हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य के एक अद्वितीय और अमर कवि थे। वे उत्तर छायावाद युग के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं, उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना "मधुशाला" (1935) है। हरिवंश राय बच्चन, महान अभिनेता अमिताभ बच्चन के पिता थे।
हरिवंशराय बच्चन का जीवन परिचय
नाम - हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan)
जन्म - 27 नवंबर, 1907 (प्रयागराज, उत्तर प्रदेश)
निधन - 18 जनवरी, 2003 मुंबई
पिता का नाम - प्रताप नारायण श्रीवास्तव
माता का नाम - सरस्वती देवी
पत्नी का नाम - श्यामा देवी (पहली पत्नी), तेजी बच्चन ( दूसरी पत्नी)
संतान - अमिताभ बच्चन, अजिताभ बच्चन
शिक्षा - इलाहाबाद विश्वविद्यालय, पीएचडी-कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी
पेशा - कवि, लेखक, प्राध्यापक
भाषा - अवधी, हिंदी, अंग्रेजी
साहित्यकाल - आधुनिक काल (उत्तर छायावाद काल)
प्रमुख रचनाएँ - क्या भूलूँ क्या याद करूँ (आत्मकथा), मधुशाला (काव्य संग्रह)
पुरस्कार एवं सम्मान - पद्म भूषण (1976), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1968) व सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार।
हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा
हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा चार खण्डों में विभाजित है:
- क्या भूलं क्या याद करूं (1969)
- नीड़ को निर्माण फिर (1970)
- बसेरे से दूर (1978)
- दश द्वार से सोपान तक (1985)
खंड - 1. क्या भूलं क्या याद करूं (1969)
हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा "क्या भूलूँ क्या याद करूँ" (1969) के प्रकाशन ने हिन्दी साहित्य में गहरी हलचल पैदा की, जो मधुशाला (1935) की लोकप्रियता के समान थी। इसमें बच्चन ने अपने जन्म से लेकर पत्नी श्यामा के असामयिक निधन तक के जीवन अनुभवों को संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपने वंश, नामकरण, बचपन, शिक्षा, किशोरावस्था, चंपा के प्रति आकर्षण, कर्कल से मित्रता और श्यामा से विवाह का चित्रण किया है। साथ ही पारिवारिक आर्थिक संघर्षों और श्यामा की बीमारी की वेदना को भी मार्मिक रूप से व्यक्त किया है।
खंड - 2. नीड़ को निर्माण फिर (1970)
बच्चन की आत्मकथा के द्वितीय भाग "नीड़ का निर्माण फिर" में श्यामा की मृत्यु से उत्पन्न गहरे शोक और उससे उबरने के प्रयासों का चित्रण है। आर्थिक विवशता के कारण वे इस दुःख से बाहर निकलने को बाध्य हुए। उन्होंने फिर से एम.ए. की पढ़ाई शुरू की और कवि सम्मेलनों में भाग लेने लगे। इसी दौरान आइरिस और बाद में तेजी उनके जीवन में आईं। मित्रों के कहने पर उन्होंने तेजी से विवाह किया। तेजी के आने से जीवन में नई ऊर्जा आई और दो पुत्रों, अमित व अजित के जन्म से उनके जीवन का "नीड़" फिर से बस गया।
खंड - 3. बसेरे से दूर (1977)
हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा का तृतीय भाग "बसेरे से दूर" उनके कैम्ब्रिज प्रवास और शोध कार्य पर आधारित है। इसमें उन्होंने विलियम बटलर ईट्स पर किए गए शोध, कैम्ब्रिज जाने की कठिनाइयों, अंग्रेज़ी विभाग में अध्यापन अनुभव और साथी शिक्षकों का वर्णन किया है। इस दौरान तेजी के अकेलेपन, आर्थिक तंगी और मानसिक तनावों का भी उल्लेख है। साथ ही, नेपाल व कलकत्ता यात्राओं, कविता संबंधी विचारों और विदेश मंत्रालय में नियुक्ति की झलक भी इस खंड में मिलती है।
