तुलसीराम - मुर्दहिया (आत्मकथा)

 डॉ. तुलसीराम (Dr. Tulsiram) हिंदी दलित साहित्य के एक प्रमुख और सम्मानित हस्ताक्षर थे। उन्होंने दलित चेतना, आत्मबोध और सामाजिक न्याय के विषयों को अपने लेखन के माध्यम से एक नई दिशा दी। उनका साहित्य शांति, अहिंसा और करुणा के मूल्यों से परिपूर्ण है।

वे न केवल एक रचनात्मक साहित्यकार थे, बल्कि एक गंभीर विचारक, अध्येता और शिक्षाविद् भी थे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, असमानता और शोषण पर खुलकर कलम चलाई। डॉ. तुलसीराम का आत्मकथात्मक लेखन विशेष रूप से चर्चित रहा, जिसमें 'मुर्दहिया' और 'मणिकर्णिका' जैसी कृतियाँ शामिल हैं। ये दोनों आत्मकथाएँ दलित जीवन के यथार्थ और संघर्ष को बेहद मार्मिकता और ईमानदारी से उजागर करती हैं।

    डॉ. तुलसीराम का जीवन परिचय

    पूरा नाम - डॉ. तुलसीराम

    जन्म - 1 जुलाई, 1949

    मृत्यु - 13 फ़रवरी, 2015

    मृत्यु स्थान - दिल्ली

    पति/पत्नी - प्रभा चौधरी

    संतान - पुत्री- अंगिरा

    विद्यालय - बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

    प्रसिद्धि - साहित्यकार, विद्वान

    मुख्य रचनाएँ -  'मुर्दहिया' और 'मणिकर्णिका'।

    डॉ. तुलसीराम की आत्मकथा के खंड

    डॉ. तुलसीराम की आत्मकथा दो खंडों में विभक्त है, 

    1. प्रथम खंड का नाम 'मुर्दहिया' तथा 

    2. द्वितीय खंड का नाम 'मणिकर्णिका' 

    मुर्दहिया में डॉ. तुलसीराम ने अपने जीवन की कथा को पाठक के सामने वैसे ही रख दिया है जैसा कि उन्होंने जिया और महसूस किया है। 

    मुर्दहिया आजमगढ़ में स्थित लेखक के गाँव के शमशान घाट का नाम है, यह दलित जीवन की कर्मस्थली है।

    'मुर्दहिया' की भूमिका में डॉ. तुलसीराम यह स्पष्ट करते हैं कि 

        'मेरे भीतर से मुर्दहिया को खोद खोदकर निकालने का काम तद्भव के संपादक अखिलेश ने किया है' अर्थात् मुर्दहिया लिखने की प्रेरणा और ऊर्जा उन्हें लेखक/संपादक अखिलेश के अत्यंत निवेदन से मिली। मुर्दहिया में लेखक के बचपन से लेकर उनके स्नातक की शिक्षा तक की जीवन यात्रा का विवरण है।

    लसीराम - मुर्दहिया (आत्मकथा)

     'मुर्दहिया' आत्मकथा के उपशीर्षक

    तुलसीराम ने 'मुर्दहिया' आत्मकथा को सात उपशीर्षकों में बाँटा है-

    1. भूत ही पारिवारिक पृष्ठभूमि 

    2. मुर्दहिया तथा स्कूली जीवन 

    3. अकाल में अंधविश्वास 

    4. मुर्दहिया के गिद्ध तथा लोकजीवन 

    5. भूतनिया नागिन 

    6. चले बुद्ध की राह 

    7. आजमगढ़ में फ़ाका कशी। 

    मुर्दहिया आत्मकथा के प्रमुख पात्र

    मुर्दहिया के महत्वपूर्ण पात्र निम्‍म लिखित है - 

    जूठन - लेखक के दादाजी

    मुसड़िया - सौ वर्ष से ज़्यादा जीने वाली लेखक की दादी

    धीरजा - लेखक की माता

    जंगू पांडे - 80 वर्षीय ब्राह्मण, जिन्हें निवश और अविवाहित होने के कारण गाँव के लोग अपशकुनी मानते थे।

    सोम्मर - लेखक के पिता के बड़े भाई

    मुन्नेसर - लेखक के पिता के दूसरे भाई

    नग्गर - लेखक के पिता के तीसरे भाई

    मुन्नर - लेखक के पिता के चौथे भाई

    अमिका पांडे - साइत बताने वाला

    मुंशी रामसूरत - शिक्षक

    परशुराम सिंह - हेडमास्टर

    अन्‍य पात्र - सुभागिया, संकठा सिंह, करपात्री जी, हीरालाल, किसुनी भौजी, जेदी चाचा/लुरखुर, पत्तू मिसिर, पारसनाथ पाण्डेय, लालबहादुर सिंह, रूपराम, तपसीराम, सुग्रीव सिंह, चिंतामणि सिंह, देवराज सिंह, विजई पाण्डे, अरुण कुमार सिंह आदि। 

