विष्णु प्रभाकर का जीवन परिचय
नाम - विष्णु प्रभाकर (Vishnu Prabhakar)
जन्म - 21, जून, 1912 (मीरापुर गाँव, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश)
निधन - 19, अप्रैल, 2009
पिता का नाम - श्री दुर्गा प्रसाद
माता का नाम - श्रीमती महादेवी
शिक्षा - बी.ए (अंग्रेजी), पंजाब विश्वविद्यालय
प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ :-
उपन्यास - ढलती रात, स्वप्नमयी, अर्धनारीश्वर, धरती अब भी घूम रही है, क्षमादान, पाप का घड़ा, दो मित्र, होरी आदि ।
नाटक - नवप्रभात, डॉक्टर, हत्या के बाद व बारह एकांकी, प्रकाश और परछाइयां, अब और नहीं, टूटते परिवेश आदि ।
कहानी संग्रह - संघर्ष के बाद, खिलौने, मेरा वतन, आदि और अंत आदि ।
यात्रावृतांत - ज्योतिपुंज हिमालय, जमुना गंगा के नैहर मैं आदि ।
आत्मकथा - ' पंखहीन' नाम से इनकी आत्मकथा तीन भागों में प्रकाशित हुई ।
जीवनी - आवारा मसीहा (शरतचन्द्र चटर्जी के जीवन पर आधारित ) ।
विष्णु प्रभाकर – आवारा मसीहा (जीवनी)
रचनाकार का नाम - विष्णु प्रभाकर
जीवनी का प्रकाशन वर्ष - 1974 ई
आवारा मसीहा जीवनी के प्रमुख पात्र
- केदारनाथ (नाना)
- मोतीलाल (पिता)
- भुवनमोहनी (माता)
- अघोरनाथ (छोटे नाना)
- सुरेन्द्रनाथ (मामा)
- मणीन्द्र (छोटे नाना का बेटा, शरतचंद्र का सहप्पाठी)
- ठाकुर दास (बड़े मामा)
- अक्षय पंडित (पहले गुरु)
- राजू (दोस्त)
- काशीनाथ (दोस्त)
- धीरू (दोस्त)
- नीला (दोस्त)
- राजबाला
- विराजबहु (नयनतारा, शशितारा)।
आवारा मसीहा जीवनी का सारांश
विष्णु प्रभाकर जी की सर्वश्रेष्ठ कृति 'आवारा मसीहा' है। यह बंगाल के अमर कथा-शिल्पी और सुप्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के जीवन पर आधारित है। इस जीवनी को लिखकर विष्णु जी ने हिन्दी और बंगला साहित्य के बीच ऐसे सेतु का निर्माण किया है, जो समूचे राष्ट्र की रागात्मक एकता का प्रतीक है। शरतचन्द्र की सम्पूर्ण जीवनी में लगभग 430 पृष्ठ हैं, ये तीन पर्वों में विभाजित हैं-
1. दिशाहारा (शरतचंद्र की बचपन की घटनाएँ)
2. दिशा की खोज (साहित्यिक जीवन और जीविका की खोज)
3. दिशांत (सामाजिक कार्य व साहित्यिक विधाओं में उनकी रचनाशीलता को बताया गया है)।
प्रथम पर्व दिशाहारा शीर्षक में हैं- विदा का दर्द, भागलपुर में कठोर अनुशासन राजू उर्फ इन्द्रनाथ से परिचय, वंश का गौरव, होनहार बिरवान राबिनहुड अच्छे विद्यार्थी से कथा-विशारद तक, एक प्रेम-प्लावित आत्मा, वह युग, नाना परिवार से विद्रोह, शरत को घर मत आने दो, राजू उर्फ इन्द्रनाथ की याद, सृजन का युग, आलोशध्य और छाया मेम की अपार भूख, निरुद्देश्य यात्रा, जीवन मन्थन से निकला विष।
द्वितीय पर्व दिशा की खोज में शरत के लेखन विकास प्रेरणा के स्रोत रचनाओं की पृष्ठभूमि और पात्रों से समरसता, रंगून प्रवास, गृह दाह, सृजन का आवेग, चरित्रहीन, विराज बहू और आवारा श्रीकान्त की चर्चा है।
तृतीय पर्व दिशान्त में 'वह' से 'वे' सृजन का स्वर्ण युग देश की मुक्ति का व्रत, राजनीति से उनका लगाव और नारी चरित्र के परम रहस्य ज्ञाता के रूप में शरत का चित्रण है। शरत के जीवन पर प्रकाश डालने वाली यह प्रथम कृति है। इसके स्त्री पात्र इतने मजबूत और विशाल से लगते हैं कि पाठकों के साथ विशेष कर, महिला पाठकों के मन में शरत के लिए अगाध लगाव को समझा जा सकता है।