खंड - 4. दश द्वार से सोपान तक (1985)
"दशद्वार से सोपान तक" हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा का चौथा भाग है, जो दो हिस्सों में विभाजित है। पहले हिस्से में 1956 से 1971 तक की घटनाएँ और दूसरे में 1971 से 1983 तक की घटनाएँ हैं। "दशद्वार" और "सोपान" उनके इलाहाबाद और दिल्ली के घरों के नाम हैं। इस भाग में उन्होंने विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषाधिकारी, राज्य सभा सदस्य, नाट्य-सृजन, अनुवाद, विदेश यात्राओं और परिवारिक जीवन के अनुभवों का वर्णन किया है। साथ ही, तेजी और अपने परिवार के साथ बिताए गए क्षणों और नए घर "सोपान" में प्रवेश तक की यात्रा को भी साझा किया है।
क्या भूलूँ क्या याद करूँ आत्मकथा के प्रमुख पात्र
जग्गू चाचा - बड़की की बहन के लड़के
हीरालाल - छेदीलाल के पुत्र
प्रतापनारायण- लेखक के पिता
सरस्वती - लेखक के परबाबा की बहन
मिठूलाल- लेखक के परबाबा
भोलानाथ - लेखक के बाबा
कर्कल- मंगल का पुत्र
चम्पा- कर्कल की पत्नी
श्यामा- लेखक की पत्नी
शालिग्राम - लेखक की पत्नी
रामकिशोर- लेखक के श्वसुर
क्या भूलूँ क्या याद करूँ आत्मकथा की समीक्षा
'क्या भूलूँ क्या याद करूँ' बच्चन जी की आत्मकथा अपने जीवन और युग के प्रति एक प्रयास है। यह आत्मकथा वर्ष 1969 में प्रकाशित हुई। इस आत्मकथा की गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है। बच्चन जी की आत्मकथा के चार खण्ड हैं- पहला खण्ड- 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ, दूसरा खण्ड- 'नीड़ का निर्माण फिर-फिर', तीसरा खण्ड- 'बसेरे से दूर' तथा चौथा खण्ड-'दश द्वार से सोपान तक'। हिन्दी प्रकाशनों में इस कथा का अत्यन्त ऊँचा स्थान है।
उन्होंने स्वयं अपनी आत्मकथा की भूमिका में कहा है- 'अगर मैं दुनिया से किसी पुरस्कार का तलबगार होता तो अपने आपको और अच्छी तरह सजाता-बजाता और अधिक ध्यान से रंग चुनकर उसके सामने पेश करता। मैं चाहता हूँ कि लोग मुझे मेरे सरल, स्वाभाविक और साधारण रूप में देख सकें। सहज निष्प्रयास प्रस्तुत, क्योंकि मुझे अपना ही तो चित्रण करना है।'
यह आत्मकथा किसी एक व्यक्ति की निजी गाथा नहीं, अपितु युगीन तत्कालीन परिस्थितियों में जकड़े, एक भावुक, कर्मठ व्यक्ति और जीवन के कोमल-कठोर, गोचर-अगोचर, लौकिक-अलौकिक पक्षों को जीवन्त करता महाकाव्य है।
बच्चन जी ने अपनी इस यात्रा में कीट्स से लेकर कबीर तक के मध्य साहित्य को मापा तथा अपने जीवन के धार्मिक पक्षों को उजागर किया है। अस्वस्थता के कारण बच्चन जी की पहली पत्नी श्यामा चल बसीं। उनके साथ गुजरे जीवन के उन अंकों को बच्चन जी ने बड़ी भावुकता से ऐसे साकार किया कि वे सभी युगलों के लिए एक प्रतीक बन गए।
यह एक सशक्त महागाथा है, जो उनके जीवन और कविता की अन्तर्धारा का वृत्तान्त ही नहीं कहती अपितु छायावादी युग के बाद के साहित्यिक परिदृश्य का विवेचन भी प्रस्तुत करती है। यह आत्मकथा हिन्दी साहित्य के सफर का मील का पत्थर है। बच्चन जी को इसके लिए भारतीय साहित्य में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ है। साथ ही उन्हें 'सरस्वती सम्मान' से सम्मानित किया जा चुका है।
क्या भूलूँ क्या याद करूँ आत्मकथा के महत्वपूर्ण तथ्य
- प्रारंभ में बच्चन जी ने आपनी आत्मककथा क्या भूलूँ क्या याद करूँ में फ्रांसीसी लेखक मानतेन की पंक्तियों को लिखा है।
