रामवृक्ष बेनीपुरी भारत के एक महान विचारक, चिन्तक, साहित्यकार, पत्रकार और संपादक थे। वे हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के एक प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने न केवल साहित्य के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई, बल्कि देश की स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भूमिका निभाई।
रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय
नाम - रामवृक्ष बेनीपुरी (Rambriksh Benipuri)
जन्म - 23 दिसंबर 1902, मुजफ्फरपुर (बिहार)
निधन - 9 सितंबर 1968, मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिता का नाम - फूलवंत सिंह
पेशा - एक महान विचारक, साहित्यकार, पत्रकार, संपादक
साहित्य काल - आधुनिक युग (शुक्लोत्तर युग)
प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ
कहानी संग्रह- चिता के फूल, शब्द-चित्र-संग्रह, लाल तारा, माटी की मूरतें, गेहूँ और गुलाब इत्यादि ।
उपन्यास - कैदी की पत्नी, पतितों के देश में, दीदी और सात दिन।
यात्रा-वृत्त - पैरों में पंख बाँधकर, उड़ते चलें।
नाटक - अम्बपाली, सीता की माँ, रामराज्य, गाँव के देवता, संघमित्रा, सिंहलविजय, नया समाज तथा नेत्रदान।
संस्मरण-रेखाचित्र - जंजीरें और दीवारें, मील के पत्थर, मंगर।
निबन्ध -वन्दे वाणी विनायकौ और सतरंगा (ललित निबन्ध)।
जीवनियाँ - कार्ल मार्क्स, जयप्रकाश नारायण और राणा प्रताप |
सम्पादन - विद्यापति पदावली।
माटी की मूरतें (रेखाचित्र) के प्रमुख विषय
ग्राम्य जीवन की संघर्षशीलता
भारतीय संस्कृति और परंपराएँ
स्त्री जीवन की संवेदना
प्रकृति के प्रति प्रेम
सामाजिक न्याय की आकांक्षा
रामवृक्ष बेनीपुरी - माटी की मूरतें (रेखाचित्र)
रामवृक्ष बेनीपुरी हिन्दी के श्रेष्ठ रेखाचित्रकार माने जाते हैं। इनके रेखाचित्रों में सरल भाषा शैली में सिद्धहस्त कलाकारी दिखाई देती है। 'माटी की मूरतें' वर्ष 1946 में प्रकाशित हुई। इस संग्रह को विशेष ख्याति मिली। इस संग्रह में इन्होंने समाज के उपेक्षित पात्रों को गढ़कर नायक का दर्जा दिया है। उदाहरणस्वरूप 'रजिया' नामक रेखाचित्र के माध्यम से निम्न वर्ग की एक बालिका को जीवन्त कर दिया है। इस संग्रह के अन्य रेखाचित्रों में बलदेव सिंह, मंगर बालगोबिन भगत, बुधिया, सरजू भैया प्रमुख हैं। इन रेखाचित्रों की श्रेष्ठता के बारे में मैथिलीशरण गुप्त का कथन है “लोग माटी की मूरतें बनाकर सोने के भाव बेचते हैं पर बेनीपुरी सोने की मूरतें बनाकर माटी के मोल बेच रहे हैं।'
'माटी की मूरतें' संग्रह की रचनाओं में बेनीपुरी जी ने गाँव की जमीन से उठाए गए कुछ अनगढ़ चरित्रों को न केवल रंगत दी है अपितु उनमें प्राण भी फूँक डाले हैं। गाँव के किसी पीपल या बड़ के नीचे रखी हुई-माटी की मूरतों के बारे में बेनीपुरी जी उन मूर्तियों को जीवनियाँ व चलते-फिरते हुए शब्द चित्र मानते हुए कहते हैं- “मानता हूँ, कला ने उन पर पच्चीकारी की है, किन्तु मैंने ऐसा नहीं होने दिया कि रंग-रंग में मूल रेखाएँ ही गायब हो जाएँ, मैं उसे अच्छा रसोइया नहीं मानता, जो इतना मसाला रख दे कि सब्जी का मूल स्वाद ही नष्ट हो जाए।” यह जीवन के विविध रंगों को रेखांकित करती बेनीपुरी जी की सशक्त लेखनी से निकली आकर्षक, मार्मिक और संवेदनशील रेखाचित्र है।
माटी की मूरतें रेखाचित्र में आये शब्दचित्रों के नाम एवं संक्षिप्त परिचय
इसमें आये 12 शब्दचित्रों के नाम इस प्रकार हैं -
- रजिया
- बलदेव
- सरजू भैया
- मंगर
- रूप की आजी
- देव
- बालगोबिंद भगत
- भौजी
- परमेसर
- बैजू मामा
- सुभान खां
- बुधिया
- पहली बार 1952 में ‘नयी धारा’ में प्रकाशित हुआ।
- यह एक निम्नवर्गीय चुड़िहारिन की बेटी की कहानी है, जो सादगी और आत्मसम्मान की मिसाल है।
- पात्र - रजिया, हसन (पति), मौसी, तीन बेटे, पोती।
- एक पहलवान और सच्चे इंसान का चित्रण।
- बलदेव सिंह बहादुर, इंसाफ पसंद और जरूरतमंदों का रक्षक था।
- वह छल से मारा गया।
- पात्र - बलदेव सिंह, बेनीपुरी, मामा जी, विधवा, पुलिस अफसर आदि।
- लेखक का मुँहबोला भाई।
