हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय
नाम - हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai)
जन्म - 22 अगस्त, 1924 (गाँव जमानी) होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
निधन - 10 अगस्त, 1995
पेशा - अध्यापक, संपादक, लेखक
विद्याएँ - उपन्यास, कहानी, निबंध, व्यंग्य
उपन्यास - तट की खोज, रानी नागफनी की कहानी।
कहानी-संग्रह - जैसे उनके दिन फिरे, हँसतें हैं रोते हैं, भोलाराम का जीव।
निबंध-संग्रह - शिकायत मुझे भी है, सदाचार का तावीज, पगडंडियों का जमाना।
व्यंग्य-लेख संग्रह - ठिठुरता हुआ गणतंत्र, वैष्णव की फिसलन, विकलांग श्रद्धा का दौर।
आत्मकथा - गर्दिश के दिन
संस्थापक व संपादक - वसुधा (साहित्यिक पत्रिका)
पुरस्कार एवं सम्मान - शरद जोशी सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, शिक्षा सम्मान।
हरिशंकर परसाई - भोलाराम का जीव (कहानी)
रचनाकार का नाम - हरिशंकर परसाई
कहानी का प्रकाशन वर्ष - 1967 ई.
कहानी के मुख्य पात्र :
भोला राम - एक ऐसा व्यक्ति है जो सरकार के लिए काम करता था। अब जब वह सेवानिवृत्त हो चुका है, तो उसे अपने काम के लिए मिलने वाले पैसे पाने में मुश्किल होती है, और मरने के बाद भी, वह जटिल सरकारी नियमों से बच नहीं पाता है।
धर्मराज - मृत्यु के देवता हैं जो यह तय करते हैं कि भोला राम की आत्मा स्वर्ग जाएगी या नर्क।
नारद - एक ऐसे देवता हैं जिन्हें भोला राम को स्वर्ग ले जाना है, लेकिन वे भी उन्हीं भ्रामक सरकारी नियमों से निपटने में फंस जाते हैं।
चित्रगुप्त - एक और देवता हैं जो इस बात का हिसाब रखते हैं कि किसकी मृत्यु हुई है, लेकिन वे भोला राम के कागजी काम में उलझ जाते हैं।
भोला राम का परिवार - जिसमें उनकी पत्नी और दो बेटे और एक बेटी शामिल हैं, को उनके निधन के बाद भी सरकारी नियमों से परेशानी होती रहती है।
अन्य पात्र : यमदूत, दफ्तर का बाबू, बड़े साहब, चपरासी आदि।
भोलाराम का जीव कहानी का सारांश
परसाईं जी की रचना 'भोलाराम का जीव' एक व्यंग्य रचना है। इस रचना में लेखक ने एक मनुष्य की आत्मा के लुप्त हो जाने की घटना के माध्यम से शासकीय व्यवस्था, घूसखोरी जड़ता और यथार्थ का उद्घाटन किया है। यह कहानी सतही तौर पर एक व्यक्ति की व्यथा कथा दिखाई देती है, जो भ्रष्टाचार की चक्की में पिस रहा है, परन्तु इस कथा के पीछे लेखक की मानवीय करुणा और सामाजिक यथार्थ के प्रति आक्रोश झलकता है।
यह रचना स्वातन्त्र्योत्तर भारत के सामाजिक यथार्थ की सशक्त प्रस्तुति है। एक मामूली सरकारी कर्मचारी रिटायर हो गया और पाँच साल तक पेंशन के लिए चक्कर लगाते-लगाते मर गया। उसके जीव को लेने जब यमदूत गया तो जीव यमदूत को चकमा देकर ऐसा गायब हुआ कि बहुत खोजने पर भी नहीं मिला। आखिरकार जब नारद जी उसे ढूँढ़ते हुए स्वयं धरती पर आए तो वह जीव अपनी पेंशन फाइल में अटका हुआ पाया गया।