- इस आत्मकथा मे उन्होने समस्त जीवन का नही बल्कि कुछ बिन्दुओ पर प्रकाश डाला है-
- कायस्थ जाति
- परिवार की परंपरा
- जन्म, शिक्षा
- जीवन संघर्ष
- इस रचना में बच्चन जी ने अमोढ़ा वंश की सात पीढ़ियों की कथा विस्तार से लिखा है तथा अछूतोद्वार एवं बहिस्कृत का जिक्र किया है।
- मुहल्ले की कन्या खिल्ला को शादी के समय हिन्दुओं को हुआछूत नीति एवं सामाजिक क्रूर निर्माण रुढ़ियों का का जिक्र का चिंतन करते हुए कहा कि उन्होंने स्वयं वहाँ भोजन किया। इन्ही सब कारणो से शालिग्राम के गौने के समय निकट संबंधियों ने हमारे यहाँ बहुभोज का बहितकार किया।
- इस रचना में वह बताते है कि वह प्रायः अपने घर में चमार बावर्ची रखते थे।
- बच्चन ने अपनी आत्मकथा में खेल, कीडा और प्रकृति प्रेम का चित्रण किया है।
- बरेली कवि सम्मेलन से लौटते समय 'मधुशाला' के प्रशंसक युवक की आत्महत्या से द्रवित होकर, कभी भी कविता न लिखने का निश्चय किया।
- बच्चन को रामचरितमानस अत्यधिक प्रिय और पूज्य थी। प्रति चैत्र की नवराति में वह मानस का पूर्ण पाठ करते थे।
- 17 नवम्बर 1926 श्यामा की मृत्यु के बाद बच्चन को आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने दूसरा विवाह करने की सलाह दी। तब उन्होने 24 जनवरी 1942 को तेजी से विवाह किया। बच्चन की माँ सुरसती ने तेजी को राम-सीता विवाह का प्रसंग सुनाकर बच्चन से माँग में सिन्दूर भरवाया।
- जहाँ जनता जातियों में बटी हो वहाँ पारस्परिक ईर्ष्य, द्वेष अपने गुम और इसरों के व्देष देखने की प्रवृति बड़ी स्वाभाविक होती है।
- इस आत्मकथा में उन्होने बताया कि पिता प्रतापनारायण गीता वाचन करते थे वे अक्सर गीता वाचन सस्वर करते थे।
- इन्होंने अपने देश परम्परा का परिचय देते हुए अमोढ़ा के कायस्थ परिवार सहित अपनी 6-7 पीढ़ियों और रामानंद के शिष्य के रूप में अपने वंशाजो का जिक्र किया। स्वयं उन्होंने लिखा था कि मेरे यहाँ शिव की भी अराधना होती थी लेकिन मैं कृष्ण का मानने वाला बना।
- हरिवंशराय बच्चन जब हाईस्कूल में पढ़ते थे तब उनके दोस्त थे जिनका नाम कर्कल था। कर्कल के पिता का नाम मंगल था। कर्कल की शादी चंपा से होती है। बच्चन जी की चम्पा से प्यार हो जाता है जिसके कारण वे पढ़ न सके और हाईस्कूल में फेल हो गए थे। बच्चन जी ने अपने और चंपा के रिश्ते को राधा-कृष्ण का रिश्ता माना है। इसी कारण 1926 ई० में (19 वर्ष की उम्र में) श्यामा देवी (उम्र 14 वर्ष) से विवाह कर दिया गया। 3 वर्ष बाद गौना हुआ, गौने के दिन वह बीमार थी उन्हें बुबार था, इलाज न मिलने के कारण देहान्त हो गया
- आजाद भगत सिंह के साथी यशपाल की पाली प्रकाशवती (प्रकाशो) से भी बच्चन जी का रिश्ता था। वे बताते है कि उनका प्रकाशो अपना नाम बदलकर रानी नाम से मेरे घट रहती थी।
Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon Atmakatha MCQ
- ज्ञानपीठ
- सरस्वती
- व्यास सम्मान
- साहित्य अकादमी
- लंदन
- फ्रांस
- कैम्ब्रिज
- इटली
- क्या भूलूं क्या याद करूँ
- आवारा मसीहा
- ठकुरी बावा
- मुर्दाहिया
- मुर्दादिया
- आवारा मसीहा
- क्या भूलूं क्या याद करूँ क्या याद
- आपहूदरी
- स्मृति यात्रा यज्ञ
- स्मृति रथ यात्रा
- स्मृति यात्रा
- कोई नहीं
- जीवनवादी
- जनवादी
- यथार्थवादी
- संघर्षवादी
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