राहुल सांकृत्यायन तथा सच्चिदानन्द हीरा नन्दः वात्स्यायन 'अज्ञेय' हिन्दी के प्रसिद्ध यात्रा साहित्यकार रहे हैं। उनके प्रसिद्ध यात्रा वृत्तान्त क्रमशः 'मेरी तिब्बत यात्रा' तथा 'अरे यायावर रहेगा याद' है। मेरी तिब्बत यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से इस पोस्ट में आपके साथ साक्षा की गई है जो इस प्रकार है-
राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय
नाम - राहुल सांकृत्यायन (Rahul Sankrityayan)
अन्य नाम - केदारनाथ पाण्डे, दामोदर स्वामी
जन्म - 09 अप्रैल, 1893 पन्दहा ग्राम, ज़िला आजमगढ़, (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु - 14 अप्रैल, 1963, दार्जिलिंग, (पश्चिम बंगाल)
पिता का नाम - गोवर्धन पांडेय
माता का नाम - कुलवंती देवी
पेशा - लेखक, साहित्यकार, इतिहासकार
विधाएँ - उपन्यास, कहानी, आत्मकथा, यात्रा वृतांत व जीवनी
मुख्य रचनाएँ - घुमक्कड़ शास्त्र, सतमी के बच्चे, जीने के लिए, सिंह सेनापति, वोल्गा से गंगा आदि।
पुरस्कार एवं सम्मान - साहित्य अकादमी पुरस्कार (1958), पद्म भूषण (1963), त्रिपिटिका चार्य।
मेरी तिब्बत यात्रा की विषय-वस्तु
पुस्तक की विषय-सूची इस प्रकार है -
खंड - 1 : ल्हासा से उत्तर की ओर
खंड - 2 : चाड की ओर
खंड - 3 : स क्या की ओर
खंड - 4 : जेनम् की ओर
खंड - 5 : नेपाल की ओर
( परिशिष्ट )
ल्हासा की ओर
मेरी तिब्बत यात्रा (यात्रावृतांत) के प्रमुख पात्र
1. लक्ष्मी रत्न (नाती-ला) - लहासा का प्रसिद्ध फोटोग्राफर, स्थानीय लोगों द्वारा 'नाती-ला' कहे जाते थे।
2. इन-ची-मिन-ची - लेखक का रक्षक, आत्मरक्षा हेतु साथ था, बंदूक चलाना जानता था।
3. सो-नम्-ग्याल-म्छन (पुण्य ध्वज) - खच्चरों का मालिक, पूर्वी तिब्बत निवासी।
4. गेन्-दुन्-छो-फेल (संघ धर्मवर्धन) - चित्रकार, इतिहास और न्यायशास्त्र का ज्ञाता; हथियारों से लैस।
5. शाक्य श्री भद्र - कश्मीरी पंडित, विक्रमशिला के अंतिम नायक।
6. ट-शी-लामा - भोट (तिब्बत) के प्रधान धर्माचार्य।
7. पंडित गयाधर - वैशाली के कायस्थ पंडित।
8. सुमित प्रज्ञ - लेखक के स्वर्गीय मित्र।
9. जोगमान - पाटन (नेपाल) का व्यापारी, जिसने लेखक को कोठा निवास हेतु दिया।
10. सम-लो-गे-शे-ट-शी - लहुन के प्रतिष्ठित पंडित, न्यायशास्त्र के विद्वान।
11. जे-चुन-शे-ख-व्युड - 1040 ई. में गनस-श-लु विहार के संस्थापक।
12. व-सतोन्-रिन छन् अबु - तिब्बत का महान विद्वान, उपर्युक्त विहार में शिष्य रहे।
13. कोन गर्यल (1034–1108 ई.) - स-क्य मठ के संस्थापक।
14. दलाई लामा (1933 ई.) - उस वर्ष फेम्बो क्षेत्र में आगमन।
15. लड़-थड-पा (ब्रज सिंह) - लड़ थड विहार के निर्माता।
16. रोड्-स-तोन् शाक्य-गर्यल-म-छन - महान दार्शनिक।
17. छू-सिन्-शर - खच्चरों का मालिक।
18. कोन्-चाग - मंगोल भिक्षुक।
19. प्रशांत चंद्र चौधरी (I.C.S.) - लेखक को फोटोग्राफी हेतु कैमरा भेजा।
20. टु-नी-छेन-पो - भोट भाषा के विद्वान।
21. पुण्य वज्र - एक चीनी लामा।
मेरी तिब्बत यात्रा में दर्शित स्थल
ल्हासा - यहाँ पर राहुल जी ने दो महीने और ग्यारह दिन निवास किया था तथा इसी स्थान पर उन्होंने विनयपिटक का अनुवाद किया।
तबचीका - यह ल्हासा के पश्चात पहला पड़ाव था।
जोतूका (गो-ला) - यहाँ की पहाड़ी पर चढ़कर जब पीछे देखा जाता है, तो ल्हासा नगरी स्पष्ट दिखाई देती है। इस स्थान को "हित का देश" कहा जाता था।