आश्चर्य यह था कि नारद जी के कहने पर भी वह स्वर्ग में जाने को तैयार नहीं, क्योंकि उसका मन अपनी पेंशन फाइलों में ही अटक गया है। कहानी के माध्यम से परसाईं जी यह बताना चाहते हैं कि जिस भ्रष्टाचार से आज हम दबे हुए हैं वह इतना सर्वव्यापी है कि आज उसकी पहुँच अलौकिक हो गई। इस कहानी के प्रारम्भ में ही लेखक स्वर्ग और नरक की दिव्यता अलौकिकता का मिथक तोड़ देते हैं।
मिथक तोड़ते हुए वे कहते हैं कि कुछ भी जीवन के बाहर नहीं है और जीवन से अधिक सत्य कुछ भी नहीं है। जिस अलौकिकता को आधार बनाकर धर्म के पुरोहित-पण्डे लोगों को ठगते हैं उस अलौकिकता को प्रारम्भ में ये वाक्य धराशायी कर देते हैं। यह मनुष्य की जय का गान है, क्योंकि परसाईं जी की विचारधारा मानती है कि मनुष्य से बड़ा कुछ भी नहीं हैं न देवता और न स्वर्ग। इस कहानी की शैली और भाषा अत्यधिक सरल व स्पष्ट है। इस कहानी का उद्देश्य भ्रष्टाचार की कथा कहना है। भ्रष्टाचार कितना सनातन है, यह परसाईं जी ने इस कहानी के माध्यम से स्पष्ट रूप से दिखाया है।
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Bholaram Ka Jeev Kahani MCQ
प्रश्न 01. 'इन्द्रजाल होना' मुहावरे का क्या अर्थ है?
- भयभीत होना
- धोखा देना
- आश्चर्य होना
- गर्व होना।
उत्तर - 2. धोखा देना
प्रश्न 02. चित्रगुप्त के अनुसार भोलाराम के जीव ने कितने दिन पहले देह का त्याग किया?
- पाँच दिन पहले
- सात दिन पहले
- चार दिन पहले
- दस दिन पहले।
उत्तर - 1. पाँच दिन पहले
प्रश्न 03. भोलाराम का जीव छिप गया था।
- अपने मकान में
- अपनी पेन्शन की फाइल में
- जंगल में
- एक शिव मंदिर
उत्तर - 2. अपनी पेन्शन की फाइल में
प्रश्न 04. भोलाराम की मृत्यु का सही कारण था।
- वृद्ध होना
- असाध्य रोग से पीड़ित होना
- चिन्ता और भूख से घुल-मिल कर जर्जरित होना
- पेंशन का न मिलना।
उत्तर - 3. चिन्ता और भूख से घुल-मिल कर जर्जरित होना
प्रश्न 05. 'भोलाराम का जीव' कहानी में लेखक का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- राजनीतिक दलों की अवसरवादिता को बताना
- भ्रष्ट नौकरशाही की जड़ता को उजागर करना
- रेलवे कर्मचारियों की उदासीनता को बतलाना
- निर्माण विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को बतलाना।
उत्तर - 2. भ्रष्ट नौकरशाही की जड़ता को उजागर करना
प्रश्न 06. 'भोलाराम का जीव' कहानी है।
- भाव प्रधान
- व्यंग्य प्रधान
- चरित्र प्रधान
- समस्या प्रधान ।
यह भी देखें :-
{ इकाई – X, आत्मकथा, जीवनी तथा अन्य गद्य विधाएं }
महादेवी वर्मा - ठकुरी बाबा
तुलसीराम - मुर्दहिया
शिवरानी देवी - प्रेमचन्द घर में
मन्नू भंडारी - एक कहानी यह भी
विष्णु प्रभाकर - आवारा मसीहा
हरिवंशराय बच्चन - क्या भूलूँ क्या याद करूँ
रमणिका गुप्ता - आपहुदरी
हरिशंकर परसाई - भोलाराम का जीव
कृष्ण चन्दर - जामुन का पेड़
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