    मुर्दहिया आत्मकथा की समीक्षा

    डॉ. तुलसीराम द्वारा रचित आत्मकथा 'मुर्दहिया' में दलितों की पीड़ा को रेखांकित करने के साथ-साथ अपने गाँव धरमपुर (आजमगढ़) के जरिए उस समय के पूरे भारतवर्ष के गाँवों को ही चित्रित कर दिया है। डॉ. तुलसीराम कहते हैं "इसमें मेरा दर्द है, मेरे समाज का दर्द है। मेरा पूरा जीवन ही मुर्दहिया है। मुर्दहिया यानि गाँव का वह कोना जहाँ मुर्दे फूंके जाते हैं, मुर्दहिया यानि गाँव का वह हिस्सा जहाँ मरे हुए जानवरों के चमड़े उतारे जाते हैं।"। 

    तुलसीराम द्वारा अपनी आत्मकथा को मुर्दहिया नाम देना केवल एक शीर्षक मात्र नहीं अपितु उनकी रचना की आत्मा है। 

    'मुर्दहिया' आत्मकथा में गाँव में घटित हर घटना को अन्ध-विश्वास से जोड़कर देखा जाता है। उल्का पिण्ड का रात में टूटने को भूत समझा जाता है। जब कोई उड़ता हुआ कौआ किसी को पैरों या चोंच से मार देता है तो इसे भी अपशकुन माना जाता है। बचपन में डॉ. तुलसीराम को चेचक निकल आने व इसमें उनकी एक आँख चले जाने से घरवालों समेत सभी गाँव वाले उन्हें अपशकुनि मानते हैं। डॉ. तुलसीराम 'मुर्दहिया' आत्मकथा के माध्यम से पूरे भारतीय देहाती गाँव में फैले अन्धविश्वास को अपने गाँव के जरिए बताते हैं। गाँव की दक्षिण दिशा में दलितों को रहने के लिए ब्राह्मणों, ठाकुरों आदि द्वारा विवश किया जाता है, क्योंकि एक हिन्दू अन्धविश्वास के अनुसार किसी भी गाँव की दक्षिण दिशा में ही सर्वप्रथम कोई आपदा या बीमारी आती है।

    एक तरफ धरमपुर गाँव अन्धविश्वास में डूबा पड़ा है, वहीं दूसरी तरफ दलित तुलसीराम ज्ञान हासिल करने के लिए परिवार और समाज की विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए दसवीं कक्षा में प्रथम आते हैं तथा एक होनहार विद्यार्थी के रूप में उनकी ख्याति पूरे गाँव में फैल जाती है। इस प्रकार कठिनाइयों का सामना करते हुए तुलसीराम कॉलेज में पहुँच जाते हैं, लेकिन उनके ही एक दोस्त द्वारा उनके स्कॉलरशिप के 162 रुपये में से 81 रुपये चाकू की नोंक पर लूट लेने से तुलसीराम समझ जाते हैं कि मानवीय मूल्यों पर पैसा हावी है। 

    'मुर्दहिया' आत्मकथा में वेदना, आक्रोश व उत्तेजना का उतावलापन नहीं है अपितु इसमें सभी चीज़ों को बड़ी बारीकियों से पेश किया गया है। तुलसीराम का चमरा और कनवा जैसे अपमानजनक सम्बन्धों से सूचित होते हुए भी इन सभी रूढ़िवादी परिवेश के बीच से अपना रास्ता निकालते हुए ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ना एक प्रेरक प्रसंग के रूप में उभरा है।

    मुर्दहिया (आत्मकथा) के महत्त्वपूर्ण तथ्य

    'मुर्दहिया' डॉ. तुलसीराम द्वारा रचित एक दलित आत्मकथा है जिसका प्रकाशन 'राजकमल प्रकाशन' से सन् 2010 ई. में हुआ। 

    डॉ. तुलसीराम की लेखनी की एक विशेषता है, जो उन्हें तमाम दलित लेखकों से अलग करती है। वह है- उनके अचेतन पर बुद्ध का गहरा प्रभाव

    'मुर्दहिया' अर्थात् गाँव का वह भाग जहाँ मुर्दे जलाये या गाड़े जाते हैं, अथवा जहाँ मरे हुए जानवरों के चमड़े उतारे जाते हैं। 

    मुर्दहिया आत्मकथा की शुरुआत इस पंक्ति से होती है- "मूख़र्ता मेरी जन्मजात विरासत थी।" 

    “मुर्दहिया आत्मकथा के बारे में तुलसीराम का कहना है- “इसमें मेरा दर्द है, मेरे समाज का दर्द है मेरा पूरा जीवन ही मुर्दहिया है।" 