- जिंदादिल, मजाकिया, मानवसेवी और प्रेरणादायक।
- लेखक उन्हें वंदनीय मानते हैं।
- पात्र - सरजू भैया, लेखक, पत्नी, महाजन, मौसी, पिता।
- गाँव का मेहनती हलवाहा।
- ईमानदार, मेहनती और आत्मसम्मानी।
- पात्र - मंगर, लेखक, चाचा जी।
- गाँव की बुजुर्ग महिला, जिसे लोग अंधविश्वास के कारण डायन मानते हैं।
- उसने रूपा को माँ की मृत्यु के बाद पाला, लेकिन दुर्भाग्यवश पूरे परिवार की मृत्यु के बाद उस पर दोष लगाया गया।
- पात्र - आजी, रूपा, बेनीपुरी, मामी, रवि बाबू।
- साहसी, निर्भीक और छात्र नेता।
- सत्य का पक्षधर, जो पुलिस की क्रूरता का शिकार बना।
- पात्र - देव, तपेसर भाई, दरोगा, इन्स्पेक्टर, कुनकुन।
- कबीरपंथी, जात से तेली, लेकिन संत स्वभाव के थे।
- कबीर के पद गाते थे, लेखक उनसे अत्यधिक प्रभावित थे।
- पात्र - बालगोबिंद, बेटा, पतोहू।
- लेखक की भाभी, जिनके साथ लेखक के आत्मीय संबंध रहे।
- उनका विवाह, ससुराल आगमन और मृत्यु — सभी को स्मरणीय भावनाओं से चित्रित किया गया है।
- पात्र - भौजी, फूफाजी, देवर, मित्र।
- एक आवारा लेकिन दिलदार व्यक्ति।
- आवारागर्दी में भी दूसरों को रोशनी देने वाला व्यक्तित्व।
- अंत में अतिसार रोग से पीड़ित होकर मर जाता है।
- पात्र - परमेसर, पत्नी, मंडली, ओझा, चाचा जी।
- एक चोर जो कई बार जेल गया।
- लेखक से जेल में ही मिला था।
- तीस वर्षों तक जेल की सजा भुगतने वाला लेकिन आत्मीय व्यक्तित्व।
- पात्र - बैजू मामा, जेलर, जज, मेट, जमादार।
- एक मुस्लिम राजमिस्त्री, जो ईमानदार, सरल और हिन्दू-मुस्लिम एकता का समर्थक था।
- गौ-हत्या के विरोध में खड़ा होने वाला सच्चा इंसान।
- पात्र - सुभान खाँ, मामा जी, हजरत हुसैन, यजींद्र।
- बचपन में बकरी चराने वाली लड़की।
- चुलबुली बच्ची से लेकर संघर्षशील माँ बनने तक का मार्मिक चित्रण।
- पात्र - बुधिया, पति, बच्चे, जगदीस।
माटी की मूरतें (रेखाचित्र) के महत्त्वपूर्ण तथ्य
माटी की मूरतें’ रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखित संस्मरणात्मक रेखाचित्रों का संग्रह है, जो उन्होंने 1941 से 1945 के बीच हजारीबाग सेंट्रल जेल में रहते हुए लिखा था।
इन रेखाचित्रों को लेखक ने ‘शब्दचित्र’ की संज्ञा दी है, क्योंकि इनमें उन्होंने अपने जीवन के खास और आत्मीय व्यक्तियों को अत्यंत भावुकता और कलात्मकता के साथ उकेरा है।
यह संग्रह मानव और उसकी जन्मभूमि (मिट्टी) के प्रति गहरे लगाव और जुड़ाव को दर्शाने वाला एक अद्भुत उदाहरण है।
संग्रह में शामिल हर रेखाचित्र किसी न किसी ऐसे व्यक्ति पर आधारित है, जो बेनीपुरी जी के जीवन में विशेष स्थान रखता था। इन चित्रों में लेखक अपने बचपन की स्मृतियाँ साझा करते हैं, जो पाठक को गाँव, परिवार, और भारतीय ग्रामीण जीवन की आत्मा से जोड़ देती हैं।
‘माटी की मूरतें’ हिंदी कथा साहित्य को ग्रामीण दृष्टिकोण प्रदान करती है और उसे भारतीय संस्कृति के विकासशील मूल्यों से जोड़ने का कार्य करती है।
इसका प्रथम प्रकाशन 1946 ई. में हुआ था, जिसमें 11 रेखाचित्र संकलित थे।
बाद में इसका दूसरा संस्करण 1953 ई. में प्रकाशित हुआ, जिसमें ‘रजिया’ नामक रेखाचित्र को जोड़कर कुल 12 रेखाचित्र किए गए।
Maati Ki Moorten MCQ
- हरिशंकर परसाई
- रामवृक्ष बेनीपुरी
- रामविलास शर्मा
- सरदार पूर्ण सिंह
- नन्द दुलारे बाजपेई
- राम रामस्वरूप चतुवेर्दी
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
- रामधारी सिंह दिनकर
- रजिया
- बैजू मामा
- बालगोविन्द भगत
- मंगर
- बालदेव सिंह के
- देव के
- सुभान दादा के
- मंगर के
- इसके लेखक बेनीपुरी जी हैं ।
- माटी की मूरते एक संस्मरण विधा है।
- बेनीपुरी ने माटी के मूरते की रचना हजारी बाग सेंट्रल जेल में 1942 में किया ।
- लेखक ने अपने ननिहाल और गांव के 12 लोगों का चित्रांकन किया है ।
- सियाराम
- जयराम
- श्रीराम
- रामलाल
प्रश्न 07. निम्न का मिलन कीजिये -
सही विकल्प है -
- A-4, B-2, C-3, D-4
- A-4, B-1, C-4, D-3
- A-4, B-2, C-1, D-3
- A-1, B-4, C-2, D-3
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