रामधारी सिंह 'दिनकर' (23 सितंबर 1908 – 24 अप्रैल 1974) हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। वे एक महान कवि, लेखक और निबंधकार के रूप में जाने जाते हैं। उनकी कविताओं में वीर रस की प्रधानता रही है, जिसके कारण उन्हें आधुनिक युग का श्रेष्ठ वीर रस का कवि माना जाता है।
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
नाम - रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar)
जन्म - 23 सितंबर 1908, सिमरिया ग्राम, बेगूसराय, बिहार
निधन - 24 अप्रैल 1974, चेन्नई, तामिलनाडु
पिता का नाम - रवि सिंह
माता का नाम - मनरूप देवी
भाषा - परिष्कृत खड़ीबोली
सम्मान - साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्म भूषण आदि।
प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ
मुक्तक-काव्य - प्रणभंग, रेणुका, बापू, धूप-छाँह, इतिहास के आँसू, हुँकार, रसवंती, द्वंद्वगीत, सामधेनी, धूप और धुआँ, मिर्च का मज़ा, नीम के पत्ते, सूरज का ब्याह, नील-कुसुम, हारे को हरिनाम सहित दो दर्जन से अधिक संग्रह।
प्रबंध-काव्य - कुरुक्षेत्र (1946), रश्मिरथी (1951) और उर्वशी (1961)
गद्य काव्य - मिट्टी की ओर, रेती के फूल, उजली आग, वेणुवन, शुद्ध कविता की खोज, संस्कृति के चार अध्याय, हे राम!, संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ, मेरी यात्राएँ, दिनकर की डायरी, विवाह की मुसीबतें सहित दो दर्जन से अधिक कृतियाँ।
रामधारी सिंह दिनकर – संस्कृति के चार अध्याय
'संस्कृति के चार अध्याय' हिन्दी के विख्यात साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित एक भारतीय संस्कृति का सर्वेक्षण है, जिसके लिए उन्हें वर्ष 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
यह पुस्तक पूरी तरह से भारतीय संस्कृति की प्राचीन भारत से लेकर आज़ादी तक के आधुनिक भारत पर शोधपरक तथ्यों के साथ लिखी गई है। इसमें आर्य और द्रविड़ समस्याएँ, वैदिक संस्कृति, बौद्ध आन्दोलन के कारण और उसके प्रभाव, इस्लाम का आगमन तथा इस्लाम का हिन्दुत्व पर प्रभाव, सिख मत, भारतीय संस्कृति पर यूरोप का प्रभाव, गांधी जी, तिलक, स्वामी विवेकानन्द, ब्रह्म समाज आदि का राष्ट्रीय एकता में योगदान आदि विषयों को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
इसके माध्यम से हम जान सकते हैं कि हमें अपने देश की विरासतों पर गर्व क्यों करना चाहिए तथा अपनी संस्कृति से प्रेम क्यों करना चाहिए। भारत में होने वाले सभी धार्मिक जागरणों व भक्ति जागरणों में तुलसी, कबीर और गुरुनानक भी थे और इनका उद्देश्य समाज सुधार था, लेकिन विवेकानन्द ने पश्चिम से वैज्ञानिकता पर सीख लेने के लिए ज़ोर दिया, लेकिन साथ ही अपने दर्शन व संस्कृति पर गर्व करने की बात भी कही। समग्र रूप में हम कह सकते हैं कि इस किताब से हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत की पूरी जानकारी मिलती है तथा हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होता है। हमें इस बात की भी जानकारी मिलती है कि हमने पश्चिम से लिया कम है तथा दिया अधिक है। इस देश के निर्माण में हर व्यक्ति का योगदान है। एक तरह से उपर्युक्त पुस्तक प्रागैतिहासिक युग से लेकर आधुनिक काल तक का भारत का सांस्कृतिक इतिहास है। यह भारतीय सभ्यता की जड़ों और पहलुओं का बखूबी अन्दाजा देती है।
इस पुस्तक में चार क्रांतियों का संक्षिप्त इतिहास