चू-ला खंड् गो (बिहार) - यहाँ भगवान बुद्ध की एक विशाल मूर्ति स्थापित थी। मूर्ति के समक्ष रोड् सुतोन की प्रतिमा स्थित थी।
ग्य-ल्ह खंड् - यह स्थल एक भारतीय मंदिर (देवालय) के रूप में प्रसिद्ध था।
रेडिड् विहार - इस विहार का निर्माण दीपशंकर के शिष्य डव्रोम-स-तोन-पा ने ईस्वी सन् 1003 से 1065 के बीच करवाया था।
मेरी तिब्बत यात्रा (यात्रावृतांत ) की समीक्षा
राहुल सांकृत्यायन तथा सच्चिदानन्द हीरा नन्दः वात्स्यायन 'अज्ञेय' हिन्दी के प्रसिद्ध यात्रा साहित्यकार रहे हैं। उनके प्रसिद्ध यात्रा वृत्तान्त क्रमशः 'मेरी तिब्बत यात्रा' तथा 'अरे यायावर रहेगा याद' की समीक्षा इस प्रकार है
राहुल सांकृत्यायन - मेरी तिब्बत यात्रा
राहुल सांकृत्यायन को महापण्डित की उपाधि दी जाती है। ये हिन्दी के एक प्रमुख साहित्यकार हैं। 'मेरी तिब्बत यात्रा' वृत्तान्त में इन्होंने अपनी तिब्बत यात्रा का वर्णन किया है, जो लेखक ने वर्ष 1929- 30 में नेपाल के रास्ते की थी। उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति नहीं थी। अतः उन्होंने यह यात्रा एक भिखारी के छद्म वेश में की थी।
लेखक ने तिब्बत की यात्रा उस समय की थी, जब नेपाल से तिब्बत जाने का केवल एक ही रास्ता था। इस रास्ते पर नेपाल के लोग भी भारत के लोगों के साथ-साथ जाते थे। यह रास्ता व्यापारिक और सैनिक रास्ता भी था, इसलिए लेखक ने इसे मुख्य रास्ता बताया है। तिब्बत में जाति-पाँति और छुआछूत नहीं था। वहाँ औरतें पर्दा नहीं करती थीं। चोरी की आशंका के कारण भिखारियों को कोई घर में घुसने नहीं देता था और न ही अपरिचित होने पर कोई घर के अन्दर जा सकता था। साथ ही अपनी जरूरत के अनुसार अपनी झोली से चाय दे सकते थे, घर में बहू या सास उसे आपके लिए पका देगी।
राहुल सांकृत्यायन का योगदान यात्रा साहित्य में अद्वितीय व अग्रणी है। मेरी तिब्बत यात्रा में उन्होंने तिब्बतीय समाज और ज्ञान वर्धक संस्कृति का वर्णन किया है। तिब्बत की धार्मिक व्यवस्था, प्रथा परम्पराएँ, खान-पान तथा वेश-भूषा अन्य देशों से बिलकुल भिन्न हैं। लेखक ने तिब्बती लोगों की कलाप्रियता पर प्रकाश डालते हुए वहाँ के मन्दिरों का वर्णन भी किया है।
तिब्बत के नारी समाज का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा है कि तिब्बत में भिक्षुणियों की संख्या ज्यादा है, वयोंकि वहाँ की प्रथानुसार सभी भाइयों की एक पत्नी होने के कारण अनेक लड़किया अविवाहित रह जाती थीं और वे भिक्षुणियाँ बन जाती हैं। राहुल जी ने 'अपनी तिब्बत यात्रा' में वहाँ की संस्कृति का अद्भुत ढाँचा प्रस्तुत किया है।
मेरी तिब्बत यात्रा यात्रावृतांत प्रमुख तथ्य
- राहुल सांकृत्यायन की प्रसिद्ध यात्रा-वृत्तांत रचना "मेरी तिब्बत" का प्रकाशन वर्ष 1937 ईस्वी है।
- सैकड़ों वर्षों से तिब्बत में पड़ी नालंदा विश्वविद्यालय की पुरानी पाण्डुलिपियों का पता लगाया। इसमें कुल 3 तिब्बत यात्रा का वर्णन है
- इस वृतांत के अंतिम दो अध्याय 'सरस्वती' पत्रिका में थे।
- पांडुलिपियों के चित्र सरस्वती तथा प्रवासी पत्रिका में प्रकाशित हुए।
- राहुल जी का स्वभाव घुमक्कड़ी का प्रतीक था। वे सदा ज्ञान की खोज में यात्रा करते रहते थे।
- राहुलजी का कहना था कि 'उन्होंने ज्ञान को सफर में नाव की तरह लिया है। बोझ की तरह नहीं।'
राहुल सांकृत्यायन की तिब्बत यात्राऍं
मेरी तिब्बत यात्रा पुस्तक में राहुल सांकृत्यायन ने तिब्बत की तीन यात्राओं का वर्णन किया है-
1. पहली यात्रा (1929 ई.)