    'मुर्दहिया' तुलसीराम के गाँव का नाम है, जिसके बारे में वे स्वयं पुस्तक की भूमिका में कहते हैं-“मुर्दहिया हमारे गाँव धरमपुर (आजमगढ़) की बहूद्देशीय कर्मस्थली है। चरवाही से लेकर हरवाही तक के सारे रास्ते वहीं से गुजरते थे। इतना ही नहीं स्कूल हो या दूकान, बाज़ार हो या मंदिर, यहाँ तक कि, मज़दूरी के लिए कलकत्ता वाली रेलगाड़ी पकड़ना हो तो भी 'मुर्दहिया' से ही गुज़रना पड़ता था।" 

    तुलसीराम की यह आत्मकथा वस्तुतः अपशकुन से शुभशकुन तक के सफ़र को चित्रित करता है। 

    'भूतही पारिवारिक पृष्ठभूमि' उपशीर्षक में दलित समाज की अपढ़ होने के कारण फैली अंधविश्वास का चित्रण किया गया है। 

    आत्मकथा में तुलसीराम की दादी के द्वारा मृत जानवरों की खाल उतारने का विस्तार से चर्चा है। 

    तुलसीराम का परिवार रूढ़िवादी एवं अंधविश्वासी था। अपने परिवार के बारे में वे स्वयं कहते हैं- “हमारा परिवार संयुक्त रूप से बृहत् होने के साथ-साथ वास्तव में एक अजायबहार ही था। जिसमें भूत-प्रेत, देवी-देवता, संपन्नता-विपन्नता, शकुन-अपशकुन, मान-अपमान, न्याय-अन्याय, सत्य-असत्य, ईर्ष्या-द्वेष, सुख-दुख आदि सबकुछ था, किंतु शिक्षा कभी नहीं थी।" 

    लेखक ने अपने स्कूली जीवन का चित्रण 'मुर्दहिया तथा स्कूल जीवन' नामक उपशीर्षक में की है। 

    Murdahiya Atmakatha MCQ

    प्रश्‍न 01. 'मुर्दहिया, आत्मकथा के लेखक तुलसीराम के परिवार का सदय नहीं है? 

    1. सुन्नर 
    2. मुन्नर 
    3. नग्गर 
    4. नागेश्वर

    उत्तर - 4. नागेश्वर


    प्रश्‍न 02. मुर्दादिया के संदर्भ में विचार कीजिए -

    1. तुलसी राम के गाँव का नाम बारहगांवा है। 
    2. 'मुर्दाहिया' आजमगढ़ में स्थित लेखक के गाँव के शमशान घाट का नाम है। 
    3. 'अकाल में अंधविश्वास 'मुर्दाहिया' के तीसरे खण्ड/ उपशिर्षक का नाम है। 
    4. 'मुर्दाहिया' रचना की भूमिका अखिलेश ने लिखी है। 
    5. मुर्दाहिया, मे राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक 'बोल्गा से गंगा' का उल्लेख मिलता है।

    नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

    (A) केवल 1, 3, 4 और 5 
    (B) केवल 1, 2, 3, और 5 
    (C) केवल 2, 3, 4 और 5 
    (D) केवल 1, 4, 2 और 5

    उत्तर - (B) केवल 1, 2, 3, और 5


    प्रश्‍न 03. 'मुर्दाहिया' में निम्नलिखित उपशीर्षक को पहले से बाद के क्रम मेल लगाइए-

    1. भूतनिया नागिन 
    2. अकाल मे अंधविश्वास 
    3. चले बुद्ध की राह 
    4. भूतही पारिवारिक पृष्ठभूमि 
    5. मुर्दादिमा तथा स्कूली जीवन 

    नीचे दिए गये विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए 

    (a) 1, 2, 4, 5, 3 
    (b) 1, 3, 4, 5, 3 
    (c) 4, 5, 2, 1, 3 
    (d) 4, 3, 2, 5, 1

    उत्तर - (c) 4, 5, 2, 1, 3


    प्रश्‍न 04. 'मुर्दाहिया' के लेखक तुलसीराम को आजमगढ़ जाकर पढ़ाई करने के लिए सुग्रिव सिंह ने कितने रुपये दिए थे? 

    1. बीस रुपये 
    2. चालिस रुपये 
    3. तीस रुपये 
    4. पचास रुपये 

    उत्तर - 3. तीस रुपये


    प्रश्‍न 05. 'मुर्दहिया' में हेडमास्टर के रूप में कौन सा पात्र है? 

    1. परशुराम 
    2. संकठा सिंह 
    3. सुग्रीव सिंह 
    4. देवराज सिंह
    उत्तर - 1. परशुराम

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