पहली क्रांति तब हुई, जब आर्य भारतवर्ष में आये अथवा जब भारतवर्ष में उनका आर्योतर जातियों से सम्पर्क हुआ, आर्यों ने आर्योतर जातियों से मिलकर जिस समाज की रचना की, वही आर्यो अथवा हिंदुओं का बुनियादी समाज हुआ और आर्य तथा आर्योतर संस्कृतियों के मिलन से जो संस्कृति उत्पन्न हुई वही भारत की बुनियादी संस्कृति बनी। इस बुनियादी भारतीय संस्कृति के लगभग आधे उपकरण आर्यों के दिए हुए है, और उसका आधा आर्योतर जातियों का अंशदान है।
दूसरी क्रांति तब हुई जब महावीर और गौतम बुद्ध ने इस स्थापित धर्म संस्कृति के विरुद्ध विद्रोह किया तथा उपनिषदों की चिंताधारा को खीचकर वे अपनी मनोवांछित दिशा की और ले गये। इस क्रांति ने भारतीय संस्कृति की अपूर्व सेवा की अंत में इसी क्रांति के सरोकार में शैवाल भी उत्पन्न हुए और भारतीय संस्कृति में से बदलाव आया वह काफी दूर तक, इसी शैवालों का परिणाम थे।
तीसरी क्रांति उस समय हुई जब इस्लाम विजेताओं के धर्म के रूप में भारत पहुंचा और देश में हिन्दुत्व के साथ उसका सम्पर्क हुआ।
चौथी क्रांति हमारे अपने समय में हुई, जब भारत में यूरोप का आगमन हुआ तथा उसके सम्पर्क में आकर हिन्दुत्व एवं इस्लाम दोनो ने नव-जीवन को सम्भव किया। इस रचना में इन्ही चार क्रांतियों का संक्षिप्त इतिहास है।
पुस्तक के अध्याय
प्रथम अध्याय: भारतीय जनता की रचना और हिंदू-संस्कृति का वर्णन। ( 3 प्रकरण )
- भारतीय जनता की रचना
- आर्य-द्रविड़ समस्याएँ
- आर्य और आर्येत्तर संस्कृति का मिलन
द्वितीय अध्याय: प्राचीन हिंदुत्व से विद्रोह। ( 7 प्रकरण )
- बुद्ध से पहले का हिंदुत्व
- जैन धर्म
- बौद्ध धर्म
- वैदिक वनाम बौद्धमत
- प्राचीन भारत और बाह्य विश्व
- बौद्ध साधना का शाक्त प्रभाव
- बौद्ध आन्दोलन के सामाजिक प्रसंग
तृतीय अध्याय: हिन्दू संस्कृति और इस्लाम। ( 12 प्रकरण )
- हिंदू-मुस्लिम प्रश्न की भूमिका
- इस्लाम धर्म
- मुस्लिम आक्रमण और हिंदू समाज
- हिंदू मुस्लिम संबंध
- इस्लाम का हिंदुत्व पर प्रभाव
- भक्ति आदोलन और इस्लाम
- अमृत और हलाहल का संघर्ष
- सिक्ख धर्म
- कला और शिल्प पर इस्लाम का प्रभाव
- साहित्य और भाषा का प्रभाव
- उर्दू का जन्म
- सामाजिक संस्कृति के कुछ और रूप
चतुर्थ अध्याय: भारतीय संस्कृति और यूरोप। ( 17 प्रकरण )
- भारत में यूरोप का आगमन
- शिक्षा में क्रांति
- ईसाई धर्म और भारतीय जनता
- हिन्दू- नवोत्थान
- ब्रह्म समाज
- महाराष्ट्र में नवोत्थान
- आर्य समाज
- थियोसोफिकल सोसायटी या ब्रह्म विद्दा समाज
- धर्म के जीते-जागते स्वरुप परमहंस रामकृष्ण
- कर्मठ वेदान्त: स्वामी विवेकानंद
- प्रवृत्ति का उत्थान: लोकमान्य तिलक
- स्वर्ग का भूमिकरण: महायोगी अरविंद
- भूमि का स्वर्गीकरण: महात्मा गाँधी का प्रयोग
- विश्व दर्शन के प्रवर्तक श्री सर्वपल्लीराधा कृष्णन
- मुस्लिम-नवोत्सव
- सर मुहम्मद इकबाल
- भारतीय राष्ट्रीयता और मुसलमान
संस्कृति के चार अध्याय के महत्त्वपूर्ण तथ्य
इस रचना में रामधारी सिंह दिनकर के द्वारा भारत के सम्पूर्ण इतिहास को चार भागो (खण्डों) में बांटकर लिखने का अद्वितीय प्रयास किया गया है।
संस्कृति के चार अध्याय पुस्तक की प्रस्तावना नेहरू के द्वारा लिखी गई थी।
दिनकर ने इस पुस्तक में हम चार क्रांतियों का इतिहास बताया है।
इस पुस्तक के पहले अध्याय में 3 प्रकरण, दूसरे में 7 प्रकरण, तीसरे मे 12 प्रकरण, चौथे में 17 प्रकरण है।
- प्रथम अध्याय - भारतीय जनता की रचना और हिन्दू संस्कृति का आविर्भाव
- द्वितीय अध्याय - प्रचीन हिन्दुत्व से विद्रोह
- तीसरे अध्याय - हिन्दु संस्कृति और इस्लाम
- चतुर्थ अध्याय - भारतीय संस्कृति और यूरोप
यह भारतीय संस्कृति का सर्वेक्षण है जिसके लिए दिनकर जी का 1959 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
Sanskriti Ke Char Adhyay MCQ
प्रश्न 1. संस्कृति के चार अध्याय' पुस्तक में दिनकर ने किस पर ध्यान केंद्रित किया है?
