की सेविका
रामदास :- सेवादास का चेला 7 इनकी दासी रामप्रिया
मैला आंचल उपन्यास की समीक्षा
मैला आंचल उपन्यास के महत्त्वपूर्ण कथन
- इसमें फूल भी हैं शूल भी; धूल भी है, गुलाब भी कीचड़ भी है, चन्दन भी; सुंदरता भी है, कुरूपता भी मैं किसी से दामन बचाकर निकल नहीं पाया। - लेखक
- दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है,हमें नहीं मालूम। पता नहीं आदमी लंग्स को दल कहता है या हॉट को। जो भी हो हार्ट ,लंग्स,लीवर का प्रेम से कोई संबंध नहीं है। - डॉक्टर प्रशांत
- क्या करेगा वह संजीवनी बूटी खोजकर ? उसे नही चाहिए संजीवनी। भूख और बेबसी से छटपटाकर मरने से अच्छा है मैलेग्नेट मलेरिया से बेहोश होकर मर जाना। तिल – तिलकर घुल – घुलकर मरने के लिए उन्हें जिलाना बहुत बड़ी क्रूरता होगी। - डॉक्टर प्रशांत
- महतमा जी खुद मैला साफ करते थे। जहाँ सफाई रहती है वहाँ का आदमी भी साफ रहता है। मन साफ रहता है। साहेब लोगों को देखिए, उनके देस का गाछ-बिरिछ भी साफ रहता है। - बालदेव
- गाँव के लोग बड़े सीधे दीखते हैं; सीधे का अर्थ यदि अपढ़, अज्ञानी और अंधविश्वासी हो तो वास्तव में सीधे हैं वे । जहाँ तक सांसारिक बुद्धि का सवाल है, वे हमारे और तुम्हारे जैसे लोगों को दिन में पाँच बार ठग लेंगे। और तारीफ यह है कि तुम ठगी जाकर भी उनकी सरलता पर मुग्ध होने के लिये मजबूर हो जाओगी। - डॉक्टर प्रशांत
- मैं आप लोगों को मीठी बातों में भुलाना नहीं चाहता। वह काँगरेसी का काम है। मैं आग लगाना चाहता हूँ। - कालीचरन
- डॉ प्रशांत और कमली के प्रेमोन्मत प्रसंग में विद्यापति की पंक्तियां को उद्धृत किया है :- “अधरक मधु जब चाखल कान्ह तोहर शपथ हम किछु यादि जानि। - डॉक्टर प्रशांत
- पिकेटिंग के समय कांग्रेस के वालेटियरों को पीटने वाला चानमल मारवाड़ी का बेटा सागरमल नरपत नगर थाना कांग्रेस का सभापति है जबकि नेपाल से लड़कियों भगाकर लाने वाला दुलारचंद कापरा कटहा थाने का सेक्रेटरी है। - बावनदास
- तुम तो आज आए हो,हम सन् तीस से जानते है। टीक – मोंछ काटकर मुर्गी का अंडा खिलाकर कामरेड बनाया जाता है।कफ जेहल में कितने लोगों को कामरेड होते देखा है। मुजफ्फरपुर कू एक सोशलिस्ट नेता थे। उनका काम यही था लोगों की टीक मोंछ काटना। - बालदेव कालीचरण से
- ममता ! मैं फिर काम शुरु करूंगा यही इसी गांव में! मैं प्यार की खेती करना चाहता हूं। मैं साधना करुंगा ग्रामवासिनी भारतमाता के मैले ऑचल तले। - डॉक्टर प्रशांत
- यह जो लाल झंडा है आपका झंडा है, जनता का झंडा है, अवाम का झंडा है,इकालाब झण्डा है। इसकी लाली उगते हुए आफताब की लाली है। यह खुद आफताब है । इसकी लाली,इसका रंग क्या है रंग नहीं। यह गरीबों, महरूमों, मजदूरों, के खून में रंगा हुआ झंडा है। - कालीचरण
- जात दो ही है एक गरीब और दूसरी अमीर। - कालीचरण
- तब कोठारिनी जी से कहा जाय । अब तो खद्धड़ पहनती है खूब नेमटेम भी करती है। रोज नहाने के बाद महतमाजी की छाती पर फूल चढ़ाती है। - बालदेव