आवारा मसीहा जीवनी महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ
विष्णु प्रभाकर ने यह जीवनी शरत् चंद्र चट्टोपाध्याय के जीवन को केंद्र में रखकर लिखा है।
शरत् बांग्ला के प्रसिद्ध कथाकार और उपन्यासकार हैं।
शरत् की दूसरी पत्नी का मूल नाम मोक्षदा था, जिन्हें वे हिरण्यमयी नाम से पुकारते थे।
इस जीवनी का प्रकाशन वर्ष सन् 1974 ई. है।
विष्णु प्रभाकर शरतचंद्र को 'अपराजेय कथाशिल्पी' कहा है।
इसे लिखने में उन्हें कुल चौदह वर्ष लगे। उन्होंने लिखा, "सन् 1959 ई. से मैंने अपनी यात्रा आरंभ की और अब 1973 है। चौदह बरस लगे मुझे 'आवारा मसीहा' लिखने में।"
विष्णु प्रभाकर को यह जीवनी लिखने को प्रेरित किया 'हिंदी ग्रंथ रत्नाकर, बंबई' के स्वामी श्री नाथूराम प्रेमीजी ने। उन्होंने यशपाल जैन से अपनी इस योजना का जिक्र किया और जैन जी ने विष्णु प्रभाकर का नाम सुझाया।
- आवारा मसीहा का द्वितीय संस्करण – 1977
- तृतीय संस्करण – 1999
विष्णु प्रभाकर ने लिखा कि उनसे पहले बंगाली लेखकों में सबसे प्रामाणिक कार्य श्री गोपालचंद्र राय ने किया है।
प्रभाकर जी ने इस जीवनी के लेखन में शरत् के मामा सुरेन्द्रनाथ गांगुली का विशेष ऋण स्वीकार किया है।
शरत् के राजनीतिक जीवन की सर्वाधिक जानकारी उन्हें शचीनन्दन चट्टोपाध्याय की पुस्तक से मिली।
आवारा मसीहा को प्रभाकर जी ने तीन पर्वों में लिखा है -
- दिशाहारा – आरंभिक जीवन (भागलपुर)
- दिशा की खोज – रंगून (बर्मा) प्रवास
- दिशांत – साहित्यिक उत्कर्ष का काल
शरत् ने रवीन्द्रनाथ टैगोर को तमाम वैचारिक मतभेदों के बावजूद अपना गुरु माना।
इस जीवनी में हिंदी के दो साहित्यकारों का शरतचंद्र से मुलाकात और वार्तालाप-संबंध मिला – इलाचंद्र जोशी और अमृतलाल नागर।
भूमिका में उन्होंने लिखा- "मैंने कला को भले ही खोया हो, आस्था को नहीं खोया और निरंतर सशक्त और सच्ची संवेदना की घड़ियों को खोजने का प्रयत्न किया है।"
Aawaara masiha jivani MCQ
प्रश्न 01. विष्णु प्रभाकर को 'आवारा मसीहा' लिखने में कुल कितने वर्ष लगे।
- ग्यारह वर्ष
- बारह वर्ष
- तेरह वर्ष
- चौदह वर्ष
उत्तर: 4. चौदह वर्ष
प्रश्न 02. 'आवारा मसीहा' रचना किसके जीवन पर आधारित है।
- बंकिमचंद्र
- प्रेमचंद
- शरतचंद्र
- रवीन्द्रनाथ टैगोर
उत्तर: 3. शरतचंद्र
प्रश्न 03. आवारा मसीहा जीवनी कितने भागों में है।
- पाँच भागों में
- दो भागों में
- तीन भागों में
- चार भागों में
उत्तर: 3. तीन भागों में
प्रश्न 04. आवारा मसीहा को पूरा होने में कितने वर्ष लगे थे।
- 12
- 11
- 15
- 14
उत्तर: 4. 14
प्रश्न 05. विष्णु प्रभाकर ने आवारा मसीहा को किसकी प्रेरणा से लिखा था।
- प्रेमचंद
- यशपाल जैन
- स्वयं के
- शरद चंद्र
उत्तर: 2. यशपाल जैन
प्रश्न 06. विष्णु प्रभाकर का प्रथम नाटक है।
- डॉक्टर
- लिपस्टिक की मुस्कान
- युगे युगे क्रांति
- हत्या के बाद
उत्तर: 4. हत्या के बाद
0 टिप्पणियाँ