- स्वतंत्रता आंदोलन
- भारतीय इतिहास में चार महत्वपूर्ण क्रांतियों
- आधुनिक कविता
- रामधारी सिंह दिनकर की काव्य रचनाएँ
उत्तर: 2. भारतीय इतिहास में चार महत्वपूर्ण क्रांतियों
प्रश्न 2. 'संस्कृति के चार अध्याय' किस वर्ष प्रकाशित हुई?
- 1947
- 1956
- 1962
- 1970
उत्तर: 2. 1956
प्रश्न 3. 'संस्कृति के चार अध्याय' पुस्तक के लिए रामधारी सिंह दिनकर को कौन सा पुरस्कार मिला?
- ज्ञानपीठ पुरस्कार
- साहित्य अकादमी पुरस्कार
- भारत रत्न
- इनमें से कोई नहीं
उत्तर: 2. साहित्य अकादमी पुरस्कार
प्रश्न 4. 'संस्कृति के चार अध्याय' में दिनकर ने भारतीय संस्कृति को किस रूप में प्रस्तुत किया है?
- स्थिर और अपरिवर्तित
- गतिशील और परिवर्तनशील
- रूढ़िवादी और परंपरावादी
- धर्मनिरपेक्ष
उत्तर: 2. गतिशील और परिवर्तनशील
प्रश्न 5. 'संस्कृति के चार अध्याय' में दिनकर ने किन दो कवियों को नवोत्थान का कवि कहा है?
- रवींद्रनाथ टैगोर और मुहम्मद इकबाल
- सुभद्रा कुमारी चौहान और मैथिलीशरण गुप्त
- जयशंकर प्रसाद और प्रेमचंद
- इनमें से कोई नहीं
उत्तर: 1. रवींद्रनाथ टैगोर और मुहम्मद इकबाल
प्रश्न 6. 'संस्कृति के चार अध्याय' पुस्तक किस भाषा में लिखी गई है?
- अंग्रेजी
- हिंदी
- संस्कृत
- उर्दू
उत्तर: 2. हिंदी
प्रश्न 7. 'संस्कृति के चार अध्याय' पुस्तक में कौन से चार अध्याय हैं?
- प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत, आधुनिक भारत, और स्वतंत्रता आंदोलन
- वैदिक युग, बौद्ध युग, गुप्त युग, और मुगल युग
- सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक संस्कृति, गुप्त साम्राज्य, और मुगल साम्राज्य
- इनमें से कोई नहीं
उत्तर: 3. सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक संस्कृति, गुप्त साम्राज्य, और मुगल साम्राज्य
प्रश्न 8. 'संस्कृति के चार अध्याय' में दिनकर ने भारतीय इतिहास को किस रूप में देखा है?
- वीरगाथा और गौरवशाली
- निराशा और संघर्ष
- विकास और प्रगति
- परिवर्तन और क्रांति
उत्तर: 3. विकास और प्रगति
प्रश्न 9. 'संस्कृति के चार अध्याय' में दिनकर ने किस पर बल दिया है?
- पश्चिमी संस्कृति
- भारतीय संस्कृति
- धर्म
- राजनीति
उत्तर: 2. भारतीय संस्कृति
प्रश्न 10. 'संस्कृति के चार अध्याय' पुस्तक में दिनकर ने किस पर विचार किया है?
- भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति
- भारत की स्वतंत्रता
- भारत की राजनीति
- भारत का साहित्य
उत्तर: 1. भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति
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