- भाई आदमी को एक ही रंग में रहना चाहिए यह तीन रंग का झंडा थोड़ा सादा, थोड़ा लाल और पीला, यह है तो खिचड़ी पार्टी का झंडा है। कांग्रेस तो खिचड़ी पार्टी है। इसमें जमीदार है, सेठ लोग हैं और पासंग मारने के लिए थोडे किसान,मजदूरों को भी मेंबर बना लिया गया है। गरीबों को एक ही रंग के झंडे वाली पार्टी में रहना चाहिए। - वासुदेव
- कोई रिसर्च की असफल नहीं होता है डॉक्टर ! तुमने कम से कम मिट्टी को तो पहचाना है। मिट्टी और मनुष्य में मोहब्बत छोटी बात नहीं। - ममता
- मिट्टी और मनुष्य में गहरी मोहब्बत किसी लेबोरेटरी में नहीं बनती। - ममता
- एक असहाय औरत देवता के संरक्षण में भी सुख चैन से नहीं सो सकती है। - कालीचरण मंगला से
- कमाने वाला खाएगा इसके चलते जो कुछ हो। किसान राज कायम हो मजदूर राज कायम हो। - कालीचरण
- आह ! एक बूंद आई ड्रॉप के बगैर दो सुंदर आंखें सदा के लिए ज्योतिहीन हो गई। - डॉक्टर प्रशांत
- आदमी के दिल होता है शरीर की चीर फाड़ कर जिसे हम नहीं पा सकते । वह हार्ट नहीं आगम अगोचर जैसी चीज है जिसमें दर्द होता है लेकिन जिसकी दवा एड्रिलीन नहीं । उस दर्द को मिटा दो आदमी जानवर हो जाएगा । दिल वह मंदिर है जिसमें आदमी के अंदर का देवता वास करता है। - डॉक्टर प्रशांत
- हमने भारत माता का नाम महात्मा जी का नाम लेना नहीं बंद किया है। मलेटरी ने हमको नाखुन में सुई गड़ाया तिस पर भी हम इस बिस नहीं किएं आखिर हार कर जेलखाना में डाल दिया।”
- कांग्रेस पूंजीपतियों की भ्रष्ट संस्था है। - बालदेव
- कमली डॉ प्रशांत से, हरगौरी अपनी मौसेरी बहन से, बालदेव कोठारिन (लछमी) से, कालीचरण चर्खा स्कूल की मास्टरनी से प्रेम करते हैं - सहदेव
- डॉक्टर से इतना हेल मेल बढ़ाना ठीक नहीं है,वह उनकी आंखों में झॉककर यह सोचकर कॉप जाती है कि कही उसने अपने आंचल को तो मेला नहीं कर लिया है। - कमली
मैला आंचल उपन्यास के महत्वपूर्ण बिन्दु
- प्रकाशन वर्ष - 1954 ई.
- रेणु जी का बचपन का नाम' फणीश्वरनाथ 'मंडल' था ।
- मैला आंचल, उपन्यास के लिए इनको पदमश्री पुरस्कार मिला।
- अज्ञेय जी को इनका परम मित्र बताया जाता है।
- इनकी कहानी "मारे गए गुलफाम" पर 'तीसरी कसम' फिल्म भी बनी, जिसे हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर कहा जाता है। और इसे सन् 1966 में राष्ट्रपति स्वर्ण पदक मिला।
- मैला आंचल एक यर्थाथवादी उपन्यास है।
- इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका नायक कोई व्यक्ति नहीं है, अपितु पूरा का पूरा अँचल ही इसका नायक है
Maila Aancha Upanyas MCQ
- गोपलगंज
- मेरी गंज
- सुल्तानगंज
- डालटनगंज
- 1954
- 1975
- 1942
- 1964
- मलेरिया सेंटर
- पोलियो सेंटर
- सिलाई सेंटर
- महिला सेंटर
- जनता सेवा आश्रम
- विद्यापती आश्रम
- रामकृष्ण कांग्रेस आश्रम
- सदाउत आश्रम
- प्रशांत
- डब्ल्यू जी मार्टिन
- विश्वनाथ प्रसाद
- गाँगुली
- एक
- दो
- तीन
- चार
- पंडितों का
- कायस्थों का
- यादवों का
- साधुओं का
- प्रशांत कुमार
- राजीव नयन
- सम्पूर्णानन्द चौधरी
- के.डी. सहाय
- कालीचरन
- बालदेव
- रामदास
- लक्ष्मी
- पद्म भूषण
- पद्म विभूषण
- पद्म श्री
- साहित्य अकादमी पुरस्कार
- एनीमिया
- कैंसर
- मलेरिया
- हैजा
- 25
- 15
- 10
- 20