- पांडुलिपियां नालंदा विश्वविद्यालय की यहीं से उन्हें तिब्बत ले जाया गया था।
- राहुल जी बौद्ध भिक्षु के वेश को धारण कर काठमांडू पहुंचे। वहां से एक मंगोल भिक्षु लोब-जंग-शेरब के साथ तिब्बत में प्रवेश किए।
- बौद्ध भिक्षु आम्दो गेंदुन चोफेल से मुलाकात हुई।
- आर्थिक रूप से कमी होने पर 15 महीने में वापस ।
- तिब्बती ग्रंथ, पांडुलिपियां के लेकर 22 खच्चरों पर लादकर कलिम्पोंग लाए। अपनी इस पहली यात्रा में वह 1619 ग्रंथ लेकर लौटे।
2. दूसरी यात्रा (1934 ई.)
- इस पुस्तक में कुल चित्र सूची में 33 तस्वीर है।
- इस बार उन्होंने नेपाल की बजाय कश्मीर के रास्ते तिब्बत में प्रवेश किया।
- संस्कृत ग्रंथ की मूल पांडुलिपियां देखने को मिलीं, लेकिन उन्हें भारत लाने की अनुमति राहुल हासिल न कर पाए। इन ग्रंथों की फोटोग्राफ या हाथ से नक़ल करने की अनुमति मिली।
3. तीसरी यात्रा (1936 ई.)
- इस बार वह रूस से तिब्बत की यात्रा की।
- प्रमाणवार्तिक भाष्य जिसके महान रचनाकार थे दार्शनिक धर्मकीर्ति। इस बहुमूल्य ग्रंथ को पूरी दुनिया के विद्वान ढूंढ रहे थे। यह ग्रंथ मूल संस्कृत में था। संस्कृत ग्रंथ नष्ट हो गया था लेकिन लेकिन यह यह तिब्बती भाषा में मौजूद था।
- इस ग्रंथ को ढूंढने के लिए रूस में विवाह के मात्र 23 दिन बाद अपनी पत्नी को छोड़कर तिब्बत चले आए।
Meri Tibbat Yatra MCQ
प्रश्न 01. राहुल सांकृत्यायन ने 'मेरी तिब्बत यात्रा' कब लिखी?
- 1935
- 1937
- 1939
- 1948
उत्तर - 2. 1937
प्रश्न 02. 'मेरी तिब्बत यात्रा' के रचनाकार कौन हैं?
- अज्ञेय
- राहुल सांकृत्यायन
- प्रभाकर मच्वे
- जयशंकर प्रसाद
उत्तर - 2. राहुल सांकृत्यायन
प्रश्न 03. मेरी तिब्बत यात्रा के संदर्भ में सही नहीं है।
- यह डायरी शैली में है ।
- यह 1937 में प्रकाशित हुई थी ।
- इसका प्रकाशन दारागंज से हुआ था
- यह अज्ञेय का यात्रावृत्त है।
उत्तर - 4. यह अज्ञेय का यात्रावृत्त है।
प्रश्न 04. मेरी तिब्बत यात्रा कितने खण्डों में है।
- 4
- 5
- 6
- 7
उत्तर - 2. 5
प्रश्न 05. मेरी तिब्बत यात्रा के कुछ खण्ड निम्नलिखित में से किस पत्रिका में प्रकाशित हुए थे।
- हंस
- सरस्वती
- माधुरी
- आलोचना
उत्तर - 2. सरस्वती
प्रश्न 06. मेरी तिब्बत यात्रा के लेखक अक्सर किसको पत्र लिखा करते हैं।
- नागार्जुन
- अज्ञेय
- आनंद
- निराला
उत्तर - 3. आनंद
यह भी देखें :-
{ इकाई – X, आत्मकथा, जीवनी तथा अन्य गद्य विधाएं }
महादेवी वर्मा - ठकुरी बाबा
तुलसीराम - मुर्दहिया
शिवरानी देवी - प्रेमचन्द घर में
मन्नू भंडारी - एक कहानी यह भी
विष्णु प्रभाकर - आवारा मसीहा
हरिवंशराय बच्चन - क्या भूलूँ क्या याद करूँ
रमणिका गुप्ता - आपहुदरी
हरिशंकर परसाई - भोलाराम का जीव
कृष्ण चन्दर - जामुन का पेड़
दिनकर - संस्कृति के चार अध्याय
मुक्तिबोध - एक लेखक की डायरी
राहुल सांकृत्यायन - मेरी तिब्बत यात्रा
अज्ञेय - अरे यायावर रहेगा याद
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